त्रिएकता के सिद्धान्त के विषय में 5 बातें जो आपको जाननी चाहिए - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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त्रिएकता के सिद्धान्त के विषय में 5 बातें जो आपको जाननी चाहिए

1. त्रिएकता का सिद्धान्त ख्रीष्टीय धर्म के सबसे मौलिक सिद्धान्तों में से एक है।

परमेश्वर का ख्रीष्टीय सिद्धान्त त्रिएकता का सिद्धान्त है, और परमेश्वर का ख्रीष्टीय सिद्धान्त अन्य सभी ख्रीष्टीय सिद्धान्तों का आधार है। परमेश्वर के सिद्धान्त से हटकर पवित्रशास्त्र (बाइबलविज्ञान) का कोई सिद्धान्त नहीं हो सकता, क्योंकि पवित्रशास्त्र परमेश्वर का वचन है। मनुष्य परमेश्वर के स्वरुप  में बनाए गए हैं। पाप परमेश्वर की व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह है। उद्धार के सिद्धान्त का सम्बन्ध  परमेश्वर के छुटकारे के कार्य से है। कलीसिया परमेश्वर के लोग हैं।  युगान्तविज्ञान (eschatology) का सम्बन्ध परमेश्वर के अन्तिम लक्ष्यों और योजनाओं से है।

2. त्रिएकता  के सिद्धान्त का आविष्कार नीकिया की महासभा में नहीं हुआ था।

आज एक लोकप्रिय मिथक है कि त्रिएकता के सिद्धान्त का आविष्कार चौथी शताब्दी में नीकिया की महासभा में किया गया था। यह सत्य नहीं है। कलीसिया की पहली शताब्दियों में ख्रीष्टीय पहले से ही पवित्रशास्त्र में पाए गए मौलिक सिद्धान्तों को पढ़ा रहे थे। पवित्रशास्त्र सिखाता है कि परमेश्वर एक-और केवल एक ही है। पवित्रशास्त्र यह भी सिखाता है कि पिता परमेश्वर है। पवित्रशास्त्र सिखाता है कि पुत्र परमेश्वर है और पवित्र आत्मा परमेश्वर है। इसके साथ-साथ पवित्रशास्त्र सिखाता है कि पिता पुत्र या आत्मा नहीं है, कि पुत्र पिता या आत्मा नहीं है, और आत्मा पिता या पुत्र नहीं है। जो कोई भी पवित्रशास्त्र के इन मौलिक कथनों को मानता था, वह त्रिएकता के सिद्धान्त के मूल को थामे हुआ था। शताब्दियों से ऐसे लोग उभरे जिनकी शिक्षाओं ने बाइबल की एक या अधिक शिक्षाओं को नकारा या विकृत कर दिया। निकिया की महासभा को ऐसी ही एक शिक्षा-एरियस की शिक्षा, का प्रतिउत्तर देने के लिए आयोजित किया गया था, जिसने इस बात को अस्वीकार कर दिया था कि पुत्र परमेश्वर है। नीकिया के विश्वास वचन  ने यह सुनिश्चित करने के लिए सीमाएँ प्रदान कीं कि कलीसिया वही सब कुछ सिखाए, जिसकी पुष्टि पवित्रशास्त्र करता है।

3. मानव मस्तिष्क त्रिएकता के सिद्धान्त  को पूर्ण रूप से नहीं समझ सकता है।

त्रिएकता का सिद्धान्त, देहधारण के सिद्धान्त के साथ, ख्रीष्टीय विश्वास के महान रहस्यों में से एक है। इसका अर्थ यह है कि यह  मानव मस्तिष्क की समझने की सीमित क्षमता से बाहर है। यदि हम त्रिएकता के सिद्धान्त को किसी प्रकार की गणित की पहेली के समान मानते हैं, जिसे हल करने के लिए केवल पर्याप्त चतुरता की आवश्यकता होती है, तो हम अनिवार्य रूप से किसी न किसी विधर्म (झूठी शिक्षा) में फँस जाएँगे। त्रिएकता का सिद्धान्त कोई जटिल पहेली (रूबिक क्यूब) नहीं है। सृष्टि में ऐसा कुछ भी नहीं है जो त्रिएकता के सिद्धान्त का सटीक सादृश्य (analogy) हो।

4. त्रिएकता के विषय में प्रचलित अधिकाँश लोकप्रिय उपमाएँ (analogies) सर्वोत्तम स्थिति में भ्रामक और निकृष्टतम स्थिति में विधर्मी हैं।

क्योंकि सृष्टि में ऐसा कुछ भी नहीं है जो त्रिएकता  के सिद्धान्त का सटीक सादृश्य हो, त्रिएकता के विषय में प्रचलितअधिकाँश लोकप्रिय उपमाएँ सर्वोत्तम स्थिति में भ्रामक और निकृष्टतम स्थिति में विधर्मी हैं। अधिकाँश उपमाएँ अंततः या तो ये कहती हैं कि त्रिएकता के तीन व्यक्ति परमेश्वरत्व के तीन भाग हैं (उदाहरण के लिए, तिपतिया घास की उपमा ; या अंडे के छिलके, पीतक और सफेद भाग की उपमा), या ये कि वे एक परमेश्वर के तीन रूप या भूमिकाएँ हैं (उदाहरण के लिए, पिता, पुत्र और आत्मा के “मुखौटे” की उपमा या पानी, बर्फ और भाप की उपमा)।  सर्वोत्तम स्थिति में, कुछ उपमाएँ संभवतः त्रिएकता के सिद्धान्त के एक निश्चित पक्ष का सादृश्य बताने में सक्षम हैं, लेकिन वे सभी इस विषय में बाइबलिय शिक्षा के एक या अधिक तत्वों को नकारती हैं। 

5. यीशु कौन है के विषय में भ्रांतियाँ त्रिएकता  के सिद्धान्त के विषय में  भ्रांतियाँ  उत्पन्न करती हैं।
देहधारण में, त्रिएकता  के दूसरे व्यक्ति, पुत्र, ने मानव स्वभाव धारण किया, जो उसके ईश्वरीय स्वभाव के साथ जुड़ा हुआ है। मानव स्वभाव में उसकी देह  और उसकी आत्मा सम्मिलित हैं। इसका अर्थ यह है कि प्रभु यीशु ख्रीष्ट देह में परमेश्वर हैं। वह दो स्वभावों वाला एक व्यक्ति है, और वे दो स्वभाव बिना किसी मिश्रण, परिवर्तन, विभाजन या अलगाव के पुत्र के एक व्यक्ति में जुड़े हुए हैं। क्योंकि दोनों स्वाभाव उसके स्वभाव हैं, इसलिए जो कुछ भी स्वभाव के विषय में सत्य है वह सब उसके, एक प्रभु यीशु ख्रीष्ट के विषय में कहा जाता है। तथापि, उसके विषय में कुछ बातें  उसके ईश्वरीय स्वभाव के अनुसार कही जाती हैं (उदाहरण के लिए, संसार का सृष्टिकर्ता होना) और कुछ बातें उसके मानवीय स्वभाव के अनुसार कही जाती हैं (उदाहरण के लिए, भूखा या प्यासा होना)। यदि हम यीशु ख्रीष्ट  के ईश्वरीय और मानवीय स्वभावों को मिश्रित करते हैं, तो यह त्रिएकता के हमारे सिद्धान्त को बड़ी सरलता से विकृत कर देगा, क्योंकि ऐसा करने से हम परमेश्वर में मानवीय गुणों को देखेंगे। उदाहरण के लिए बाइबल सिखाती है कि परमेश्वर अमर है (1 तीमुथियुस 6:15-16)। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर मर नहीं सकता। परन्तु क्या हम यह नहीं मानते कि यीशु परमेश्वर हैं? और क्या यीशु क्रूस पर नहीं मरा? हाँ, वह मरा, और उसने ऐसा अपने मानवीय स्वभाव में किया। मनुष्य मर सकता है।मनुष्य को कष्ट हो सकता है। मनुष्य परिवर्तित हो सकता है।  यीशु ने ये सब अपने मानवीय स्वभाव में किया, लेकिन हम उन मानवीय गुणों को ईश्वरीय स्वभाव में स्थानान्तरित नहीं कर सकते। ईश्वरीय स्वाभाव मर नहीं सकता, परिवर्तित नहीं हो सकता या पीड़ित नहीं हो सकता। इसी प्रकार, ख्रीष्ट ने अपनी मानवीय इच्छा को पूर्ण रूप से परमेश्वर की ईश्वरीय इच्छा के अधीन कर दिया, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि पुत्र की ईश्वरीय इच्छा पिता की ईश्वरीय इच्छा के अधीन थी। क्यों नहीं? क्योंकि ईश्वरीय इच्छा केवल एक ही है। पुत्र की ईश्वरीय इच्छा और पिता की ईश्वरीय  इच्छा एक ही है, क्योंकि पुत्र वैसे ही परमेश्वर है जैसे पिता परमेश्वर है। नीकिया के विश्वास वचन की भाषा में कहें तो पुत्र और पिता का एक ही तत्त्व है। यदि पुत्र की ईश्वरीय इच्छा पिता की ईश्वरीय इच्छा के अधीन है, तो हमारे पास त्रिएकता नहीं है। हमारे पास बहुईश्वरवाद (polytheism) है।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

कीथ ए. मैथिसन
कीथ ए. मैथिसन
डॉ. कीथ ए. मैथिसन सैनफर्ड, फ्लॉरिडा के रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज में विधिवत ईश्वरविज्ञान के प्रोफेसर हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें द लॉर्ड्स सप्पर और फ्रम एज टु एज समिमिलित हैं।