धैर्य क्या है? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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धैर्य क्या है?

यद्यपि आपको बाइबल के अधिकाँश अंग्रेज़ी अनुवादों में धैर्य (fortitude) शब्द नहीं मिलेगा, किन्तु आप साहस, दृढ़ संकल्प, सामर्थ्य और दृढ़ता जैसे इसके समानार्थी शब्दों को पा सकते हैं। यह शब्द (fortitude) लातीनी फ़ोर्टिस (fortis) से आया है, जिसका अर्थ “दृढ़ता” है। मेरियम-वेबस्टर शब्दकोश दृढ़ता (fortitude) को मन का ऐसा सामर्थ्य के रूप में परिभाषित करती है, “जो किसी व्यक्ति को संकट का सामना करने या कष्ट या विपत्ति को साहस के साथ सहने में सक्षम बनाता है।” अन्य शब्दकोश भावना के आयामों या व्यक्ति द्वारा कष्ट सहने की अवधि पर बल देते हैं। परन्तु एक परिभाषा का दूसरी पर कितना भी बल हो, एक बात निश्चित है: धैर्य (fortitude) विपत्ति और सामर्थ्य के मिलन पर प्रदर्शित होता है।

पुराने नियम में, धैर्य (fortitude) के सिद्धान्त को यहोशू की पुस्तक जैसे स्थानों पर देखा जा सकता है। जब परमेश्वर के लोग प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश करने वाले थे, परमेश्वर ने यहोशू से कहा कि वह “दृढ़ और साहसी” हो, एक ऐसा वाक्याँश जिसका उपयोग आरम्भिक अध्याय में बार-बार किया गया है। इस्राएलियों को दृढ़ता और साहस की आवश्यकता क्यों थी? क्योंकि वे कनानियों से लड़ने वाले थे, जिन्होंने एक समय पर उन्हें छोटी टिड्डियों के समान आभास कराया था (गिनती 13:33)। परन्तु परमेश्वर के लोगों को मात्र शारीरिक दृढ़ता से अधिक कुछ और की भी आवश्यकता थी। उन्हें संघर्ष, विपत्ति और यहाँ तक कि प्रलोभन को सहने के लिए मानसिक, भावनात्मक और आत्मिक दृढ़ता की भी आवश्यकता थी, जिसका सामना उन्हें उस देश में करना था जो प्रभु उन्हें देने वाला था। दूसरे शब्दों में, उन्हें धैर्य की आवश्यकता थी।

नए नियम में, प्रेरित पौलुस ने फिलिप्पियों को लिखे अपने पत्र में लिखा, “मेरी हार्दिक आशा और अभिलाषा यह है कि मैं किसी बात में लज्जित न होऊँ परन्तु जैसे पूरे साहस से ख्रीष्ट की महिमा मेरी देह से सदा होती रही है वैसे ही अब भी हो, चाहे मैं जीवित रहूँ या मर जाऊँ” (फिलिप्पियों 1:20)। कुछ पदों के पश्चात्, वह इस साहस को फिलिप्पियों के उद्देश्य की एकता के साथ जोड़ता है —“एक साथ मिलकर सुसमाचार के विश्वास के लिए संघर्ष करते रहो, और विरोधियों से किसी भी बात में भयभीत न हों” (फिलिप्पियों 1:27-28)। पौलुस को ख्रीष्ट के लिए सहने वाले परीक्षणों और कष्टों के लिए दृढ़ साहस की आवश्यकता थी। परन्तु उसका दृढ़ संकल्प फिलिप्पियों के लिए एक उदाहरण बनना था, जिससे कि वे भी ख्रीष्ट के लिए बिना किसी भय के एक साथ संघर्ष करें, चाहे कुछ भी हो।

पौलुस ने कहीं और लिखा कि विश्वासियों को “विश्वास में स्थिर ” रहना चाहिए (1 कुरिन्थियों 16:13) और “प्रभु और उसके सामर्थ्य की शक्ति में बलवान” बनना चाहिए जिससे की हम “बुरे दिन में सामना कर सकें, और सब कुछ करके स्थिर रह सकें” (इफिसियों 6:10,13)। इसी प्रकार से, इब्रानियों के लेखक अपने पाठकों को प्रोत्साहित करता है कि “अपनी आशा के अंगीकार को अचल होकर दृढ़ता से थामे रहें, क्योंकि जिसने प्रतिज्ञा की है, वह विश्वासयोग्य है” (इब्रानियों 10:23)। विश्वासियों के रूप में, हमें इस संसार की शत्रुता, शरीर के प्रलोभनों और शैतान के आध्यात्मिक हमलों के कारण “स्थिर रहना”, “बलवान होना” और “दृढ़ रहना” कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, इसके लिए धैर्य की आवश्यकता होती है।

हमें ध्यान देना चाहिए कि हम जो भी धैर्य प्रदर्शित कर सकते हैं उसका सच्चा स्रोत और आधार स्वयं प्रभु है। उसका अनुग्रह, जो हमारे लिए पर्याप्त है, हमें अपनी निर्बलताओं में घमण्ड करने में सक्षम बनाता है, जिससे की ख्रीष्ट का सामर्थ्य हम में बना रहे—“क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूँ, तभी सामर्थी होता हूँ” (2 कुरिन्थियो. 12:9–10)। वास्तव में, यह उसका आत्मा है जो “हमारी दुर्बलता में हमारी सहायता करता है” (रोमियों 8:26)।

तो, धैर्य को बाइबल में उस सामर्थ्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो विपत्ति, प्रलोभन और आत्मिक आक्रमण को साहसपूर्वक सहने की सामर्थ्य है, जिसे प्रभु अपने आत्मा और अपने वचन की प्रतिज्ञाओं के माध्यम से अनुग्रह से प्रदान करता है।

तो हम धैर्य कैसे विकसित कर सकते हैं? मैं आपको दो बातें बताता हूँ। सर्वप्रथम, परमेश्वर के अनुग्रह के साधनों का लाभ उठाएँ जिसके द्वारा वह आपको पवित्र करने के लिए कार्य कर रहा है—विशेष रूप से, उसका वचन, कलीसियाई विधियाँ और प्रार्थना। जब हम परमेश्वर के वचन को पढ़ते और उस पर मनन करते हैं, तो हम जलधाराओं के किनारे लगाए गए फलदायी वृक्षों की समान बन जाते हैं (भजन 1:3)। जब हम प्रभु भोज में भाग लेते हैं, तो परमेश्वर हमारे विश्वास को पोषित करता है और उसे दृढ़ बनाता है, जो आगे आने वाली चुनौतियों के लिए है। जब हम प्रार्थना में उसके साथ संवाद करते हैं, तो हमें स्मरण दिलाया जाता है कि हम अकेले नहीं हैं; वह हमारे साथ है। ये आत्मिक उपकरण हैं जो प्रभु ने हमें प्रदान किए हैं जिससे की हम धैर्य रख सकें और परीक्षा के अन्तर्गत दृढ़ रहें।

दूसरा, अपने आप को विश्वास के समुदाय में निवेश करें। आपको अपने स्वयं की यात्रा में प्रोत्साहित करने, चुनौती देने और प्रेरित करने के लिए साथी यात्रियों की आवश्यकता है। जॉन बनियन की द पिलग्रिम्स प्रोग्रेस में, चरित्र मसीही को स्वर्गीय नगर की ओर अपनी यात्रा के लिए मित्रों और सह-श्रमिकों की आवश्यकता थी। इसी प्रकार से, आपको ऐसे साथियों की आवश्यकता है जो आपको दृढ़ता दें और मार्ग में आपका साथ दें सकें । यह सबसे अच्छे रूप से स्थानीय कलीसिया में प्रकट होता है, जो न केवल आपको अनुग्रह के साधनों के सन्दर्भ में रखता है, परन्तु साथ ही दूसरों से आत्मिक और प्रार्थना रूपी समर्थन भी प्रदान करता है।

जब आप अपने जीवन में आने वाली विभिन्न परीक्षाओं और कष्टों पर विचार करते हैं, तो परमेश्वर का आत्मा आपको साहसपूर्वक सहन करने के लिए दृढ़ करे: “धन्य है वह मनुष्य, जो परीक्षा में स्थिर रहता है, क्योंकि खरा निकल कर वह जीवन के उस मुकुट को प्राप्त करेगा जिसे प्रभु ने अपने प्रेम रखने वालों को देने की प्रतिज्ञा की है” (याकूब 1:12)।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

ब्रायन कॉस्बी
ब्रायन कॉस्बी
डॉ. ब्रायन कॉस्बी सिग्नल माउंटेन, टेनेसी में वेसाइड प्रेस्बिटेरियन चर्च (पीसीए) के वरिष्ठ पास्टर हैं, और अटलांटा में रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी में कलीसियाई इतिहास के आगंतुक प्राध्यापक हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें खुलासा: सम्पूर्ण बाइबल को अपनाने का साहस (Uncensored: Daring to Embrace the Entire Bible) और एक मसीही का दुख उठाने का छोटा मार्गदर्शक (A Christian’s Pocket Guide to Suffering) सम्मिलित है।