न्यायिओं की पुस्तक के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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न्यायिओं की पुस्तक के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए

न्यायियों की पुस्तक में दो परिचय (न्यायियों 1:1-2:5; 2:6-3:6), दो निष्कर्ष (न्यायियों 17:1-18:31; 19:1-21:25), बारह न्यायियों के विवरण (छह प्रमुख न्यायियों और छह छोटे न्यायियों), और एक कु-न्यायी (anti-judge), अबीमेलेक (न्यायियों 9:1-57) का विवरण है। यह एक जटिल साहित्यिक कृति है जो इस्राएल के इतिहास में नून के पुत्र यहोशू की मृत्यु (न्यायियों 1:1; 2:8) से लेकर इस्राएली राजतन्त्र के आगमन से पहले की अवधि को अभिलेखित करती है। ईश्वरविज्ञानीय रूप से (theologically), न्यायिओं की पुस्तक वाचा की व्यवस्था के प्रति प्रभु की सदा बनी रहने वाली विश्वासयोग्यता के सन्दर्भ में मूर्तिपूजा के द्वारा वाचा के प्रति विश्वासघात में इस्राएल के प्रगतिशील पतन का वर्णन करती है। यहाँ तीन बातें हैं जो आपको न्यायिओं की पुस्तक पढ़ते समय ज्ञात होनी चाहिए।

1. न्यायिओं की पुस्तक में न्यायी ख्रीष्ट के प्रकार (types) हैं।

न्यायिओं को प्रभु द्वारा खड़ा किया गया था और परमेश्वर के लोगों को छुड़ाने, देश में शान्ति सुनिश्चित करने और वाचा के प्रति आज्ञाकारिता को बढ़ावा देने के लिए आत्मा द्वारा उन्हें सशक्त किया गया था (न्यायिओं 2:16-19)। आधुनिक व्याख्याकार न्यायिओं को सामान्यतया नैतिक रूप से भ्रष्ट व्यक्तियों के रूप में देखते हैं जो अपने समय की भ्रष्टता में लिप्त थे। तथापि यह नए नियम या पुस्तक की प्रारम्भिक व्याख्याओं का दृष्टिकोण नहीं है।

इब्रानियों की पुस्तक में दिए गए मूल्यांकन पर विचार करें। दाऊद और शमूएल के साथ गिदोन, बाराक, शिमशोन और यिप्तह (तथाकथित सबसे बुरे दोषियों में से कुछ) को ऐसे पुरुषों के रूप में वर्णित किया गया है, “जिन्होंने विश्‍वास ही से राज्य जीते; धार्मिकता के कार्य किए; प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएँ प्राप्‍त कीं; सिंहों के मुँह बन्द किए; आग की ज्वाला को शान्त किया; तलवार की धार से बच निकले; निर्बलता में बलवान किए गए; युद्ध में वीरता दिखाई; विदेशी सेना को मार भगाया” (इब्रानियों 11:33-34)। इन विश्वासयोग्य सेवकों की प्रशंसा पद 40 तक जारी है, और उन्हें आगे ऐसे लोगों के रूप में वर्णित किया गया है “संसार जिनके योग्य नहीं था” (इब्रानियों11:38)। यह न्यायिओं के सबसे पहले ज्ञात ऐतिहासिक मूल्यांकनों में से एक के साथ अच्छी रीति मेल खाता है। बेन सायरा लिखते हैं, “न्यायी भी, प्रत्येक को जब बुलाया गया था, वे सभी लोग जिनके ह्रदय कभी विश्वासघाती नहीं थे, जिन्होंने कभी परमेश्वर से मुंह नहीं मोड़ा था — उनकी स्मृति धन्य रहे! उनकी हड्डियाँ कब्र से फिर जी उठे, और उन अनुकरणीय पुरुषों के नाम उनके पुत्रों द्वारा योग्य रूप से धारण किए जाएं” (सिराक 46:11-12)।

जब आप न्यायिओं की कहानियों का सामना करते हैं, तो याद रखें कि वे हमें सिखाने के लिए लिखी गई थीं (रोमियों 15:4) जिससे कि हम अपनी दृष्टि यीशु पर केन्द्रित कर सकें (इब्रानियों 12:2), जिसे शिमशोन के समान उसके प्रभु ने परमेश्वर के लोगों को छुड़ाने के उद्देश्य से अपना जीवन देने के लिए खड़ा किया था (न्यायिओं 16:30)।

2. न्यायिओं की संरचना ईश्वरविज्ञानीय (theological) है, कालानुक्रमिक (chronological) नहीं।

जब आप न्यायिओं की पुस्तक पढ़ते हैं, आपको संख्याओं की कम से कम तीन भिन्न श्रेणियाँ मिलेंगी: शत्रु के द्वारा उत्पीड़न के वर्ष, वे वर्ष जब देश ने उत्पीड़न से विश्राम का अनुभव किया, और वे वर्ष जिनमें किसी न्यायी ने सेवा की। उदाहरण के लिए, मोआब के राजा एग्लोन द्वारा अठारह वर्षों के उत्पीड़न के बाद प्रभु ने एहूद को खड़ा किया (न्यायिओं 3:14-15) और उसके बाद देश में अस्सी वर्षों तक शान्ति रही (न्यायिओं 3:30)। इसी प्रकार, यह दो बार अभिलेखित किया गया है कि शिमशोन ने बीस वर्षों तक इस्राएल का न्याय किया (न्यायिओं 15:20; 16:31)।

कुछ व्याख्याकारों ने सभी संख्याओं को जोड़कर न्यायिओं के कार्यकाल की अवधि निकालने का प्रयास किया है। तथापि, कुछ कहानियाँ अतिच्छादन करती हैं (एक ही समयकाम में घटित हुईं), और वर्णित किए गए समय की अवधियों में अवकाश हैं। न्यायी अधिकतर स्थानीय छुटकारा देने वाले थे, जो किसी भी समय एक साथ सम्पूर्ण इस्राएल को छुटकारा नहीं दिला रहे थे। इसके अतिरिक्त, पुस्तक के दो निष्कर्षों में से पहले वाले में मूसा के पोते योनातान को दान में एक अवैध याजक के रूप में नियुक्त किया गया है (न्यायिओं 18:30)। यह न्यायिओं के काल के प्रारम्भ में हुआ होगा, अन्त में नहीं। इस प्रकार, पुस्तक की संरचना धर्मविज्ञानीय है, कालानुक्रमिक नहीं।

दोहरे परिचय और निष्कर्ष एक दूसरे को प्रतिबिम्बित करते हैं। पहला परिचय और दूसरा निष्कर्ष एक-दूसरे को प्रतिबिम्बित करते हैं और इस्राएल के उत्तराधिकार के संकट को कालांकित करते हैं, विशेष रूप से इस्राएल के द्वारा भूमि को अपने स्वामित्व में लेने में विफलता को (न्यायिओं 1:1-2:5) और बिन्यामीन की गोत्र के उनके सदोम के सामान पाप के कारण लगभग पूर्ण विलुप्त होने को (न्यायिओं 19:1-21:25)। दूसरा परिचय और पहला निष्कर्ष भी एक-दूसरे को प्रतिबिम्बित करते हैं और इस्राएल के विश्वास के संकट को कालांकित करते हैं, जो उनकी निरन्तर मूर्तिपूजा में देखा जा सकता था, जो भूमि पर स्वामित्व लेने में उनकी असमर्थता और उनके नैतिक भ्रष्टाचार का कारण था (न्यायिओं 2:6-3: 6; 17:1-18:31)।

इन परिचयों और निष्कर्षों के बीच में हम न्यायिओं की कहानियों को पढ़ते हैं। छह प्रमुख न्यायिओं को तीन-तीन की दो श्रेणियों में बाँटा गया है: ओत्नीएल, एहुद, और दबोरा/बाराक और फिर गिदोन, यिप्तह और शिमशोन। तथाकथित छोटे न्यायिओं का विवरण बहुत संक्षिप्त (तीन या उससे भी कम पद) है और इसमें प्रमुख न्यायिओं में निहित अधिकाँश सूत्रबद्ध तत्वों (formulaic elements) का अभाव है। इस्राएल के गोत्रों की संख्या के अनुरूप बारह की संख्या प्राप्त करने के लिए छोटे न्यायिओं को जोड़ा किया गया है। उन्हें चर्मोत्कर्षात्मक (climactic) प्रमुख न्यायिओं के वृत्तान्तों की पहचान करने के लिए अवस्थित और समूहीकृत किया गया है। शमगर दबोरा/बाराक के वृत्तांत को चर्मोत्कर्षात्मक न्यायी की पहली कहानी के रूप में चिह्नित करता है। तब तोला और याईर यिप्तह के वृत्तान्त को अंकित करते हैं। अन्त में, इबसान, एलोन और अब्दोन शिमशोन को अन्तिम और सबसे चर्मोत्कर्षात्मक कहानी के रूप में चिह्नित करते हैं।

जैसे-जैसे प्रमुख न्यायिओं के वृत्तान्त आगे बढ़ते हैं, वैसे-वैसे इस्राएल का भ्रष्टाचार भी बढ़ता जाता है। छुटकारा देने के लिए न्यायिओं के द्वारा चुकाए जाने वाला मूल्य भी बढ़ता जाता है, जैसा कि अन्तिम न्यायी को शत्रु को हराने के लिए अपना जीवन देना पड़ा (न्यायिओं 16:30)।

3. न्यायियों की पुस्तक इस्राएल में राजतन्त्र के लिए मार्ग तैयार करती है।

सामान्यतया यह माना जाता है कि पुस्तक के निष्कर्षों में चार पूर्णतया समान कथन इस्राएल में राजतन्त्र का पूर्वानुमान लगाते हैं: “उन दिनों में इस्राएल में कोई राजा नहीं था” (न्यायिओं. 17:6; 18:1; 19:1; 21:25)। इनमें से दो कथनों के बाद उस समय की दशा का वर्णन किया गया है: “प्रत्येक मनुष्य वही करता था जो उसकी दृष्टि में ठीक जान पड़ता था” (न्यायिओं 17:6; 21:25)। इस्राएल को एक ऐसे राजा की आवश्यकता थी जो परमेश्वर की व्यवस्था को जानता हो, उस व्यवस्था का पालन करता हो, और ऐसी आज्ञाकारिता की ओर लोगों की अगुवाई करता हो (व्यवस्थाविवरण 17:14-20 देखें)।

न्यायिओं की पुस्तक हमें राजतन्त्र के प्रकटीकरण के लिए भी अप्रत्याशित ढंग से तैयार करती है, जो इस्राएल के पहले दो राजाओं, शाऊल और दाऊद के आगमन के साथ आएगा। सम्पूर्ण न्यायिओं की पुस्तक में यहूदा-समर्थक (दाऊद) और बिन्यामीन-विरोधी (शाऊल) तत्व पाए जाते है। उदाहरण के लिए, पुस्तक के पहले अध्याय में यहूदा के अपने क्षेत्र पर तुलनात्मक रूप से सफल स्वामित्व के विवरण को उन्नीस पद समर्पित किए गए हैं (न्यायिओं 1:2-20)। इस विवरण के तुरन्त बाद एक पद आता है जिसमें बिन्यामीन द्वारा अपने क्षेत्र पर पूरी रीति से स्वामित्व करने में विफलता और कनानियों के साथ उनके निरन्तर निवास को अभिलेखित किया गया है: “लेकिन बिन्यामीनियों ने यरूशलेम में रहने वाले यबूसियों को न निकाला, इसलिए यबूसी आज तक यरूशलेम में बिन्यामीनियों के साथ रहते आए हैं” (न्यायिओं 1:21)। और फिर अन्त में न्यायियों 19 में गिबा में बिन्यामीनियों ने सदोम का पाप किया (उत्पत्ति 19) और पूरे गोत्र पर पूर्ण विनाश का प्रतिबन्ध लगा दिया गया (न्यायिओं 20-21)। इस प्रकार, जब इस्राएल अन्य सभी देशों के जैसे एक राजा की माँग करता है (1 शमूएल 8:5), तो प्रभु उन्हें वही देता है जो वे माँगते हैं, अर्थाति बिन्यामीन के गोत्र का गिबा नगर से शाऊल। निश्चित रूप से यह चयन आने वाले अनिष्ट का पूर्वाभास कराता है, क्योंकि शाऊल राजा के रूप में अपनी भूमिका में बहुत दुखद रूप से विफल होता है।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

माइल्स वैन पेल्ट
माइल्स वैन पेल्ट
डॉ. माइल्स वी. वान पेल्ट जैक्सन,मिसिसिपी में रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी में समर इंस्टीट्यूट फॉर बाइबिल लैंग्वेजेज़ में पुराने नियम और बाइबिल भाषाओं के एलन हेस बेल्चर प्रोफेसर और निदेशक हैं। वह कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें बेसिक्स ऑफ बिब्लिकल हीब्रू और जजेज़: अ 12-वीक स्टडी सम्मिलित हैं।