ऊपरी कक्ष के पाठ

यह जानकर कि उसका इस संसार को छोड़कर जाने का समय तेजी से आ रहा है, यीशु ने अपने जीवन के अन्तिम घंटे अपने सबसे करीबी मित्रों के साथ बिताए। जब शिष्य अपने गुरु के साथ बैठे, तो वे इस बात से अनजान थे कि शीघ्र ही क्या होने वाला है, यीशु ने उनकी सेवा की, उन्हें सिखाया और उनके लिए प्रार्थना की। इस नई शिक्षण श्रृंखला, ऊपरी कक्ष के पाठ में, डॉ. सिन्क्लेयर फर्गसन अपने उद्धारकर्ता के साथ शिष्यों के अंतिम क्षणों की एक जीवंत तस्वीर बनाते हैं। यूहन्ना 13-17 अध्ययन करते, डॉ. फर्गसन हमें हमारे सम्पूर्ण जीवन में मसीह को केंद्र में रखने की याद दिलाते हैं।


पाँच चरणों में पाँव धोना

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अपने क्रूस पर चढ़ाए जाने से एक दिन पहले, यीशु ने अपने शिष्यों के साथ अपने मन की बातें साझा की। जिसे हम ऊपरी कक्ष के उपदेश या यूहन्ना 13-17 के विदाई उपदेश के रूप में जानते हैं, उसने अपने पकड़वाए जाने के बारे में बताया; उसने अपनी मृत्यु, महिमा, और इस संसार से अपने प्रस्थान की भविष्यद्वाणी की; आने वाले पवित्र आत्मा की प्रतिज्ञा की; और जो कुछ होने वाला था, उसकी तैयारी के लिए प्रार्थना की।

जो तुम्हारे लिए किया गया, दूसरों के लिए भी वही करो।

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अधिकांश लोग मत्ती 7:12 के इस “सुनहरे नियम” से परिचित हैं: “जो कुछ तुम चाहते हो कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।” इस संदेश में, डॉ फर्गसन इस प्रसिद्ध कहावत को यूहन्ना 13 के पाँव धोने की घटना से के साथ जोड़ते हैं। डॉ फर्गसन जैसे-जैसे इस घटना की परतों को खोलते हैं, वे सुसमाचार की चर्चा यह समझने की कुंजी के रूप में करते हैं कि मसीह ने अपने शिष्यों के पाँव धोकर क्या किया है।

स्वामी के हृदय की झलक

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यद्यपि हम जानते हैं कि यीशु ने कभी पाप नहीं किया, हमें इस सच्चाई को समझने में परेशानी होती है कि वह क्रोधित भी हो सकता है। फिर भी, यह जानकर कि उसे पकड़वाया जाएगा और कौन इस कार्य को करेगा, वह सचमुच अत्याधिक व्याकुल था, परन्तु वह इस बात से थोड़ा सा भी हैरान नहीं था। वह अपनी नियति को जानता था, और उस पर यहूदा और न किसी और का नहीं बल्कि उसका अपना नियंत्रण था।

महिमान्वित फिर भी अस्वीकृत

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ऊपरी कक्ष से यहूदा के चले जाने के बाद दूषित वातावरण बदल गया। फिर बाकी शिष्यों के सामने यीशु ने अपने मन की बातें खुलकर कहीं और अपनी योजना बताईं। यूहन्ना 1:14 में जिस क्षण की आशा की गई थी वह आ पहुंचा था। मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा तक पहुँच चुका था और इसके परिणामस्वरूप परमेश्वर के राज्य का विस्तार होने वाला था। फिर भी, जैसा कि डॉ. फर्गसन ने इस पाठ में दिखाया है, क्रूस पर चढ़ने का मार्ग महिमा का मार्ग था।

वह व्याकुल हुआ जिससे कि आपको न होना पड़े

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शायद आपको इसका एहसास न हो, लेकिन यूहन्ना रचित सुसमाचार में सबसे लोकप्रिय आयत शायद यूहन्ना 14:1 है — न कि यूहन्ना 3:16। दफनाए जाने की क्रिया में हम प्रायः शोक से व्याकुल मनों को सांत्वना देने की आशा में ये शब्द सुनते हैं “तुम्हारे मन व्याकुल न हों।” जैसा कि डॉ. फर्गसन ने टिप्पणी की है, इस आयत को अक्सर संदर्भ से बाहर रखकर समझा जाता है, क्योंकि लोग उस शांति की नींव को समझने में विफल हो जाते हैं जो मसीह प्रदान करता है।

यह उत्तम है कि दूसरा आए

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मार्टिन लूथर के छात्र प्रायः उनके साथ रात के भोजन के समय बातचीत किया करते थे और उनकी कई टिप्पणियों को मेज वार्ता के रूप में जाना जाता था। इस पाठ में, डॉ. फर्गसन यीशु की “मेज वार्ता” के बारे में बात करते हैं जिसे यूहन्ना ने ऊपरी कक्ष के उपदेश में दर्ज किया था। इस खण्ड में, उद्धारकर्ता शिष्यों के उस लाभ की चर्चा करता है जिसके लिए वह उन्हें छोड़ कर जाएगा और “एक और सहायक” (14:16), अर्थात पवित्र आत्मा को भेजेगा।

दाखलता में बने रहना

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क्या आप जानते हैं कि नए नियम में विश्वासियों का सबसे साधारण नाम “मसीही” नहीं है बल्कि “मसीह में” है? पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा, विश्वासी अपने भीतर मसीह के वास का अनुभव करते हैं। शिष्यों को इस विशेष और रहस्यमय मिलन के लाभ को समझने में परेशानी हुई और शारीरिक रूप से अनुपस्थित मसीह इसमें कितनी सामर्थ्य से उपस्थित था।

बैर रखा गया किन्तु सहायता की गई

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कुछ लोगों का तर्क है कि पश्चिमी दर्शनशास्त्र के इतिहास को मुख्य रूप से प्लेटो के विचार के फुटनोट के रूप में सारांशित किया जा सकता है। हम कह सकते हैं कि पूरी बाइबल उत्पत्ति 3:15 से एक जैसे सम्बन्ध को दिखाती है, जिसमें स्त्री के वंश और सर्प के वंश के बीच की शत्रुता की घोषणा की गई है। यूहन्ना 15:18-27 में, और इस निरंतर चल रही लड़ाई के सम्बन्ध में, यीशु ने स्वीकार किया है।

उनके मनों में उतरना

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इस श्रृंखला में अब तक, ऊपरी कक्ष का उपदेश शिष्यों को भावनाओं के उतार-चढ़ाव पर ले जा चुका है, विशेष तौर पर शिष्यों के भीतरी घेरे के भीतर विश्वासघात और इनकार की घोषणा के साथ। मानो कि यही काफी नहीं था, कि अब यीशु उनके पास से चला जाएगा और अपने पीछे भयानक विरोध छोड़ जाएगा जो किसी आश्चर्य की बात नहीं थी।

ईस्टर पर क्रिसमस का अर्थ

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प्रचारक कभी-कभी ऐसी बातें बोल देते हैं जो लोगों के सर के ऊपर से गुजर जाती हैं और वे उनसे जुड़ने में असफल हो जाते हैं। जैसा कि एक बार चार्ल्स स्पर्जन ने टिप्पणी की थी, “यीशु ने कहा था, ‘मेरी भेड़ों को चरा,’ मेरे जिराफों को नहीं।” फिर भी, हमारे उद्धारकर्ता ने कई बार ऐसी शिक्षाएँ दीं जिससे उसके शिष्य दुविधा में पड़ गए, और उसने उन बातों को भी छिपा लिया जिन्हें वे सह नहीं सकते थे।

हे पिता, अपने पुत्र की महिमा कर

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कलीसियाओं में, हम प्रायः एक दूसरे को और अधिक जानने के लिए सामाजिक सभाओं का आयोजन करते हैं। शायद कोई और सभा प्रार्थना सभा से बेहतर नहीं है जिसमें हम लोगों को जान सकते हैं। वहाँ, हमारे पास सौभाग्य होता है, क्योंकि हम दूसरों को जोर-जोर से प्रार्थना करते हुए, अर्थात अपने मन की गहरी इच्छाओं को प्रकट करते हुए सुनते हैं। यदि हम कलीसियाई संदर्भ में इस तरह के सौभाग्य में भागीदार हैं।

उसकी सबसे गहरी इच्छाएँ प्रकट हुईं

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कमरे में सन्नाटा था क्योंकि यीशु अब भी प्रार्थना कर रहा था - शायद इसलिए कि उसके शिष्यों ने उसे पहले कभी प्रार्थना करते नहीं सुना था। यहूदा चला गया था, और पतरस संभवतः उस इनकार से परेशान होकर बैठा था जिसकी भविष्यद्वाणी यीशु ने की थी। हमने पिछले पाठ में देखा कि यूहन्ना 17 में यीशु की प्रार्थना प्रायश्चित के दिन महायाजक की अपने लिए, अपने परिवार के लिए, और अंत में, अपने समुदाय के लिए।