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प्रेरित पतरस के विषय में 5 बातें जो आपको जाननी चाहिए

प्रारंभिक कलीसिया के इतिहास के महत्व के संदर्भ में पौलुस के बराबर केवल प्रेरित पतरस को कहा जा सकता है। उसका प्रथम नाम शमौन था (मत्ती 4:18; मरकुस 1:16; लूका 5:4), परन्तु वह सबसे अधिक पेट्रोस के रूप में जाना जाता है, जो कि यीशु के द्वारा उसे दिए गए अरामी उपनाम केफस (जिसका अर्थ “चट्टान” है) का यूनानी अनुवाद है  (मत्ती 16:18)। प्रारंभिक कलीसिया  में उसकी प्रमुखता का अनुमान यीशु द्वारा उसके विशेष नामकरण के द्वारा लगाया जा सकता है और आगे चलकर रोम की कलीसिया के साथ उसके जुड़ाव के प्रकाश में विकसित हुई (1 पतरस 5:13)। यहाँ पतरस के बारे में पाँच बातें हैं जो ख्रीष्ट के प्रेरितों के बीच उसकी प्रमुखता को समझाने में सहायता कर सकती हैं।

1. सम्भवतया, मरकुस ने अपना सुसमाचार यीशु की सेवकाई के विषय में पतरस के वृत्तांत के आधार पर लिखा था।

आज अधिकाँश विद्वान मरकुस के सुसमाचार को चार वृत्तांतों में सबसे पहले लिखा हुआ मानते हैं। प्रारंभिक कलीसिया के इतिहासकार यूसेबियस ने पैपियस की साक्षी के अनुसार बताया कि मरकुस  ने यीशु के बारे में पतरस की शिक्षा के आधार पर अपना वृतांत लिखा था। पैपियस के अनुसार: “मरकुस पतरस का दुभाषिया बन गया और उसने प्रभु द्वारा कही या की गई बातों में से जो कुछ उसे स्मरण था,  वह सब कुछ सटीक रूप से लिख दिया, पर उसी क्रम में नहीं जिस क्रम में वे घटित हुई थीं। क्योंकि मरकुस ने न तो प्रभु को सुना था और न उसका अनुसरण किया था, परन्तु जैसा कि मैंने पहले कहा, आगे चलकर, उसने पतरस का अनुसरण किया था, जो उसे आवश्यकतानुसार शिक्षा देता था, परन्तु उसने प्रभु के वचनों को उसी क्रम में व्यवस्थित नहीं किया था जिस क्रम में वो घटित हुई थीं, तो मरकुस ने इस प्रकार अलग-अलग घटनाओं को स्मरण करते हुए लिखने में कुछ भी त्रुटि नहीं किया।

2. पतरस यीशु के शिष्यों में से पहला था जिसने उसे ख्रीष्ट के रूप में पहचाना (मत्ती 16:16; मरकुस 8:29; लूका 9:20)।

यह वह अवसर है जब यीशु शमौन को “चट्टान” (पीटर) नाम देता है। तथापि, मरकुस और मत्ती यह भी प्रदर्शित करते हैं कि पतरस को सम्भवतः अभी तक समझ में नहीं आया था कि वह पहचान  कैसे परमेश्वर के राज्य और उसके आने की प्रचलित अपेक्षाओं के विपरीत होगी। वास्तव में, अगले ही अंश में जहाँ पतरस ने यीशु को उसका विश्वासघात  किए जाने, मृत्यु और पुनरुत्थान के विषय में बोलने के लिए डाँटा, यीशु ने नए नामित पतरस को “शैतान” कहकर फटकार लगाई (मत्ती 16:21-23; मरकुस 8:31-33) । प्रेरितों के काम में पतरस का पहला उपदेश (प्रेरितों के काम 2:14-36) और उसके पहले पत्र का प्रारंभिक आशीषवचन (1 पतरस 1:3-5) दोनों दर्शाते हैं कि वह परमेश्वर के राज्य के आगमन के लिए ख्रीष्ट की मृत्यु और पुनरुत्थान की केंद्रीयता पर उस क्षण के पाठ को अंततः कभी नहीं भूला। 

3. पतरस खाली कब्र का साक्षी बनने वाले पहले दो प्रेरितों में से भी एक था (लूका 24:1-12; यूहन्ना 20:1-10)।

पतरस द्वारा यीशु को ख्रीष्ट के रूप में पहचानने के समान यह घटना भी यीशु की अपनी शिक्षा और पवित्र आत्मा के कार्य के बिना ख्रीष्ट की मृत्यु और पुनरुत्थान के पूर्ण अभिप्राय को समझने में असमर्थता को दर्शाती है। लूका के सुसमाचार में, यीशु के द्वारा पतरस और यूहन्ना को अपने विषय में पवित्रशास्त्र से शिक्षा देने और रोटी तोड़ने में इसका संकेत देने के पश्चात् ही, वे समझे (लूका 24:25-35)। यूहन्ना के सुसमाचार में, वे अभी तक समझे बिना ही उस खाली कब्र से चले जाते हैं  (यूहन्ना 20:9)। यह आगे चलकर तब होता है जब यीशु उनके सामने प्रकट होता है और फिर वह उन्हें उनके आगामी सुसमाचारीय कार्य के लिए तैयार करने के लिए उन पर पवित्र आत्मा फूँकता है (यूहन्ना 20:21-23)।

4. पतरस बारह में से पहला था, जिसने लूका की दूसरी पुस्तक, प्रेरितों के कार्य में अन्यजातियों के ह्रदय-परिवर्तन को देखा और इसकी पुष्टि की।

यह एक विडंबनापूर्ण रीति से होता है, जो यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान के संदेश के प्रति पतरस के प्रारंभिक प्रतिरोध और ख्रीष्ट के क्रूस पर चढ़ने के समय में उसके व्यवहार को प्रतिध्वनित करता हुआ प्रतीत होता है। पतरस को वह सुप्रसिद्ध दर्शन प्राप्त हुआ जिसमें उसने तीन बार यीशु की आज्ञा का प्रतिरोध किया और फिर यीशु द्वारा उसे सुधारा गया (प्रेरितों 10:1-16; 11:5-10)। यह अगले क्षण के दौरान होता है जब तीन व्यक्ति पतरस के पास आते हैं और वह उन्हें अपने दर्शन का अभिप्राय समझा रहा होता है कि पवित्र आत्मा उन पर उतरता है और पुष्टि करता है कि उन्हें भी ख्रीष्टियों के रूप में बपतिस्मा दिया जाना चाहिए (प्रेरितों 10:17-48; 11:11–18)। 

5. अंत में, प्रेरित पतरस पवित्रशास्त्र का एकमात्र मानव लेखक है जिसने अपनी स्वयं की परमेश्वर-प्रेरित रचना में पौलुस के पत्रों का उल्लेख किया है और उन्हें पवित्रशास्त्र के साथ जोड़ा है।

प्रभु के आने वाले दिन के सम्बन्ध में अपनी शिक्षा के अंत में, पतरस ने अपने पाठकों को धैर्य रखने की याद दिलाई, जैसे पौलुस ने भी उन्हें इन बातों के सम्बन्ध में लिखा था (2 पतरस 3:14-15)। नम्रता के एक उत्साहवर्धक उदाहरण के रूप में और उस व्यक्ति में परमेश्वर के अनुग्रह में वृद्धि का प्रदर्शन के रूप में जो अतीत में समझने में धीमा था, पतरस ने माना कि पौलुस के पत्रों में इन बातों के विषय में कुछ बातें हैं,  जिन्हें समझना कठिन है (2 पतरस 3:16अ)। इस प्रकार, पतरस अपने पाठकों को उन लोगों की शिक्षा से बचने की चेतावनी देता है, जो उन्हें छलने के लिए पौलुस के शब्दों और पवित्रशास्त्र के अन्य पदों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करना चाहते हैं (2 पतरस 3:16ब-17)।

जबकि ख्रीष्ट के प्रेरितों के बीच पतरस की प्रमुखता को समझाने के लिए और भी बहुत सी बातें कही जा सकती हैं, ऊपर उल्लिखित बिंदु हमें एक सामान्य विषय पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बाध्य करते हैं: उद्धार और परिवर्तन जो हमारे स्वयं के निर्बल होने पर भी पुनरुत्थित प्रभु यीशु ख्रीष्ट में विश्वास से आता है।    

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

मैथ्यू ए. डूड्रेक
मैथ्यू ए. डूड्रेक
डॉ. मैथ्यू ए. डूड्रेक सैनफर्ड कैलिफॉर्निया में रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज में नये नियम के सहायक प्राध्यापक हैं।