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लेपालकपन के विषय में 5 बातें जो आपको जाननी चाहिए

यीशु ख्रीष्ट में विश्वास करने द्वारा विश्वासियों को मिलने वाले प्रमुख लाभों में से सम्भवतया लेपालकपन (adoption) सबसे अधिक उपेक्षित है। धर्मीकरण पर बहुत बात होती है, और विश्वासियों के रूप में पवित्रीकरण हमारे दैनिक जीवन का एक भाग है। परन्तु लेपालकपन भी महत्वपूर्ण विषय है, और इसे समझना और इसकी बहुमूल्य सच्चाइयों में विश्राम पाना विश्वासियों के जीवन में फल ले कर आ सकता है। यहाँ पाँच बातें हैं जो आपको लेपालकपन के विषय में जाननी चाहिए।

1. लेपालकपन ख्रीष्ट  के साथ मिलन हो जाने के लाभों में से एक है।

धर्मीकरण और पवित्रीकरण के समान ही लेपालकपन विश्वासियों को केवल विश्वास के माध्यम से यीशु ख्रीष्ट के साथ उनके एक होने के आधार पर मिलता है। वेस्टमिंस्टर वृहद् प्रश्नोत्तरी में कहा गया है:

लेपालकपन परमेश्वर के एकमात्र पुत्र यीशु ख्रीष्ट में और उसके निमित्त परमेश्वर के निःशुल्क अनुग्रह का एक कार्य है, जिसके द्वारा वे सभी जो धर्मी ठहराए जाते हैं, उसकी सन्तानों की संख्या में ग्रहण किए जाते हैं, उसके नाम की छाप उन पर लगा दी जाती है, उसके पुत्र का आत्मा उन्हें दिया जाता है, उन्हें उसकी पितृवत् देखभाल और व्यवस्था के अधीन कर दिया जाता हैं, वे परमेश्वर के पुत्रों की सभी स्वतंत्रताओं और विशेषाधिकारों के भागी कर दिए जाते हैं, सभी प्रतिज्ञाओं के उत्तराधिकारी बना दिए जाते हैं, और महिमा में ख्रीष्ट के साथ सह-उत्तराधिकारी बना दिए जाते हैं। (वेस्टमिंस्टर वृहद् प्रश्नोत्तरी  74)

लेपालकपन एक बार में कर दिया गया निश्चित कार्य है, जो यीशु ख्रीष्ट के कार्य से उत्पन्न होता है और हमें परमेश्वर के परिवार में लाता है, उन सभी विशेषाधिकारों के साथ जो हमारी यह नई अवस्था लाती है (यूहन्ना 1:12)।

2. लेपालकपन का अर्थ परमेश्वर के परिवार का सदस्य बनना है।

अपनी स्वाभाविक अवस्था में हम परमेश्वर के परिवार से अलग हैं । हम शैतान के हैं , पाप के दास हैं (यूहन्ना 8:44; इफिसियों 2:1-3)। परन्तु लेपालकपन में हमें परमेश्वर के परिवार में सम्मिलित कर लिया गया है और उसकी सन्तानों में गिने जाते हैं। प्रेरित पौलुस हमारी अवस्था में इस महिमावान परिवर्तन के विषय में लिखता है: “अतः तुम अब विदेशी और अजनबी न रहे, परन्तु पवित्र लोगों के संगी स्वदेशी और परमेश्वर के कुटुम्ब के बन गए हो ” (इफिसियों 2:19)। 

3. लेपालकपन का अर्थ है कि हमारे पास परमेश्वर हमारे पिता के रूप में है।

उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में एक प्रमुख उदारवादी ईश्वरविज्ञानी एडॉल्फ वॉन हार्नैक ने ख्रीष्टीय धर्म के तत्त्व का निचोड़ दो सत्यों के रूप में प्रस्तुत किया: मनुष्य का सार्वभौमिक भ्रातृत्व (universal brotherhood) और परमेश्वर का सार्वभौमिक पितृत्व (universal fatherhood)। यद्यपि परमेश्वर सभी लोगों का सृष्टिकर्ता है, फिर भी वह सभी लोगों के साथ पितृवत् सम्बन्ध में नहीं है। परमेश्वर को अपने पिता के रूप में जानना और परमेश्वर का पुत्र होना उन लोगों के लिए आरक्षित सौभाग्य है,  जिन्हें उसके परिवार में पुत्रों के रूप में अपना लिया गया है (यूहन्ना 1:12)। यही कारण है कि प्रेरित यूहन्ना आदर के साथ कहता है, “देखो, पिता ने हमें कैसा महान् प्रेम प्रदान किया है कि हम परमेश्वर की सन्तान कहलाएँ; और वही हम  हैं” (1 यूहन्ना 3:1)। यही कारण है कि यीशु द्वारा परमेश्वर को अपना पिता कहने (यूहन्ना 5:18) से फरीसियों को इतना क्रोध आया और इसीलिए यीशु ने अपने शिष्यों को परमेश्वर से अपने पिता के रूप में प्रार्थना करना सिखाया (मत्ती 6:9)।

4. लेपालकपन का अर्थ है कि हमारी परमेश्वर तक पहुँच है।

रोमन कैथोलिक ईश्वरविज्ञान की महान त्रासदियों में से एक संतों के विषय में इसका ईश्वरविज्ञान है। रोमन कैथोलिकों को सिखाया जाता है कि परमेश्वर इतना व्यस्त है की उनकी प्रार्थना नहीं सुन सकता, इसलिए उन्हें संतों-विशेषकर कुँवारी मरियम-से उनकी ओर से मध्यस्थता करने के लिए निवेदन करना चाहिए। यह एक भयानक सिद्धान्त है।  सच्चे विश्वासियों को मध्यस्थता माँगने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि एकमात्र मध्यस्थ ख्रीष्ट के माध्यम से, उनकी पहुँच स्वयं परमेश्वर तक है (यूहन्ना 14:13-14; 1 तीमुथियुस 2:5)। पौलुस ने लिखा: “क्योंकि उसी के द्वारा  हम दोनों [अर्थात, यहूदी और अन्यजातीय विश्वासी] की, एक ही आत्मा में, पिता के पास पहुँच  होती है” (इफिसियों 2:18; रोमियों 5:2 देखें)।

5. लेपालकपन का अर्थ है कि हमें परमेश्वर के पुत्रों के रूप में अधिकार प्राप्त हैं।

यीशु ख्रीष्ट स्वभाव से परमेश्वर का पुत्र है, और हम लेपालकपन के द्वारा परमेश्वर के पुत्र हैं। यह अवस्था अपने साथ बहुत सारे अधिकार और लाभ लेकर आती है, जिनका आनन्द हम अपने बड़े भाई के साथ लेते हैं। उन अधिकारों और लाभों में आत्मा का उपहार, परमेश्वर के नाम का अनुग्रहकारी प्रदान (bestowal), व्यवस्था के दासत्व से स्वतन्त्रता, ख्रीष्ट के दुःख और महिमा में भागीदारी, और विशेष रूप से एक मीरास (inheritance) सम्मिलित है, जो उन लोगों के लिए संग्रहीत है जो ख्रीष्ट में है।  प्रेरित पौलुस लिखता है:

 क्योंकि वे सब जो परमेश्वर के आत्मा के द्वारा चलाए जाते हैं, वे  परमेश्वर के संतान है।  तुमने दासत्व का आत्मा नहीं पाया है कि फिर भयभीत हो, परंतु पुत्रों के समान लेपालकपन का आत्मा पाया है जिससे हम ‘हे अब्बा! हे पिता!” कह कर पुकारते हैं। आत्मा स्वयं हमारी आत्मा के साथ मिलकर साक्षी देता है कि हम परमेश्वर की संतान हैं।  यदि हम संतान हैं तो उत्तराधिकारी भी- परमेश्वर के उत्तराधिकारी और ख्रीष्ट के सह-उत्तराधिकारी जबकि हम वास्तव में उसके साथ दुख उठाते हैं कि उसके साथ महिमा भी पाएं। (रोमियों 8:14-17; इफिसियों 1:11-14 देखें)

परमेश्वर करे हम उस शान्ति और साहस में रह सकें, जो यह जानने से मिलता है कि हमारे स्वर्गीय पिता ने प्रेम में हमें लेपालक बना लिया है।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

केविन डी. गार्डनर
केविन डी. गार्डनर
गार्डनर टैबलेटटॉक पत्रिका के एसोसिएट एडिटर, फ्लोरिडा के सैनफोर्ड में रिफॉर्मेशन बाइबिल कॉलेज में रेजिडेंट एडजंक्ट प्रोफेसर और अमेरिका में प्रेस्बिटेरियन चर्च में एक शिक्षण देने वाले प्राचीन हैं।