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केवल विश्वास द्वारा ही धर्मी ठहराए गए
केवल विश्वास द्वारा ही धर्मीकरण का सिद्धान्त धर्मसुधारवाद के ईश्वरविज्ञान का केंद्र है, और आज सभी विश्वासियों के लिए अति आवश्यक है। इस सिद्धान्त पर निरन्तर प्रहार होते रहते हैं, परन्तु फिर भी, इसके बिना सुसमाचार है, ही नहीं। व्याख्यानों की इस श्रृंखला में, डॉ. स्प्रोल ने धर्मीकरण के इस सिद्धान्त की ऐतिहासिक और ईश्वरविज्ञान के दृष्टिकोण से व्याख्या की है।
परमेश्वर द्वारा प्रेम किए गए
हमारे पतित संसार में जिस प्रकार के प्रेम को अपनाया जाता है, वह स्वयं परमेश्वर के द्वारा, जो कि स्वयं प्रेम है, परिभाषित प्रेम की मात्र छाया और उसका जानबूझकर बिगाड़ा गया सबसे बुरा स्वरूप है। परमेश्वर का प्रेम क्या है और उसके द्वारा प्रेम किए जाने का क्या अर्थ है? इस श्रृंखला में, डॉ. आर. सी. स्प्रोल ईश्वरीय प्रेम की बाइबलीय शिक्षा की और हमें परमेश्वर और एक-दूसरे से कैसे प्रेम करना चाहिए इसके निहितार्थों की खोजबीन करेंगे।
मसीही जीवन की बुनियादी बातें
एक मसीही क्या है? एक कलीसिया का भाग होने का क्या अर्थ होता है? हम अनुग्रह में कैसे बढ़ सकते हैं? हम अन्त तक मसीही जीवन कैसे जी सकते हैं? हम इन प्रश्नों का उत्तर कैसे देते हैं इसका हमारे मसीही जीवनों की दिशा पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। इस श्रृंखला में, डॉ. सिन्क्लेयर बी. फर्गसन बड़ी सावधानी से मसीही जीवन की आधारभूत बातों को समझाते हैं।
पवित्र आत्मा कौन है?
हालाँकि पवित्र आत्मा कई बार त्रिएकता के भुला दिए गए जन के रूप में दिखाई देता है, फिर भी उसकी उपस्थिति और कार्य को छुटकारे के सम्पूर्ण इतिहास में देखा जा सकता है। बारह-संदेशों की इस श्रृंखला में, डॉ. सिंक्लेयर फर्गसन पवित्रशास्त्र के माध्यम से त्रिएकता के तीसरे जन के कार्य की खोज करते हैं।
ऊपरी कक्ष के पाठ
यह जानकर कि उसका इस संसार को छोड़कर जाने का समय तेजी से आ रहा है, यीशु ने अपने जीवन के अन्तिम घंटे अपने सबसे करीबी मित्रों के साथ बिताए। जब शिष्य अपने गुरु के साथ बैठे, तो वे इस बात से अनजान थे कि शीघ्र ही क्या होने वाला है, यीशु ने उनकी सेवा की, उन्हें सिखाया और उनके लिए प्रार्थना की।
परमेश्वर की पवित्रता
परमेश्वर की पवित्रता श्रृंखला पवित्रता के अर्थ की जांच करती है और पता लगाती है कि क्यों लोग परमेश्वर के प्रति आकर्षित होने के साथ-साथ उससे डरते भी हैं। यह श्रृंखला अत्याधिक निकटता से परमेश्वर के चरित्र की छानबीन करती है जिससे पाप, न्याय तथा अनुग्रह के बारे में गूढ़ ज्ञान की नई बातें पता चल सकें।
यीशु के दृष्टान्त
“मैं उनसे दृष्टान्तों में इसलिए बातें करता हूँ” (मत्ती 13:13) यीशु की सांसारिक सेवकाई के दौरान, उसका अपने चेलों को सिखाने का सबसे प्रमुख तरीका दृष्टान्तों के माध्यम से था। लोग यह सुनने के लिए दूर-दूर से आकर इकट्ठा हुआ करते थे कि यीशु परमेश्वर के राज्य के बारे में क्या कहता है, और यीशु स्वर्ग राज्य के विषय में बताने का सबसे सामान्य तरीका दृष्टान्तों के माध्यम से था। इस श्रृंखला में डॉ. आर. सी. स्प्रोल यीशु के कुछ दृष्टान्तों की जाँच करेंगे, और उन अनमोल सत्यों का पता लगाएँगे जिन्हें वे इस विषय में प्रकट करते हैं कि यीशु कौन है और वह अपने जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान के द्वारा क्या हासिल करने आया था।