स्वामी के हृदय की झलक

यद्यपि हम जानते हैं कि यीशु ने कभी पाप नहीं किया, हमें इस सच्चाई को समझने में परेशानी होती है कि वह क्रोधित भी हो सकता है। फिर भी, यह जानकर कि उसे पकड़वाया जाएगा और कौन इस कार्य को करेगा, वह सचमुच अत्याधिक व्याकुल था, परन्तु वह इस बात से थोड़ा सा भी हैरान नहीं था। वह अपनी नियति को जानता था, और उस पर यहूदा और न किसी और का नहीं बल्कि उसका अपना नियंत्रण था। इस पाठ में, डॉक्टर फर्गसन हमारे उद्धारकर्ता के मन और हृदय की बातों को प्रकट करते हैं जो मानवता के सभी पीड़ादायक अनुभवों से गहराई से परिचित था। उसके पकड़वाने वाले की उपस्थिति से दूषित हो चुके वातावरण में, हमें फिर से स्मरण दिलाया जाता है कि यीशु का दुःख उठाना पराजय का मार्ग नहीं बल्कि विजय का प्रवेश द्वार था।