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व्यवस्थाविवरण के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए

व्यवस्थाविवरण की पुस्तक अपने आप में महत्वपूर्ण है, परन्तु इसलिए भी कि इसे नये नियम में अनेकों बार उद्धृत किया गया है। यीशु और उनके शिष्यों की उद्घोषणा सीधे रूप से इससे ली गई थी। यीशु ने इसे अपनी परीक्षा में उद्धृत किया (मत्ती 4:4, 7, 10) और परमेश्वर के प्रति सर्वग्राही-प्रेम (all-embracing love) पर इसके बल की पुनः पुष्टि की (मत्ती 22:37-38)। प्रेरितों के काम में प्रेरितों के उपदेश इस पर बहुत अधिक निर्भर करता है, विशेष रूप से यीशु के व्यक्ति (person) में नबी के कार्यभार से सम्बन्धित वचन के पूर्तिकरण की ओर संकेत करते हुए (व्यवस्थाविवरण 18:15; प्रेरितों के काम 3:22)। कम से कम नये नियम की सात पत्रियों में पाए जाने वाले उद्धरण व्यवस्थाविवरण से लिए गए हैं, सम्भवतः इनमें सबसे महत्वपूर्ण गलातियों 3:10-14 में है। यहाँ पर पौलुस लिखता है कि ख्रीष्ट ने हमें उन शापों से छुड़ा लिया है जिनके विषय में व्यवस्थाविवरण बात करती है (गलातियों 3:13)।

अंग्रेजी में इस पुस्तक का नाम, ड्यूटेरोनॉमी (Deuteronomy), लातीनी और यूनानी के माध्यम से आया है और इसका अर्थ है “दूसरी व्यवस्था/नियम,” यह मानते हुए कि व्यवस्थाविवरण 17:18 का यही अर्थ है। फिर भी, उस पद का तात्पर्य यह है कि राजा के पास स्वयं के लिए व्यवस्था की एक प्रति थी। पुस्तक की सामग्री से पता चलता है कि यह दूसरी व्यवस्था नहीं है, वरन् सीनै पर्वत पर बाँधी गई वाचा का नवीनीकरण है (व्यवस्थाविवरण 33:2 को छोड़कर, पूरे व्यवस्थाविवरण में इसे “होरेब” कहा जाता है)। यह स्पष्ट रूप से परमेश्वर द्वारा इब्राहीम, इसहाक और याकूब को दिए गए दयालु प्रतिज्ञाओं से जुड़ा हुआ है (उदाहरण के लिए, व्यवस्थाविवरण 6:10-11; 7:7-9 देखें)। यह पंचग्रन्थ के पूरा होने का भी प्रतीक है, जिसमें इस्राएल के उस भूमि में प्रवेश से ठीक पहले कुलपिता की प्रतिज्ञाओं की आंशिक पूर्ति पर बल दिया गया है जिसे परमेश्वर ने उन्हें देने की शपथ ली थी।

व्यवस्थाविवरण की पुस्तक और उसकी शिक्षा के विषय में तीन विशेष बातें हैं जो पाठकों को जाननी चाहिए।

1. व्यवस्थाविवरण एक वाचायी प्रलेख है।

एक वाचायी (covenantal) प्रलेख के रूप में, व्यवस्थाविवरण का सम्बन्ध परमेश्वर और उसके लोगों के मध्य एक बन्धन से है। परमेश्वर ने अपनी दयालु कृपालुता का परिचय देते हुए उनके साथ एक विशेष सम्बन्ध स्थापित किया। वह अपने लोगों से प्रेम करता था और उसने अपने सामर्थी हाथ बढ़ाकर उन्हें छुड़ाता था (विशेषकर व्यवस्थाविवरण 7:7-9; 9:5-6; 14:2 देखें)। सीनै पर, उसने उनके साथ इस औपचारिक सम्बन्ध में प्रवेश किया। उसने उनके निकट आके प्रतिज्ञा की, “मैं तुम्हारा परमेश्वर ठहरूँगा, और तुम मेरी प्रजा ठहरोगे।” इसलिए, वाचा परमेश्वर और मनुष्य के बीच एक बन्धन था, जिसे परमेश्वर ने अपने अनुग्रह से सम्प्रभुतापूर्वक लागू किया गया, जिससे वह और उसके लोग औपचारिक रूप से अपने सम्बन्ध को अभिव्यक्त किए थे। उसकी वाचा के लोगों को उन सभी के प्रति आज्ञाकारिता में प्रतिक्रिया देनी थी जो इस छुटकारा देने वाले परमेश्वर ने उनके लिए किया था। उनके जीवन का कोई भी भाग उनकी नैतिक माँगों से मुक्त नहीं था। व्यवस्थाविवरण की संरचना और सामग्री दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में अन्य जीवन में चिरपरिचित संधियों के समान ही एक साथ बन्धी हुई है।

2. व्यवस्थाविवरण दस-वचनों, अर्थात् दस आज्ञाओं की एक व्याख्या है।

व्यवस्थाविवरण के अतिरिक्त बाइबल की किसी अन्य पुस्तक में दस आज्ञाओं की कोई पूर्ण व्याख्या नहीं मिलती है। अध्याय 5 में दस-वचन और अध्याय 6-26 में दी गई व्याख्या के बीच एक भिन्नता है। भिन्नता ईश्वरीय और मानवीय व्यवस्था के बीच नहीं है। वरन् यह वाचा के मूलभूत केन्द्रबिन्दु, दस-वचन और व्याख्या के बीच है, जो इसके विभिन्न लागूकरणों को निर्धारित करता है। इसमें वह उपदेश सम्मिलित है जिसका उद्देश्य श्रोताओं के विवेक पर परमेश्वर की दृढ़कथनों को प्रभावित करना था। मूसा ने इस्राएल के लोगों के सामने जीवन और मृत्यु, आशीष और शाप रखा, और उन्हें चुनौती देते हुए कहा, “इसलिए जीवन को चुन ले, कि तू अपनी सन्तान सहित जीवित रहे, और अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करना, और उसकी सुनना, तथा उससे लिपटे रहना” (व्यवस्थाविवरण 30:19-20)।

परन्तु दस-वचन की व्याख्या के विषय में और भी कुछ कहा जाना शेष है। निर्गमन 21-23 में वाचा की पुस्तक में, कई आज्ञाओं को सम्मिलित किया गया है, परन्तु उस क्रम में नहीं जिस क्रम में वे निर्गमन 20 में दिखाई देती हैं। तथापि, व्यवस्थाविवरण में आज्ञाओं को उसी क्रम में रखा गया है जैसे व्यवस्थाविवरण 5 में है। उन आज्ञाओं का निर्देशात्मक रूप अध्याय 5 में आता है, जबकि वर्णनात्मक रूप अध्याय 6-26 में आता है। यह व्याख्या आज्ञाओं के आवश्यक बल को विस्तृत करती है, परन्तु यह उनमें से प्रत्येक के प्रक्षेप-पथ (trajectory) को भी दर्शाती है। इसका तात्पर्य यह है कि कई आज्ञाओं के निहितार्थ उनके पहले पढ़ने से प्रकट होने की तुलना में व्यापक हैं। उदाहरण के लिए, पाँचवीं आज्ञा न केवल माता-पिता/बच्चे के सम्बन्ध से सम्बन्धित है, वरन् इस्राएल के भीतर सभी अधिकार संरचनाओं से भी सम्बन्धित है।

3. व्यवस्थाविवरण की पुस्तक भूमि (देश) के विचार पर बल देती है।

पंचग्रन्थ की पुस्तकों में से, पहली तीन पुस्तकें (उत्पत्ति, निर्गमन और लैव्यवस्था) परमेश्वर और उसके लोगों के बीच सम्बन्धों के पहलू के विषय में हैं, जबकि गिनती और व्यवस्थाविवरण भूमि के पहलू पर ध्यान केन्द्रित करती हैं। कुलपिता की अन्य प्रतिज्ञाएँ व्यवस्थाविवरण में प्रतिध्वनित होती हैं, जैसे कि एक बड़े परिवार की प्रतिज्ञा (व्यवस्थाविवरण 1:10; 10:22; 28:62), फिर भी “देश” का विचार प्रबल है। यह परमेश्वर का दान था, जिसे उन्होंने वास्तव में अधिकार करने से बहुत पहले उन्हें देने की शपथ ली थी। उसके लोगों को भूमि में “विश्राम” मिलना था (व्यवस्थाविवरण 3:20; 12:9-10; 25:19) और उसके द्वारा प्रदान किए जाने वाली आशीषों का आनन्द लेना था। विश्राम का यह विचार भजन 95 में से लिया गया है और इब्रानियों 3:7-4:13 में इसे और विकसित किया गया है। जिस प्रकार कनान में विश्राम इस्राएल से आगे था, उसी प्रकार विश्राम मसीही विश्वासियों की प्रतीक्षा कर रहा है। यह उनके द्वारा खोजे गए “स्वर्गीय देश” के समान है, जो आने वाला स्थायी नगर है (इब्रानियों 11:16; 13:14)। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि मसीही भजनों ने यरदन को पार करके प्रतिज्ञा के देश में जाने के विषयों को मृत्यु और परमेश्वर के स्वर्गीय विश्राम में प्रवेश के प्रतीक के रूप में उठाया है।

व्यवस्थाविवरण पंचग्रन्थ का समापन करता है। उस समय तक कुलपिताओं से की गईं प्रतिज्ञाएँ आँशिक रूप से पूर्ण हो चुकी थीं। कनान में प्रवेश के साथ, भूमि का विषय साकार हुआ, जबकि अन्य प्रतिज्ञाएँ, जैसे कि राजत्व और नबूवत से सम्बन्धित, अच्छी भूमि, दूध और मधु से बहने वाली भूमि पर अधिकार करने के बाद पूर्ण हुईं (व्यवस्थाविवरण 31:20)।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

ऐलन हरमन
ऐलन हरमन
ऐलन हरमन मेल्बर्न, ऑस्ट्रेलिया में प्रस्बिटेरियन थियोलॉजिकल कॉलेज में पुराने नियम के प्राध्यापक हैं, जहाँ उन्होंने पहले प्रधानाचार्य के रूप में सेवा की। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें प्रिपैरिंग फॉर मिनिस्ट्री सम्मिलित है।