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1 और 2 शमूएल की पुस्तकों के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए

1 और 2 शमूएल की पुस्तकें उन सौ वर्ष की अवधि की घटनाओं का वर्णन करती हैं, जो न्यायिओं के समय के अन्त और दाऊद के द्वारा राजतन्त्र की स्थापना को चिन्हित करते हैं। 1 और 2 शमूएल की पुस्तकों में सीखने के लिए बहुत कुछ है और हम इनमें से तीन सत्यों को नीचे देखेंगे।

1. परमेश्वर की मनसा सदा से इस्राएल को एक राजा देने की थी।

न्यायिओं की पुस्तक का अन्तिम भाग इस पुनरावर्ती के साथ समाप्त होता है: “इस्राएल में कोई राजा नहीं था” (न्यायिओं 17:6; 18:1; 19:1; 21:25)। यह स्थिति अन्तिम न्यायी शमूएल (1 शमूएल 7:15-17) के समय तक अनवरत चलेगी। उसके कार्यकाल के अन्त के निकट लोगों के प्राचीन आये और उससे माँग की कि वह उन्हें एक राजा दें। यह निवेदन अपने आप में बुरा नहीं था, वरन् दोष इसके पीछे की इच्छा में था। वे उन पर राज्य करने के लिए एक राजा चाहते थे जो अन्य देशों के राजाओं के समान हो (1 शमूएल 8:4-5, 19-20; 10:19)। यह निवेदन न केवल शमूएल की, वरन् परमेश्वर और उसके राज्य की भी मौन अस्वीकृति थी (1 शमूएल 8:7-8)।

मानव राजत्व का विचार इस्राएली धर्म के लिए अपरिचित नहीं था। कुलपिता (patriarch) याकूब ने नबूवत की थी कि यहूदा एक राजकीय गोत्र होगी (उत्पत्ति 49:8-12)। व्यवस्थाविवरण 17:14-20 विशेष रूप से बताता है कि देश में इस्राएल के राजा की क्या विशेषता होगी। प्रश्न यह नहीं है कि क्या एक पार्थिव (earthly) राजा वांछनीय (desirable) था यी नहीं, वरन् प्रश्न यह है कि वह किस प्रकार का राजा होगा। क्या वह अन्य राष्ट्रों के राजाओं के समान राजा होगा (उस प्रकार का राजा जिसकी माँग प्राचीनों ने की थी), या क्या वह परमेश्वर के हृदय के अनुरूप व्यक्ति होगा?

शाऊल को इस्राएल के पहले राजा के रूप में अभिषिक्त किया गया था, परन्तु उसने परमेश्वर की आज्ञाओं के विरुद्ध विद्रोह किया (1 शमूएल 10:8; 1 शमूएल 13:6-10; 15:1-9)। वह परमेश्वर के हृदय के अनुरूप व्यक्ति नहीं था। परमेश्वर ने शाऊल को राजा के रूप में अस्वीकार कर दिया (1 शमूएल 13:13-14; 15:10-11) और उसके स्थान पर दूसरे को स्थापित करेगा।

2. परमेश्वर ने दाऊद को राजा बनने के लिए चुना और उससे अनन्त राजवंश (eternal dynasty) की प्रतिज्ञा की।

परमेश्वर ने यहूदा के गोत्र के एक युवा चरवाहे लड़के दाऊद को शाऊल का स्थान लेने के लिए चुना। जब शाऊल राज्य कर रहा था तब ही शमूएल ने दाऊद का अभिषेक कर दिया (1 शमूएल 16:6-13)। कई कठिन वर्षों के बाद दाऊद अन्ततः सिंहासन पर बैठा (2 शमूएल 5:1-5)। उसने यरूशलेम पर विजय प्राप्त की और शीघ्र ही इसे अपनी राजधानी के रूप में स्थापित कर लिया (2 शमूएल 5:6-10)।

दाऊद ने परमेश्वर के लिए एक भवन बनाने की इच्छा की (2 शमूएल 7:1-3)। वाचा का सन्दूक ओबेदेदोम के घर से इस्राएल लौट आया था (2 शमूएल 6:12-15)। दाऊद को अपने लिए एक भवन बनाने की अनुमति देने के स्थान पर परमेश्वर ने कहा कि वह दाऊद के लिए एक भवन स्थापित करेगा। वह दाऊद से एक राजवंश बनाएगा (2 शमूएल 7:8-16)। अब्राहम की वाचा का स्मरण दिलाने वाली भाषा में, परमेश्वर दाऊद के नाम को महान् करेगा (2 शमूएल 7:9; उत्पत्ति 12:2) और लोगों को देश में विश्राम मिलेगा (2 शमूएल 7:10-11; उत्पत्ति 15:12-21; निर्गमन 3:8)।

राजवंश की प्रतिज्ञा एक राजवंशी (royal) पुत्र में पूरी होती है जिसे प्रभु खड़ा करेगा (2 शमूएल 7:12)। परमेश्वर ने कहा, “मैं उसका पिता ठहरूंगा, और वह मेरा पुत्र होगा” (2 शमूएल 7:14)। पुत्रत्व की भाषा हमें निर्गमन 4:22-23 का स्मरण कराती है, जिसमें इस्राएल को परमेश्वर का पुत्र कहा गया है, परन्तु यहाँ यह बिम्ब एक व्यक्ति, दाऊद के पुत्र पर लागू होता है। दाऊद का पुत्र न केवल इस्राएल के लोगों पर, वरन् सभी जातियों (nations) पर भी राज्य करेगा (उत्पत्ति 3:15; उत्पत्ति 12:1-3; भजन 2; 110)। परमेश्वर और दाऊद के पुत्र के बीच यह विशेष सम्बन्ध स्पष्ट करता है कि क्यों दाऊद का पुत्र ही परमेश्वर का भवन बनाएगा, न कि स्वयं दाऊद (2 शमूएल 7:13)।

3. परमेश्वर ने यरूशलेम को उस स्थान के रूप में चुना जहाँ वह अपने लोगों के लिए प्रतिस्थापन (substitute) प्रदान करेगा।

दाऊद के राज्य के अन्त में उसने लोगों की जनगणना की (2 शमूएल 24:1-9)। इससे प्रभु का क्रोध भड़क उठा। दाऊद जानता था कि यह पाप था और उसने इसका अंगीकार कर लिया (पद 10)। तथापि उसके पाप का परिणाम एक मरी थी जिसने तीन दिनों में सत्तर हजार लोगों को मार डाला।

जैसे ही स्वर्गदूत ने यरूशलेम पर नाश करने के लिए हाथ बढ़ाया, परमेश्वर ने दया दिखाई और स्वर्गदूत को रोक दिया (पद 16)। स्वर्गदूत “यबूसी अरौना के खलिहान के पास” रुका। परमेश्वर ने दाऊद को वहाँ एक वेदी बनाने का निर्देश दिया (पद 18)। दाऊद गया, उसने संपत्ति मोल लिया, वेदी बनाई, और बलिदान चढ़ाया (पद 19-25)। इस घटना की अन्तिम पंक्ति इन पुस्तकों को समाप्त करती है: “इस प्रकार यहोवा ने देश के लिए की गई विनती सुन ली, तब इस्राएल पर से महामारी दूर हो गई” (2 शमूएल 24:25)। प्रायश्चित किया जा चुका था, परन्तु यहाँ यह अन्तिम बार किया गया प्रायश्चित नहीं था।

अरौना के खलिहान का एक प्रसिद्द इतिहास है। इसका दूसरा नाम है: मोरिय्याह का पहाड़। मोरिय्याह का पहाड़ वह स्थान था जहाँ परमेश्वर ने अब्राहम के विश्वास की परीक्षा ली थी (उत्पत्ति 22:1-14; इब्रानियों 11:17-19)। अब्राहम ने इसहाक को बलिदान के रूप में चढ़ाने की तैयारी कर ली थी, परन्तु परमेश्वर ने उसे रोक दिया। उसने प्रतिस्थापन (substitute) के रूप में एक मेढ़ा उपलब्ध कराया। मोरिय्याह का पहाड़ वह स्थान भी है जहाँ सुलैमान बाद में मन्दिर बनवाने वाला था (2 इतिहास 3:1)। इस्राएल अपनी भेंटें और बलिदान यहाँ लाया करेगा; यहाँ एक प्रतिस्थापन (substitute) दूसरे के स्थान पर मरेगा।

राजा द्वारा बलिदान किया गया अन्तिम प्रतिस्थापन सुलैमान के मन्दिर के सैकड़ों वर्ष बाद आएगा। वहाँ यरूशलेम में एक राजा परमेश्वर के सामने खड़ा होकर अपने लोगों के लिए विनती करेगा। उसके पास स्वयं के अतिरिक्त देने के लिए कोई अन्य बलिदान नहीं होगा, परन्तु उसकी विनती सुनी जाएगी। वह दाऊद का पुत्र और परमेश्वर का पुत्र, प्रभु यीशु ख्रीष्ट है (मत्ती 1:1-16; रोमियों 1:1-4)।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

रोलैंड मैथ्यूज़
रोलैंड मैथ्यूज़
रेवरेंड रोलैंड मैथ्यूज़ ड्रेपर, वर्जीनिया में ड्रेपर वैली प्रेस्बिटेरियन कलीसिया में वरिष्ठ पास्टर हैं।