यहोशू की पुस्तक के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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यहोशू की पुस्तक के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए

1. यहोशू मूल रीति से परमेश्वर की विश्वासयोग्यता के विषय में है।

यदि आप अधिकाँश मसीहियों से पूछें कि वे यहोशू की पुस्तक के विषय में क्या जानते हैं, तो आपको सम्भवतः यरीहो के युद्ध के विषय में उत्तर मिलेगा। उस नगर की दीवारों के ढहने की कहानी पुस्तक की विजय गाथा में एक उच्च बिन्दु है। यहोशू की पुस्तक में सैन्य विजय और उसके बाद इस्राएल द्वारा जीती गई भूमि के वितरण की कहानी सम्मिलित है। परन्तु मूल रीति से यहोशू की पुस्तक वास्तव में परमेश्वर और उसकी विश्वासयोग्यता के विषय में है। प्रभु ने अब्राहम से कनान देश देने की प्रतिज्ञा की थी, और यद्यपि उस प्रारम्भिक प्रतिज्ञा और परमेश्वर के लोगों के द्वारा कनान पर स्वामित्व प्राप्त करने के बीच बहुत समय लगा, प्रभु का एक भी वचन पूरा हुए बिना नहीं रहा (यहोशू 23:14)।

परमेश्वर द्वारा इस्राएल को उसके द्वारा कही गई सारी भूमि देने के बाद अध्याय 21 के अन्तिम शब्दों की तुलना में कोई भी खण्ड पुस्तक के मुख्य विषय को अधिक सारांशित नहीं करता है: “यहोवा ने इस्राएल के घराने से जो जो भली प्रतिज्ञाएँ की थी उनमें से एक भी न छूटी, सब की सब पूरी हुईं” (यहोशू 21:45)। यहोशू के अतिरिक्त, कालेब और एलीआज़ार जैसे अन्य आदर्श पात्र पुस्तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पुस्तक में भव्य युद्ध भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने युद्ध के इतिहास में एक प्रमुख स्थान अर्जित किया है। परन्तु मूल रीति से यह पुस्तक परमेश्वर और उसकी विश्वसनीयता के विषय में है।

2. कनानियों का विनाश जातीय (नस्लीय) श्रेष्ठता की अभिव्यक्ति नहीं थी, वरन् पाप के विरुद्ध परमेश्वर का दण्ड था।

यहोशू में सबसे बड़ा नैतिक प्रश्न कनानियों का विनाश है। उदाहरण के लिए, जब इस्राएल के लोग यरीहो की दीवारों के मलबे पर चढ़कर गए, तो उन्होंने नगर में किसी को भी नहीं छोड़ा, चाहे वह मनुष्य हो या पशु। राहाब, जिसने इस्राएल के जासूसों को छुपाया था, और उसका परिवार ही एकमात्र अपवाद थे। कई आलोचकों ने इस्राएल की क्रूरता या उससे भी बुरा, “पुराने नियम के निर्दयी ईश्वर” की रक्तपिपासा (खून का प्यासा होने का गुण) की निन्दा की है, जिसने इन मृत्युओं की मांग की थी (व्यवस्थाविवरण 20:16-18 भी देखें)। यद्यपि किसी को भी इस्राएल द्वारा वहाँ जाने के बाद किए गए व्यापक विनाश को हल्के में नहीं लेना चाहिए, हमारे लिए इसके पीछे छिपे गम्भीर ईश्वरविज्ञानीय (theological) और नैतिक कारणों को समझना आवश्यक है। नरसंहार के प्रसंगों के विपरीत, जिनसे हम परिचित हैं, जैसे कि यहूदियों का जातिसंहार/होलोकॉस्ट (Holocaust) या रुआण्डा का जातिसंहार (genocide), परमेश्वर के लोगों ने नस्लीय या जातीय श्रेष्ठता की भावना से अपने शत्रुओं को नहीं मारा। इस्राएल के सैनिकों ने सच्चे परमेश्वर के हाथ में न्याय के उपकरण के रूप में अपनी तलवारें उठाई थीं।

इस्राएल का परमेश्वर यहोवा पवित्र है और पाप को बिना दण्ड दिए नहीं रह सकता। धैर्य रखते हुए उसने शताब्दियों तक कनान के लोगों पर दया की, परन्तु आखिरकार एमोरियों के अधर्म का घड़ा भर गया (उत्पत्ति 15:16 देखें), और उसने अब उन पर दया नहीं की। परमेश्वर की पवित्रता का अर्थ यह भी है कि यदि इस्राएल उसकी भक्ति करते हुए पवित्रता का अनुसरण करने में विफल रहता है, तो उसे भी दण्ड के ऐसे ही संकट का सामना करना पड़ेगा (निर्गमन 22:20 देखें)। वास्तव में एक इस्राएली और उसके परिवार को कनानियों के समान ही परिणाम सहना पड़ा। जब आकान ने परमेश्वर की स्पष्ट आज्ञा की अवज्ञा की और यरीहो की लूट का कुछ हिस्सा ले लिया, तो वह अपने और अपने परिवार के लिए मृत्यु और विनाश के साथ-साथ अपनी जाति के लिए पराजय भी लेकर आया (यहोशू 7 देखें।)। यहोशू की पुस्तक में जो घटनाएँ सामने आती हैं, वे इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि परमेश्वर पाप को छोटी बात नहीं मानता है।

जब हम पवित्रशास्त्र में आगे पढ़ते हैं, तो हमें ज्ञात होता है कि कनानियों का विनाश न्याय के अन्तिम दिन का अग्रदूत था, जो ख्रीष्ट के लौटने पर होगा (प्रकाशितवाक्य 6:12-17; 19:15-16, 19-21 देखें)। उस दिन सब लोगों के लिए एकमात्र आशा यीशु को जानना है, जिसने हमारे लिए परमेश्वर का क्रोध सहा (1 पतरस 2:24)।

3. भूमि वितरण का विवरण किसी महानतर बात की ओर संकेत करता है।

लेखक ने यहोशू की पुस्तक का एक बड़ा भाग उस भूमि के विवरण का वर्णन करने के लिए समर्पित किया है, जो इस्राएल की गोत्रों के बीच विभाजित की गई थी। अध्याय 13-19 को पढ़ना उबाऊ हो सकता है, क्योंकि लेखक इस नदी के किनारे, उस घाटी के मध्यभाग और दूसरी पहाड़ी से चढ़ाई का वर्णन करता है। तथापि, भूमि का भौगोलिक विवरण परमेश्वर के लिए महत्वपूर्ण था, और उसने हमें उसका एक विस्तृत, प्रेरित वर्णन दिया क्योंकि वह भूमि उसके लिए बहुमूल्य थी। यहोवा ने इस भूमि को इतना महत्व क्यों दिया? क्योंकि यह यीशु ख्रीष्ट की महिमा और नई सृष्टि को चित्रित करने के लिए उसका चुना हुआ स्थान था।पुराने नियम के धर्म के कई अन्य तत्त्व जैसे तम्बू और बलिदान प्रणाली (sacrificial system) के सामान, भूमि सुसमाचार-सत्य का एक प्रकार (type), या चित्र थी। जब आदम और हव्वा ने पाप किया, तो परमेश्वर ने उन्हें उनके पार्थिव स्वर्ग से निकाल दिया और पृथ्वी को शापित कर दिया। तथापि, इसका अर्थ यह नहीं था कि उसने एक अच्छी सृष्टि के लिए अपनी योजनाएँ पूरी कर ली थीं। जब यीशु वापस आएगा तो वह स्वर्ग और पृथ्वी को नवीनीकृत करेगा (2 पतरस 3:10-13; प्रकाशितवाक्य 21:1)। कनान अदन की वाटिका और नई सृष्टि के बीच स्वर्ग के पूर्वदर्शन (preview) के रूप में खड़ा था, एक ऐसी भूमि जिसमें दूध और मधु की धाराएँ बहती थी, एक प्रकार से आने वाले शाश्वत स्वर्ग का अनुस्मारक (reminder) और अग्रिम भुगतान (down payment)

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

रेट पी. डॉडसन
रेट पी. डॉडसन
डॉ. रेट पी. डॉडसन, हडसन ओहायो में ग्रेस प्रेसबिटेरियन चर्च में वरिष्ठ पास्टर हैं। वे मार्चिंग टू ज़ाएन तथा विद अ माईटी ट्राइअम्‍फ़्‌ समेत कई पुस्तकों के लेखक हैं