इतिहास में अंगीकार करने वाली कलीसिया - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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इतिहास में अंगीकार करने वाली कलीसिया

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का तीसरा अध्याय है: अंगीकार करने वाली कलीसिया

आरम्भ से ही, पुराने नियम के अपने प्रदर्शन में भी, परमेश्वर के लोग एक अंगीकार करने वाला समुदाय रहे हैं। शेमा (Shema) पवित्रशास्त्र का “प्राचीन विश्वास का वचन” : “हे इस्राएल सुन! यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है” (व्यवस्थाविवरण 6:4)। यह विश्वास वचन यीशु (मरकुस 12:29) और पौलुस (1 कुरिन्थियों 8:4-6) दोनों के द्वारा लागू किया गया। सीनै पर्वत पर, परमेश्वर ने स्वयं को परमेश्वर के रूप में प्रकट किया जो “दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीमा, और करुणा तथा सत्य से भरपूर” है (निर्गमन 34:6)। कुछ विद्वानों के विचार में, इस अभिव्यक्ति ने पुरानी वाचा के लोगों के लिए विश्वास वचन समान प्रकार्य के रूप में भी कार्य किया, भजन संहिता के तीन उद्धरणों समेत (भजन 86:15; 103:8; 145:8), पंचग्रन्थ (Pentateuch) से लेकर नबियों तक, यह इस्राएल के इतिहास में अनेक बार दोहराया गया।

उसी प्रकार, विश्वास वचन कथन नए नियम में भी देखें जा सकते हैं। ऐसे दो उदाहरण हैं 1 तीमुथियुस 2:5 और 3:16। इतिहासकार जेरोस्लैव पेलिकन (Jaroslav Pelikan) लिखते हैं, “यह विश्वसनीय प्रतीत होता है” कि पौलुस “मौखिक या लिखित, मसीही विश्वास के आरम्भिक अंगीकारों में से” उद्धृत कर रहा है। अन्य विद्वानों ने तर्क दिया कि पौलुस की पास्तरीय पत्रियों के “विश्वासयोग्य कथन” भी आरम्भिक कलीसिया के विश्वास वचन या आराधना विधि सूत्रों से उत्पन्न हुई है।

जैसे-जैसे प्राचीन कलीसिया इस अभ्यास को करता रहा, आरभिक विश्वास वचन सारांश “विश्वास के नियम” बन गए, ऐसा सैद्धान्तिक सारांश जो कि प्रेरितों से प्राप्त हुआ और आने वाली पीढ़ियों को दिया गया। त्रिएकतावाद और ख्रीष्टविज्ञानीय (Christological) विषयों पर आरम्भिक मसीही विवादों ने कलीसिया को अपनी विश्वास के व्याकरण को प्रखर करने के लिए प्रेरित किया, और कलीसिया ने विश्वासवचन सूत्रों (creedal formulas) में त्रिएकतावाद और ख्रीष्टविज्ञानीय विषयों के विषय में अपनी स्थिर कायलता को अभिव्यक्त किया जिसने कलीसिया की शिक्षा को प्रेरित किया और इससे विचलन को निन्दित किया (उदाहरण के लिए, नीकिया (Nicaea), कॉन्सटेंटिनोपल (Constantinople), और चाल्सेडोन (Chalcedon) की महासभाओं में)|

इन प्राचीन विश्वास वचनों में अनेक मसीही परम्पराओं ने अंगीकार के कथनों को जोड़ा है। इन दोनों के मध्य क्या अन्तर है? सामान्यतः, विश्वास वचन (प्रथम कुछ शताब्दियों में कलीसिया में लिखे गए) बहुत लघु सैद्धान्तिक अभिपुष्टियाँ हैं (त्रिएकता या पुत्र के देहधारण की प्रकृति पर केन्द्रित) जो कि सामान्यतः विश्वव्यापी कलीसिया द्वारा ग्रहण किए जाते हैं (और इसलिए वैश्विक विश्वास वचन (ecumenical creeds) कहलाते हैं)। तीन प्रमुख वैश्विक विश्वास वचन हैं प्रेरितों का विश्वास वचन, नीकिया का विश्वास वचन, और अथेनेसियन विश्वास वचन। इन नीवों पर निर्माण करते हुए, सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दियों के अंगीकार धर्मसुधारवादी विश्वास के विशिष्ट क्षेत्रों की अभिव्यक्तियाँ थीं (उदहारण के लिए, फ्रेन्च अंगीकार या स्कॉट्स अंगीकार), जो बाहरी जोखिमों को सम्बोधित करती (जैसे पुनः बपतिस्मा देने [Anabaptist] से विचलन या आर्मीन्युसवाद [Arminianism] की चुनौती) या धर्मसुधारवादी विश्वास और जीवन में पूर्ण विकास प्रदान करती (जैसे वाचा का ईश्वरविज्ञान और कलीसियाई शासन)।

जब अंगीकार विभाजित करते हैं

अंगीकार परमेश्वर के लोगों में उनके “बहुमूल्य विश्वास” (1 पतरस 1:1) की एकता में सुरक्षित रखने का प्रयास करते है। परन्तु वे सदैव एकजुट नहीं करते हैं, और समय समय पर वे विभाजनकारी प्रमाणित हुए हैं। पश्चिमी कलीसिया का नीकिया के विश्वास वचन में “और पुत्र” उपवाक्य (filioque clause) के संकलन ने (जिसमें कहा गया है कि पवित्र आत्मा पिता और पुत्र से अग्रसर होता है‌) 1054 में पूर्वी और पश्चिमी मसीहियत के मध्य फूट का योगदान दिया।

1529 की मारबर्ग बातचीत (Marburg Colloquy) ने प्रोटेस्टेन्टवाद के धर्मसुधारवादी और लूथरवादी पक्ष को एक करने का प्रयास किया, और इसने सिद्धान्त के पन्द्रह में से चौदह बिन्दुओं पर एकता प्राप्त की। परन्तु मार्टिन लूथर प्रभु भोज में ख्रीष्ट की उपस्थिति पर हल्ड्रिच ज्विंगली से असंगत रहे। यह प्रोटेस्टेन्ट हित के लिए एक दुखद असफलता थी, और जे. ग्रेशम मैकेन ने जब प्रभु भोज पर मारबर्ग में एकता प्राप्त करने में असफलता पर ध्यान दिया तो उसे “आपदा” कहा। परन्तु मैकेन यह ध्यान देने में  तीव्र थे कि “यह एक बड़ी आपदा हो गयी होती” यदि लूथर ने इन धार्मिक संस्कारों के मतभेद को “एक तुच्छ विषय” के समान देखा होता, साथ ही उन्होंने कहा, “इस प्रकार का तटस्थवाद कलीसिया की शाखाओं के मध्य अन्य विभाजनों की तुलना में कहीं अधिक घातक हो गया होता।”

जब फ्रांसिस ट्यूरेटिन और जे. एच. हाइडेगर ने 1675 में फॉर्मूला कनसेन्सेस हेल्वेटिका (Formula Consensus Helvetica) की रचना की, धर्मसुधारवादी कलीसियाएँ बाइबलीय आलोचना के आरम्भिक उदय का सामना कर रही थीं। इसके प्रत्युत्तर में, सूत्र प्रकलन के लेखकों ने इब्रानी पवित्रशास्त्र में स्वरांकन बिन्दुओं (vowel points) की प्रेरणा पर तर्क दिया। यद्यपि यह अंगीकार स्विस धर्मसुधारवादी कलीसियाओं (Swiss Reformed churches) के द्वारा प्राप्त किया गया था, उनके कई समकालीनों ने इस बाइबलीय अखण्डता के सहयोग की रीति को अंगीकार करने की आवश्यकता के बढ़ते हुए स्तर के रूप में नहीं देखा। और इसलिए, सूत्र प्रकलन स्विस अंगीकार कथन के रूप में मात्र छियासठ वर्षों के लिए ही रह पाया। जे. वी. फेस्को के शब्दों में, यह एक “अंगीकार के लिए अत्याधिक आगे बढ़ जाना था,” क्योंकि इसने “रूढ़िवाद के द्वारों को अत्याधिक संकुचित कर दिया था।”

इन प्रकरणों से शिक्षा अंगीकार को त्यागना नहीं परन्तु हमारे विश्वास के व्याकरण के परिष्करण और सुधारने के लिए और अधिक संघर्ष करना है। अंगीकार सब कुछ कह नहीं सकता और अंगीकर को सब कुछ कहना नहीं चाहिए। उनके निरुपण में देखरेख कलीसिया में सार्वभौमिक एकता के भाव को दिखा सकता है। फिलिप शैफ ने इस सम्बन्ध में विश्वास के वेस्टमिन्स्टर अंगीकार को सही श्रेय दिया है: इसने “कैल्वनिवाद के सबसे सशक्त और फिर भी मध्यम रूप को” व्यक्त किया है।

अंगीकारवादियों ने सदैव यह समझा है कि मानव-रचित विश्वास वचन और अंगीकार अधीनस्थ स्तर हैं। वे कलीसिया के लिए मानक के रूप में कार्य करते हैं जो कि पवित्रशास्त्र द्वारा शासित होते हैं, जो कि विश्वास और अभ्यास का एकमात्र अचूक नियम। इस प्रकार, अंगीकार समय-समय पर संशोधित किया जा सकता है जब कलीसिया महान अन्तर्दृष्टि के लिए पवित्रशास्त्र को लेकर आती है। उदाहराण के लिए, 1789 में वेस्टमिन्स्टर अंगीकार का अमरीकी प्रेस्बिटरवादी संशोधन ने राज्य से कलीसिया की स्वतन्त्रता को स्पष्ट किया। परन्तु अंगीकार का संशोधन दुर्लभ है, और ऐसा उचित है। जब ऐसा होता है, यह प्रायः उस युग की बातों को समायोजित करता और कलीसिया की धर्मसुधारवादी साक्षी को निर्बल करता। ऐसी ही बात उत्तरी प्रेस्बिटरवादी द्वारा 1903 के संशोधनों में था जिसने मानव भ्रष्टता और चुनाव पर वेस्टमिन्स्टर की शिक्षा हल्का कर दिया था।

अंगीकार का असन्तोष

आज, कलीसिया अपने अंगीकार के इतिहास को बहुत संशय के साथ देखता है। अंगीकार में रुचि घट रही है, और विश्वास के व्याकरण पर उनका प्रभाव कम हो रहा है। सन्देह विशेष रूप से इस दावे पर डाला जाता है कि अंगीकार वास्तव में एक कर सकता है। किसी के पास अंगीकार हो सकता है या सार्वभौमिकता हो सकती है, परन्तु दोनो नहीं —यह एक प्रचलित बात प्रतीत होती है।

अमरीकी प्रेस्बिटरवाद का इतिहास, कई मतसम्बन्धों का “विभाजित पी” (split P’s) में विभाजन, के तर्क को समर्थन प्रदान करने के लिए दिखाई दे सकता है। एक शताब्दी से भी अधिक समय पूर्व, बी. बी. वॉर्फील्ड ने यह स्वीकार किया था कि उनके समय के प्रेस्बिटरवादी लोगों के मध्य अंगीकार के प्रति “विस्तृत उत्तेजना” थी। उन्होंने कई कारणों द्वारा इसका पता लगाया। असन्तोष का एक स्रोत था सदस्यता की अत्याधिक माँगें (अर्थात्, वह शपथ जो अधिकारियों को अंगीकार के स्तर को बनाए रखने के लिए लेनी चाहिए)। वॉर्फील्ड ने पवित्रशास्त्र में पाई जाने वाली “सिद्धान्त की प्रणाली” के रूप में वेस्टमिन्स्टर स्तरों की सेवकों और प्राचीनों की सदस्यता लेने के अभ्यास (उपनिवेशक अमरीकी प्रेस्बिटरवाद में स्थापित) को समर्थन दिया। इसने सेवकों को अंगीकार के सटीक शब्दों के प्रति वचनबद्धता से मुक्त किया, और उसकी कुछ प्रतिज्ञप्तियों में परिवर्तन लाने की स्वतन्त्रता प्रदान की। वॉर्फील्ड ने बल देकर कहा, “कठोर” अंगीकार करने की सदस्यता “स्वयं ही आगे निकल जाती है” और उन्होंने यह दावा किया कि “ अत्याधिक कठोरता प्रदर्शन में ढीलेपन की माँग और उसे उत्पन्न करती है” और प्रायः व्यवहारिक अंगीकारवाद को घटाने का कार्य करती है। चार्ल्स हॉज के शब्दों में, “संसार भर में वे लोग सबसे कम विश्वासयोग्य हैं जो अधिक कठोर हैं।”

असन्तोष प्रायः सार्वभौमिकता (catholicity) की शीर्ण धारणा से उत्पन्न होता है। यदि हम अपनी कलीसियाओं के अंगीकार को न्यूनतम कर दें, तो क्या एक वृहद एकजुट कलीसिया उभर कर नहीं आएगी? क्या एक संक्षिप्त और सामान्य रूप से सुसमाचारवादी विश्वास का कथन बड़ी रुचि को आकर्षित नहीं करेगी? वॉर्फील्ड ने यह तर्क दिया कि यह प्रस्ताव “एक विभाजित परिवार के चारों ओर एक बड़े घर का निर्माण करने” के समान था। कलीसिया की एकता कभी भी विश्वास में उसकी परिपक्वता के मूल्य पर नहीं आती है। “हमें अच्छे से विचार करना चाहिए,” उन्होंने आगे जोड़ा, “कि कहीं यह उदारवादी पथ हमें अत्याचार की ओर तो नहीं ले जा रहा है।”

अंगीकार क्या करते हैं

अंगीकार की अप्रीति की अभिव्यक्तियाँ हमारे दिनों में कलीसियाई अंगीकार की प्रकृति और उद्देश्य के विषय में व्यापक भ्रम को देखती हैं। पुनः, वॉरफील्ड यहाँ पर सहायक हैं। उन्होंने देखा कि जब वे सही से नियोजित होते हैं, अंगीकार कलीसिया को तीन सेवाएँ प्रदान करते हैं: वे परीक्षण, स्थल, और साक्षी हैं।

अंगीकार परीक्षण होते हैं जब कलीसिया की अगुवाई के लिए प्रत्याशियों की जाँच होती है। वे पद के लिए उस व्यक्ति की उपयुक्तता को कलीसिया के आत्मविश्वास का आधार बनाते हैं। यह परीक्षण प्रत्याशी के विश्वास को पक्का करता है —कि क्या वह निष्ठा से (ex animo) शपथ ले सकता है और क्या वह स्वयं को यह सिखाने के लिए प्रतिबद्ध होगा जिसके विषय में बाइबल बताती है, उदाहरण के लिए, आदम का संघीय नेतृत्व या  ख्रीष्ट का कुंवारी से जन्म लेना?

अंगीकार स्थल हैं जब वे ईश्वरविज्ञान में विश्वासासियों को निर्देश देते हैं। धर्मप्रश्नोत्तरी (प्रश्न उत्तर के रूप में अंगीकार के कथन) विशेष रूप से शिष्यता के प्रभावी साधन हैं। प्रायः प्रेरितों के विश्वास वचन, प्रभु की प्रार्थना, और दस आज्ञाओं के आधार पर, वे मसीही विश्वास में युवा और बुजुर्ग दोनों को प्रशिक्षण के साधन प्रदान करते हैं। कलीसियाएँ अपनी अंगीकार की पहचान को निर्बल कर देती हैं जब धर्मप्रश्नोत्तरी के माध्य्म से पवित्र लोगों को सिद्ध बनाने के अपने उत्तरदायित्व की अपेक्षा करती हैं।

अंगीकार साक्षियाँ होती हैं जब वे कलीसिया के विश्वास की घोषणाएँ होती हैं। इस कार्य में कलीसिया की सामूहिक साक्षी को देखने वाला संसार और अन्य मसीही कलीसियाएँ सम्मिलित हैं, परन्तु यह विशेषकर तब देखा जाता है जब कलीसिया अपनी आराधना विधि में परमेश्वर को सामूहिक प्रशंसा और धन्यवाद प्रदान करती है। इसमें नियमित रूप से आराधना में अंगीकार के भागों को पढ़ना आवश्यक है, परन्तु यह सब कुछ नहीं है। कलीसिया का अंगीकार को कलीसिया के भजनगान को आकार देना चाहिए। सार्वजनिक आराधना के लिए मण्डलीय गीतों की आवश्यकता होती है। जब वह पेशेवर कलाकार द्वारा विशेष संगीत से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है, तो कलीसिया अपने झुण्ड से अपने विश्वास के अंगीकार का सौभाग्य छीन लेती है। इसके अतिरिक्त, कलीसिया के गीत को व्यक्तिगत अनुभव की अभिव्यक्ति के लिए कम नहीं किया जा सकता। कलीसिया की साक्षी “मैं समर्पण करता हूँ” नहीं, वरन् “हम तेरी अपने परमेश्वर, अपने छुड़ाने वाले, सृजनहार की प्रशंसा करते हैं” होना चाहिए। यह विश्वास का खोखला अंगीकार है जिसकी ईश्वरविज्ञानीय रूप से समृद्ध व्याकरण कलीसिया के प्रशंसा के चरित्र को आकार नहीं देता है।

परीक्षण, स्थल, और साक्षियाँ—ये कार्य अंगीकार को अंगीकार करने वाली कलीसिया के लिए रीढ़ की हड्डी के रूप में कार्य करने की अनुमति देते हैं, और ये अंगीकार और एकता के विषय में तर्क को पलट देते हैं। सार्वभौमिकता के कारण को कम आँकने से हट कर, अंगीकार यह कार्य करता है। प्रायः, प्रेस्बुतरवादी विभाजन अंगीकार करने की निष्ठा से प्रस्थान के परिणामस्वरूप हुआ है। अंगीकार के बिना, कलीसियाएँ सिद्धान्त की हर दिशा की ओर मुड़ती रहती हैं, विशेष और असाधारण प्रकृति के अर्थानुवाद के द्वारा औरों से वियोजित हो जाती हैं और अस्थायी चिन्ताओं के कारण धर्मसुधारवादी परम्पराओं से निर्बाधित हो जाती हैं।

चौड़े स्थानों के रूप में अंगीकार

भजन 18 में, दाऊद परमेश्वर की चौड़े स्थान पर व्यवस्थित करने के लिए प्रशंसा करता है (पद 19, 36), और ऐसी भाषा जो पुराने नियम में और कहीं भी पायी जाती है। यह चौड़ा स्थान क्या है? प्रायः प्रतिज्ञा की गयी भूमि से सम्बन्धित, यह एक स्थान है सुरक्षा, स्वतन्त्रता, और समृद्धि का।

अंगीकारवादी कलीसियाओं को प्रायः संकीर्ण स्थानों के रूप में देखा जाता है, जहाँ कसकर पकड़े गए सिद्धान्त थोड़े विचलन की अनुमति देते हैं, जो कुछ लोग को अन्यायी एकरूपतावाद (tyrannical uniformitarianism) के ईश्वरविज्ञानी संवृत्ति भीति (theological claustrophobia) से भयभीत करता है। निश्चित रूप से, अंगीकारों का दुरुपयोग किया जा सकता है और हुआ भी है। कलीसिया की न्यायलयों में अटल एकरूपता लाने के लिए उनके साथ कड़ा व्यवहार किया जा सकता है।

परन्तु कलीसियाई इतिहास में अंगीकार भिन्न कहानी को प्रकट करता है। वे एक उपहार हो सकते हैं जिसके माध्यम से कलीसिया को अपने सदस्यों के साथ उत्साही और इच्छुक एकता और व्यापक कलीसिया के साथ संगति बनाए रखने की बुलाहट दी जाती है। रिचर्ड मूलर के शब्दों में, अंगीकार “ईश्वरविज्ञानीय और धार्मिक अभिव्यक्तियों को सीमा प्रदान करती है, परन्तु साथ ही यह उन सीमाओं के भीतर विभिन्न ईश्वरविज्ञानीय और धार्मिक अभिव्यक्तियों के विकास के लिए बहुत विस्तार प्रदान करती है।“ धर्मसुधारवादी परम्परा में ईश्वरविज्ञानीय समृद्धि के महान समय अपने अंगीकार के लिए उच्चतर रूप से ध्यान देने के द्वारा चरित्रार्थ किए जाते है। कलीसिया के समृद्धशाली होने में अवरोध होने के स्थान पर, विश्वास वचन और अंगीकार कलीसिया की एकता, पवित्रता, प्रेरितीयता (Apostolicity), और सार्वभौमिकता के लिए महत्वपूर्ण हैं।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया

जॉन आर. म्यूथर
जॉन आर. म्यूथर
जॉन आर. म्यूथर ऑरलैण्डो, फ्लॉरिना में रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकन सेमिनेरी में कलीसियाई इतिहास के प्राध्यापर और पुस्तकालयों के अध्यक्ष हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक, सहलेखक, या सम्पादक हैं, जिनमें सीकिंग अ बेटर कन्ट्री: 300 यिर्स ऑफ अमेरिकन प्रेस्बिटेरियनिस्म सम्मिलित हैं।