आर्थिक हानि का भय - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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आर्थिक हानि का भय

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का तीसरा अध्याय है: भय

विचार करें कि कितना अधिक आपका जीवन आपके आर्थिक स्थिरता पर निर्भर है। आप एक गर्म शयनकक्ष में सो कर उठे क्योंकि आपने बिजली के बिल का भुगतान किया। आपने नाश्ता किया क्योंकि आपने खाने का समान मोल लिया। आप अपने घर से कार्यालय गए क्योंकि आपने ट्रेन का टिकट भुगतान किया या कार के लिए ईंधन मोल लिया। आपने उपयुक्त कपड़े मोलकर पहना जो आपके कार्य के अनुरूप हैं। आपका कार्य गर्मी, भोजन, परिवहन और कपड़ो के लिए एक नियमित आय प्रदान करती है। और यह केवल बड़ी वास्तविकता की छोटी सी झलक है। लगभग आज जो कुछ भी आपके हाथ ने छुआ है वह पैसे के चिह्न से जुड़ा हुआ है।

यह देखते हुए कि जीवन की आधारभूत आवश्यकताएं आर्थिक सम्पन्नता से जुड़ी है, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ख्रीष्टीय लोग भी आर्थिक हानि के भय से संघर्ष कर सकते हैं। इस पतित संसार में, वे लोग भी जो परिश्रम से कार्य करते हैं और बजट बनाते हैं, कभी-कभी अपने व्यय को अपनी आय से अधिक पाते हैं। लम्बे समय की बीमारी बचत को मिटा देती है। शेयर बाजार में घाटा सेवानिवृत्ति खाताओं को नष्ट करती है। जीवन के सबसे अच्छी स्थिति में भी नौकरी से निकाल दिया जाता है। दिवालियापन हमें धमकी देती है। भूख और बेघर बहुत कम होने वाली समस्याएं नहीं हैं। आर्थिक सुरक्षा की नश्वरता पाप-शापित और पीड़ित संसार में रहने की वास्तविकता के भाग हैं (नीतिवचन 23:4-5; 1 तीमुथियुस 6:7)।

इसके विषय में चिन्तित होना उचित है, परन्तु प्रायः हमारे जीवन आर्थिक नष्ट की सम्भावना को कम करने के लिए पापपूर्ण प्रतिक्रियाओं और रणनीतियों को प्रकट करते हैं। हमारी चिन्ता तीव्रता से बढ़ती है। हम अत्यधिक कार्य करने वाले व्यक्ति बन जाते हैं। हम अपना धन संचित करते हैं, यह डरते हुए कि यह कभी भी पर्याप्त नहीं होगा (लूका 12:13-21)। हम कंजूस और धूर्त बन जाते हैं, और  प्रत्येक निर्णय और सम्बन्ध के साथ ऐसे व्यवहार करते हैं, जैसे कि यह एक आर्थिक पत्र हो। उदारता सूख जाती है। और फिर भी, हानि का भूत बना रहता है। तो फिर कैसे हम इस सम्भावना का सामना कर सकते हैं परमेश्वर में बढ़ते हुए भरोसा के साथ बढ़ती हुयी चिन्ता के बदले?

यह अति महत्वपूर्ण है कि हम समझें और भरोसा करें कि परमेश्वर प्रेम करने वाला, उदार पिता है जो अपने बच्चों की चिन्ता करता है और जो हमारे लिए सबसे आवश्यक वस्तुओं को प्रदान करता है। लोभ और सम्पत्ति पर चर्चा के सन्दर्भ में, यीशु अपने शिष्यों से कहता है, “इस कारण मैं तुमसे कहता हूँ, अपने जीवन के लिए यह कहकर चिन्ता न करना कि हम क्या खाएंगे; और न अपने शरीर के लिए चिन्ता करो कि क्या पहिनेंगे” (लूका 12:22)। सम्भावित आर्थिक हानि के चिन्ताओं से भरोसा की ओर जाने के लिए हमें क्या साहस देता है? आगे के पद (23-24) चार बातों को पर प्रकाश डालती हैं।

  1. जीवन अस्थायी आवश्यकताओं की पूर्ति से बढ़कर है (पद 23)। 

भोजन और कपड़े जितने महत्वपूर्ण हैं (और इससे सम्बन्धित,वे आर्थिक संसाधन जो उनके क्रय को सक्षम करते हैं), बहुतायत के जीवन के लिए कुछ है जो उस से भी अधिक महत्वपूर्ण है। उन लोगों के विपरीत, जो इन वस्तुओं को पाने ही के लिए उनकी “खोज में रहते हैं,” यीशु अपने शिष्यों से विनती करता है कि वे पहले उसके राज्य की खोज करें (पद 31; मत्ती 6:33)। इस राज्य की प्राथमिकता के अनुसार जीने के द्वारा पौलुस कह सकता है: “इसलिए हम साहस नहीं खोते, यद्यपि हमारे बाहरी मनुष्यत्व का क्षय होता जा रहा है, तथापि हमारे आन्तरिक मनुष्यत्व का दिन-प्रतिदिन नवीनीकरण होता जा रहा है” (2 कुरिन्थियों 4:16)।

  1. परमेश्वर अपने प्राणियों में सब से छोटे के लिए भी प्रावधान कराता है (लूका 12:24-28)।

यदि वह कौवे को खिलाता है और सोसन के पौधों को सुन्दरता से पहनाता है, तो क्या वह उन मनुष्यों के लिए प्रावदान नहीं करेगा जो उसकी सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ हैं? वह जानता है कि हमें क्या आवश्यकता है (पद 30)। वह हमें पत्थर नहीं देगा यदि हम उस से रोटी मांगें (मत्ती 7:9)।

  1. हम परमेश्वर के झुण्ड के भाग है (लूका 12:32)। हम ख्रीष्ट में अपने भाई और बहनों के समुदाय में है।

परमेश्वर के प्रावधान पर भरोसा करने में यह विश्वास करना सम्मिलित है कि जब हम आर्थिक संकट की स्थिति में उस से सहायता मांगते हैं तो वह लोगों को हमारी सहायता के लिए खड़ा करेगा। यरूशलेम की कलीसिया के लिए पौलुस के द्वारा धन संचय करना ख्रीष्ट के देह में परस्पर-निर्भरता को प्रकट करता है (2 कुरिन्थियों 8-9)।

  1.  हमारा पिता हमें राज्य देने के लिए प्रसन्न होता है (लूका 12:32)।

यदि उसने हमें सबसे बड़ी सम्पत्ति दिया है—एक उत्तराधिकार जो “अविनाशी, निष्कलंक और अमिट है” (1 पतरस 1:4), तो वह हमें वह सब कुछ अनुग्रह में होकर क्यों न देगा जिसकी हमें आवश्यकता है (रोमियों 8:32)? बना रहने वाला धन और सच्ची सुरक्षा राज्य में पाई जाती है: “क्योंकि तुम हमारे प्रभु यीशु ख्रीष्ट के अनुग्रह को जानते हो, कि धनी होते हुए भी, वह तुम्हारे लिए निर्धन बन गया कि तुम उसकी निर्धनता के द्वारा धनी बन जाओ” (2 कुरिन्थियों 8:9)। 

हमारे विश्वासयोग्य परमेश्वर में बढ़ता हुआ भरोसा आर्थिक हानि से प्रतिरक्षा की निश्चयता नहीं देता है। यद्यपि, फटने वाले बटुओं की, समाप्त होने वाले धन की, चोरी करने वाले चोरों की, और बिगाड़ने वाले कीड़ों की वास्तविक सम्भानवा के होते हुए भी (लूका 12:33), परमेश्वर के लोगों को अन्ततः कभी भी यीशु ख्रीष्ट की कमी नहीं होगी। वह हमारे जीवन की रोटी (यूहन्ना 6:35) और हमारे जीवन का जल है (4:14), और वह हमें अपनी धार्मिकता प्रदान करता है (यशायाह 61:10; ज़कर्याह 3:1-5; 2 कुरिन्थियों 5:21; फिलिप्पियों 3:9)। जीवन के अस्थायी परिस्थितियों के मध्य वह हमारा सबसे गहन और वास्तविक सम्पत्ति है। वास्तव में, वह यहोवा-यीरे, हमारे लिए उपाय करने वाला है (उत्पत्ति 22:14)।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
माइक एमलेट
माइक एमलेट
डॉ माइक एमलेट क्रिश्चियन काउंसलिंग एंड एजुकेशनल फाउंडेशन (CCEF) में एक सहायक शिक्षक हैं। वह क्रॉसटॉक और डिस्क्रिप्शन एंड प्रिस्क्रिप्शन नामक पुस्तक के लेखक हैं।