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इफिसियों की पत्री के बारे में जानने योग्य 3 बातें

इफिसियों को लिखी पौलुस की पत्री, रोमियों की पुस्तक के समान,  उसके विचारों का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इफिसियों की पत्री अपनी विषय-वस्तु में स्वर्गीय है और सत्यों की घोषणा में व्यापक है, जबकि इसके निर्देश सुलभ और व्यावहारिक हैं। यहां तीन बातें हैं जो आपको इफिसियों को लिखी पौलुस की पत्री को पढ़ते समय जाननी चाहिए।

1. इफिसियों की पत्री को जानबूझकर व्यापक (broad) और सामान्य (general) रखा गया है।

कुलुस्सियों की पत्री के विपरीत, जहाँ पौलुस उन लोगों से नहीं मिला था जिन्हें वह लिख रहा था, उसने इफिसुस के लोगों की चरवाही तीन वर्ष तक की थी (प्रेरितों 20:31)। उस समय में उसने नियमित रूप से एक सार्वजनिक व्याख्यान कक्ष में अध्यापन का कार्य किया था और इस प्रकार इस पत्री के लिखे जाने से पहले इफिसुस में मसीही शिक्षण की व्यापक नींव रखी थी (प्रेरितों 19:9-10)। इसलिए पौलुस जो लिखता है वह विधर्मी शिक्षा (जैसा कि कुलुस्सियों में किया था ) या सार्वजनिक अनैतिक आचरण (जैसा कि 1-2 कुरिन्थियों में किया था) के प्रति प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि मूलभूत सुसमाचार है। इफिसियों की पत्री महिमावान् रूप से और आधिकारिक रूप से सामान्य है। यह एक सारांश है, जो उसके द्वारा पास्टर के रूप में प्रदान किए गए सुसमाचार प्रशिक्षण के वर्षों की सबसे महत्त्वपूर्ण बातों को संकलित करता है । 

पौलुस का संतुलित सारांश विश्वास के दो महान कार्यों को प्रस्तुत करता है: यीशु ख्रीष्ट  द्वारा पूर्ण किया गया छुटकारे को प्राप्त करना और नई आज्ञाकारिता के साथ में प्रतिउत्तर देना। अध्याय 1-3 सुसमाचार के तथ्यों को प्रस्तुत करते हैं । ये अध्याय परमेश्वर के लोगों को आशीषित करने, आत्मिक रूप से मृत लोगों को नया जीवन देने, विभाजित और दूर के लोगों को एक कलीसिया में एकत्रित करने और “उस सामर्थ्य के अनुसार जो हम में  क्रियाशील है, कि हमारी विनती और कल्पना से कहीं अधिक बढ़कर कार्य कर सकता है” की परमेश्वर की शाश्वत योजनाओं का वर्णन करते हैं (इफिसियों 1:3-14; 2:1-10, 11-22; 3:20)। प्रथम तीन अध्याय मूलतः यह प्रश्न पूछते हैं, क्या आप विश्वास करेंगे?

अंतिम तीन अध्यायों में पौलुस इस छुटकारे के प्रति होने वाली विश्वासयोग्य प्रतिक्रिया के विषय में लिखता है। किसी व्यक्ति का “चलना” इस पत्री में एक महत्त्वपूर्ण विचार है। यह शब्द सबसे पहले तब प्रकट होता है जब यह वर्णन किया जाता है कि कैसे अविश्वासी अपराधों और पापों में “चलते” थे (इफिसियों 2:1-2)। लेकिन इफिसियों 4 से आरम्भ करते हुए विश्वासियों को विश्वास के प्रतिउत्तर के रूप में “चलने” के लिए कहा गया है। पौलुस विश्वासयोग्य लोगों को ख्रीष्ट  के योग्य चाल चलने के लिए कहता है (इफिसियों 4:1)। फिर अविश्वासियों की तरह न चलने, वरन् प्रेम में चलने, ज्योति की संतानों की तरह चलने और बुद्धि में चलने के लिए बुलाहट दी गई है (इफिसियों 4:17; 5:2, 8)। अध्याय 4-6 प्रश्न पूछते हैं, क्या आप आज्ञा मानेंगे?

2. इफिसुस के मसीही हाशिए पर धकेल दिए गए थे। 

इफिसुस के मसीही एक विशाल महानगर में एक छोटा सा अल्पसंख्यक समुदाय थे। इफिसुस की अनुमानित जनसंख्या 200,000-250,000 थी। केवल एथेंस और रोम ही इससे बड़े थे। इफिसुस के सबसे प्रमुख धर्म में अरतिमिस  की उपासना सम्मिलित थी। तथापि, राजा की उपासना सहित कई अलग-अलग पंथ भी थे। जबकि अन्य धर्मों का स्वागत किया जाता था, मसिहयत का नहीं। इसे अरतिमिस के सम्मान और अधिकार के लिए खतरे के रूप में देखा जाता था ( प्रेरितों  19:27 देखें)। इफिसुस के मसीहियों के मन में थोड़े समय पहले सुनारों के द्वारा किए गए दंगे की स्मृति ताजा थी, जिसमे उनमें से कुछ पर आक्रमण किया गया था और उन्हें विशाल रंगशाला (theater) में घसीटा गया था। उनमें से कुछ वहाँ थे जब पचास हज़ार क्रोधित लोगों की भीड़ चिल्ला रही थी, “इफिसियों की देवी अरतिमिस महान् है” (प्रेरितों 19:23-41)। इफिसुस में मसीहियों ने अरतिमिस के मंदिर की छाया में, तन्त्र-मन्त्र या जादू-टोने वाले लोगों से  घिरे हुए और कभी भी हो जाने वाली हिंसा के संकट में रहते हुए अपना जीवन व्यतीत किया।

इफिसुस के मसीहियों को न केवल मूर्ती-पूजक संसार द्वारा वरन् यहूदी आराधनालय द्वारा भी अस्वीकार कर दिया गया था। इफिसुस के शेष लोगों को सुसमाचार के बारे में पता चलने से पहले ही, यहूदी आराधनालय ने इसे अस्वीकार कर दिया था, “भीड़ के सामने इस पंथ को बुरा भला कहने लगे” (प्रेरितों 19:9)। 

परमेश्वर का घराना और ख्रीष्ट की देह के रूप में  कलीसिया पर पौलुस  की शिक्षा की पृष्ठभूमि में इफिसुस के मसीहियों का हाशिए पर धकेला जाना है (इफिसियों 2:11-22; 4:1-16; 5:23-30)। ख्रीष्ट  में प्रत्येक विश्वासी का सम्बन्ध है। उनके लिए परमेश्वर के शाश्वत उद्देश्यों का रहस्य प्रकट हो गया है। वे सुरक्षित हैं।

3. इफिसुस में कलीसिया आत्मिक युद्ध के बीच में बढ़ी।

इफिसुस के मसीहियों  के सामने आने वाले संकट केवल शारीरिक हिंसा या सामाजिक रूप से हाशिए पर जाने की आशंकाएँ ही नहीं थे, वरन् दुष्टता की आत्मिक शक्तियों का आक्रमण भी था। पौलुस “प्रधानों,” “अधिकारियों,” और “सांसारिक शक्तियों” के विषय में चेतावनी देता है (इफिसियों 6:12)। अधिकाँश मसीही अध्याय 6 में “परमेश्वर के अस्त्र-शस्त्र” से परिचित हैं। संभवतः वे परिस्थितियाँ कम ज्ञात हैं, जो इस पाठ की पृष्ठभूमि बनाती हैं।

इफिसुस जादू-टोने के अभ्यास का केंद्र था (प्रेरितों 19:18-19)। इसमें  जादूगरों और तांत्रिकों का स्वागत किया जाता था। ऐसा माना जाता था कि ये अरतिमिस की उपासना और अन्य तांत्रिक अभ्यासों के द्वारा शक्ति प्राप्त करते थे। हम यह कहने के लिए प्रलोभित हो सकते हैं कि एक झूठा ईश्वर “कुछ नहीं” है और इसलिए कोई संकट  नहीं है (1 कुरिन्थियों  8:4), लेकिन पौलुस इस उपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण (dismissive attitude) को सुधारता है और चेतावनी देता है कि दुष्टात्मा मूर्तियों के पीछे खड़े होते हैं और उनकी आराधना ग्रहण करते हैं (1 कुरिन्थियों  10: 20) । इसलिए इफिसुस आत्मिक अंधकार और शैतानी उत्पीड़न का केंद्र था।

संकट के बावजूद कलीसिया बढ़ी। इफिसुस के मसीही विश्वासयोग्य थे (इफिसियों 1:15; प्रकाशितवाक्य 2:1-3 भी देखें)। प्रभु ने उनके माध्यम से वही  दिखाया जिसका वह प्रतिज्ञा करता है: जब हम सुसमाचार पर विश्वास करते हैं, तो हम पर ” प्रतिज्ञा किए हुए पवित्र आत्मा की छाप लगी वह हमारे उत्तराधिकार के बयाने के रूप में इस उद्देश्य से दिया गया है कि परमेश्वर के मोल  लिए हुओं का छुटकारा हो जिससे  परमेश्वर की महिमा की स्तुति हो” (इफिसियों  1:13-14)।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

डेविड बैरी
डेविड बैरी
डॉ. डेविड पी. बैरी फ्लोरिडा के कोरल स्प्रिंग्स में फर्स्ट प्रेस्बिटेरियन चर्च के वरिष्ठ पास्टर हैं। वह दी एक्साइल ऑफ एडम इन रोमन्स के लेखक हैं।