अनुवादकों का राजकुमार:
29 नवम्बर 2022युगों के लिए ईश्वरविज्ञानी: जॉन कैल्विन
6 दिसम्बर 2022वाचाई ईश्वरविज्ञानी: हेनरिक बुलिंगर
हेनरिक बुलिंगर (1504-1575) को दूसरी-पीढ़ी के अत्यन्त प्रभावशाली धर्मसुधारक के रूप में देखा जाता है। स्विट्ज़रलैन्ड के ज्यूरिख में उलरिच ज्विंगली के उत्तराधिकारी के रूप में, उन्होंने स्विस धर्मसुधार को संघटित किया और निरन्तर बनाए रखा, जिसे उनके पूर्ववर्ती ने आरम्भ किया था। फिलिप शैफ लिखते हैं कि बुलिंगर
एक दृढ़ विश्वास, साहस, संतुलित, धैर्य, और धीरज के व्यक्ति थे. . . . [जो] प्रावधानिक रूप से कठिन समय में सत्य को संरक्षित और आगे बढ़ाने के लिए तैयार किए गए थे। ज्यूरिख में मुख्य सेवक के रूप में अपने चवालीस वर्षों में, बुलिंगर का साहित्यिक लेखनी मार्टिन लूथर, जॉन केल्विन, और ज़्विंगली के संयुक्त साहित्य से अधिक था। उनका पूरे धर्मसुधार के समय धर्मसुधारवादी शिक्षा के प्रसार में अति महत्वपूर्ण महत्व था। महाद्वीपीय यूरोप और इंगलैण्ड में बुलिंगर की प्रभाव इतनी दूर तक था कि थियोडोर बेज़ा उन्हें “सभी मसीही कलीसियाओं का सामूहिक चरवाहा” कहते थे।
बुलिंगर का जन्म18 जुलाई 1504 को, ज्यूरिख से दस मील पश्चिम में, स्विट्ज़रलैंड के एक छोटे नगर ब्रेमगार्टन में हुआ। उनके पिता, जिनका नाम भी हेनरिक था, वह स्थानीय कैथलिक कलीसिया के पुरोहित थे, जो अन्ना विडेरकेहर के साथ बिना विवाह (common law marriage) किए रहते थे। यह प्रथा रोमी कैथलिक अधिकारियों द्वारा वर्जित थी, परन्तु बुलिंगर के पिता को अपने बिशप को वार्षिक शुल्क देने के लिए सहमत होने के द्वारा ऐसे सम्बन्ध में प्रवेश करने की अनुमति प्राप्त थी। छोटा हेनरिक इस अवैध विवाह से उत्पन्न हुई पाँचवी संतान थी। बुलिंगर के माता-पिता के बीच विवाह को अन्ततः 1529 में औपचारिक रूप दिया गया, जब बड़े बुलिंगर धर्मसुधार आंदोलन से जुड़े।
जवान हेनरिक के पिता ने उन्हें बहुत कम उम्र से ही पुरोहिताई के लिए तैयार किया था। बारह वर्ष की उम्र में, उन्हें एमेरिक में वैरागियों (monastic) के विद्यालय भेजा गया था, जो ब्रेदरेन ऑफ द कॉमन लाइफ के नाम से जाना जाता था। यह विद्यालय वाया एंटीक (via antique), अर्थात् “पुरानी रीति” से सीखने का एक गढ़ था जिसपर उच्च मध्य युग के ईश्वरविज्ञानियों जैसे थॉमस एक्विनास (1225-1274) और जॉन डन्स स्कोटस (1265-1308) द्वारा बल दिया गया था। वहाँ, बुलिंगर को मानवतावादी सिद्धान्तों, विशेषकर लैटिन में एक उच्च शिक्षा प्राप्त हुई। उसी समय, वह डिवोटियो मॉडर्ना (devotio moderna), “आधुनिक भक्ति” के प्रभाव में आए, जो कि प्रभु-भोज (Eucharist) और गहन आत्मिक जीवन पर मध्यकालीन युग का प्रभाव था। ऑगस्टीन और बर्नार्ड इस भक्तिवाद आन्दोलन (pietistic movement) के प्रथम अगुवों में से थे, और यह थॉमस ए. केम्पिस द्वारा उनकी पुस्तक द इमिटेशन ऑफ क्राइस्ट (The Imitation of Christ) में पुनर्जीवित किया गया। बुलिंगर मनन पर और परमेश्वर के साथ व्यक्तिगत आत्मिक अनुभव की खोज पर बल देने के कारण इस आन्दोलन की ओर आकर्षित हुए। साथ ही इसी समय, बुलिंगर ने विद्वता के लिए उल्लेखनीय योग्यता का प्रदर्शन करना आरम्भ कर दिया।
कोलोन विश्वविद्यालय
तीन वर्ष पश्चात्, 1519 में, बुलिंगर कोलोन विश्वविद्यालय गए, जहाँ उन्होंने परम्परागत विद्यानुरागी ईश्वरविज्ञान (traditional Scholastic theology) की शिक्षा आरम्भ की। कोलोन जर्मनी का सबसे बड़ा नगर था, और रोमी कैथलिकवाद वहाँ गहराई से स्थापित था—नगर में पोप पर अन्धविश्वास चरम पर था और जर्मनी के रहस्यवादी बड़ी संख्या में वहाँ एकत्रित होते थे। एक्विनास और स्कोटस ने वहाँ पूर्व में शिक्षा दी थी, और उनका विद्यानुरागी प्रभाव दृढ़ता से कोलोन में बना हुआ था। परन्तु बुलिंगर मानवतावादी दृष्टिकोण से कायल थे। अपने अध्ययन में, उन्होंने कलीसिया के पिताओं, विशेषकर एम्ब्रॉस, क्राइसॉस्टॉम, और ऑगस्टीन के लेखन का अनुसरण किया। पवित्रशास्त्र को प्राथमिकता देने के उनके आग्रह ने बुलिंगर को स्वयं के लिए बाइबल का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया। बाद में उन्होंने स्वीकार किया, कि ऐसा अनुसरण, उनके अधिकांश साथी विद्यार्थियों के लिए आज्ञात था।
कोलोन में रहते हुए, बुलिंगर उस समय के प्रमुख मानवतावादी, रॉटरडैम के डेसिडेरियस इरैस्मस (1466-1536), की शिक्षाओं से अवगत हुए। इरैस्मस ने पवित्रशास्त्र को अरस्तू के तर्क से ऊँचा किया और मानवतावादी विद्वता और ख्रीष्ट की नैतिक शिक्षाओं के माध्यम से कलीसिया को सुधारने की माँग की। परन्तु यह लूथर के कार्य थे जिन्होंने बुलिंगर के विचारों को सबसे अधिक चुनौती दी थी। लूथर की पुस्तकें कोलोन में जलाई जा रहीं थीं, जिसने उन पुस्तकों की सामग्री में बुलिंगर की रुचि उत्पन्न कर दी। शीघ्र ही लूथर के विचार उनके मस्तिष्क में भर गए। उन्होंने लूथरवादी ईश्वरविज्ञान के प्रथम विधिवत प्रशोधन फिलिप मेलन्चथॉन के लॉकी कम्यून्स (Loci communes ) (1521) का भी अध्ययन किया। इसमें, मेलन्चथॉन ने केवल विश्वास के द्वारा इच्छा और धर्मीकरण के बँधन के धर्मसुधारवादी प्रमाणिक सिद्धान्तों का विवेचन किया। इस कार्य ने और अधिक प्रभावित किया। धर्मसुधार का बीज उनके मन में बोया जाने लगा था। सत्रह वर्ष की उम्र में, अत्याधिक महत्वपूर्ण सत्य को स्वीकार किया कि एकमात्र ख्रीष्ट में केवल विश्वास के द्वारा ही धर्मीकरण हो सकता है। इस व्यक्तिगत परिवर्तन के मध्य, बुलिंगर ने अपनी स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त कर ली।
1522 में, बुलिंगर एक नए व्यक्ति के रूप में ब्रेमगार्टन में घर लौटे। वे कलीसिया के पिताओं, लूथर, और मेलन्चथॉन के विषय में पढ़ने के साथ-साथ पवित्रशास्त्र का सतत अध्ययन करते रहे। अगले वर्ष, कप्पल में सिस्टर्शियन कॉन्वेन्ट में विद्यालय के प्रधानाचार्य बन गए।1523 से 1529 तक, वे सन्तों को नए नियम से शिक्षा देते रहे और धर्मसुधारवादी शिक्षा का आरम्भ किया। उनके प्रभाव में, मिस्सा(Mass) ने प्रोटेस्टेन्ट आराधना का स्थान ले लिया। इसके अतिरिक्त, कई सन्त धर्मसुधारवादी सेवक बन गए।
बुलिंगर ने 1527 पाँच महिने का अवकाश लिया और ज्यूरिख की यात्रा की। यह यात्रा उनके लिए जीवन परिवर्तन करने वाली सिद्ध हुई। उन्होंने ज़्विंगली के व्याख्यानों में भाग लिया और उस स्विट्ज़रलैंड के धर्मसुधारक से मिले, और एक ऐसे सम्बन्ध का आरम्भ हुआ जिसका उनपर और स्विट्ज़रलैंड के धर्मसुधार के भविष्य पर एक गहरा प्रभाव पड़ा। उन्हें ज़्विंगली के साथ बर्न में तर्क-वितर्क के लिए नियुक्त किया गया, जो 7 जनवरी, 1528 को आरम्भ हुआ। इस अवसर पर, बर्न के दस शोध (Ten Theses of Berne) प्रस्तुत और स्वीकार किए गए। इन सबके माध्यम से, बुलिंगर को धर्मसुधार कार्यकलापों को भीतर से देखने का विशेषाधिकार प्राप्त हुआ। इसके पश्चात्, बुलिंगर ने ज़्विंगली के साथ ईश्वरविज्ञान पर चर्चा करने के लिए ज्यूरिख की एक वार्षिक यात्रा आरम्भ की। इस घनिष्ठ सम्बन्ध के माध्यम से, ज़्विंगली बुलिंगर की पवित्रशास्त्र में क्षमताओं से परिचित हुए। यद्यपि उस समय उन दोनों में से कोई नहीं जानता था कि, बुलिंगर को ज़्विंगली का उत्तराधिकारी बनने के लिए तैयार किया जा रहा है।
हौसेन और ब्रेमगार्टन में पास्टर
इसके पश्चात1528 में, बुलिंगर कप्पल के निकट, हौसन में एक ग्रामीण कलीसिया के अंशकालिक पास्टर बन गए। उन्होंने अपना पहला उपदेश 21 जून को दिया, यह एक ऐसी नियुक्ति का आरम्भ था जिसने उनके उपदेशिय वरदानों को विकसित होने का अवसर दिया। अगले वर्ष, हेनरिक सीनियर ने सार्वजनिक रूप से धर्मसुधारवादी शिक्षा के प्रति अपने समर्पण की घोषणा की और ब्रेमगार्टन में अपनी स्थानीय कैथलिक कलीसिया का सुधार करना आरम्भ कर दिया। यद्यपि, बड़े बुलिंगर को अपने ग्रामवासियों के प्रतिरोध के कारण अपना पदत्याग करने के लिए दबाव डाला गया। घटनाओं में परिवर्तन के कारण, छोटे बुलिंगर कलीसिया के पास्टर के रूप में अपने पिता के उत्तराधिकारी बने। उन्होंने अपने पिता द्वारा आरम्भ किया गया बाइबलीय सुधार अनवरत रखा और ब्रेमगार्टन के धर्मसुधारक के रूप में जाना जाने लगे।
एक पत्नी की इच्छा में, बुलिंगर ने 1529 में ओटेनबैक में पूर्व डोमिनिकन कॉन्वेन्ट (Dominican convent) की यात्रा की, यह सुनकर की कैथलिक नन (nuns) धर्मसुधारवादी बन गयी हैं। नन के रहने का स्थान (nunnery) छिन्न-भिन्न हो चुका था, परन्तु दो महिलाएँ प्रोटेस्टेन्ट साक्षी को स्थापित करने के लिए रुक गयीं थीं। एक थी अन्ना एडिशवाएलर, एक समर्पित विश्वासी। बुलिंगर ने उनसे अपनी पत्नी बनने के लिए पूछा और उन्होंने स्वीकार कर लिया। इन वर्षों में, उनके स्वयं की ग्यारह संतान हुये और अन्यों को उन्होंने गोद लिया। उल्लेखनीय रूप से, उनके सभी छः बेटे प्रोटेस्टेन्ट सेवक बने।
अगले दो वर्षों के लिए, बुलिंगर ने अपने उपदेशिय और अपनी फलदायक लेखन सेवकाई के आरम्भ के माध्यम से धर्मसुधार शिक्षा फैलाने में सहायता की। इस समय, उन्होंने नए नियम की पुस्तकों पर टिप्पणियों की अपनी लम्बी शृन्खला आरम्भ कर दी थी।
स्विट्ज़रलैण्ड में प्रोटेस्टेन्ट विश्वास की बढ़ती दृढ़ स्थिति के साथ, रोमी कैथलिक प्रतिरोध शीघ्र ही आरम्भ हो गया। पाँच कैथलिक प्रान्तों ने (राज्य), ज्यूरिख में प्रोटेस्टेन्टवाद के उदय से सतर्क हो कर, अक्टूबर 1531 में इस धर्मसुधारवादी गढ़ पर युद्ध की घोषणा कर दी। किसी भी प्रोटेस्टेन्ट प्रान्त ने ज्यूरिख को कोई सहयोग नहीं दिया। अक्टूबर 11 को, कप्पल की लड़ाई में, प्रोटेस्टेन्ट लोगों पर घात लगाकर हमला किया और ज़्विंगली, जो एक सैन्य पादरी के रूप में सेवा कर रहा था, उसे मार दिया। ज्यूरिख पर शान्ति की प्रतिकूल शर्तों को मानने के लिए दबाव डाला गया। ब्रेमगार्टन समेत, स्विट्ज़रलैण्ड के कुछ क्षेत्र, कैथोलिकवाद में लौट गये।
एक मान्यता प्राप्त प्रोटेस्टेन्ट अगुवे, बुलिंगर को, फाँसी देकर मारने की धमकी दी गयी थी। वह ज्यूरिख से भाग गए, जहाँ, तीन दिन पश्चात्, उन्हें ज़्विंगली के रिक्त उपदेशमंच से उपदेश देने के लिए कहा गया। बुलिंगर का उपदेश इतना सामर्थी था कि लोग चिल्ला कर कहने लगे कि वह ज़्विंगली का दूसरा आगमन ही है। ओस्वाल्ड माइकोनियस, ज़्विंगली के एक अनुयायी, ने कहा, “ स्विट्ज़रलैंड की कलीसियाओं के लिए यह अत्यन्त महत्वपूर्ण था कि ज़्विंगली का स्थान उसी के समान एक धर्मसुधारवादी विश्वास और प्रभु के कार्य में प्रचुर ऊर्जा वाले एक पुरुष के द्वारा प्रतिस्थापित किया जाए। बुलिंगर में, उन्हें ऐसा एक पुरुष मिल गया।
ज्यूरिख के मुख्यसेवक
छः सप्ताह पश्चात्, 9 दिसम्बर, 1531 को, बुलिंगर को, जो केवल सत्ताईस वर्ष के थे, सर्वसम्मति से ज़्विंगली के उत्तराधिकारी होने के लिए ज्यूरिख परिषद और नागरिकों द्वारा चुना गया। नगर में जीवन के सभी पहलूओं पर उपदेश देने के लिए पादरी वर्ग (clergy) की स्वतन्त्रता के आश्वासन के प्रति परिषद की सहमति के पश्चात्, बुलिंगर ने पद स्वीकार कर लिया। वह नगर के ”मुख्य सेवक” (antistes) बन गए। ऐसा करते हुए, उन्होंने जर्मन भाषी स्विट्ज़रलैण्ड में धर्मसुधारवादी आंदोलन का नेतृत्व को स्वीकार किया। 23 दिसम्बर को, उन्होंने ग्रॉसमुन्स्टर के उपदेशमंच को ले लिया, वह पद जिस पर वे 1575 में अपनी मृत्यु तक चवालीस वर्षों तक रहे। इस भूमिका में, बुलिंगर ने “धर्मसुधारवादी बिशप” के रूप में प्रान्तीय धर्मसभा (cantonal synod) की अन्य कलीसियाओं की अध्यक्षता की। वह विद्यालय प्रणाली के धर्मसुधार के लिए भी उत्तरदायी थे।
बुलिंगर एक अथक उपदेशक थे। ज्यूरिख में अपनी सेवकाई के प्रथम दस वर्षों में, वह एक सप्ताह में छः या सात बार उपदेश देते थे। 1542 के पश्चात्, वह सप्ताह में दो बार उपदेश देते थे, रविवार और शुक्रवार को, जो उन्हें कठिन लेखन समय-सारणी में समर्पित रखता था। बुलिंगर ने लेक्टियो कॉन्टिनुआ (lectio continua क्रमवत तरीके से पढ़ना) प्रचार की विधि में ज़्विंगली का अनुसरण किया, पवित्रशास्त्र की समस्त पुस्तकों के द्वारा एक-एक पद कर के बढ़ना। उनके अर्थप्रकाशात्मक (expository) उपदेश बाइबलीय, सहज, स्पष्ट, और व्यवहारिक थे। सब मिलाकर, यह अनुमान लगाया जाता है कि बुलिंगर ने ज्यूरिक में सात हज़ार से पचहत्तर सौ के बीच उपदेश दिए। यह अर्थप्रकाशन उनकी टिप्पणियों का आधार बनीं, जिसने अधिकांश बाइबल को सम्मिलित कर लिया था।
बुलिंगर एक बड़े हृदय के पास्टर भी थे। उनका घर विधवाओं, अनाथों, अनजानों, निर्वासित लोगों, और सताए हुए भाईयों के लिए खुला हुआ था। वह स्वतन्त्रतापूर्वक उन लोगों को भोजन, कपड़ा, और धन प्रदान करते थे जो आवश्यकता में होते थे। यहाँ तक कि बुलिंगर ने ज़्विंगली की विधवा के लिए अनुवृत्ति (pension) भी सुरक्षित रखी और ज़्विंगली के बच्चों को अपने बेटे और बेटियों के साथ शिक्षित किया। वह एक भक्तिमय पास्टर थे जिन्होंने बीमारों और मरने वालों को सांत्वना देने के लिए पहली प्रोटेस्टेन्ट पुस्तक ले कर आए। इंगलैण्ड के कई सताए हुए विश्वासी बुलिंगर की खुली बाहों में शरण पा कर, ज्यूरिख में मैरी ट्यूडर के आतंक के शासन से बच गए। अपने घर लौटने पर, ये शरणार्थी प्रमुख अंग्रेजी प्यूरिटन बन गए।
विचारणीय ईश्वरविज्ञानी योग्यताओं वाले एक व्यक्ति, बुलिंगर ने प्रथम हेल्वेटिक पाप-अंगीकार (First Helvetic Confession 1536) के सह-लेखन में सहायता की और कॉन्सेन्सस टिगुरिनस (Consensus Tigurinus 1549) में एक मुख्य भूमिका निभाई। पहले वाला स्स्विट्ज़रलैंड का प्रथम राष्ट्रीय अंगीकार था; दूसरा वाला केल्विन और बुलिंगर द्वारा प्रभु भोज पर प्रोटेस्टेन्ट असहमति को सुधारने का एक प्रयास था। इस प्रलेख पर चर्चा के समय, बुलिंगर ने केल्विन को आमने-सामने बातचीत के लिए ज्यूरिख आमन्त्रित किया। केल्विन ने आमन्त्रण स्वीकार कर लिया। 20 मई, 1549 को, उन्होंने और विलियम फैरेल ने ज्यूरिख की यात्रा की, जहाँ उनकी भेंट बुलिंगर से हुई। केल्विन और बुलिंगर धार्मिक विधियों के सम्बन्ध में एक सहमति पर पहुँचे जिसने जिनेवा और ज्यूरिक में धर्मसुधार प्रयासों को एकजुट किया। इन अंगीकार के प्रलेखों के द्वारा, बुलिंगर ने स्विट्ज़रलैण्ड को इसके धर्मसुधार काल के आरम्भ के समय उत्साहित किया। उन्होंने प्रभु भोज में द्विसत्त्ववाद (consubstantiation) के लूथरवादी सिद्धान्त का विरोध किया और बपतिस्मा पर पुनः बपतिस्मा देने वाली शिक्षा का खण्डन किया। यद्यपि, वह विभिन्न कट्टरपन्थी आंदोलनों के प्रति खुले विचारों के रहे।
इस पूरे समय में, एडवर्ड VI (550) और एलीज़ाबेथ I (1566) समेत, अंग्रेजी राजघरानों द्वारा बुलिंगर से परामर्श किया गया। वह इंगलैंड की कलीसिया के अगुवों को सह धर्मसुधारवादी पादरी जन के रूप में देखते थे क्योंकि वे रोम के विरूद्ध संघर्ष कर रहे थे। उनकी पुस्तक डिकेड्स (Decades) के कुछ हिस्से एडवर्ड VI और लेडी जेन ग्रे को समर्पित थे। व्यापक स्तर पर, उन्होंने हेस्से के फिलिप सहित, सम्पूर्ण प्रोटेस्टेन्ट संसार में धर्मसुधारवादी अगुवों के साथ पत्राचार बनाए रखा था। उनके बुद्धिमान और संतुलित परामर्श ने धर्मसुधारवादी आंदोलन में कई लोगों को आवश्यक दिशा दी।
बुलिंगर के अन्तिम वर्षों में, उन्हें अपनी पत्नी अन्ना, और उनकी कई बेटियों की दुखद मृत्यु का सामना करना पड़ा। 1564 और 1565 के प्लेग के प्रकोप में उन लोगों के जीवन चले गए। स्वयं बुलिंगर भी दूसरे प्रकोप में गम्भीर रूप से बीमार हो गए थे। यद्यपि वे प्रकोप से बच गए, पर वे अस्वस्थ्य बने रहे, और चार दशक की अथक और प्रभावशाली सेवकाई के पश्चात्, 17 दिसम्बर को उनकी मृत्यु हो गयी। वे अपने पीछे सम्प्रभु अनुग्रह के सत्यों में एक समृद्ध विरासत छोड़ गए जिसने धर्मसुधार को ईश्वरविज्ञानी और कलीसियाई व्यवस्था देने में सहायता की।
और देखें :
- धर्म-सुधार तथा इसके लिए कार्य करने वाले पुरुष
- सत्य के लिए गढ़: मार्टिन लूथर
- ज़्यूरिक की क्रान्ति: उलरिख ज़्विंग्ली
- अनुवादकों का राजकुमार: विलियम टिन्डेल
- वाचाई ईश्वरविज्ञानी: हेनरिक बुलिंगर
- युगों के लिए ईश्वरविज्ञानी: जॉन कैल्विन
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।