युगों के लिए ईश्वरविज्ञानी: जॉन कैल्विन - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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युगों के लिए ईश्वरविज्ञानी: जॉन कैल्विन

जॉन कैल्विन (1509-1564) सरलता से सभी समय के सबसे महत्वपूर्ण प्रोटेस्टेन्ट ईश्वरविज्ञानी है और वास्तविक महान पुरुषों में से एक रहे हैं। एक विश्व-स्तरीय ईश्वरविज्ञानी, एक प्रसिद्ध शिक्षक, एक कलीसियाई अगुवा और एक बहादुर धर्मसुधारक, कैल्विन को कई लोगों द्वारा पहली शताब्दी के बाद से कलीसिया पर सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में देखा जाता है। बाइबल लेखकों के अतिरिक्त, कैल्विल ऐसे सर्वाधिक प्रभावशाली वचन के सेवक के रूप में खड़ा होता है जिसे संसार ने (सम्भवता) कभी देखा हो। फिलिप मेलांक्थन ने उन्हें कलीसिया में पवित्रशास्त्र के सबसे सक्षम व्याख्याकार के रूप में सम्मानित किया, और इसलिए उन्हें “ईश्वरविज्ञानी” का उपनाम दिया। और चार्ल्स स्पर्जन ने कहा कि कैल्विन ने “किसी भी अन्य जीवित रहे व्यक्ति की तुलना में सत्य को अधिक स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया,  पवित्रशास्त्र को अधिक जाना, और उसे अधिक स्पष्ट रूप से समझाया।”

कैल्विन का जन्म  10 जुलाई, 1509 को जेरार्ड और जीन कॉविन के परिवार में हुआ,  फ्रांसीसी कैथीड्रल शहर नोयॉन में, पेरिस से लगभग साठ मील उत्तर की दूरी पर। जेरार्ड एक लेख्य प्रमाणक, या वित्तीय प्रशासक थे, नोयॉन धर्मप्रदेश के रोमन कैथोलिक बिशप के लिए, और इस प्रकार, पेशेवर वर्ग के सदस्य थे। चौदह वर्ष की आयु में, जॉन ने यूरोप के प्रमुख शैक्षिक संस्थान, पेरिस विश्वविद्यालय में प्रवेश किया, पुरोहिताई की तैयारी के लिए ईश्वरविज्ञान का अध्ययन करने के लिए। वहाँ, वह पुनर्जागरण, मानवतावाद और विद्वता के सिद्धांतों में डूब गया था। एक गम्भीर और उल्लेखनीय रूप से ज्ञानी युवक के रूप में, उसने स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की (1528)।

कैल्विन के स्नातक होने के तुरन्त बाद, जेरार्ड, नोयॉन के बिशप के साथ मतभेद में पड़ गए, और कलीसिया के साथ इस विच्छेद ने उसे अपने उत्कृष्ट पुत्र को कानून का अध्ययन करने के लिए ऑरलियॉ (1528) में और बाद में बूर्ज (1529) के विश्वविद्यालयों में पुनर्निर्देशित कर दिया। कैल्विन ने यूनानी सीखी और विश्लेषणात्मक सोच और प्रेरक तर्क में अपने कौशल को बढ़ाया, ऐसी कुशलताएं जिनको वह जेनीवा के उपदेश मंच में बहुत प्रभाव के साथ उपयोग करेगा। पर जब जेरार्ड की अचानक मृत्यु हो गई (1531), कैल्विन, जो इक्कीस वर्ष का था, पुनः पेरिस गया अपनी महान प्रियतमा का पीछा करने, अर्थात् शास्त्रीय साहित्य के अध्ययन का। बाद में वह बूर्जस लौटेगा, जहाँ उसने अपनी कानूनी पढ़ाई पूरी की और 1532 में कानून की डिग्री प्राप्त की।

अचानक से हृदय परिवर्तित

जब वह ऑरलियॉ विश्वविद्यालय में एक छात्र था, कैल्विन ने मार्टिन लूथर के लेखन के माध्यम से कुछ आरम्भिक धर्मसुधार के विचारों का सामना किया, जिनकी व्यापक रूप से चर्चा होती थी शैक्षिक क्षेत्र में। तत्पश्चात्, कैल्विन का ख्रीष्ट में हृदय-परिवर्तित हो गया। कैल्विन ने अपने हृदय परिवर्तन का गवाही का वर्णन उसकी भजन संहिता की टीका  (1557) के प्रस्तावना में किया।

इस कार्य [कानून का अध्ययन] में मैंने अपने आप को विश्वासयोग्यता के साथ लीन होने के लिए प्रयास किया, अपने पिता की इच्छा के पालन में; परन्तु परमेश्वर ने, अपने प्रावधान के गुप्त मार्गदर्शन के द्वारा, समय के साथ मेरे मार्ग के लिए एक अलग दिशा दी। पहले, क्योंकि मैं पोप-सम्बन्धित अन्धविश्वास के प्रति अत्यधिक हठपूर्वक रीति से समर्पित था, उस कीचड़ के कुण्ड से सरलता से निकाले जाने के लिए, परमेश्वर ने एक अचानक हृदय-परिवर्तन के द्वारा मेरे उस मन पर अधीन किया और उसे एक सीखने योग्य स्थिति में लाया, जो कि इन बातों में मेरी आयु आरम्भिक वर्षों की तुलना में अपेक्षा से अधिक कठोर था। इस प्रकार से, ज्ञान और वास्तविक ईश्वरभक्ति का कुछ स्वाद प्राप्त करने के बाद, मुझे तुरन्त इतनी तीव्र इच्छा हुई उसमें प्रगति करने के लिए, कि यद्यपि मैंने शेष पढ़ाई को पूर्णतः नहीं छोड़ा, मैंने फिर भी उनका पीछा कम उत्सुकता से किया।

नवम्बर 1533 में, निकलस कॉप, पेरिस विश्वविद्यालय का महाचार्य और कैल्विन के एक मित्र ने विश्वविद्यालय में शीतकालीन कार्यकाल के उद्घाटन  में प्रचार किया। यह सन्देश नये नियम के आधार पर धर्मसुधार के लिए एक अनुनय था और उस समय के शास्त्रीय ईश्वरविज्ञानियों  के ऊपर साहसी आक्रमण था। कॉप ने अपने “लूथर-जैसे” विचारों के लिए कठोर प्रतिरोध का सामना किया। माना जाता है कि कैल्विन ने इस बात के लिए कॉप का साथ दिया था, क्योंकि पांडुलिपि की एक प्रति कैल्विन की लिखावट में अस्तित्व है। परिणामस्वरूप, कैल्विन को पेरिस से भागना पड़ा पकड़ा जाने से बचने के लिए। उसे लुई डू टील्ये की भू-संपत्ति में पहुँचाया गया, एक धनी व्यक्ति जो धर्मसुधार के पक्ष से सहानुभूति रखता था। वहाँ, टील्ये के व्यापक ईश्वरविज्ञानीय पुस्तकालय में, कैल्विन ने कलीसिया के पिताओं के लेखों के साथ बाइबल पढ़ी, जिसमें ऑगस्टाइन प्रमुख था। कड़े परिश्रम, प्रतिभा, और अनुग्रह से, कैल्विन एक स्व-शिक्षित ईश्वरविज्ञानी बना जिसकी क्षमता कम नहीं थी।

1534 में, कैल्विन बाज़ल, स्विट्ज़र्लैंड गया, जो एक प्रोस्टेस्टेन्ट गढ़ बन गया था, एकान्त में अध्ययन करने के लिए। बाज़ल में, उसने इन्स्टिट्यूट्स ऑफ द क्रिश्चियन रिलिजियन  का पहला संस्करण लिखा, जो उसका श्रेष्ठ काम और धर्मसुधार के समय लिखी जानी वाली सबसे अधिक महत्वपूर्ण पुस्तक बनी। उसमें, उसने प्रोटेस्टेन्ट विश्वास की आधारभूत बातों को उल्लेखित किया और पवित्रशास्त्र के धर्मसुधारी व्याख्या के लिए  प्रबल प्रमाण प्रस्तुत किए। आश्चर्यपूर्णता से, कैल्विन ने इस कार्य को पच्चीस वर्ष की आयु में आरम्भ किया, उसके हृदय-परिवर्तन के केवल एक वर्ष बाद। यह प्रकाशित हुआ जब वह छब्बीस वर्ष का था।

1536 में, कैल्विन ने दक्षिण-पश्चिम जर्मनी में स्ट्रासबर्ग जाने का निर्णय लिया, एक शान्त विद्वान के रूप में अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाने के लिए। लेकिन फ्रान्सिस I और पवित्र रोमन सम्राट चार्ल्स V के बीच युद्ध ने उन्हें सबसे सीधा मार्ग लेने से रोक दिया। कैल्विन को जेनीवा के रास्ते से जाने के लिए विवश किया गया था, जहाँ उसका केवल एक रात बिताने का विचार था। किन्तु जब उसने शहर में प्रवेश किया, तो उसे तुरन्त इन्स्टिट्यूट्स के युवा लेखक के रूप में पहचाना गया। धर्मसुधार के प्रति सहानुभूति रखने वालों ने उसे विलियम फैरल से मिलाने ले गए, जिसने दस वर्ष तक जेनीवा में प्रोटेस्टेन्ट आंदोलन का नेतृत्व किया था। जेनीवा ने जल्दी ही रोमन कैथोलिक कलीसिया को छोड़ने और एक धर्मसुधार के शहर बनने के लिए मतदान किया था, किन्तु इस शहर को एक ऐसे शिक्षक की अति आवश्यकता थी जो धर्मसुधार की सच्चाइयों को व्यक्त कर सके। उत्साही फैरल ने कैल्विन को चुनौती दी कि वह इस कार्य को ले; जब कैल्विन हिचकिचाया, तो फैरल ने एक शापयुक्त धमकी का सहारा लिया। कैल्विन इसका वर्णन इस प्रकार से करता है:

फैरल ने, जो सुसमाचार को आगे बढ़ाने के लिए एक असाधारण उत्साह के साथ जलता था, तुरन्त मुझे रोकने के लिए हर नस से परिश्रम किया। और यह जानने के बाद कि मेरा हृदय अपने आप को निजी अध्ययन के लिए समर्पित कर रहा था, जिसके लिए मैं अपने आप को अन्य कार्यों से मुक्त रखने की कामना कर रहा था, और यह पाते हुए कि उसे निवेदन करके कुछ भी नहीं मिला, उसने एक अभिशाप दिया कि परमेश्वर श्राप देगा मेरे संन्यास को, और उस अध्ययन की शान्ति को जिसे मैं चाहता था, यदि मैं चला जाता और सहायता करने से मना करता, जब कि आवश्यकता इतनी गम्भीर थी। इस अभिशाप से मैं आतंक से इतना त्रस्त हुआ, कि मैं उस यात्रा से रुक गया जिस पर मैं निकला था।

कैल्विन ने जेनीवा में अपनी सेवा का आरम्भ एक प्राध्यापक के रूप में और फिर एक पास्टर के रूप में किया। फैरल के साथ, उसने कलीसिया के जीवन और व्यवहार को पवित्रशास्त्र की शिक्षा के अनुसार लाने का कार्य आरम्भ किया। उसके द्वारा किए गए सुधारों में प्रभु-भोज की मेज़ पर कलीसियाई अनुशासन का किया जाना था। यह बात जेनीवा के प्रमुख नागरिकों को ठीक नहीं लगी, जिनमें से कई लोग पाप-पूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे। यह संकट 23 अप्रैल 1538 को ईस्टर रविवार को चरम स्थिति पर पहुँच गया, जब कैल्विन ने कुछ प्रमुख लोगों को प्रभु-भोज देने से मना कर दिया जो खुले पाप में जीवन जी रहे थे। तनाव इतना बढ़ गया कि कैल्विन और फैरल जेनीवा छोड़ने के लिए विवश हो गए।

निर्वासन और वापसी

कैल्विन स्ट्रासबर्ग गया, जहाँ वह दो वर्ष पहले जाना चाहता था। उसका उद्देश्य था जनता की दृष्टि से बचना। परन्तु स्ट्रासबर्ग के मुख्य धर्मसुधारक, मार्टिन ब्यूसर ने हठ की कि कैल्विन को सार्वजनिक उपदेश मंच की सेवा में बने रहना चाहिए और उसे धमकी दी, जैसा कि फैरल ने पहले किया था। ब्यूसर की बात मानते हुए, कैल्विन फ्रांस से लगभग पांच सौ प्रोटेस्टेन्ट शरणार्थियों का पास्टर बन गया।

फिर भी, इस निर्वासित-ईश्वरविज्ञानी को स्ट्रासबर्ग में लिखने के लिए समय और स्वतंत्रता दी गई। कैल्विन ने प्रेरित पौलुस द्वारा रोमियों की पत्री पर अपनी टीकाओं  को लिखा और अपने इन्स्टिट्यूट्स  को विस्तृत करते हुए इसे फ्रेंच भाषा में अनुवादित किया। इसी समय, उसने अ रिप्लाई टू सैदोलेटो  लिखा जिसे धर्मसुधार के लिए सबसे बड़ी पक्ष समर्थक लेख के रूप में अपनाया गया है। जेनीवा से कैल्विन के जाने के बाद, कार्डिनल जैकोपो सैदोलेटो ने शहर के लोगों को एक खुला पत्र लिखा था, उन्हें रोमन कैथोलिक कलीसिया में लौटने का निमंत्रण देते हुए। शहर के पिताओं ने कैल्विन से निवेदन किया उत्तर देने के लिए निवेदन किया, जिसे उसने अपने रिप्लाई  के द्वारा किया, जो अनुग्रह के सुसमाचार में परमेश्वर की महिमा का एक आकर्षक बचाव है। स्ट्रासबर्ग में अपने समय में, उसने इडेलेट्टे डी बूर से विवाह भी किया, एक विधवा जिसके दो बच्चे थे, जिसने उन्हें बहुत खुशी दी।

जब कैल्विन स्ट्रासबर्ग में तीन वर्ष आनन्द से बिता चुका था, जेनीवा शहर के पिताओं ने उसे अपने पास्टर के रूप में लौटने के लिए लिखा। उसकी अनुपस्थिति में, धार्मिक और राजनीतिक स्थिति बिगड़ गई थी। आरम्भ में, कैल्विन का लौटने का कोई विचार नहीं था। 29 मार्च, 1540 को फैरल को एक पत्र में, उसने कहा, “इसके विपरीत मैं सौ बार मरने के लिए तैयार हूँ उस क्रूस की तुलना में, जिस पर व्यक्ति को हर दिन एक हज़ार बार नाश होना पड़ता था।” पर कैल्विन ने अन्ततः अपना मन बदला, यह जानते हुए कि जेनीवा में कई संकट उसका प्रतीक्षा कर रहें है। कैल्विन ने ख्रीष्ट में अपने जीवन को पूरी तरह से और स्वेच्छा से परमेश्वर को दिया गया देखा, एक प्रवृत्ति जो उसकी व्यक्तिगत मुहर में दर्शाया गया—एक हृदय को पकड़े हुए एक हाथ, जिसके नीचे नारा था “मैं अपना हृदय आपको देता हूँ, उत्सुकता और खराई से ।” वह इसे परमेश्वर की इच्छा समझते हुए मान गया और स्विट्ज़र्लैंड में अपने पास्टर के कार्य को लौट गया।

कैल्विन साढ़े तीन वर्ष की अनुपस्थिति के बाद 13 सितम्बर, 1541 को जेनीवा पहुँचा। अपने पहले प्रचार में, उसने निर्वासन से पहले जहाँ छोड़ा था उसके अगले पद से व्याख्या आरम्भ किया। यह निरंतरता एक साहसी कथन के रूप में अभिप्रेत थी कि वचन का एक पद के बाद एक पद का प्रचार उसकी सेवा में प्राथमिक स्थान रखेगा।

कैल्विन के दूसरे जेनीवा पास्टरीय सेवा काल की दो अवधियाँ थीं। पहली विरोध के वर्ष थे (1541-1555), जब उसने बहुत प्रतिरोध और कठिनाई का सामना किया। विपक्ष ने स्वयं को देशभक्तों के रूप में प्रकट करना आरम्भ किया, जो जेनीवा के सबसे पुराने, सबसे प्रभावशाली परिवार थे। वे मुख्य रीति से कैल्विन से घृणा करते थे क्योंकि वह एक परदेशी था। उसने लिबर्टीन्स के प्रतिरोध का भी सामना किया, जेनीवा के भीतर वे लोग स्वतंत्रतावादी थे, और खुले पाप और अनैतिकता में जी रहे थे। किन्तु स्पष्ट रूप से सबसे कठिन वह अग्नि परीक्षा थी जो 1553 में माइकल सेर्वेटस के कारण हुआ। इस जाने हुए विध्रमी को शहर के पिताओं द्वारा जला दिया गया था कैल्विल को विशेष साक्षी के रूप में बुलाए जाने के बाद। इस समय काल में अन्य परीक्षाओं में, 1542 में कैल्विन के पुत्र जाक की मृत्यु हुई, अपने जन्म के केवल दो सप्ताह बाद, और कैल्विन की पत्नी, इडेलेट्टे की मृत्यु विवाह के केवल नौ वर्ष बाद 1549 में हो गई।

यह थकाने वाला विरोध अनन्तः थम गया और कैल्विन के जीवन के अन्तिम नौ वर्षों (1555-1564) को समर्थन के वर्ष के रूप में वर्णित किया जा सकता है। लम्बे समय के बाद, कैल्विन ने शहर के पिताओं का समर्थन प्राप्त किया। इस समर्थन के साथ, उसने 1559 में जेनीवा अकादमी की स्थापना की, उस उदाहरण के आधार पर जिसको उसने स्ट्रासबर्ग में देखा था। अकादमी के पास प्राथमिक शिक्षा के लिए एक निजी विद्यालय था और एक सार्वजनिक स्कूल था जो बाइबल की भाषाओं और ईश्वरविज्ञान में अधिक उन्नत अध्ययन प्रदान करता था सेवकों, वकीलों और डॉक्टरों को प्रशिक्षित करने के लिए। इसके साथ 1559 में ही, इन्स्टिट्यूट्स  के पाँचवें और अंतिम प्रकाशन को प्रेषित किया गया था। 1560 में, जेनीवा बाइबल प्रेषित की गई, जो एक अंग्रेजी अनुवाद था जो ईश्वरविज्ञानीय टिप्पणियों के साथ पहली बाइबल थी। इस महत्वपूर्ण कार्य ने, जो कैल्विन के शिक्षण के अन्तर्गत पुरुषों द्वारा उत्पादित किया था, एक ऐसा विश्वदृष्टि प्रस्तुत किया जिसमें परमेश्वर की सम्प्रभुता पूरी सृष्टि पर है।

कैल्विन ने फ्रांसीसी-भाषी पास्टरों को भेजा, जिन्हें उसने सुसमाचार सेवा के लिए प्रशिक्षित किया था, जेनीवा से लेकर यूरोप के अन्य फ्रांसीसी-भाषी प्रान्तों तक। अधिकांश  सेवक फ्रांस गए, जहाँ धर्मसुधार आन्दोलन जनसंख्या के दसवें भाग को प्रभावित करने के लिए बढ़ा। अन्ततः, तेरह सौ जेनीवा में प्रशिक्षित मिशनरी फ्रांस गए। 1560 तक, जेनीवा से बाहर भेजे गए पुरुषों द्वारा फ्रांस में एक सौ से अधिक गुप्त कलीसियाएं स्थापित की गई। 1562 तक, कलीसिया की संख्या 2,150 से अधिक हो गई थी, 30 लाख से अधिक सदस्यों के साथ। कुछ कलीसियाओं की सदस्यता हज़ारों में थी। इस वृद्धि ने एक ह्यूगनो कलीसिया का निर्माण किया, जिसने फ्रांस में कैथोलिक विरोधी-धर्मसुधार को लगभग पराजित कर दिया। इसके साथ, जेनेवा से प्रशिक्षित मिशनरियों ने इटली, हंगरी, पोलैंड, जर्मनी, नीदरलैंड, इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और राइनलैंड-यहां तक कि ब्राज़ील में भी कलीसियाओं की स्थापना की।

एक विदाई भाषण

1564 के आरम्भ में, कैल्विन गम्भीर रूप से बीमार हो गया। उसने अन्तिम बार रविवार, 6 को सेंट पीटर के कैथेड्रल के उपदेश मंच से प्रचार किया। अप्रैल तक, यह स्पष्ट था कि उसके पास जीने के लिए लम्बा समय नहीं था। कैल्विन ने, चौवन वर्ष की उम्र में, मृत्यु का सामना किया जैसे उसने उपदेश मंच का सामना किया था—बड़े संकल्प के साथ। उसके विश्वास की सामर्थ्य, परमेश्वर की सम्प्रभुता पर आधारित, उसकी वसियतनामा में दिखाई देती है। 25 अप्रैल, 1564 को कैल्विन ने निम्नलिखित शब्दों को बोलकर लिखवाया:

मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ, केवल इसलिए नहीं कि उसने करुणा की है मुझ पर, जो उसका निर्धन प्राणी हूँ, मुझे मूर्ति पूजा के कुण्ड से बाहर निकालने के लिए जिसमें मैं डूबा हुआ था, ताकि मुझे उसके सुसमाचार के प्रकाश में लाया जा सके और मुझे उद्धार के सिद्धांत का एक भागी बनाया जा सके, जिसके लिए  मैं पूरी तरह से अयोग्य था, और उसकी दया को बनाए रखते हुए उसने मुझे इतने पापों और त्रुटियों के मध्य सहायता दी है, जो इस प्रकार थे कि मैं अच्छी तरह से लाख बार त्यागे जाने योग्य था—किन्तु इससे अधिक, उसने मुझ पर यहाँ तक अपनी दया को बढ़ाया है कि उसने मेरे और मेरे परिश्रम को उपयोग किया उसके सुसमाचार की सच्चाई को व्यक्त करने और घोषणा करने के लिए।

तीन दिन बाद, 28 अप्रैल, 1654 को, कैल्विन ने अपने साथी सेवकों को अपने शयनकक्ष में बुलाया और उन्हें अपना विदाई भाषण जारी किया। उसने उन्हें चिताया कि धर्मसुधार की लड़ाइयाँ समाप्त नहीं हुई थी, परन्तु केवल आरम्भ ही हो रहीं थी: “आप पर समस्याएं तब  आयेंगी जब परमेश्वर मुझे दूर बुला चुका होगा…। परन्तु साहस रखो और अपने आप को दृढ़ करो, क्योंकि परमेश्वर इस कलीसिया का उपयोग करेगा और इसे बनाए रखेगा, और तुम्हें  वह आश्वासन देता है कि वह इसकी रक्षा करेगा।” उसी के साथ, उसने अपने दुर्बल हाथों से मशाल को उनके पास सौंपा।
कैल्विन की मृत्यु 27 मई, 1564 को उसके क्रमानुयायी थियोडोर बेज़ा की बाहों में हुई। कैल्विन के अन्तिम शब्द—“कब तक, हे परमेश्वर?”—पवित्रशास्त्र के ही शब्द थे (भजन 79:5; 89:46)। वह उस बाइबल को उद्धृत करते हुए मरा, जिसको उसने इतने लम्बे समय तक प्रचार किया था। उचित रूप से, इस विनम्र सेवक को एक सार्वजनिक कब्रिस्तान में एक अचिह्नित क़ब्र में गाढ़ा गया—उसके स्वयं के अनुरोध पर।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

स्टीवन जे. लॉसन
स्टीवन जे. लॉसन
डॉ. स्टीवन जे. लॉसन वनपैशन मिनिस्ट्रीज़ के अध्यक्ष और संस्थापक हैं, जो लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ के एक सह शिक्षक हैं, और कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें, फाउंडेशन ऑफ ग्रेस और द मूमेन्ट ऑफ ट्रूथ सम्मिलित है।