सच्चाई का क्षण - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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सच्चाई का क्षण

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का ग्यारहवा अध्याय है: दो जगत के मध्य

जब मार्टिन लूथर को पवित्र रोमी शासक चार्ल्स V (पाँचवे) के द्वारा, अप्रैल 1521 में जर्मनी के वर्म्स में इम्पीरिएल धारा-सभा (imperial diet) के सम्मुख प्रस्तुत होने के लिए बुलाया गया, उन्हें स्वयं के विधर्मता के परीक्षण के लिए खड़ा होना था जिसमें उन्हें अपने लेखनों को नकारने के लिए कहा जाता। मित्रों द्वारा प्रकट न होने की चेतावनियाँ देने पर भी, लूथर ने विटनबर्ग से वर्म्स की यात्रा की, मार्ग में गाँवों और नगरों में प्रचार किया, इस बात पर विश्वास करते हुए कि सच्चाई की एक दिन विजय होगी।

वर्म्स में, राजनीतिक और कलीसियाई अधिकारी लोग (ecclesiastical hierarchy) लूथर को एक विधर्मी के रूप में उजागर करने के अभिप्राय से एकत्रित हुए थे। रोम की कलीसिया का प्रतिनिधित्व करने वाले अभियोजक, जोहान एक्क ने, लूथर पर दो प्रश्न पूछते हुए दबाव बनाया क्योंकि लूथर द्वारा लिखी पुस्तक उसके सामने मेज़ पर पड़ी थी। पहला प्रश्न अत्यन्त सरल था: “मार्टिन लूथर, क्या ये आपकी पुस्तके हैं?” फिर दूसरा प्रश्न आया जो कहीं अधिक महत्वपूर्ण था: “क्या आप इनका खंडन करेंगे?” उस क्षण की जटिलता को समझते हुए, लूथर ने मध्यावकाश माँगा और संध्या के लिए निवृत्त हो गए। वह अगले दिन पुनः प्रस्तुत हुए और उन शब्दों को कहा जो अभी प्रसिद्ध हैं और प्रत्येक सच्चे विश्वासी के कान में तुरही के समान बजते हैं:  

जब तक मुझे पवित्रशास्त्र और स्पष्ट कारण के द्वारा दोषी नहीं ठहराया जाता—मैं पोप और महासभाओं के अधिकार को स्वीकार नहीं करता, क्योंकि वे प्रायः एक दूसरे के विपरीत होते है—मेरा विवेक परमेश्वर के वचन से बन्धा हुआ है। मैं कुछ भी इनकार नहीं कर सकता और न मैं करूंगा, क्योंकि विवेक के विरुद्ध जाना न ही सही है और न ही सुरक्षित। परमेश्वर मेरी सहायता करे। आमीन।

सच्चाई के लिए खड़ा होना

परमेश्वर के वचन पर बने रहना ऐसी बात सिद्ध हुई जिसका प्रभाव संसार भर पर हुआ। इस साहसिक दावे के साथ, लूथर ने बताया कि बाइबल कलीसिया के जीवन में सर्वोच्च अधिकार रखती है। उन्होंने आगे बताया कि पवित्रशास्र पोप और महासभाओं के ऊपर प्रधान है। यह एक सार्वजनिक घोषणा थी जो शीघ्र ही ”केवल पवित्रशास्त्र” लैटिन में सोला स्क्रिप्टुरा (sola Scriptura) के नाम से जाना गया। रोमी कैथलिक कलीसिया ने इस बात का समर्थन किया कि पवित्रशास्त्र और परम्परा, पवित्रशास्त्र और कलीसियाई महासभा, और पवित्रशास्त्र और पोप में सत्य निहित है—सदैव पवित्रशास्त्र के साथ कुछ अन्य बात या किसी अन्य को जोड़ कर। परन्तु लूथर ने साहस के साथ विपरीत दृष्टिकोण लिया, केवल पवित्रशास्त्र पर।

विवाद के हर एक बिन्दु पर, लूथर केवल पवित्रशास्त्र के प्रति अपने समर्पण में अटल बने रहे। वह आधुनिक समय के अथानिसियस प्रमाणित हुए और, कॉन्ट्रा मुंडम (contra mundum) अर्थात् “संसार के विरुद्ध” खड़े रहे। यह अटल संत, एक हज़ार वर्ष की मृत परम्परा के साथ समस्त धार्मिक और राजनीतिक संसार के विरुद्द अकेले मनुष्य के रूप में खड़ा रहा। लूथर ने कहा, “मैं पूरे संसार के द्वेष, सम्राट की, पोप की, और उनके सारे दल की घृणा को सहन करता हूँ। यह देखकर कि मैं इन सूचियों में आ गया हूँ, मैं इसका सामना करूंगा; परमेश्वर के नाम में।” लूथर एक बर्फ को काट देने वाले जहाज के समान थे जिसने अपनी पीढ़ी के जमे हुए बंजर खेत को जोता, जिससे कि शेष यूरोप उनके पीछे चल सके।

लूथर ने पवित्रशास्त्र पर एक ठोस अवस्थिति को बनाए रखा, यद्यपि इसका अर्थ उनके  लिए मृत्युदण्ड कि दण्डआज्ञा थी। उन्होंने साहसपूर्वक घोषणा की, “हमारे प्रभु के वर्ष 1518 से लेकर वर्तमान समय तक, रोम में हर एक मॉन्डी थर्सडे (maundy Thursday जिस रात्रि यीशु पकड़वाया गया था) को मैं पोप के द्वारा, बहिष्कृत किया गया और नरक में डाला गया, और फिर भी मैं जीवित हूँ। यही वह सम्मान और मुकुट है जिसकी हमें इस संसार में अपेक्षा करनी चाहिए और हमारे पास है भी।“ अन्य शब्दों में, परमेश्वर के सत्य के लिए सार्वजनिक रूप से खड़ा होना और उसके लिए दुख उठाना शिष्यता में सम्मान का एक चिन्ह है। यीशु ने कहा कि एक दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता। यदि उन्होंने प्रभु को सताया, तो वे विश्वासियों को भी सताएंगे जो परमेश्वर के वचन में सिखाई गयी सच्चाई के लिए खड़े होते हैं।

सच्चाई का संकट

पाँच सौ वर्ष पूर्व लूथर के स्थिती के समान ही, हम सच्चाई के संकट के समय में रहते हैं। हम हर ओर पवित्रशास्त्र पर एक आक्रमक आक्रमण को देख रहे हैं क्योंकि उदारवादी पंथ और धर्मत्यागी धर्मविद्यालय (apostate seminaries) बाइबल की त्रुटिहीनता पर आक्रमण कर रही हैं। आधुनिकवाद और यथार्थवाद पवित्रशास्त्र की पर्याप्तता पर इस बात पर बल देने के द्वारा आक्रमण कर रहे हैं कि मानवीय ज्ञान को ईश्वरीय ज्ञान को पूरा करना चाहिए। एक उभरती हुई कलीसिया पवित्रशास्त्र की स्पष्टता पर यह दावा करते हुए आक्रमण करती है कि, बाइबल को निश्चितता के साथ नहीं समझा जा सकता है।  चमत्कारी आंदोलन के अनुयायी और असमाप्तिवादी (noncessationists) पवित्रशास्त्र के निकटतम ग्रन्थ-संग्रह में कथित रहस्यपूर्ण प्रकाशन को जोड़ते हुए बाइबल की पूर्णता पर आक्रमण करते हैं। झूठे पंथ यीशु ख्रीष्ट के व्यक्ति और कार्य को विकृत करते हुए परमेश्वर के वचन के एकमात्र सन्देश पर आक्रमण करते हैं। रोम अभी भी अपनी परम्परा, कलीसियाई महासभा, और पोप के आदेश को जोड़ते हुए बाइबल के एकल अधिकार पर आक्रमण करता है। बार-बार, तट के विरुद्ध समुंद्र की अन्तहीन लहरों के समान निरन्तर आक्रमण होते रहते हैं, जो परमेश्वर के वचन के एकल अधिकार के विरुद्ध उनके विरोध में उठते और अधिक उफनते जाते हैं।

बाइबल पर इन आक्रमक आक्रमणों के बाद भी, यह पुस्तक सत्य की एक अडिग चट्टान बनी हुई है। पवित्रशास्त्र एक अपराजेय शरणस्थान है उन सभी के लिए जो इसे एकमात्र परमेश्वर के वचन होने के दावे पर विश्वास करते हैं। यह एक अभेद्य गढ़ है जो इसके विरुद्ध होने वाले अनवरत आक्रमणों से हिलता नहीं है। परमेश्वर का वचन आज भी उतना ही शक्तिशाली है जितना कि तब था जब लिखा गया था। एक पुरुष या स्त्री जो इस पर स्थिर रहता है वह संसार के किसी भी धोखे को सहन कर सकता है। परमेश्वर का वचन इतना शक्तिशाली है कि जब हम विश्वास के द्वारा अपना जीवन इस पर निर्मित करते हैं, हम, भी, झुक नहीं सकते। जब हम बाइबल पर होने वाले कई आक्रमणों का सामना करते हैं, हमें विश्वास में दृढ़ रहना है वही कहना है जैसा कि लूथर कहते हैं, ” मैं इसी पर बना हुआ हूँ, मैं और कुछ नहीं कर सकता। परमेश्वर मेरी सहायता कर।”

सच्चाई के इस क्षण में, हमें जैसा कि परमेश्वर के वचन में अभिलिखित है उस सत्य की वास्तविकता को स्वीकार करना और उसकी घोषणा करनी है। इस प्रयास में सफल होने के लिए, हमें दो सच्चाईयों को समझना चाहिए: पहला, हमें कहाँ बने रहना चाहिए, और दूसरा, हमें क्यों बने रहना चाहिए।

हमें कहाँ बने रहना चाहिए

छ: अपरक्राम्य (nonnegotiable) सत्य हैं जिन पर हमें पवित्रशास्त्र के सम्बन्ध में बने रहना चाहिए। यह सत्य हैं परमेश्वर के वचन की प्रेरणा, त्रुटिहीनता, अधिकार, स्पष्टता, पर्याप्तता, और अपराजेयता। इस में परमेश्वर का सत्य पाया जाता है। यह बाइबल में है कि हमारे पास परमेश्वर के विशिष्ट प्रकाशन का अभिलेख है, जो हमें इस संसार में उसके लिए एक शक्ति बनने के योग्य बनाता है। परमेश्वर का लिखित वचन, प्रेरित पौलुस ने कहा कि, “सत्य का वचन” (2 तीमुथियुस 2:15) है जिसमें “सत्य का सन्देश” (इफिसियों 1:13) निहित है। याकूब ने इसकी “सत्य के वचन” (याकूब 1:18) के रूप में पुष्टि की है। यीशु ने कहा: “तेरा वचन सत्य है” (यूहन्ना 17:17)।

पवित्रशास्त्र की प्रेरणा

सर्वप्रथम, हमें पवित्रशास्त्र की ईश्वरीय प्रेरणा के सत्य में विश्वास होना चाहिए। प्रत्येक विश्वासी को दृढ़ निश्चयी होना चाहिए कि बाइबल जीवित परमेश्वर का प्रेरित वचन है। प्रेरित पौलुस लिखते हैं, “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है” (2 तीमुथियुस 3:16)। “परमेश्वर की प्रेरणा से” ये शब्द मूल यूनानी भाषा में एक शब्द है (थियोप्न्यूस्टोस theopneustos ), जिसका अर्थ है “परमेश्वर-श्वासित।” उत्पत्ति से प्रकाशितवाक्य तक, सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है, अर्थात् यह परमेश्वर के मुख से निकला है। यीशु ने कहा, “मनुष्य केवल रोटी से ही नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा” (मत्ती 4:4)। सच्चे अर्थ में, पवित्रशास्त्र की प्रेरणा का सिद्धान्त एक्स्पिरेशन (expiration-श्वांस बाहर निकालना) का सिद्धान्त है। कहने का तात्पर्य है कि, पवित्रशास्त्र परमेश्वर की श्वांस द्वारा निकला है। बाइबल के सन्दर्भ में, केवल एक प्राथमिक लेखक (परमेश्वर) है जिसने इसके सन्देश को अभिलिखित करने के लिए कई द्वितीयक लेखकों (मनुष्यों) का प्रयोग किया है। मानवीय लेखक पवित्रशास्त्र के अभिलेखन के लिए परमेश्वर के हाथ के केवल एक साधन थे। परन्तु केवल एक ही प्राथमिक लेखक है, स्वयं परमेश्वर, जो अपने वचन के माध्यम से हमसे बात करता है।

पवित्रशास्त्र की प्रेरणा इसकी सूक्ष्मतम विवरण तक फैली हुई है। यीशु ने कहा, “क्योंकि मैं तुमसे सच कहता हूँ, कि जब तक आकाश और पृथ्वी न टल जाएं, व्यवस्था में से एक मात्रा या बिन्दु भी, जब तक कि सब कुछ पूरा न हो जाए, नहीं टलेगा” (मत्ती 5:18)। इब्रानी भाषा का सबसे छोटा अक्षर योड (yod ) है, जो अंग्रेजी भाषा में सम्बोधन (apostrophe) के समान है। यह आँखो की एक पतली पलक के समान है, जो नग्न आँख से देखने के लिए लगभग अतिसूक्ष्म है। इब्रानी में एक छोटी सी रेखा एक अक्षर का दूसरे अक्षर से अन्तर करने के लिए उपयोग होता है। यह छोटे l इसी प्रकार है जैसे, एक चोटी रेखा ‘व’ को ‘ब’ से पृथक कर देती है—केवल एक रेखा दो अक्षरों को पृथक करती है। यीशु ने कहा कि परमेश्वर का वचन उस छोटी से छोटी रेखा तक पूरा किया जाएगा जो एक इब्रानी अक्षर को दूसरे से और पूरी वर्णमाला में सबसे छोटे अक्षर को पृथक करती है।

जब हम बाइबल को खोलते और इसके सन्देशों को पढ़ते हैं, तो यह मनुष्य का ज्ञान नहीं है जिसे हमें सिखाया जा रहा है, परन्तु परमेश्वर का मन हमें ज्ञान कराया जाता है। पवित्रशास्त्र में परमेश्वर की बुद्धि है जो हमें हमारे उद्धार के लिए बुद्धिमान बनाता है (2 तीमुथियुस 3:15)। यह वह सत्य है जो परमेश्वर के सिंहासन से उतरा है।

पवित्रशास्त्र की त्रुटिहीनता

दूसरा, हमें पवित्रशास्त्र की त्रुटिहीनता के सत्य को भी थामे रखना है। जब बाइबल बोलती है, यह बिना कोई त्रुटि मिला हुआ खरा, विशुद्ध सत्य बोलती है। परमेश्वर के वचन के लिए इसमें किसी त्रुटि या वास्तविकता में विकृत होना असम्भव है क्योंकि यह स्वयं परमेश्वर की ओर से आया है। तीतुस 1:2 दृढ़तापूर्वक कहता है कि “परमेश्वर. . . . झूठ नहीं बोल सकता।” परमेश्वर के लिए कोई त्रुटि या झूठ असम्भव है, जो कि अपने अस्तित्व में सिद्ध रूप से पवित्र है। इब्रानियों 6:18 भी यही पुष्टि करता है जब यह कहता है, “परमेश्वर का झूठ बोलना असम्भव है।” परमेश्वर का वचन अविभाज्य रूप से उसके स्वयं के स्वभाव से जुड़ा है। सरल शब्दों में, एक पवित्र परमेश्वर अपने वचन में झूठ नहीं बोल सकता।

भजन 12:6 में हम पवित्रशास्त्र की त्रुटिहीनता की पुष्टि देखते हैं: “यहोवा के वचन तो पवित्र वचन हैं, वे ऐसी चाँदी के समान हैं, जो भट्ठी में मिट्टी पर ताई जाकर सात बार शुद्ध की गयी हो।” बहुमूल्य धातु प्रायः आधार धातु के साथ मिश्रित पायी जाती है, और इसलिए वे आग की भट्ठी में डाली जाती हैं ताकि ताप से अशुद्धियाँ चाँदी या सोने से पृथक हो जाएं। अशुद्धियाँ प्रकट हो जाएंगी और ऊपर से निकल जाएंगी, ताकि जो बचे वो शुद्ध, बहुमूल्य धातु हो। उसी प्रकार, इस बारहवें भजन में, दाऊद कहता है कि पवित्रशास्त्र परमेश्वर द्वारा सात बार जाँचा गया है, जो पूर्णता की संख्या है, ताकि परमेश्वर के वचन में कोई अशुद्धता न हो। परमेश्वर ने अपने वचन मे ठीक वही कहा है जो सत्य है। पवित्रशास्त्र स्वयं का खण्डन नहीं कर सकता, और पवित्र आत्मा स्वयं का खण्डन नहीं कर सकता है। परिणाम पवित्रशास्त्र का शुद्ध अनलंकृत सत्य है।            

पवित्रशास्त्र की त्रुटिहीनता हमें एक महान विश्वास देती है कि इसके पृष्ठों में पढ़ाया गया प्रत्येक सत्य बिना किसी त्रुटि या मानवीय तर्कबुद्धि के है। यह किसी भी असिद्धता के साथ अमिश्रित है, परन्तु वास्तव में इसमें परमेश्वर का सिद्ध सत्य निहित है। प्रत्येक शब्द में वास्तविकता का सटिक प्रतिनिधित्व होता है, जैसा कि वास्तव में होता है। 

पवित्रशास्त्र का अधिकार

तीसरा, हमें पवित्रशास्त्र के अधिकार के अधीन समर्पित होना चाहिए। चूँकि बाइबल स्वयं परमेश्वर का वचन है, यह स्वयं परमेश्वर के अधिकार के साथ बात करती है। बाइबल के पास हमारे जीवनों पर शासन करने का अधिकार है। पवित्रशास्त्र सम्प्रभु है क्योंकि परमेश्वर सम्प्रभु है। इसलिए, प्रत्येक घुटना उस सत्य के सामने टिकेगा जो इसके पृष्ठों में अभिलिखित है। भजन 19:7 में, पवित्रशास्त्र की पहचान “यहोवा की व्यवस्था” के रूप में की गयी है। बाइबल परमेश्वर के सुझावों का संग्रह नहीं है; यह हमें विचार करने के लिए विकल्प या वरीयता नहीं देती है। वरन्, पवित्रशास्त्र को परमेश्वर के आधिकारिक व्यवस्था के रूप में पहचाना जाना चाहिए जिसके द्वारा प्रत्येक जीवन जीने के लिए निर्देशित होता है।

यीशु के दिनों में, फरीसियों ने अपनी परम्पराओं को परमेश्वर के अधिकार से भी अधिक ऊँचा कर लिया था। लूथर के दिनों में भी वैसा ही हुआ, जो समझ चुके थे कि न ही पोप की घोषणाएं न कि किसी मनुष्य के शब्द पवित्रशास्त्र के अधिकार से ऊँचे किए जा सकते हैं। परमेश्वर का वचन कलीसिया के जीवन पर परमेश्वर के शासन की मध्यस्थता करता है। लूथर ने बल देकर कहा, “प्रचारकों को अपने दावों को वचन से सिद्ध करना चाहिए। जब वे पिताओं (fathers) और ऑगस्टीन के, ग्रेगरी के और उसी प्रकार महासभाओं के अधिकार की सराहना करते हैं, तो हमारा उत्तर है कि उन बातों पर हमारा कोई दावा नहीं है, हम वचन की माँग करते हैं”। एक जर्मन धर्मसुधारक ने आगे कहा, “केवल पवित्रशास्त्र ही पृथ्वी पर के सभी लेखनों और सिद्धान्त का एक सच्चा प्रभु और स्वामी है। परमेश्वर का वचन केवल सर्वोच्च होना चाहिए या कुछ भी नहीं।” अन्य शब्दों में, परमेश्वर के वचन पर कोई संयत स्थिति नहीं है। यह या तो प्रत्येक विश्वासी के जीवन पर सम्प्रभु है, या इसे प्राचीन मिथ्या के रूप में त्याग देना चाहिए।

यह प्रत्येक विश्वासी का विश्वास है कि पवित्रशास्त्र आधिकारिक है और सर्वोच्च अधिकार के साथ उन पर शासन करता है। बाइबल हमें रोचक या उत्तेजक होने के लिए नहीं दी गयी है। वरन्, यह हमें पकड़ कर रखने के लिए दी गयी है, ताकि यह हमारे जीवनों को इस प्रकार आदेशित करे कि हम परमेश्वर को प्रसन्न कर सकें।

स्टीवन जे. लॉसन द्वारा द मूमेन्ट ऑफ ट्रूथ  से लिया गया,  © 2018, पृष्ठ 21–29।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया

स्टीवन जे. लॉसन
स्टीवन जे. लॉसन
डॉ. स्टीवन जे. लॉसन वनपैशन मिनिस्ट्रीज़ के अध्यक्ष और संस्थापक हैं, जो लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ के एक सह शिक्षक हैं, और कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें, फाउंडेशन ऑफ ग्रेस और द मूमेन्ट ऑफ ट्रूथ सम्मिलित है।