कलीसिया - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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कलीसिया

आधुनिकतावादियों के दावे के विपरीत, ऐतिहासिक मसीहियत जिसका जे. ग्रेशम मेचन ने बचाव किया, वह व्यक्तिगतवादी नहीं था। उन्होंने क्रिस्चियैनिटी एण्ड लिबरेलिज़्म (मसीहियत और उदारवाद) के अध्याय 5 में लिखा कि मसीहियत “पूर्ण रीति से मनुष्य की सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति रीति से प्रदान करता है,” और उन्होंने उद्धार के सामाजिक परिणामों पर चिन्तन करते हुए उस अध्याय को समाप्त किया: सुसमाचार मानव संस्थानों को परिवर्तित करता है, जिसमें परिवार, समुदाय, कार्यस्थल, और यहाँ तक ​​कि सरकार भी सम्मिलित हैं।
परन्तु इस विषय पर मेचन की चर्चा समाप्त नहीं हुई थी। जो बचा है वह सर्वोच्च और सबसे महत्वपूर्ण संस्था—ख्रीष्ट की कलीसिया। वास्तव में, क्रिस्चियैनिटी एण्ड लिबरेलिज़्म पुस्तक का सम्पूर्ण सार (thesis) अन्तिम अध्याय में सामने आती है जब मेचन कलीसिया के विषय में उच्च दृष्टिकोण को पुनःप्राप्ति करने का आग्रह करता है। परन्तु, कलीसिया की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, यहाँ तक कि उन लोगों के मध्य भी जो दावा करते हैं कि उनको यह पुस्तक प्रिय लगती है, हमें सोच सकते हैं कि कितने लोगों ने इस अन्तिम अध्याय को ध्यान से पढ़ा है।
मेचन समुदाय के एक शार्ण रूप को चुनौती देते हुए आरम्भ करते हैं जो “मनुष्य के विश्वव्यापी भाईचारे” पर आधारित है। ख्रीष्ट में भाइयों और बहनों की वास्तविक संगति को बनाए रखने के लिए स्पष्ट धर्मसैद्धान्तिक सीमाओं की आवश्यकता है, क्योंकि, जैसा कि उन्होंने पिछले पृष्ठों में स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया है, उदारवाद मसीहियत से पूर्णरूप से भिन्न है। उन्होंने लिखा, “आज मसीही कलीसिया के लिए सबसे बड़ा संकट बाहर के शत्रुओं से नहीं, परन्तु भीतर के शत्रुओं से है; यह कलीसिया के भीतर एक प्रकार के विश्वास और अभ्यास की उपस्थिति से आता है जो मूल रूप से मसीहीयत-विरोधी है।” फलस्वरूप, “कलीसिया में दोनों पक्षों के मध्य अलगाव वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।” मेचेन की “खरी” और “सच्ची” निवेदन ने उन्हें “मित्रतापूर्ण निष्पक्षी लोगों” का सम्मान दिलाया (जैसा कि धर्मनिरपेक्ष पत्रकार एच.एल. मेनकेन ने स्वयं का वर्णन किया था जब उन्होंने विवाद को निकट से देखा)।
यह अलगाव कैसे होगा? जिस समय पुस्तक प्रकाशित हुई थी, ऐसा लग रहा था कि—विभाजन के दोनों पक्षों से—कि छोटी संख्या में उदारवादी लोग कलीसिया छोड़ देंगे। और मेचेन ने उन्हें सच्चाई का यह मार्ग चुनने के लिए आमन्त्रित किया। परन्तु उन्होंने एक अन्य परिदृश्य की भी आशंका जताई, जिसमें रूढ़िवादियों को कलीसिया छोड़ने के लिए विवाश किया जाएगा। एक दशक बाद, ऐसा ही हुआ, जब आधुनिकतावाद से प्रभावित कलीसिया के अध्यक्षों के प्रति “निष्ठाहीनता” के उच्च अपराध के लिए उन्हें कलीसिया की सेवकाई से हटा दिया गया था। अपनी सेवकाई की बुलाहट के प्रति विश्वासयोग्यता ने उन्हें और उनके सहयोगियों को इस क्रूस को सहन करने के लिए विवश किया।
कलीसिया की एकता को बनाए रखने के निवेदनों ने मेचन द्वारा उठाए गए विषय को धुँधला कर दिया, और इस प्रकार के कलीसियाई शान्तिवाद ने न तो स्थायी शान्ति प्रदान की और न ही एकता: “एक ही संगठन के भीतर, उद्देश्य के विषय में मूल रूप से असहमत लोगों के मध्य एक विवश की गई एकता से अधिक और कुछ संघर्ष उत्पन्न नहीं करता है।” सैद्धान्तिक विचलन को सहन करना “साधारण कपट” है।
मेचन ने एक दूसरें विकल्प की अपेक्षा की: कुछ सेवक कार्यात्मक स्वतन्त्रता की ओर बढ़ सकते हैं, जो अपनी मण्डलियों की रूढ़िवादिता या अपने प्रिसबुतिरीय संघ की सुदृढ़ता में सन्तुष्टि पा सकते हैं। परन्तु, उन्होंने इसका विरोध किया, क्योंकि यह एक प्रिसबुतिरवादी विकल्प नहीं था। प्रिसबुतिरवादियों को स्वयं को कलीसिया की सामूहिक साक्षी के प्रति समर्पित होना चाहिए। कलीसिया में प्रत्येक उपदेश मंच की वाणी सम्पूर्ण कलीसिया की वाणी है। इसलिए कलीसिया के सभी अगुलों इसके सभी उपदेश मंचों से उद्घोषणा के लिए उत्तरदायी हैं।
मेचेन के कलीसिया-विज्ञान ने सन्तों के वास्तविक समुदाय को उसके नकली संस्करणों से अलग करने का प्रयास किया। जीवन में कोई एकता नहीं है जहाँ सोच में एकता नहीं है। धर्मसैद्धान्तिक उदासीनता बहुत व्यापक कलीसियावाद को प्रोत्साहित करती है जिसने ईश्वरविज्ञानीय उदारवाद को कलीसिया के उपदेश मंचों में प्रवेश करने की अनुमति दी। केवल कलीसिया के धर्मसिद्धान्त के साथ “पूरे हृदय से सहमति,” जो उसके विश्वास के अंगीकार और धर्मप्रश्नोत्तरी की स्वीकारोक्ति में व्यक्त होती है, सच्ची मसीही संगति प्राप्त कर सकती है।
इस सहमति को स्थापित करने और संरक्षित करने के लिए, कलीसिया को अवश्य रूप से चार कार्यों को लगन से करना होगा। सबसे पहले, उसे विश्वास के लिए संघर्ष करने के कार्य के लिए स्वयं को समर्पित करना होगा। दूसरा, कलीसिया को अपने अधिकारियों के नियुक्ति को ध्यान देना चाहिए, और कलीसिया के कार्य के लिए उपयुक्तता के लिए उच्च योग्यता की माँग करनी चाहिए। तीसरा, शासन करने वाले एल्डरों को अवश्य शासन करना चाहिए—अर्थात्, उन्हें उपदेश मंच के प्रचार की रक्षा करनी चाहिए। अन्त में, कलीसिया में प्रचलित अज्ञानता को दूर करने के लिए कलीसिया को धर्मशिक्षा और अन्य शिष्योन्नति सेवकाईयों को बहाल करना होगा। एक शब्द में, कलीसिया को अपने धर्मसिद्धान्त का भण्डारी बनना चाहिए। उसे उस धर्मसिद्धान्त के प्रचार और बचाव में सतर्क रहना चाहिए, यहाँ तक ​​कि संग्राम करते हुए और स्वयं को दूसरों से अलग करने के द्वारा।
मेचेन कलीसिया को विभाजित करने के उद्देश्य से नहीं निकला था। उदारवादी ऐसा करने की प्रक्रिया में थे। उन्होंने कलीसिया की एकता को एकमात्र स्थायी रीति से आगे बढ़ाया: इसे संसार से स्पष्ट रूप से अलग करके। एक शताब्दी के पश्चात्, हम मेचेन को सही प्रमाणित होते हुए देखते हैं। उदारवाद अत्यधिक संसार के समान हो गया है, और इस प्रकार मुख्य प्रोटेस्टेंटवाद (mainline Protestantism) भारी मात्रा में अर्थ और सदस्य खो रहा है।
अमरीका में सुसमाचारवादी कलीसिया की क्या स्थिति है? क्या इसने संसार के सामने अपना संग्राम या सामूहिक साक्षी बनाए रखा है? धार्मिक अनुभव पर बल और धर्मसिद्धान्त के प्रति उदासीनता का प्रभाव अमरीकी सुसमाचारवाद के कई क्षेत्रों में पड़ा है, जहाँ हमें कलीसिया के अंगीकार वचनों के प्रति समर्पण में ढील, धर्मशिक्षा की मृत्यु, और कलीसियाई अनुशासन को आगे बढ़ाने में अनिच्छुकता देखने को मिलती है। क्या यह कोई आश्चर्य की बात है कि कई मसीहियों के लिए मसीही जीवन की प्राथमिकता के रूप में कलीसिया में समर्पण और साप्ताहिक उपस्थिति घट गई है? अब हम अपने स्वाद और प्राथमिकता के आधार पर कलीसिया में जुड़ने और छोड़ने के लिए स्वतन्त्र अनुभूति करते हैं। या इससे भी हानिकारक है, हम धार्मिक प्रामाणिकता की अपनी व्यक्तिगत खोज में कलीसिया को पूरी रीति से त्याग देते हैं। कलीसियाओं ने आज इस परिस्थिति को स्वेच्छा से स्वीकार कर लिया है, और अपने समयकाल की सांसारिकता के विरुद्ध संघर्ष करने के स्थान पर, उन्होंने धार्मिक उपभोक्ताओं की इच्छाओं को पूरा करने के लिए स्वयं को बाजार में लाने का भरसक प्रयास किया है। प्रामाणिकता की साराहना करने वाले युग के लिए, मेचन उपयुक्त अनुस्मारक प्रदान करता है कि हमारे या किसी अन्य युग में कलीसिया की प्रामाणिकता की परीक्षा सच्चे कलीसिया के चिह्नों का प्रदर्शन है: वचन का प्रचार, कलीसियाई विधियों का शुद्ध प्रबन्धन, और कलीसियाई अनुशासन का अभ्यास।
मेचन की क्रिस्चियैनिटी एण्ड लिबरेलिज़्म का स्थायी मूल्य उन लोगों के लिए महत्वहीन प्रतीत होगा जो उसके अन्तिम अध्याय का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने में विफल रहेंगे। ऐसी कलीसिया जो व्यक्ति के व्यक्तिगत धार्मिक अनुभव के उत्कर्ष में अपनी बुलाहट पाती है, सांसारिकता के आगे घुटने टेक चुकी है। परन्तु उसके स्थान पर मेचन हमें कलीसिया की बुलाहट को परमेश्वर के वचन में पाए गए और कलीसिया के अंगिकारीय मानकों में सारांशित धर्मसिद्धान्त के भण्डारीपन के रूप में देखने के लिए निर्देशित करता है। यह उन यात्रियों के लिए एक अपनापन का स्थान बन जाता है, जिन्होंने अपने स्वर्गीय घर की ओर बढ़ते हुए सांसारिकता को त्याग दिया है,अर्थात् एक ऐसा स्थान जो वह आशा प्रदान करता है जिस पर मेचन ने अपनी पुस्तक समाप्त की है।
क्या संघर्ष से कोई शरणस्थान नहीं है? क्या कोई स्फूर्तिदायक स्थान नहीं है जहाँ मनुष्य जीवन के युद्ध कि तैयारी कर सके? क्या ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ दो या तीन यीशु के नाम में एकत्र हो सकें, तथा उन सभी बातों को एक क्षण के लिए भूल जाएँ जो राष्ट्र को राष्ट्र से और नस्ल को नस्ल से विभाजित करती हैं, मानवीय गौरव को भूल जाएँ, युद्ध के उत्साह को भूल जाएँ, औद्योगिक संघर्ष के जटिल समस्याओं को भूल जाएँ, और उमड़ती हुई कृतज्ञता के साथ क्रूस के चरण में एकजुट हो जाएँ? यदि कोई ऐसा स्थान हो, तो वह परमेश्वर का घर और स्वर्ग का द्वार है। और उस घर के चौखट से एक नदी निकलेगी जो थके हुए संसार को पुनर्जीवित कर देगी।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

जॉन आर. म्यूथर
जॉन आर. म्यूथर
जॉन आर. म्यूथर ऑरलैण्डो, फ्लॉरिना में रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकन सेमिनेरी में कलीसियाई इतिहास के प्राध्यापर और पुस्तकालयों के अध्यक्ष हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक, सहलेखक, या सम्पादक हैं, जिनमें सीकिंग अ बेटर कन्ट्री: 300 यिर्स ऑफ अमेरिकन प्रेस्बिटेरियनिस्म सम्मिलित हैं।