
जब संसार विजयशील प्रतीत हो
27 जून 2025
यीशु सच्ची दाखलता कैसे है?
3 जुलाई 2025यीशु मार्ग, सत्य और जीवन कैसे है?

—सी.एन. विलबॉर्न
वर्षों पहले, मैंने एक प्रमुख शिक्षाविद् को अपने विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक परिसर में सहिष्णु वातावरण के समर्थन में अपना तर्क देते हुए सुना। फिर उन्होंने यह भी कहा कि उनका विश्वविद्यालय असहिष्णुता को सहन नहीं करेगा। उनके इस कथन में विडम्बना देखना न चूकें। विडम्बना यह है कि हम ऐसे युग में रहते हैं जो “सहिष्णुता” का दावा करता है। इसके साथ ही किसी भी विशिष्टता के दावे के प्रति तीव्र अरुचि भी सामने आती है। यह विशेष रूप से तब सामने आता है जब मसीही ख्रीष्ट और उद्धार के बारे में विशिष्ट दावे करते हैं।
बाइबल विशिष्ट दावों कथनों से भरी पड़ी है। जीवन और मृत्यु का विरोधाभास मसीही धर्म के लिए मौलिक है। जीवन का मार्ग और मृत्यु का मार्ग सम्पूर्ण बाइबल में मिलता है, जिसे कैन के अविश्वास के बलिदान बनाम हाबिल के विश्वास के बलिदान और एसाव और याकूब के बीच की तुलना जैसे स्थानों पर दर्शाया गया है। यीशु ने स्वयं जीवन/मृत्यु के प्रतिरूप को संकीर्ण और चौड़े मार्ग के रूप में व्यक्त किया है। जहाँ एक मार्ग जीवन की ओर जाता है वही दूसरा मार्ग विनाश की ओर (मत्ती 7:13-14)। संकीर्ण मार्ग यीशु ख्रीष्ट में साकार किया गया है जब उसने कहा, “मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ” (यूहन्ना 14:6)। यह विशिष्ट दावा केवल बाइबल तक ही सीमित नहीं है, वरन् यह बाइबल से बाहर के साहित्य में भी पाया जाता है जैसे कि डिडाखे (दूसरी शताब्दी की एक पुस्तक), एतिहासिक विश्वास वचनों और अंगीकार-वचनों, से लेकर वर्तमान समय तक की मसीही शिक्षा में भी यह सत्य प्रतिध्वनित होता रहा है।
परन्तु इस बिन्दु पर एक प्रश्न उठता है: यीशु कैसे “मार्ग, सत्य और जीवन” हो सकते है? इस प्रश्न के दो उत्तर हैं, लेकिन वे अविभाज्य हैं। एक वस्तुनिष्ठ उत्तर है और दूसरा व्यक्तिनिष्ठ उत्तर। वस्तुनिष्ठ रूप से, वह विशिष्ट रूप से मार्ग, सत्य और जीवन है क्योंकि वह देहधारी परमेश्वर है। व्यक्तिनिष्ठ रूप से, उसका उद्धार व्यक्तियों को उसके कौन होने और उसने क्या किया है, इस पर विश्वास के माध्यम से प्राप्त होता है।
वस्तुनिष्ठ रूप से विचार करने पर, यीशु अपने व्यक्ति और कार्य में “मार्ग” हैं क्योंकि वह परमेश्वर हैं। उसके समय के यहूदी नेतृत्व के लिए, यह एक भड़काऊ अवधारणा थी। “मैं हूँ” ईश्वरत्व का एक दृढ़ दावा था, और वे इसे भली-भाँति जानते थे (यूहन्ना 10:10-33)। यीशु मार्ग हैं क्योंकि वह ईश्वर हैं, परन्तु इसलिए भी क्योंकि वह मनुष्य हैं। उसने हमारे लिए देहधारण किया और उस गड़बड़ी से बाहर निकलने का मार्ग बन गया जिसमें आदम ने हमें डाल दिया था (रोमियों 5)। धार्मिकता और पवित्रता के मार्ग का जिसका आदम ने अनुसरण नहीं किया, यीशु ने पूर्णतः पालन किया। वह आदम का स्थान ले सकता था, क्योंकि वह एक स्त्री से पैदा हुआ था (गलातियों 4:4)। उसका सिद्ध बलिदान बहुतों के पापों को सह सकता था, क्योंकि वह परमेश्वर था (यशायाह 53:12; 1 पतरस 1:24)। केवल उसके द्वारा ही मनुष्य का ईश्वर से मेल-मिलाप हो सकता है (रोमियों 5:11; 1 कुरिन्थियों 5:18-21)। केवल परमेश्वर-मनुष्य ही मार्ग हो सकता था।
वस्तुनिष्ठ रूप से, वह “सत्य” भी है। उसी सुसमाचार में, हम यीशु को यह कहते हुए सुनते हैं कि उसका वचन सत्य का स्रोत है (यूहन्ना 8:31-32)। वह सत्य एक व्यक्ति को पाप के बन्धन से मुक्त करता है (यूहन्ना 8:34-35)। वह कहता है, “इसलिए यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करेगा, तो तुम सचमुच स्वतंत्र हो जाओगे” (यूहन्ना 8:36)। किसी के मन में यह प्रश्न उठ सकता है कि, “परन्तु क्या यह उसका वचन नहीं है जो किसी व्यक्ति को स्वतंत्र करता है?” परन्तु आप वचन और सत्य को जीवित वचन और सत्य के दाता से अलग नहीं कर सकते। इब्रानियों 4:12-13 में लिखित वचन का वही मानवीकरण मिलेगा। यीशु सत्य है क्योंकि वह जीवित और सच्चा परमेश्वर है (यिर्मयाह 10:10)।
यह हमें ख्रीष्ट के “जीवन” होने के विशिष्ट दावे पर लाता है। बाइबल के आरम्भिक पृष्ठों में, हम उस परमेश्वर के विषय में सीखते हैं जिसने वार्तालाप किया, और सभी जीवन उसके कार्य से आया। यह आश्चर्य की बात नहीं जब हम ख्रीष्ट के बारे में यह पढ़ते हैं, “क्योंकि उसी में सब वस्तुओं की सृष्टि हुई … और सब वस्तुएँ उसी में स्थिर रहती है” (कुलुस्सियों 1:16-17)। वह सृष्टिकर्ता है। लेकिन उसने अपने लोगों के लिए नई सृष्टि भी प्राप्त की—अर्थात्, वह पापियों का उद्धारकर्ता है। यदि ख्रीष्ट अपने शब्दों से सब कुछ बना सकता है, तो वह, वचन के रूप में, अनन्त जीवन भी दे सकता है।
भजन संहिता में हम इन्हीं सत्यों के विषय में पढ़ते हैं। जीवन का पथ/मार्ग उसकी उपस्थिति में है (भजन 16:11)। उसी भजन में सत्य को परामर्श के रूप में वर्गीकृत किया गया है, और यह विश्वासियों को निर्देश भी देता है (भजन 16:7)। फिर जीवन को प्रभु में शरण के रूप में वर्णित किया गया है, जो विश्वासियों को सुरक्षित रखता है (भजन 16:1)। भजन 119 में, प्रभु न केवल मार्ग को रोशन करने वाला प्रकाश है, अपितु वह वचन भी है जो जीवन के मार्ग को सच्चा अर्थ देता है। वास्तव में, वही एकमात्र मार्ग है।
वस्तुनिष्ठ रूप से, ख्रीष्ट यीशु “मार्ग, सत्य और जीवन” है क्योंकि वह देहधारी परमेश्वर है। परन्तु यह इस प्रश्न का उत्तर नहीं देता कि वह आपके और मेरे लिए यह सब कैसे है। “मार्ग, सत्य और जीवन” हमारे लिए कैसे सार्थक और जीवन-परिवर्तनकारी है? कैसे यह केवल एक ऐतिहासिक तथ्य नहीं है? यीशु का व्यक्ति और कार्य हमारे जीवन में कैसे विनियोजित होता है? इसका उत्तर है अनुग्रह से, विश्वास के द्वारा, केवल ख्रीष्ट में मिलता है। वह विश्वास के द्वारा पिता के पास जाने का मार्ग बन जाता है। उसका सत्य विश्वास के द्वारा हमारा सत्य है। जीवन और बहुतायत का जीवन विश्वास के द्वारा हमारा हो जाता है (यूहन्ना 10:10)। वह विश्वास के द्वारा एक पापी के लिए व्यक्तिनिष्ठ रूप से यह सब है — “प्रभु यीशु पर विश्वास कर तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा” (प्रेरितों के काम 16:31)। वह दूरवर्ती परमेश्वर नहीं है, वरन् विश्वास के द्वारा हमारे साथ रहने वाला परमेश्वर है।
हम एक ऐसे संसार में रहते हैं जहाँ आगे बढ़ने के मार्ग, सत्य की वास्तविकता और जीवन के अर्थ के बारे में पूर्ण सन्देह और अनिश्चितता है। तथापि, कलीसिया आशा के साथ प्रतिउत्तर देती है। वस्तुनिष्ठ रूप से, यीशु मार्ग, सत्य और जीवन है, क्योंकि वह देहधारी परमेश्वर है। केवल परमेश्वर ही यह सब कुछ हो सकता है। व्यक्तिनिष्ठ रूप से, यीशु विश्वास के अनुग्रहकारी उपहार के माध्यम से मार्ग, सत्य और जीवन है। वह विश्वास हमारा मिलन ख्रीष्ट के साथ कराता है, जो हमें पिता के साथ मिलाता है। यही परम सत्य है, जिसका ख्रीष्ट में रहने वाले सभी लोग निश्चितता के साथ आनन्द ले सकते हैं।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।