एक्लेसिया: बुलाए हुए लोग - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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एक्लेसिया: बुलाए हुए लोग

पहाड़ पर, यीशु ने “जिन्हें चाहा, उन्हें अपने पास बुलाया” (मरकुस 3:13)।

सम्भवतः मरकुस द्वारा उल्लेखित पाँच चुने हुए व्यक्तियों की तुलना में और भी लोग रहे होंगे जो यीशु का अनुसरण कर रहे थे। उस समूह में से उसने पतरस, अन्द्रियास, याकूब, यूहन्ना, मत्ती और अन्य लोगों को बुलाया। उसने उन्हें व्यवस्था, विज्ञान या व्यापार का अध्ययन करने के लिए नहीं बुलाया; परन्तु उसने उन्हें अपने पास बुलाया। यीशु ने जिन्हें वह चाहता था, उन्हें बुलाया और उसका यह बुलावा सम्प्रभु (अधिकारपूर्ण ) था, क्योंकि जिस किसी को उसने उस पद के लिए बुलाया था, वह उस पद के लिए आ गया और वे स्वेच्छा से उन पुरुषों के समूह में सम्मिलित होने के लिए आए, जिसे उसका भाग बनना था जिसका वह था।

एक अर्थ में, यह उस बात का एक सूक्ष्मकोशिकीय सादृश्य (microcosmic look) है जो यीशु परमेश्वर के सम्पूर्ण राज्य में करता है —वह जिन्हें चाहता है, उन्हें बुलाता है। बाइबल में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “कलीसिया” के रूप में किया गया है, वह एक्लेसिया है। यह शब्द एक उपसर्ग और एक मूल से मिलकर बना है। उपसर्ग एक (ek) या एक्स (ex) है, जिसका अर्थ है “में से” या “से।” मूल शब्द क्रिया कालेओ (kaleo) का एक रूप है, जिसका अर्थ है “बुलाना।” इस प्रकार, एक्लेसिया का अर्थ है “वे जिन्हें बुलाया गया है।” सीधे शब्दों में कहें तो, अदृश्य कलीसिया, सच्ची कलीसिया उन लोगों से बनी है, जिन्हें परमेश्वर ने न केवल बाहरी रूप से बल्कि आन्तरिक रूप से पवित्र आत्मा के द्वारा बुलाया है। जब यीशु किसी को शिष्यता के लिए बुलाता है, तो वह उस व्यक्ति को अपने पास बुला रहा होता है- उसका होने के लिए, उसका अनुसरण करने के लिए और उससे और उसके विषय में सीखने के लिए।

यह सच है कि एकमात्र विश्वास जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति को धर्मी ठहराया जा सकता है, वह उसका अपना विश्वास है। किसी को भी उसके जीवनसाथी के विश्वास, उसके माता-पिता के विश्वास, उसके बच्चों के विश्वास, या किसी और के विश्वास के माध्यम से धर्मी नहीं ठहराया जा सकता है। अन्तिम न्याय के दिन प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वर के सामने अकेला खड़ा होगा और जो उसके ह्रदय में है, उसी के आधार पर उसका न्याय किया जाएगा।  
फिर भी, हर बार जब ख्रीष्ट किसी व्यक्ति को बचाता है, तो वह उसे एक समूह में रखता है। परमेश्वर के राज्य का एक सामूहिक आयाम (corporate dimension) है जिसकी हमें उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। मैंने कुछ समय पहले  एक महिला से बात की, जिसकी कलीसिया ने एक नए पास्टर को बुलाया है। उसने कलीसिया छोड़ दी, क्योंकि वह नए पास्टर से प्रसन्न नहीं थी। जब मैंने उससे पूछा कि वह आराधना के लिए क्या कर रही है, तो उसने उत्तर दिया कि वह रविवार की सुबह टेलीविजन पर धार्मिक कार्यक्रम देखती है। इसमें स्पष्ट समस्या यह है कि वह रविवार की सुबह कलीसिया में नहीं है। वह परमेश्वर के लोगों के साथ सामूहिक आराधना, पवित्र सभा में नहीं है। ख्रीष्टीय जीवन एक सामूहिक बात  है, क्योंकि ख्रीष्ट अपने छुड़ाए हुए लोगों को एक साथ सीखने, एक साथ बढ़ने, एक साथ सेवा करने और एक साथ आराधना  करने के लिए कलीसिया में रखता है।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।