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1 अक्टूबर 20241 और 2 तीमुथियुस के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए
पहला और 2 तीमुथियुस, और साथ में तीतुस भी, पौलुस के “पास्टरीय पत्र” के रूप में जाने जाते हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि प्रेरित के अन्य पत्रों के विपरीत—जो, फिलेमोन के सिवाय, मण्डलियों को लिखे गए थे—ये पत्र स्थानीय कलीसियाओं के पास्टरों को सेवकाई में उनके कर्तव्यों के विषय में लिखे गए थे। जब पौलुस ने ये पत्र लिखे तीमुथियुस इफिसुस के कलीसिया का पास्टर था। फिर भी, पवित्र आत्मा के निर्देशन में, पौलुस हमारे लिए भी लिखता है। ये पत्र पास्टरों और विश्वीसी दोनों के लिए प्रोत्साहन और उपदेश से भरे हुए हैं। यहाँ तीन बातें हैं जो हमें पहला और दूसरा तीमुथियुस के विषय में जाननी चाहिए।
- खरी शिक्षा महत्व रखती है।
इफिसुस एक धनी और सांसारिक नगर था जो जादू-टोने और अरतिमिस देवी की पूजा के लिए जाना जाता था। परन्तु, मूर्तिपूजा और भौतिकवाद ही, इफिसुस की कलीसिया के लिए खतरे नहीं थे। जब पौलुस ने इन पत्रों को लिखा, तो नगर में मसीहयत के विषय में झूठी शिक्षाएँ आक्रामक रूप से बढ़ रही थीं।
आज भी बातें अलग नहीं हैं। तीमुथियुस के जैसे, हम भी “अन्तिम दिनों” में हैं (2 तीमुथियुस 3:1; 1 तीमुथियुस 4:1 भी देखें), जब लोग “स्वार्थी, धन के लोभी” (2 तीमुथियुस 3:2; 1 तीमुथियुस 6:10 भी देखें) और “परमेश्वर से प्रेम करने की अपेक्षा सुख-विलास से प्रेम करने वाले” हैं (2 तीमुथियुस 3:4)। हम ऐसे समय में रहते हैं जब लोग “खरी शिक्षा को सहन नहीं करेंगे, परन्तु अपने कानों की खुजलाहट के कारण . . . अपनी अभिलाषाओं के अनुसार ही अपने लिए बहुत से गुरु बटोर लेंगे” (2 तीमुथियुस 4:3; 1 तीमुथियुस 1:10 भी देखें)। हमें कलीसिया में ऐसे अगुवों की आवश्यक्ता है जो प्रेरितों द्वारा दिए गए और कलीसिया के विश्वास वचन और पाप-अंगीकार में सहयुक्त “खरी बातों में अपना आदर्श बनाए रखे” (2 तीमुथियुस 1:13)। हमें ऐसे सेवकों की आवश्यक्ता है जो “वचन का प्रचार करेंगे . . . समय और असमय” (2 तीमुथियुस 4:2; 1 तीमुथियुस 4:13 भी देखें), जो “सदा संयमी रहेंगे, कष्ट सहेंगे,” और “सुसमाचार प्रचारक का कार्य करेंगे” (2 तीमुथियुस 4:5)। ये पत्र उस संसार का वर्णन करते हैं जिसमें अब कलीसिया रहती है, एक ऐसा संसार जो धर्मत्याग और परमेश्वर-रहित है। यदि सुसमाचार और खरी शिक्षा को अगली पीढ़ी में आगे बढ़ाना है, तो कलीसिया को—विशेषकर वचन के सेवकों और कलीसिया के अगूवों को—1 और 2 तीमुथियुस में पाए जाने वाले उपदेशों और चेतावनियों पर ध्यान देना चाहिए। - साहस यीशु ख्रीष्ट में पाया जाता है।
ऐसे संसार में जो मसीही विश्वास का विरोधी है, यह कहने के लिए साहस की आवश्यकता है कि ख्रीष्ट ही स्वर्ग जाने का एकमात्र मार्ग है। पवित्रशास्त्र के अधिकार पर विश्वास करने और सुसमाचार के प्रति निडर होने के लिए साहस की आवश्यकता होती है। मसीही जीवन के लिए साहस आवश्यक है। यदि आप कभी सुसमाचार के विरोधियों से भयभीत हुए हैं या कठिन परिस्थितियों से भयभीत हुए हैं, तो आप अकेले नहीं हैं। भय और निराशा सभी मसीही के लिए सामान्य शत्रु हैं, जिसमें इस पत्र के मूल प्राप्तकर्ता, तीमुथियुस भी सम्मिलित हैं।
यद्यपि वह पौलुस का सबसे विश्वासयोग्य और भरोसेमन्द साथी था, तीमुथियुस युवा, डरपोक, प्रायः अस्वस्थ रहने वाला जन था और उसे प्रोत्साहन की आवश्यक्ता थी। इफिसुस के कलीसिया में उसे ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा जिससे उसे लगा कि यह उसकी क्षमता से अधिक कठिन है । झूठे शिक्षक सुसमाचार पर आक्रमण कर रहे थे। कलीसिया में कुछ लोग पास्टर के रूप में उसके अधिकार पर प्रश्न उठा रहे थे। इससे भी अधिक, सम्भवतः वह पौलुस के कारावास और उसकी गिरती प्रतिष्ठा से लज्जित था। उसे सच्चाई के लिए खड़े होने और निष्ठा से परमेश्वर के वचन का प्रचार करने की आवश्यक्ता थी, परन्तु वह दुःख उठाने से डरता था। उसका उत्साह कम हो रहा था। पौलुस ने इस युवा पास्टर को शीघ्र ही परमेश्वर के वरदान को प्रज्जवलित करने के लिए स्मरण दिलाना आवश्यक समझा (2 तीमुथियुस 1:6; 1 तीमुथियुस 4:14 भी देखें), और यह कि “परमेश्वर ने हमें भीरुता का नहीं, परन्तु सामर्थ्य, प्रेम और संयम का आत्मा दिया है” (2 तीमुथियुस 1:7)। केवल ख्रीष्ट में परमेश्वर के अनुग्रह से ही तीमुथियुस सुसमाचार के लिए कष्ट सहने का साहस प्राप्त कर सकता था (2 तीमुथियुस 1:8–9; 2:3)।
सम्भव है कि आप भी तीमुथियुस के जैसा अनुभव करते हों। सम्भव है कि आप मनुष्यों से जितना डरना चाहिए उससे कहीं अधिक डरते हों। सम्भव है कि आप सुसमाचार के लिए कष्ट सहने से डरते हों। पहला और दूसरा तीमुथियुस हमें स्मरण दिलाता है कि हमें अपने आप में नहीं, वरन् “ख्रीष्ट यीशु में जो अनुग्रह है उससे” साहस होना चाहिए (2 तीमुथियुस 2:1; 1 तीमुथियुस 1:12 भी देखें)। और वास्तव में वे सब “जो ख्रीष्ट यीशु में भक्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, सताए जाएँगे” (2 तीमुथियुस 3:12), यह भी सच है कि पवित्र आत्मा ने हमें तैयार किया है कि हम अपनी दौड़ को पूरा कर सकें और भय के होते हुए भी विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़ सकें (1 तीमुथियुस 6:12; 2 तीमुथियुस 4:7)। - सामर्थ्य वचन में पाया जाता है।
तीमुथियुस को झूठे शिक्षकों से सुसमाचार की रक्षा करनी चाहिए जिससे कि इसे अगली पीढ़ी तक पहुँचाया जा सके (1 तीमुथियुस 1:3–11; 2 तीमुथियुस 1:13–14; 2:16–18), सुसमाचार को “विश्वासयोग्य मनुष्यों को” सौंपना चाहिए “जो दूसरों को भी सिखाने के योग्य हों” (2 तीमुथियुस 2:2; 1 तीमुथियुस 3:1–7 भी देखें), और अपने गुरु के जैसे सुसमाचार के लिए कष्ट सहने के लिए तैयार रहना चाहिए (2 तीमुथियुस 1:8, 12; 2:3, 9; 3:12; 4:5)। परन्तु, सबसे बढ़कर, उसे सुसमाचार का प्रचार करना चाहिए। अनुभवी प्रेरित इस प्रकार से अपने युवा सहयोगी को एक अन्तिम कार्यभार देता है कि “वचन का प्रचार कर; समय और असमय तैयार रह,” “सब बातों में संयमी रह, कष्ट उठा, सुसमाचार प्रचारक का काम कर, [और अपनी] सेवकाई को पूरी कर” (2 तीमुथियुस 4:2, 5)। लोगों को परिवर्तन करने और निर्माण करने की शक्ति परमेश्वर के वचन में निहित है (2 तीमु. 3:16-17)। इस कारण से, पास्टर को स्वंय पर और अपनी शिक्षा पर कड़ी देख-रेख रखनी चाहिए (1 तीमु. 4:16)।
परमेश्वर तीमुथियुस जैसे असंख्य लोगों को खड़ा करके कलीसिया और संसार को आशीष दे, जिससे कि आने वाली पीढ़ियाँ सुसमाचार की खोज कर सकें—और पुनः खोज कर सकें—और उसे अपने दिनों में लागू कर सकें।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।