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फिलिप्पियों के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए

1. फिलिप्पियों की पत्री ख्रीष्टीय संगति के लिए एक ईश्वरविज्ञानीय ढाँचा प्रदान करती है।

कोइनोनिया नामक शब्द, जिसका अनुवाद प्रायः “संगति,” “साझेदारी,” या “एकजुटता” के रूप में किया जाता है, फिलिप्पियों को लिखी पौलुस की पत्री के आरम्भ और अन्त दोनों स्थानों में आता है। पौलुस और विश्वासियों के पास “सुसमाचार को आगे बढ़ाने में” (फिलिप्पियों 1:5, 7), “दुःख में” (फिलिप्पियों 4:14), और “देने और प्राप्त करने में” (फिलिप्पियों 4:15)  कोइनोनिया है। यह कोइनोनिया पूरी तरह से त्रिएकतावादी है। परमेश्वर – पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा – ही है जो उस कार्य को पूरा करता है जिसे उसने प्रारम्भ किया है (फिलिप्पियों  1:6) और जो अपने लोगों में और उनके माध्यम से इच्छा करता है और कार्य करता है (फिलिप्पियों  2:12-13)।

परमेश्वर ने बन्दीगृह में पौलुस के माध्यम से सुसमाचार को आगे बढ़ाया, इसलिए पौलुस ने अपने कारावास के दौरान “जो कुछ हुआ” का वर्णन करते समय कर्मवाच्य क्रिया (passive voice) का उपयोग करके परमेश्वर की अपरिहार्य (essential) भूमिका पर प्रकाश डाला (फिलिप्पियों  1:12)। परमेश्वर पौलुस द्वारा घोषित सुसमाचार को आगे बढ़ाता है (फिलिप्पियों  1:12, 25)। परमेश्वर उनके देने और प्राप्त करने में प्राथमिक दाता के रूप में भी कार्य करता है, इसलिए पौलुस उस उपहार के लिए प्रभु में आनन्दित होता है जो फिलिप्पीवासियों ने पौलुस को बन्दीगृह में भेजा था, एक उपहार जिससे उसके पास बहुतायत हो गई थी: ” मेरे पास सब कुछ है [अक्षरशः, ‘बहुतायत है ‘]” (फिलिप्पियों  4:18)। परन्तु पौलुस केवल यह कहता है कि वह बहुतायत का अनुभव करता है और जानता है कि जो उसे सामर्थ्य देता है उसके द्वारा कैसे बहुतायत में रहना है (फिलिप्पियों  4:12-13)। परमेश्वर मानव-दाताओं के माध्यम से देता है। इन उपहारों की तुलना “सुगंधित भेंट” और “परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले स्वीकार्य बलिदान” से की गई है (फिलिप्पियों  4:18)। पौलुस को दिया उपहार परमेश्वर को दिया उपहार है, “क्योंकि उसी की ओर से, उसी के द्वारा और उसी के लिए सबकुछ हैं। उसी की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन” (रोमियों 11:36)।

अन्त में परमेश्वर विश्वासियों को उस पर और अन्य विश्वासियों पर अधिक निर्भर बनाने के लिए, या हम कह सकते हैं कि अन्य विश्वासियों के माध्यम से उस पर निर्भर बनाने के लिए  दुःख प्रदान करता है जिसका उदाहरण इपफ्रुदीतुस है। इपफ्रुदीतुस बन्दीगृह में अपनी उपस्थिति और फिलिप्पी की कलीसिया के माध्यम से परमेश्वर से मिले उसके उपहार के द्वारा पौलुस के दुःख को कम करने के लिए लगभग मर ही  गया था (फिलिप्पियों  1:29; 2:25-30; 4:14)। अगली बार जब आप मिशन, प्रचार, दुःख और अपने सभी सभी संबंधों के बारे में सोचें, तो परमेश्वर की दिव्य भागीदारी और सशक्तिकरण को स्मरण रखें। यह सब कुछ परिवर्तित कर देता है, विशेषकर मसीही संगति के विषय में हमारी समझ को।

2.  फिलिप्पियों की पत्री न केवल यह बताती है कि कैसे सोचना है, परन्तु यह भी कि कैसे जीना है।

फिलिप्पियों 2:5-11 में “ख्रीष्ट-भजन” – पत्री का ज्वलंत केंद्र – केवल मस्तिष्क के लिए नहीं, परन्तु जीवन के लिए भी ईश्वरविज्ञान है। हमारे लिए और हमारे उद्धार के लिए ख्रीष्ट  के अपमान (humiliation) और महिमा (exaltation) के विषय में अच्छा समाचार एक सुसमाचार संदेश है जिस पर हमें अपने ह्रदय से विश्वास करना चाहिए, अपने मुँह से घोषित करना चाहिए और अपने जीवन में प्रदर्शित करना चाहिए। यह फिलिप्पियों 2:1-11 में पौलुस  द्वारा “मन” शब्द के प्रयोग से स्पष्ट हो जाता है। पहले चार पदों में विश्वासियों को “एक मन” और “एक दृष्टिकोण” रखने  के लिए प्रोत्साहित किया गया है (फिलिप्पियों  2:2)। फिर, पद पाँच में विश्वासियों को आदेश दिया गया है कि “अपने में वही स्वाभाव रखो जो ख्रीष्ट यीशु में आपका है।”

पौलुस फिर कलीसिया को बताता है कि वह “स्वाभाव” कैसा दिखता है – ख्रीष्ट ने अपने अधिकारों पर बल नहीं दिया, वरन् दूसरों को ऊँचा उठाने के लिए स्वयं को निम्न कर दिया  (फिलिप्पियों  2:6-8)। अपने अन्दर ख्रीष्ट  के द्वारा ढाला गया स्वाभाव रखें, जो न केवल सोचने का एक ढंग है (यह महत्वपूर्ण है) परन्तु एक दूसरे के प्रति संवेदना रखने और कार्य करने का भी ढंग है। दूसरे शब्दों में, पौलुस चाहता है कि ख्रीष्ट को  हमारे द्वारा सुना जाए और वह हम में दिखे। जब हम “नम्रता से दूसरों को [स्वयं से] अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं”, तो लोग ख्रीष्ट को देखते हैं, जिसने निस्वार्थ रूप से स्वयं को दीन कर दिया था (फिलिप्पियों  2:3, 8)। या जब हम इपफ्रुदीतुस के सामान “ख्रीष्ट के कार्य के लिए लगभग मर जाते हैं,” तो लोग ख्रीष्ट को देखते हैं जो “मृत्यु, यहाँ तक कि क्रूस पर मृत्यु तक आज्ञाकारी रहा” (फिलिप्पियों  2:8, 30)। फिलिप्पी में ख्रीष्ट के द्वारा ढाले गए आदर्शों का वर्णन करने के लिए पौलुस जानबूझकर अध्याय 2 से मुख्य शब्दों का उपयोग करता है। यह सब फिलिप्पियों 1:21 के अधिक उपेक्षित भाग को उजागर करता है – “जीना मसीह है” – यद्यपि कोई भी ख्रीष्ट  के सामान नहीं जी सकता जब तक कि वह ख्रीष्ट में नहीं जीता है। जैसा कि मार्टिन लूथर ने तर्क दिया,  हमें मसीह को आदर्श या उदाहरण से पहले उपहार के रूप में ग्रहण करना होगा।

3. फिलिप्पी निवासी सह-हित (co-interest) और सह-दायित्व (co-obligation) को मसीही गुणों के रूप में बढ़ावा देते हैं।

क्या यह बिन्दु आपको असहज अनुभव कराता है? “हित” और “दायित्व” व्यापार के गला-काट प्रतिस्पर्धा वाले संसार की पुरानी यादें ताजा कर सकते हैं, जहाँ कुत्ता कुत्ते को खा जाता है। परन्तु पौलुस सुसमाचार की ओर ध्यान आकर्षित करता है। फिलिप्पियों 2:3-4 में वह कहता है, ” स्वार्थ और मिथ्याभिमान से कोई काम ना करो …………. तुम में से प्रत्येक अपना ही नहीं परन्तु दूसरों के हित का भी ध्यान रखे।” “न केवल . . . परन्तु” सहसम्बन्ध महत्वपूर्ण है। मसीहयत न तो शुद्ध रूप से स्व-हित पर केंद्रित है और न ही केवल अन्य-हित पर केंद्रित है। मसीहयत स्वयं और अन्य दोनों के हितों पर केंद्रित है। उचित रूप से समझा जाए तो, सह-हित बाइबल आधारित है। 

सह-दायित्व भी बाइबल आधारित है, जिसे “देने और प्राप्त करने” की मसीही संगति में देखा जाता है (फिलिप्पियों  4:15)। पौलुस ने फिलिप्पी वासियों को सुसमाचार का प्रचार किया था। उसने उन्हें यह महिमावान उपहार दिया था। सांस्कृतिक रूप से कहें तो, यह उपहार प्राप्त करने के पश्चात् उनका उसके प्रति दायित्व बनता था। इसीलिए वह  इपफ्रुदीतुस के द्वारा उसके प्राण को जोखिम में डालने को इस प्रकार वर्णित करता है:  “मेरे [पौलुस] प्रति तुम्हारी [फिलिप्पियों की] सेवा [लेतुरगीआस] में जो घटी रह गई थी उसे पूर्ण करे। (फिलिप्पियों  2:30) “। लेतुरगीआ यहूदी याजकत्व  के अनिवार्य कर्तव्यों (“सार्वजनिक सेवा”) का वर्णन करता है (2 इतिहास 31:2)। ख्रीष्ट के सुसमाचार में, भिन्नता यह है कि अनुग्रह का परमेश्वर हमें हमारे दायित्वों को पूरा करने में सक्षम बनाता है (फिलिप्पियों  1:6; 2:12-13)।

इसके अतिरिक्त, फिलिप्पी-वासियों में सह-हित और सह-दायित्व तिमुहानी गाँठ में बँधे हैं। सह-हित को “ख्रीष्ट के हितों” के रूप में परिभाषित किया जाता है और सह-दायित्व मूलभूत रूप से परमेश्वर के प्रति हमारा दायित्व है, वैसे ही जैसे पौलुस के लिए फिलिप्पी वासियों का दायित्व परमेश्वर के लिए एक बलिदानी दायित्व है (फिलिप्पियों  2:21, 30; 4: 18).

फिलिप्पियों की पत्री को पढ़ते समय इन तीन बातों को ध्यान में रखना, हमें परमेश्वर और एक-दूसरे के साथ मसीही संगति का आनंद लेते हुए, एक ख्रीष्ट-आकारित विचार, अनुभव, और कार्य-शैली को विकसित करने में सहायता मिल सकता है, यदि प्रभु अनुमति दे।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

डेविड ई. ब्रियोनेस
डेविड ई. ब्रियोनेस
डॉ. डेविड ई. ब्रियोनेस फिलाडेल्फिया में वेस्टमिन्स्टर थियोलॉजिकल सेमिनरी में नए नियम में सहायक प्रध्यापक हैं और ऑर्थोडॉक्स प्रेस्बिटेरियन चर्च में शिक्षक एल्डर हैं। वे पौलुस की आर्थिक कूट-नीति: एक सामाजिक-ईश्वरविज्ञानीय प्रस्ताव (Paul’s Financial Policy: A Socio-Theological Approach)।