हे पिता, अपने पुत्र की महिमा कर

कलीसियाओं में, हम प्रायः एक दूसरे को और अधिक जानने के लिए सामाजिक सभाओं का आयोजन करते हैं। शायद कोई और सभा प्रार्थना सभा से बेहतर नहीं है जिसमें हम लोगों को जान सकते हैं। वहाँ, हमारे पास सौभाग्य होता है, क्योंकि हम दूसरों को जोर-जोर से प्रार्थना करते हुए, अर्थात अपने मन की गहरी इच्छाओं को प्रकट करते हुए सुनते हैं। यदि हम कलीसियाई संदर्भ में इस तरह के सौभाग्य में भागीदार हैं, तो यीशु की अपने शिष्यों के लिए की गई प्रार्थना को सुनने से बड़ा कोई सौभाग्य नहीं हो सकता। इस पाठ में, जैसे ही हम ऊपरी कक्ष के उपदेश के अंत में आते हैं, डॉ. फर्गसन सबसे पहले यीशु की अपने विषय में की गई प्रार्थना पर ध्यान केंद्रित करते हुए, यीशु मसीह की महायाजकीय प्रार्थना की परतें खोलना शुरू कर देते हैं।