अनुग्रह के सिद्धान्त : उसके अनुग्रह के द्वारा और उसकी महिमा के लिए - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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अनुग्रह के सिद्धान्त : उसके अनुग्रह के द्वारा और उसकी महिमा के लिए

“जिन लोगों को उद्धार प्राप्त हो गया है, उन्हें इसका श्रेय  केवल सार्वभौमिक अनुग्रह को देना चाहिए, और सम्पूर्ण स्तुति उसे देना चाहिए, जो उन्हें दूसरों से अलग बनाता है।”–जॉनथन एडवर्ड्स

अनुग्रह के सिद्धान्तों को यह नाम दिया जाता है क्योंकि ईश्वरविज्ञान के इन पाँच प्रमुख शीर्षकों में, जिन्हें प्रायः बाइबलीय कैल्विनवाद के पाँच बिन्दुओं के रूप में पहचाना जाता है, परमेश्वर के उद्धार देने वाले अनुग्रह की  शुद्धतम अभिव्यक्ति पाई जाती है। इन पांचों सिद्धान्तों में से प्रत्येक—सम्पूर्ण भ्रष्टता, सार्वभौमिक चुनाव, निश्चित प्रायश्चित्त, अप्रतिरोधीय बुलाहट और सुरक्षित रखने वाला अनुग्रह—परमेश्वर के महान सार्वभौमिक अनुग्रह को प्रदर्शित करते हैं। ये पांचों शीर्षक एकत्र खड़े होते हैं परमेश्वर के उद्धार कराने के उद्देश्यों के एक व्यापक कथन के रूप में। इस कारण से, वास्तव में अनुग्रह के सिद्धान्तों का केवल एक ही बिन्दु है, अर्थात, कि परमेश्वर पापियों का उद्धार करता है अपने अनुग्रह के द्वारा और अपनी महिमा के लिए। ये दो वास्तविकताएं—परमेश्वर का अनुग्रह और उसकी महिमा—एक साथ अविभाज्य रूप से बंधी हुई हैं। जो कुछ भी परमेश्वर के अनुग्रह को सबसे अधिक ऊँचे पर उठाता है वह उसकी महिमा को भी सबसे अधिक ऊँचे पर उठाता है। और परमेश्वर के अनुग्रह को सबसे अधिक ऊँचा ऊठाता है अनुग्रह के सिद्धान्तों में व्यक्त किया गया सत्य।

दूसरी ओर, पाँच में से किसी भी बिन्दु से समझौता करना परमेश्वर के अनुग्रह को फीका करता है और घटाता है। उदाहरण के लिए, मनुष्य के केवल आंशिक भ्रष्टता के बारे में बात करना, जिसमें खोया हुआ पापी अपने पाप में केवल आत्मिक रूप से बीमार है, एक त्रुटिपूर्ण निदान करता है जो परमेश्वर के अनुग्रह को अत्यधिक घटाता है। उसी प्रकार से, एक प्रतिबन्धित  चुनाव को मानना जो मनुष्य के विश्वास के बारे में परमेश्वर के पूर्वज्ञान पर निर्भर है, परमेश्वर के अनुग्रह को दूषित करता है। यह सिखाना कि ख्रीष्ट ने विश्वव्यापी  प्रायश्चित्त किया है, जिससे उद्धार सम्भव हो गया सभी के लिए (हालाँकि किसी के लिए भी वास्तविक नहीं), परमेश्वर के अनुग्रह को सस्ता कर देता है। एक प्रतिरोधनीय  बुलाहट पर विश्वास करना जो मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा को अनुमति देता है परमेश्वर के अनुग्रह के साथ समझौता करता है। और उलटनीय  अनुग्रह के बारे में सोचना, जो मनुष्य को विश्वास से दूर होने की अनुमति देता है, परमेश्वर के शुद्ध अनुग्रह को दूषित करता है। ये विचार परमेश्वर के अनुग्रह को अवमूल्यवान करते हैं, और इस कारण, दुख के साथ कहना पड़ता है, वे परमेश्वर की महिमा को लूटते हैं। और फिर भी, इस प्रकार के विचार आज व्यापक रूप से कलीसिया में पाए जाते हैं। ईश्वरविज्ञान की किसी भी  समन्वयवादी अर्मिलियसवादी  व्यवस्था में, उद्धार को देखा जाता है थोड़ा सा  परमेश्वर की ओर से और थोड़ा सा  मनुष्य की ओर से—चाहे वह ऐसा हो कि मनुष्य अपने अच्छे कार्यों को जोड़ता है या वह योगदान देता है अपने स्वयं से उत्पन्न विश्वास को ख्रीष्ट के पूर्ण कार्य में। ये युक्तियां परमेश्वर और मनुष्य के मध्य में महिमा को विभाजित करती हैं। व्यक्ति जिस भी सीमा तक अनुग्रह के पाँच सिद्धान्तों में से किसी से भी हटता है, वह उस महिमा को घटाता है जो केवल परमेश्वर के योग्य है पापियों के उद्धार के लिए।

केवल परमेश्वर को महिमा देना

सन 2000 में अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले, जेम्स मौंटगोमरी बोइस ने लिखा:

“परमेश्वर के बारे में उच्च विचार रखने का अर्थ परमेश्वर को महिमा देने से अधिक है … इसका अर्थ है कि केवल  परमेश्वर को ही महिमा देना है। यह अन्तर है कैल्विनवाद और आर्मिनियसवाद के मध्य। जबकि पहले वाला घोषित करता है कि केवल परमेश्वर ही पापियों को बचाता है, बाद वाला यह विचारा देता है कि परमेश्वर पापियों को सक्षम बनाता है स्वयं को बचाने में कुछ भाग लेने के लिए। कैल्विनवाद उद्धार को त्रिएक परमेश्वर के कार्य के रूप में प्रस्तुत करता है—पिता द्वारा चुनाव, पुत्र में छुटकारा, आत्मा द्वारा बुलाहट। इससे आगे, इन बचाने वाले कार्यों में से प्रत्येक को चुने हुओं की ओर निर्देशित किया जाता है, जिससे उनका उद्धार सुरक्षित होता है। इसके विपरीत, आर्मिनियसवाद उद्धार को देखता है एक ऐसी बात के रूप में जिसे परमेश्वर सम्भव बनाता है किन्तु मनुष्य वास्तविक बनाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर के उद्धार करने वाले कार्य को विभिन्न  व्यक्तियों की ओर निर्देशित किए जाते हैं: पुत्र का उद्धार सामान्य रूप से मानवता के लिए है; आत्मा की बुलाहट केवल उन लोगों के लिए है जो सुसमाचार सुनते हैं; इससे भी सकरा, पिता का चुनाव केवल उन लोगों के लिए है जो सुसमाचार पर विश्वास करते हैं। फिर भी इन बातों में से किसी में भी (छुटकारा, बुलाहट या चुनाव) परमेश्वर वास्तव  में एक भी पापी के उद्धार को सुरक्षित नहीं करता है! अनिवार्य परिणाम यह है कि परमेश्वरीय अनुग्रह पर पूर्णतः निर्भर न होते हुए, उद्धार आंशिक रूप से एक मानवीय प्रतिक्रिया पर निर्भर है। इसलिए यद्यपि आर्मिनियसवाद परमेश्वर को महिमा देने के लिए तैयार हैं, जब उद्धार की बात आती है, वह उसको सारी  महिमा देने के लिए तैयार नहीं है। वह महिमा को विभाजित करता है स्वर्ग और पृथ्वी के मध्य, क्योंकि यदि मनुष्य की परमेश्वर को चुनने की क्षमता अन्ततः बचाए जाने और खो जाने के बीच अन्तर करती है, तो केवल उस सीमा तक परमेश्वर को उसकी महिमा से लूट लिया जाता है। फिर भी परमेश्वर ने स्वयं कहा है, ‘मैं अपनी महिमा दूसरे को नहीं दूंगा’ (यशायाह 48:11)।”

इसी कारण से अनुग्रह के सिद्धान्त की हमारे कलीसियाओं में बहुत अधिक आवश्यकता है। वे महिमा देते हैं केवल  परमेश्वर को। वे उद्धार को परिभाषित करते हैं केवल परमेश्वर की ओर से। जब उद्धार सही रीति से इस तरह से समझा जाता है, तब—और केवल  तब ही—केवल परमेश्वर को सारी  महिमा मिलती है उसके लिए। केवल सोला ग्राटिया  उत्पन्न करता है सोली डियो ग्लोरिया  को।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

स्टीवन जे. लॉसन
स्टीवन जे. लॉसन
डॉ. स्टीवन जे. लॉसन वनपैशन मिनिस्ट्रीज़ के अध्यक्ष और संस्थापक हैं, जो लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ के एक सह शिक्षक हैं, और कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें, फाउंडेशन ऑफ ग्रेस और द मूमेन्ट ऑफ ट्रूथ सम्मिलित है।