गलातियों की पत्री के बारे में जानने योग्य 3 बातें - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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गलातियों की पत्री के बारे में जानने योग्य 3 बातें

1. गलातियों की पत्री पौलुस के सुसमाचार का ख्रीष्ट  की ओर से होने के रूप में बचाव करती है।

कुछ पाठक यह नहीं जानते होंगे कि गलातिया में विरोधियों द्वारा पौलुस की प्रेरितीय वैधता (apostolic legitimacy) पर हमला किया गया था। उन्होंने दावा किया कि पौलुस वास्तव में प्रेरित नहीं था। आखिरकार, वह यीशु की पृथ्वी पर की सेवकाई के दौरान उसका अनुयायी नहीं था। इसके अलावा, उन्होंने दावा किया कि पौलुस का सुसमाचार पतरस, यूहन्ना और याकूब द्वारा यरूशलेम में सिखाए गए सुसमाचार का खंडन करता है। दूसरे शब्दों में, लोगों को भड़काने वालों ने कहा कि पौलुस का सुसमाचार यरूशलेम के प्रेरितों पर निर्भर था, लेकिन उसमे और भी कुछ जोड़ा जाना है: उन्होंने पौलुस पर यरूशलेम में प्रेरितों द्वारा सिखाए गए सुसमाचार को विकृत करने का भी आरोप लगाया।

इसलिए पहले दो अध्यायों में पौलुस अपने सुसमाचार की वैधता का बचाव करता है। वह इस बात पर बल देता है कि जिस सुसमाचार की उसने घोषणा की, वह स्वयं यीशु ख्रीष्ट द्वारा दमिश्क के मार्ग पर अलौकिक रूप से उस पर प्रकट किया गया था। यह नहीं कहा जा सकता कि पौलुस का सुसमाचार उसकी अपनी सोच से उत्पन्न हुआ था, इसके विपरीत यह उसे यीशु द्वारा स्वतंत्र रूप से दिया गया था। लेकिन इतना ही नहीं – चौदह वर्षों पश्चात् जब पौलुस ने यरूशलेम की यात्रा की, तो प्रेरित पतरस, याकूब और यूहन्ना  ने पौलुस के सुसमाचार की पुष्टि की। उन्होंने स्वीकार किया कि पौलुस का सुसमाचार सच्चा सुसमाचार था, वही सुसमाचार जिसका वे प्रचार करते थे। वास्तव में, जब पतरस ने अन्ताकिया में सुसमाचार से समझौता किया तो पौलुस ने उसे भी डाँटा (गलातियों 2:11-14)।

तो गलातियों के पहले दो अध्यायों में पौलुस बताता है कि उसने अपना सुसमाचार सीधे यीशु से प्राप्त किया और उसने यरूशलेम के प्रेरितों द्वारा सिखाए गए संदेश को विकृत नहीं किया। उन सभी ने एक ही सुसमाचार सिखाया।

2. गलातियों की पत्री की शिक्षा है कि हम कर्मों से नहीं, बल्कि विश्वास से धर्मी ठहरते हैं।

गलातियों पहली पत्री  है जिसमें पौलुस इस सच्चाई की घोषणा करता है कि विश्वासियों को व्यवस्था के कार्यों से नहीं, बल्कि यीशु ख्रीष्ट में विश्वास के माध्यम से धर्मी  ठहराया जाता है। उसके विरोधी इस बात पर बल दे रहे थे कि व्यक्ति को उद्धार प्राप्त करने के लिए व्यवस्था का पालन करना और खतना करवाना आवश्यक है (गलातियों 5:2-4; 6:12-13; उत्पत्ति 17:9-14; प्रेरितों  15:1-5 भी देखें)। ये विरोधी यह नहीं समझे थे कि नई वाचा यीशु ख्रीष्ट की मृत्यु और पुनरुत्थान के साथ आरम्भ हुई थी। विश्वासी अब खतना सहित मूसा की वाचा के कोई भी नियमों या शर्तों  के अधीन नहीं थे। निःसंदेह, विश्वासियों का उद्धार सदा से विश्वास के माध्यम से ही होता आया था, जैसा कि पौलुस अब्राहम  के उदाहरण का उपयोग करके बताता है (गलातियों 3:6-9)। अब जब ख्रीष्ट आ गया है, तो यह स्पष्ट है कि किसी का  भी उद्धार व्यवस्था के कार्यों से नहीं बल्कि यीशु में विश्वास के माध्यम से होता है।

अच्छा समाचार यह है कि हमें धर्मी ठहराया गया है – अर्थात परमेश्वर के सामने सही घोषित किए गए हैं – कर्मों से  प्राप्त करने के द्वारा  नहीं, वरन् विश्वास करने के माध्यम से , प्रदर्शन करने के द्वारा नहीं वरन् यीशु ख्रीष्ट में परमेश्वर के अनुग्रह में विश्राम करने के माध्यम से। यदि व्यवस्था के माध्यम से धार्मिकता प्राप्त की जा सकती, तो ख्रीष्ट व्यर्थ ही मर गया (गलातियों 2:21)। धार्मिकता मनुष्य की आज्ञाकारिता के द्वारा कभी नहीं आ सकती, क्योंकि परमेश्वर सिद्ध आज्ञाकारिता की माँग करता है और उन सभी पर शाप आ पड़ता है, जो परमेश्वर के द्वारा दी गई आज्ञाओं में से प्रत्येक को पूरा करने में विफल रहते हैं (गलातियों 3:10)। शाप केवल यीशु की मृत्यु के माध्यम से दूर होता है, जिसने हमारे लिए उस शाप को ले लिया था जब उसे पेड़ पर लटकाया गया था (गलातियों 3:13)। तो गलातियों की पुस्तक पहली ऐसी पत्री के रूप में सामने आती है जो घोषणा करती है कि विश्वासियों का उद्धार केवल अनुग्रह के द्वारा, केवल विश्वास के माध्यम से, केवल ख्रीष्ट में, केवल परमेश्वर की महिमा के लिए किया  जाता है।

3. गलातियों की पत्री आत्मा-निर्देशित आज्ञाकारिता पर प्रकाश डालती है।

पौलुस गलातियों की पत्री में आज्ञाकारिता के महत्व पर भी बल देता है। ऐसी आज्ञाकारिता हमारे धर्मीकरण  (justification) या परमेश्वर के साथ हमारे सही सम्बन्ध का आधार नहीं है। विश्वासियों के लिए इन बातों का एकमात्र आधार यीशु ख्रीष्ट की मृत्यु और पुनरुत्थान है, जो हमारे पापों को क्षमा करता है और जिसकी धार्मिकता हम पर अभ्यारोपित (imputed) की जाती  है। तथापि, इससे यह निष्कर्ष निकालना एक त्रुटि होगी कि आज्ञाकारिता महत्वहीन है। पौलुस दृढ़तम शब्दों में इस बात पर बल देता है कि जो लोग देह  के कार्यों का अभ्यास करते हैं, वे परमेश्वर के राज्य के उत्तराधिकारी नहीं होंगे (गलातियों 5:19-21)। इसी प्रकार, जो देह  के लिए बोते हैं वे विनाश की कटनी काटेंगे, परन्तु जो आत्मा के लिए बोते हैं वे अनन्त जीवन की कटनी काटेंगे (गलातियों 6:8)। तथापि, विश्वासियों का नया जीवन स्वयं-उत्पन्न नहीं है, न ही यह अनुग्रह के सुसमाचार के विपरीत है। विश्वासियों को अलौकिक सामर्थ्य की आवश्यकता होती है, और वह सामर्थ्य पवित्र आत्मा से आता है। इस प्रकार, पौलुस विश्वासियों को आत्मा में चलने (गलातियों 5:16), आत्मा द्वारा नियंत्रित और निर्देशित होने  (गलातियों 5:18), आत्मा से आने वाले फल उत्पन्न करने (गलातियों 5:22-) 23), आत्मा के अनुसार चलने  (गलातियों 5:25), और आत्मा के लिए बोने (गलातियों  6:8) के लिए प्रोत्साहित करता है । पौलुस  व्यवस्थावाद में नहीं पड़ता, क्योंकि विश्वासी की आज्ञाकारिता सम्पूर्ण रूप से अनुग्रह के द्वारा है।

निष्कर्ष

गलातियों की पत्री में तीन बातें मुख्य रूप से सामने आती हैं। पहला, पौलुस को ख्रीष्ट के अनुग्रह से दमिश्क के मार्ग  पर प्रेरित बनने के लिए बुलाया गया था। दूसरा, सुसमाचार हमें सिखाता है कि हम केवल विश्वास के माध्यम से धर्मी ठहरते हैं, कार्यों के द्वारा नहीं, और हमारा धर्मीकरण यीशु ख्रीष्ट की मृत्यु और पुनरुत्थान पर निर्भर करता है, जो उस शाप को लेकर हमारे स्थान पर मर गया, जिसके हम योग्य थे। तीसरा, विश्वासी अपने सामर्थ्य से नहीं बल्कि आत्मा के सामर्थ्य  से नया जीवन जीते हैं, परमेश्वर के सामने योग्यता अर्जित करने के लिए नहीं वरन् उनके जीवनों  में किए गए  परमेश्वर के अनुग्रहपूर्ण कार्य के कारण।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

थॉमस आर. श्राइनर
थॉमस आर. श्राइनर
डॉ. थॉमस आर. श्राइनर लूईविल, केन्टकी मे सदर्न बैप्टिस्ट सेमिनेरी में नया नियम अर्थानुवाद के प्राध्यापक, बाइबलीय ईश्वरविज्ञान के प्राध्यापक, तथा ईश्वरविज्ञान के विद्यालय के सहायक डीन हैं। वे अनेक पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें स्पिरिचुअल गिफ्ट्स (Spiritual Gifts) सम्मिलित है।