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29 मई 2024रोमियों (की पत्री) के महान विनिमय
जब सुसमाचार की अद्भुतता आपके जीवन में प्रवेश करती है, तो आपको ऐसा अनुभव होता है कि मानो जैसे आप पहले व्यक्ति हैं जिसने उसकी सामर्थ्य और महिमा को खोज लिया है। इतने सारे वार्षों में ख्रीष्ट कहाँ छिपा हुआ था? वह बहुत ही नया, अनुग्रह से भरा हुआ अनुभव करता है। और फिर आती है दूसरी खोज – यह तुम थे जो अब तक नेत्रहीन थे, परन्तु अब आपने ठीक उसी बात का अनुभव किया है जिसका अनुभव आप से पहले अनगिनत लोगों ने किया। अब आप दोनों एक-दूसरे के साथ अपना अनुभव बाँटते हैं। निश्चित बात तो यह है कि आप पहले जन नहीं हैं! और आप अन्तिम व्यक्ति भी नहीं होंगे।
यदि मेरे व्यक्तिगत अनुभव पर ध्यान दें और उसके आधार पर निर्णय लिया जा सकता है, तो रोमियों की पत्री को समझना/अध्ययन करना भी कुछ इसी प्रकार का अनुभव हो सकता है। मुझे अभी भी स्मरण है कि मैं एक मसीही नवयुवक था, और इस विचार का धीरे से मेरे मन में उदय हुआ: सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और मेरे लिए उपयोगी है, परन्तु ऐसा भी प्रतीत होता है कि इसमें आकार, संरचना है, इसमें केन्द्र और परिधि है। यदि ऐसा है तो कुछ बाइबलीय पुस्तकें आधारभूत हैं; पहले इनका अध्ययन करना चाहिए।
तब यह बोध हुआ कि (विधिवत् ईश्वरविज्ञानी पुस्तकों के साथ) मेरे पुस्तक संग्रह में बाइबलीय टीकाएँ होनी चाहिए। धन्य हैं स्कटॉलैंड के वे दिन जिनमें निशुल्क शिक्षण और विद्यार्थी भत्ता दिया जाता था, मैंने रॉबर्ट हाल्डेन और जॉन मरे की रोमियों पर अद्भुत अध्ययन पुस्तकें क्रय की। (केवल बाद में मुझे यह बोध हुआ कि सम्भवतः मेरे भीतर कुछ नस्लीय भेदभाव उपस्थित है, क्योंकि दोनों ही लेखक स्कटॉलैंड से थे!)
जब मैंने रोमियों का अध्ययन किया, उसके कुछ महान सत्यों से संघर्ष किया, उसके कुछ जटिल खण्ड़ों से संघर्ष किया (निश्चित रूप से यही वे खण्ड हैं जिनके बारे में 2 पतरस 3:14-16 बात करता है!) यह स्पष्ट हो गया है कि अनगिनत लोग इन बातों से पहले भी संर्घष कर चुके हैं। मैंने तो बस उन्हें मन को नवीन करने वाली, जीवन को बदल देने वाली समार्थ्य की खोज में सम्मिलित होना अभी-अभी आरम्भ किया है जिसे पौलुस “परमेश्वर का सुसमाचार” (रोमियों 1:1; 15:16) और “मेरा सुसमाचार” (रोमियों 2:16; 16:25) कहता है। शीघ्र ही यह स्पष्ट हो गया कि क्यों मार्टिन लूथर रोमियों को “सारे सुसमाचारों के विवरणों में से सबसे स्पष्ट” कहते हैं। रोमियों का सुसमाचार एक शब्द में सारांशित किया जा सकता है: विनिमय (अदला-बदली)। वास्तव में, जैसा की पौलुस रोमियों 1:18-5:11 की शिक्षा को सारांशित करता है, वह इस प्रकार समाप्त करता है कि मसीहियों, “हम परमेश्वर में अपने प्रभु यीशु के द्वारा आनन्दित होते हैं, जिसके द्वारा अब हमारा मेल हुआ है” (रोमियों 5:11)। यूनानी शब्द काटालागे का अनुवाद “मेल-मिलाप” किया गया है, यह वह स्थान है जहाँ परिवर्तन (या अदला-बदली) होता है। पौलुस का सुसमाचार अदला-बदली की कहानियों की एक श्रृखंला है।
पहला, विनिमय (अदला-बदली) 1:18-32 में वर्णित है: स्पष्ट रीति से प्रकट सृष्टिकर्ता परमेश्वर को जानना जिसने स्वयं द्वारा सृजित अपनी महिमा को दिखाया, मानवजाति ने “अविनाशी परमेश्वर की महिमा को …मूर्ति की समानता में बदल डाला…उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई के बदले झूठ को अपनाया और सृष्टि की आराधना और सेवा की – न की सृष्टिकर्ता की…उन्होंने स्वाभाविक क्रिया को उस से जो अस्वाभाविक है, बदल डाला” (1:23-26) – सभी विनिमयों की एक ही जड़ है।
दूसरा विनिमय पहले का प्रत्यक्ष एवं परमेश्वरिय निर्धारित परिणाम है: परमेश्वर ने मनुष्य के प्रति स्वयं से सम्बन्धित ज्ञान को अपने धर्मी प्रकोप के द्वारा विस्थापित कर दिया (रोमियों 1:18)। महिमानवित परमेश्वर को जानने, उस पर भरोसा करने और प्रेमपूर्वक उसको महिमानवित करने के बदले, मनुष्य जाति ने अपनी अभक्ति और अधार्मिकता (क्रम महत्वपूर्ण है) से परमेश्वर के न्याय को आमन्त्रित किया।
अतः परमेश्वर के साथ सहभागिता परिवर्तित हो गई परमेश्वर द्वारा दण्डाज्ञा में। यह दण्ड मात्र युगान्तात्मक ही नहीं है, जो भविष्य में दूर प्रतीत होता है; यह समकालीन समय में आक्रामक रीति से लोगों पर पड़ रहा है। पुरूषों और स्त्रियों ने परमेश्वर को छोड़ दिया और उसके सम्मुख अपनी बनावटी स्वायत्तता (autonomy) को घमण्ड के साथ दिखा रहे हैं। वे सोचते हैं, “हम तो उसकी व्यवस्था की उपेक्षा करते हैं और खुल्लमखुल्ला उल्लंघन करते हैं, फिर भी न्याय की कोई भी डराने वाली गरजन हमें छूती तक नहीं है।” किन्तु वास्तव में वे न्यायिक रूप से अन्धें और कठोर हैं। वे इस बात को नहीं देख पा रहे हैं कि उनके विद्रोह के परिणाम स्वरूप उनके विवेक का कठोर होना और शरीर का नाश होना ही परमेश्वर का न्याय है। उसके न्याय तो धर्मी हैं – यदि हमारे अन्दर भक्तिहीनता है, तो फिर उसके विरुद्ध किए गए अपराध का दण्ड भिन्न-भिन्न रीति से आएगा। अन्त में, हमने उसकी उपस्थिति के प्रकाश को वर्तमान के भीतरी अन्धकार से और भविष्य में बहारी अन्धकार से बदल डाला है।
तीसरा विनिमय वह अनुग्रहकारी, अयोग्य (वास्तव में तो हम इसके विपरीत पाने के योग्य है) विनिमय है जो परमेश्वर ने ख्रीष्ट में प्रदान किया है। अपने प्रकोप में प्रकट अपनी धार्मिकता के प्रति समझौता किए बिना, परमेश्वर पापियों को ख्रीष्ट के लहू के द्वारा कोपसन्तुष्टि में प्रदान छुटकारे के द्वारा धार्मिकता से धर्मी ठहराता है। पौलुस इस बात को रोमियों 3:21-26 के बहुमूल्य और शब्दों की गहन बातों में व्यक्त करता है।
अपनी पत्री में आगे चलकर ही वह हमें इस विचार को एक भिन्न, एक रीति से और अधिक आधारभूत ढंग से दिखाता है: परमेश्वर के पुत्र ने हमारा स्वभाव लिया और “पापमय शरीर की समानता में” (रोमियों 8:3) आ गया जिससे कि आदम को विस्थापित कर दे, जिससे कि हमारे लिए उसकी आज्ञाकारिता और धार्मिकता आदम की (और हमारी) अनाज्ञाकारिता और पाप से विस्थापित हो जाए (रोमियों 5:12-21)।
चौथा विनिमय वह है जो पापियों को सुसमाचार में उपलब्ध कराया गया है: अधार्मिकता और दण्डाज्ञा के बदले धार्मिकता और धर्मीकरण। इसके अतिरिक्त, यह ख्रीष्ट रचित धार्मिकता उसके सम्पूर्ण जीवन की आज्ञाकारिता और क्रूस पर प्रकोप आलंगित बलिदान के द्वारा है, जहाँ पर उसको पापबलि बनाया गया (पौलुस रोमियों 8:3 में कहता है, वह आया “पाप के लिए बलिदान होने” या “पापबलि के लिए।”
इस तथ्य पर बल देने के साथ-साथ कि यह अलौकिक विनिमय परमेश्वर की परम धार्मिकता के अनुकूल है (रोमियों 3:21,22,25,26), पौलुस इस बात पर भी बल दे रहा है कि उद्धार का यह मार्ग पुराने नियम की शिक्षा के अनुकूल है (“जिसकी साक्षी व्यवस्था और नबी देते है,” 21 पद; 1:1-4)। वह इस बात पर भी बल देता है कि हम अपने उद्धार में कुछ भी योगदान नहीं करते हैं। यह पूर्ण रीति से अनुग्रह के द्वारा है। परमेश्वरीय रणनीति पूर्णतया इतनी प्रवीण है कि विस्मयकारी है।
पाँचवा विनिमय का विवरण यह है। इन्स्ट्यूट्स आफ द क्रिस्चन रीलिजन (Institutes of the Christian Religion) में जब जॉन कैलविन भाग- 2 (ख्रीष्ट के कार्य) से भाग-3 (छुटकारे के लागूकरण) में जब जाते हैं तो लिखते हैं:
हमें अब इस प्रश्न का परीक्षण करना चाहिए। हम उन लाभों को कैसे प्राप्त करते हैं जिसे पिता ने अपने एकमात्र-एकलौते पुत्र को प्रदान किया-ख्रीष्ट के स्वयं के व्यक्तिगत उपयोग के लिए नहीं, परन्तु इसलिए कि वह निर्धनों और आवश्यकता में पड़े हुए लोगों को समृद्ध करेगा? पहला, हमें यह समझने की आवश्यकता है कि जब तक ख्रीष्ट हमारे बाहर है, और हम उससे पृथक हैं, उसने मानव जाति के उद्धार के लिए जो भी कुछ सहा और किया वह व्यर्थ है और उसका हमारे लिए कोई भी मूल्य नहीं है…हम इसे विश्वास के द्वारा प्राप्त करते हैं।
ख्रीष्ट में हमारे लिए जो महान विनिमय को पूर्ण किया गया है उसके प्रतिउत्तर में, पवित्र आत्मा द्वारा हमारे भीतर एक विनिमय को पूर्ण किया गया है: अविश्वास विश्वास को मार्ग दिखाता है, विद्रोह की अदला-बदली भरोसे की गई है। धर्मीकरण – हमें धर्मी घोषित किया जाना और परमेश्वर के साथ एक धर्मी सम्बन्ध में जुड़ना – हमारे कार्यों, विधि या किसी और कारण से नहीं हुआ है परन्तु ख्रीष्ट पर विश्ववास के द्वारा हुआ है।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

