महिमान्वित फिर भी अस्वीकृत

ऊपरी कक्ष से यहूदा के चले जाने के बाद दूषित वातावरण बदल गया। फिर बाकी शिष्यों के सामने यीशु ने अपने मन की बातें खुलकर कहीं और अपनी योजना बताईं। यूहन्ना 1:14 में जिस क्षण की आशा की गई थी वह आ पहुंचा था। मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा तक पहुँच चुका था और इसके परिणामस्वरूप परमेश्वर के राज्य का विस्तार होने वाला था। फिर भी, जैसा कि डॉ. फर्गसन ने इस पाठ में दिखाया है, क्रूस पर चढ़ने का मार्ग महिमा का मार्ग था। वह यह भी स्पष्ट करता है कि क्रूस पर चढ़ाया जाना केवल तरस खाने या दु:ख का समय नहीं है, बल्कि यह विजय का समय भी है। शिष्यों को यह समझ में नहीं आया, और पतरस की अपनी अज्ञानता उसे महिमान्वित उद्धारकर्ता के इनकार की ओर ले गई। इस तरह, यूहन्ना का अन्त महिमा और असफलता दोनों ही बातों की एक झलक के साथ होता है।