एक आकस्मिक परिचय
16 सितम्बर 2024क्षमा न किए जाने वाला पाप
24 सितम्बर 2024प्रभु की मेज़ के पास एकता के लिए आह्वान
बहुत सारे मसीहियों के लिए, प्रभु भोज में भाग लेना उनके प्रभु और उद्धारकर्ता के साथ बहुत ही गहरे व्यक्तिगत संगति का समय होता है। निस्सन्देह इसमें कुछ भी त्रुटि नहीं है। परन्तु हमारे लिए यह समझना उचित है कि प्रभु भोज मात्र एक व्यक्तिगत बात नहीं, वरन् एक ऐसा भोज है जिसे कलीसिया की एकता को प्रदर्शित और दृढ़ करना चाहिए।
यह पौलुस की उस कठोर डाँट के पीछे है जिसे वह 1 कुरिन्थियों 11:17-34 में व्यक्त करता है। ऐसा प्रतीत होता है, कि कुरिन्थ के मसीहियों ने अपने साथी कलीसिया के सदस्यों के लिए उचित प्रेम नहीं दिखाया। उस समय, प्रभु भोज सम्भवतः एक ऐसा भोज हुआ करता था जिसमें सब लोग साझा करने के लिए भोजन लाते थे। जो लोग पहले पहुँच जाते थे, वे खाना आरम्भ कर देते थे और कुछ तो मतवाले में भी हो जाते थे। अन्य लोगों को—सम्भवतः दास— जिन्हें हो सकता है देर तक काम करना पड़ता था, और जब तक वे पहुँचे थे तो सारा खाना पहले ही समाप्त हो चुका होता था। साथी कलीसिया के सदस्यों के साथ इस प्रकार की उपेक्षा ने इस कलीसियाई विधि को एक ऐसी बात में परिवर्तित कर दिया जो प्रभु भोज कहे जाने के योग्य नहीं था, जैसा कि हम पद 20-22 में पढ़ते हैं:
अतः जब तुम एकत्रित होते हो तो यह प्रभु भोज खाने के लिए नहीं, क्योंकि खाने से पहले प्रत्येक दूसरे से पहिले अपना भोजन झपटकर खा लेता है जिस से कोई तो भूखा रह जाता है और कोई मतवाला हो जाता है। क्या तुम्हारे पास खाने के लिए घर नहीं है, जहाँ तुम खाओ और पीओ? अथवा क्या तुम परमेश्वर की कलीसिया का अनादर करते हो, और जिनके पास कुछ नहीं है उन्हे लज्जित करते हो? मैं तुम से क्या कहूँ? क्या मैं तुम्हारी प्रशंसा करूँ? इस बात में मैं तुम्हारी प्रशंसा नहीं करूँगा।
यद्यपि यह पूर्णतः स्पष्ट नहीं है कि पद 29 में “देह” के विषय में पौलुस की कड़ी चेतावनी कलीसिया के विषय में है, प्रभु यीशु ख्रीष्ट के विषय में है, या दोनों के विषय में, फिर भी हमें उसके शब्दों पर सावधानी से ध्यान देना चाहिए: “क्योंकि जो कोई देह को पहचाने बिना, खाता और पीता है तो वह अपने ऊपर दण्ड लाने के लिए खाता और पीता है।” निस्संदेह, प्रभु भोज को सम्पूर्ण कलीसिया को एक साथ लाना चाहिए जब ख्रीष्ट की देह अपने सिर, प्रभु यीशु के बलिदानपूर्ण मृत्यु को स्मरण करती है।
आज, तत्वों को इस प्रकार से वितरित किया जाता है कि किसी को भी रोटी के बिना रहने की आवश्कता न पड़े, और दखरस (या रस) की मात्रा बहुत कम होती है जिससे कोई भी मतवाला नहीं होगा। फिर भी देह में एकता के लिए खतरे की बातें बनी रहती हैं। जिस संसार में हम रहते हैं, उसके उदाहरण का अनुसरण करना और उन लोगों से शारीरिक या मात्र भावनात्मक रूप से पृथक होना बहुत ही सरल है जिनके साथ हम एक ही सामाजिक आर्थिक वर्ग, एक ही उम्र, एक ही त्वचा का रंग या एक ही राजनीति साझा नहीं करते हैं। ईश्वरविज्ञान के कुछ सुक्ष्म बिन्दु हमें अपने साथी कलीसिया के सदस्यों से भी पृथक कर सकते हैं। परन्तु मसीहियों के रूप में, हम ख्रीष्ट में एक हैं। उसने हम सबसे अपने स्वयं को दे देने वाले प्रेम से प्रेम किया है। हम सभी पापी हैं जिन्हें केवल अनुग्रह द्वारा बचाया गया है। इस प्रकार, हमें एक ही कलीसिया में साथ में अस्तित्व रखने से बढ़कर इस आत्मिक एकता को प्रदर्शित करने की सच्ची चिन्ता होनी चाहिए। हमें एक-दूसरे से उसी प्रेम से प्रेम करने में तत्पर रहना चाहिए जिससे हमें प्रेम किया गया था।
यदि हम सच्चे मसीही प्रेम की ऐसी मुद्रा के साथ प्रभु की मेज़ के पास आते हैं और अपने मतभेदों के होने पर भी ख्रीष्ट में हमारी एकता को प्रदर्शित करते हैं, तो हम सच्चे अर्थ में प्रभु भोज मनाएँगे। ऐसी सभा एक ऐसे संसार के लिए महान साक्षी हो सकती है, जो इस प्रकार से आत्मा-द्वारा प्रेरित एकता को नहीं जानता है।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।