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स्वर्ग के विषय में 5 बातें जो आपको जाननी चाहिए

संगीत से लेकर चलचित्रों/फिल्मों और पुस्तकों और उसके आगे बहुत कुछ तक, स्वर्ग एक ऐसा विषय है जो कलीसिया और संसार दोनों में लोगों को आकर्षित करता है। फिर भी जैसा की अन्य आत्मिक बातों में होता है, स्वर्ग की अवधारणा के सम्बन्ध में भी बहुत भ्रम है। पवित्रशास्त्र ही हमें सत्य बताता है। यहाँ पाँच बातें हैं जो आपको स्वर्ग के बारे में जाननी चाहिए।

1. स्वर्ग एक स्थान है।

प्रेरितों के काम 1:6-11 हमें बताता है कि यीशु स्वर्ग पर चढ़ गया, जो उसके एक स्थान (पृथ्वी) से दूसरे (स्वर्ग) में जाने का संकेत देता है। इसके अलावा, हम जानते हैं कि पुनरुत्थान के पश्चात् भी यीशु के पास एक भौतिक मानव देह  है, यद्यपि वह पवित्र आत्मा द्वारा महिमान्वित है (यूहन्ना 20:24-29; 1 कुरिन्थियों 15)। भौतिक वस्तुएँ स्थान और समय में स्थित होते हैं; दूसरे शब्दों में, वे एक विशेष स्थान पर स्थानीयकृत (localized) हैं। अन्तिम दिन, यीशु अन्तिम पुनरुत्थान और न्याय करने के लिए स्वर्ग से उतरेगा (1 थिस्सलुनीकियों 4:16)। उसकी भौतिक, महिमान्वित देह एक स्थान (स्वर्ग) से दूसरे (पृथ्वी) पर आएगी।

2. स्वर्ग परमेश्वर के सिंहासन का स्थान है।

भजन-संहिता प्रायः स्वर्ग को परमेश्वर के सिंहासन के स्थान के रूप में संदर्भित करती है (भजन 9:7; भजन 11:4; भजन 103:19)। क्योंकि परमेश्वर आत्मा है और उसके पास भौतिक देह नहीं है (यूहन्ना 4:24), हम समझते हैं कि कुछ सीमा तक यह एक रूपक है जो इंगित करता है कि परमेश्वर स्वर्ग में अपनी विशेष सत्ताधारी उपस्थिति को सबसे शक्तिशाली रूप से अनुभव कराता है। तथापि, यह कहना कि परमेश्वर  के पास भौतिक देह नहीं है, पूर्ण रूप से ठीक नहीं है। दो हजार वर्षों पहले हुए देहधारण के पश्चात् से परमेश्वर के पुत्र के पास एक भौतिक देह है, क्योंकि यह मानव स्वभाव का भाग है जो यीशु मसीह के ईश्वरीय व्यक्ति में ईश्वरीय स्वाभाव से जुड़ा हुआ है। इसका अर्थ यह है कि देहधारण के पश्चात् से, परमेश्वर के सिंहासन के कई संदर्भों को एक वास्तविक स्थान के रूप में पढ़ा जा सकता है जहाँ ख्रीष्ट ऊँचे स्थान पर विराजमान है (उदाहरण के लिए, इफिसियों 1:20; इब्रानियों 1:1-3 देखें)। यह सिंहासन वास्तव में दाऊद के राज्य का सिंहासन है, जो सदा के लिए ख्रीष्ट को देने का वादा किया गया था (लूका 1:32-33)। दूसरे शब्दों में, ख्रीष्ट में परमेश्वर ने दाऊद के राज्य को अपना राज्य बना लिया है।

3. स्वर्ग वह स्थान है जहाँ मरने के पश्चात् विश्वासियों की आत्माएँ जाती हैं।

पौलुस ने फिलिप्पियों 1:23 में आशा प्रकट की कि जब वह मरेगा, तो वह “ख्रीष्ट के साथ” होगा। जऐसा की हम जानते हैं कि यीशु इस समय स्वर्ग में हैं, इसका अर्थ यह होना चाहिए कि ख्रीष्ट में विश्वास करने वाले लोग मरने के पश्चात् स्वर्ग में उसके साथ रहेंगे। इसी तरह, 2 कुरिन्थियों 5:6-8 कहता है कि “देह में अनुपस्थित” होना “प्रभु के साथ उपस्थित” होना है। पुनः, यदि प्रभु यीशु ख्रीष्ट वर्तमान में स्वर्ग में हैं, तो मृत्यु के पश्चात् हम स्वर्ग में होते हैं। विशेष रूप से, हमारी आत्माएँ, “देह से अनुपस्थित” होकर स्वर्ग में जाती हैं, जहाँ हम पुनरुत्थान की प्रतीक्षा करते हुए निरन्तर सचेत अस्तित्व का आनन्द लेंगे। “विश्वासियों की आत्माएँ उनकी मृत्यु के पश्चात् सिद्ध रूप से पवित्र कर दी जाती हैं, और तुरन्त महिमा में प्रवेश कर जाती हैं; और उनकी देहें, जो कि अभी भी ख्रीष्ट के साथ जुड़ी हुई  हैं, पुनरुत्थान तक अपनी कब्रों में विश्राम करती हैं” (वेस्टमिंस्टर लघु प्रश्नोत्तरी 37)। 

4. स्वर्ग वह स्थान है जहां विश्वासी वर्तमान में ख्रीष्ट के साथ बैठे हैं।

यद्यपि बाइबल स्पष्ट है कि विश्वासियों की आत्माएँ मरने के पश्चात् स्वर्ग में ख्रीष्ट के साथ रहने चली जाती हैं, ऐसे पद भी हैं जो कहते हैं कि ख्रीष्टीय पहले से ही “मसीह यीशु में स्वर्गीय स्थानों में” परमेश्वर के साथ बैठे हैं (इफिसियों 2:6)।  क्योंकि जो विश्वासी मरे नहीं हैं वे वर्तमान में पृथ्वी पर हैं, तो यह आवश्य ही एक स्थितिगत वास्तविकता (positional reality) को बताता है। दूसरे शब्दों में, यद्यपि अभी हम शारीरिक रूप से स्वर्ग में उपस्थित नहीं हैं, लेकिन वास्तव में हम वहाँ हैं। हमें अपने आप को पहले से ही अधिकारपूर्वक यीशु के साथ राज्य और आधिपत्य करने वाला मानना ​​है, भले ही हमारे अनुभव में यह पूर्ण रूप से साकार न हुआ हो। यह पवित्रीकरण के लिए एक महान् प्रोत्साहन है। हम अभी तक राष्ट्रों पर राज्य नहीं कर रहे हैं, लेकिन ख्रीष्ट के साथ, हम पहले से ही पाप और यीशु के क्रूस के द्वारा निरस्त्र किए गए अन्य राजाओं और अधिकारियों के ऊपर उसके साथ बैठे हैं ( कुलुस्सियों 2:13-15 देखें)।

जब रोमियों 6:12 हमें कहता है कि “इसलिए पाप को अपने मरणहार शरीर में प्रभुता न करने दो,” तो हम वास्तव में पवित्र आत्मा के सामर्थ्य  से इस आज्ञा का पालन कर सकते हैं। पाप का हम पर कोई वास्तविक प्रभुत्व नहीं है और वह उसी सीमा तक प्रभुत्व करता है, जिस सीमा तक हम उसे अनुमति देते हैं। इसलिए आइए हम पाप को अपने अन्दर राज्य न करने दें।

5. स्वर्ग सदैव नहीं रहेगा। 

स्वर्ग का वर्तमान स्थान जहाँ यीशु अपने सिंहासन पर विराजमान है  और जो विश्वासी मर चुके हैं वे उसकी उपस्थिति का आनन्द ले रहे हैं, इतिहास के पूर्ण विस्तार के संदर्भ में केवल अस्थायी है। प्रकाशितवाक्य 21:1-22:5 बताता है कि एक दिन परमेश्वर “एक नया स्वर्ग और एक नई पृथ्वी” लाएगा। स्वर्ग और पृथ्वी फिर से एक हो जाएँगे, और हम अपने सृष्टिकर्ता के साथ वहाँ सदा रहेंगे और उसे आमने-सामने देखेंगे। अंतिम आशा सृष्टि का विनाश नहीं है, वरन् इसका पूर्ण नवीनीकरण और पुनर्स्थापन है (यशायाह 65:17-25; 2 पतरस 3:13 भी देखें)।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

रॉर्बट रॉथवेल
रॉर्बट रॉथवेल
रेव रॉबर्ट रोथवेल लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ के वरिष्ठ लेखक, टैबलेटटॉक पत्रिका के एसोसिएट एडिटर, रिफॉर्मेशन बाइबिल कॉलेज में रेजिडेंट एडजंक्ट प्रोफेसर और पोर्ट ऑरेंज, फ्लोरिडा में स्प्रूस क्रीक प्रेस्बिटेरियन चर्च के एसोसिएट पास्टर हैं।