उसकी सबसे गहरी इच्छाएँ प्रकट हुईं

कमरे में सन्नाटा था क्योंकि यीशु अब भी प्रार्थना कर रहा था - शायद इसलिए कि उसके शिष्यों ने उसे पहले कभी प्रार्थना करते नहीं सुना था। यहूदा चला गया था, और पतरस संभवतः उस इनकार से परेशान होकर बैठा था जिसकी भविष्यद्वाणी यीशु ने की थी। हमने पिछले पाठ में देखा कि यूहन्ना 17 में यीशु की प्रार्थना प्रायश्चित के दिन महायाजक की अपने लिए, अपने परिवार के लिए, और अंत में, अपने समुदाय के लिए की जाने वाली विधिवत् प्रार्थना से मेल खाती है। हम देखते हैं कि यीशु पिता से अपने पुत्र की महिमा करने की उसकी विनती से आगे बढ़ रहा है। इस अध्याय में, हम मसीह की उस समय चल रही प्रार्थना पर विचार करेंगे जिसमें वह शिष्यों के भीतरी घेरे के लिए (आयत 6 से 19) और अंत में युगों से संपूर्ण कलीसिया के लिए (आयत 20 से 26) मध्यस्थता करता है। जैसा कि डॉ. फर्गसन ने टिप्पणी की, इस प्रक्रिया में, हम पाते हैं कि यीशु अपने पिता के सामने अपनी “गहरी इच्छाओं” को प्रकट कर रहा है।