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30 सितम्बर 2024स्वर्गीय पुरस्कार
कॉफी घर, होटल, एयरलाइंस कम्पनियाँ, और यहाँ तक कि पिज़्ज़ा कम्पनियाँ भी। ऐसा प्रतीत होता है कि लगभग सभी कम्पनी के पास किसी न किसी प्रकार का पुरस्कार कार्यक्रम (rewards program) है। जितना अधिक आप खाते हैं, पीते हैं, उड़ते हैं या रात बिताते हैं, उतना ही अधिक आपको मिलता है। पुरस्कार कार्यक्रम इसलिए समझ में आते हैं क्योंकि वे संसार के कार्य करने की पद्धति को दर्शाते हैं। जब हम कार्य करते हैं, तब हम वेतन अर्जित करते हैं। हमारी उपलब्धियाँ प्रायः हमें प्रशंसा और लाभ दिलाती हैं।
इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि जब नए नियम के लेखक परमेश्वर के राज्य में स्वर्गीय पुरस्कारों के विषय में बात करते हैं, तो हम उनके सटीक अर्थ को समझते हैं। यदि हम मसीही जीवन में कठिन परिश्रम करते हैं, तो हम परमेश्वर से आशीष अर्जित करेंगे। क्या यह बात सत्य नहीं है? असत्य। पुरस्कारों पर बाइबल की शिक्षा एक और उदाहरण है कि परमेश्वर कैसे हमारी अपेक्षाओं और धारणाओं को उलट देता है।
यह एक अच्छा कारण है कि हमें इस बात पर ध्यान से सोचना चाहिए कि पवित्रशास्त्र स्वर्गीय पुरस्कारों के विषय में क्या कहता है (और क्या नहीं कहता है)। हम इस बाइबलीय शिक्षा के विषय में पाँच रीतियों से सोच सकते हैं।
सबसे पहले, ऐसे स्वर्गीय पुरस्कार हैं, जो इस जीवन में विश्वासी की आज्ञाकारिता और सेवा से जुड़े हैं। पहाड़ी उपदेश में यीशु की शिक्षा बार-बार स्वर्गीय पुरस्कारों की बात करती है (मत्ती 5:12, 46; 6:1, 2, 4, 5, 6, 16, 18)। पुरस्कार केवल उन लोगों के लिए हैं जो ख्रीष्ट पर भरोसा करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं, यह अविश्वासियों के लिए नहीं। ये पुरस्कार वर्तमान में नहीं किन्तु भविष्य में दिए जाएँगे, जब विश्वासी इस जीवन को छोड़ता है (देखें 16:27)। पुरस्कार उन अच्छे कार्यों से सम्बन्धित हैं जो हम इस जीवन में करते हैं, जिसमें ऐसे छोटे और महत्वहीन कार्य सम्मिलित हैं जैसे “इन छोटों में से एक को एक कटोरा ठण्डा पानी देना क्योंकि वह एक शिष्य है” (10:42)।
प्रेरित भी मसीही जीवन में पुरस्कारों के तथ्य और महत्व पर कम बल नहीं देते हैं। सेवकों और प्राचीनों को सम्बोधित करते हुए, पौलुस कहता है कि अन्तिम दिन सेवकाई के कार्यों का छानबीन और मूल्यांकन का समय होगा। “वह अग्नि ही प्रत्येक मनुष्य के कार्य को परखेगी कि प्रत्येक ने कैसा काम किया है। यदि किसी मनुष्य का निर्मित कार्य जो उसने किया है स्थिर रहेगा तो उसे प्रतिफल मिलेगा (1 कुरिन्थियों 3:13–14)। सभी विश्वासियों को सम्बोधित करते हुए, पौलुस “धार्मिकता के मुकुट” के विषय में बात करता है, “जिसे प्रभु, जो धर्मी और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा, और मुझे ही नहीं, वरन् उन सभी को भी जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं” (2 तीमु. 4:8)। पौलुस “दासों” को ख्रीष्ट के प्रति विश्वासयोग्य आज्ञाकारिता में रहने के लिए प्रोत्साहित करता है क्योंकि वे जानते हैं कि “प्रभु से वे प्रतिफल के रूप में मीरास प्राप्त करेंगे” (कुलुस्सियों 3:22, 24)।
दूसरा, स्वर्गीय पुरस्कारों में भिन्नताएँ हैं, और कुछ विश्वासी को अन्य विश्वासियों की अपेक्षा अधिक या कम प्राप्त करेंगे। यीशु ने मीना के अपने दृष्टान्त में इस बिन्दु के विषय में बताया (लूका 19:11-27)। इस दृष्टान्त में, एक राजा अपने सेवकों को एक-एक मीना देता है। कुछ समय के पश्चात, प्रत्येक सेवक राजा के सामने उपस्थित होता है और उस मीना के साथ उसने जो कुछ भी किया है उसका लेखा-जोखा देता है। पहले सेवक ने अपनी एक मीना से दस मीना अर्जित कीं, और दूसरे सेवक ने अपनी एक मीना से पाँच मीना अर्जित कीं। राजा पहले सेवक को “दस नगरों पर अधिकार” और दूसरे सेवक को “पाँच नगरों” पर अधिकार दिया। इन स्वर्गीय पुरस्कारों में असमानता है। कुछ को दूसरों की अपेक्षा अधिक प्राप्त होंगे। किन्तु यदि पुरस्कार असमान रूप से दिए जाते हैं, तो उन्हें यादृच्छिक रूप से नियुक्त नहीं किया जाता है। स्वर्ग में पुरस्कार पृथ्वी पर आज्ञाकारिता के अनुपात में होते हैं (परन्तु उस पर आधारित नहीं)—जिस सेवक ने दस मीना अर्जित कीं, उसे दस नगरों पर अधिकार मिलता है, और जिस सेवक ने पाँच मीना अर्जित कीं, उसे पाँच नगरों पर अधिकार मिलता है। निवेश का प्रतिफल उससे कहीं अधिक होता है जो अर्जित किया गया है, इसलिए वास्तव में जो हमने प्राप्त किया है उसके लिए हमाारी पृथ्वी पर की आज्ञाकारिता के तुल्य नहीं है। यह पुस्कार उस अर्जित की जाने वाली योग्यता के अर्थ में आज्ञाकारिता पर आधारित नहीं है।
तीसरा, प्रत्येक विश्वासी एक ही आधार पर धर्मी ठहराया जाता है, अर्थात् केवल ख्रीष्ट की अभ्यारोपित धार्मिकता के आधार पर। पवित्रशास्त्र शिक्षा देता है कि “कोई भी धर्मी नहीं है, एक भी नहीं,” कि “पाप की मज़दूरी मृत्यु है” (रोमियों 3:10; 6:23)। जीवन और स्वर्ग अर्जित करने से दूर, मनुष्यों ने मृत्यु और नरक अर्जित किया है। स्वभाव से, हम आदम के पहले पाप (अपने सभी पापों के साथ) के दोषी हैं। इसलिए हम इस संसार में दोषी ठहराए गए, न्याय के योग्य जन्म लेते हैं। पापी जन की आशा स्वयं में नहीं किन्तु ख्रीष्ट में है। जैसा कि रोमियों 5:12-21 में पौलुस हमें दिखाता है, ख्रीष्ट दूसरा आदम है—आदम से आया किन्तु “आदम में” नहीं। वह सम्पूर्ण रीति से धर्मी और आज्ञाकारी है और इसलिए वह जीवन के योग्य ठहरा। क्रूस पर, उसने अपने लोगों के पापों के लिए सम्पूर्ण मूल्य चुकाया। ख्रीष्ट की आज्ञाकारिता और मृत्यु वह “धार्मिकता” है जो ख्रीष्ट पर भरोसा करने वाले प्रत्येक पापी को “दान” के रूप में मिलती है (पद 17)। यह धार्मिकता पापी के लिए उसी क्षण गिनी जाती है जब वह पापी विश्वास करता है (पद 19)। केवल ख्रीष्ट की धार्मिकता के आधार पर, पापी धर्मी गिने जाते हैं या धर्मी ठहरा दिये जाते हैं (4:4–5)। धर्मीकरण विश्वास के द्वारा होता है, किन्तु विश्वास के आधार पर नहीं, और यहाँ तक कि विश्वास भी अयोग्य पापी के लिए परमेश्वर का दान है (इफिसियों 2:8)। इसलिए, प्रत्येक मसीही के पास स्वर्ग के लिए ठीक वही अधिकार है—ख्रीष्ट की योग्यता, जो केवल विश्वास के द्वारा दे दिया जाता है और प्राप्त किया जाता है। किसी भी व्यक्ति को परमेश्वर के सामने घमण्ड करने का कोई अधिकार नहीं है। हमारा घमण्ड केवल प्रभु में है (1 कुरिन्थियों 1:29, 31)।
चौथा, धर्मीकरण और स्वर्गीय पुरस्कार विरोधाभास या तनाव में नहीं हैं। पहली बार में, ऐसा लग सकता है कि वे एक दूसरे के विपरीत हैं। धर्मीकरण केवल ख्रीष्ट के कार्य पर आधारित है, किन्तु स्वर्गीय पुरस्कार हमारे कार्यों से जुड़े हैं। धर्मीकरण प्रत्येक विश्वासी पापी को समान बात उपलब्ध कराता है, किन्तु स्वर्गीय पुरस्कार विश्वासियों को एक दूसरे से स्पष्ट रूप से अलग बना देते हैं। निकटता से परिक्षण करने पर, बाइबल की शिक्षा की इन दो आयामों के मध्य कोई विरोधाभास या तनाव नहीं है। सबसे पहले, हम इसे पुनः कहते हैं कि केवल ख्रीष्ट की योग्यता ही किसी भी पापी को स्वर्ग में प्रवेश कराती है। जब हम महिमा में होंगे, तो हमारा वहाँ होने का एकमात्र अधिकार ख्रीष्ट के कार्य से आता है जो अपनी मृत्यु और जीवन से हमारे लिए किया। हम उस चुंगी लेने वाले के समान प्रार्थना करते हैं—“हे परमेश्वर, मुझ पापी पर दया कर!” (लूका 18:13)—जब तक हम पृथ्वी पर अपनी अन्तिम साँस नहीं ले लेते। फिर, वे पुरस्कार जो परमेश्वर देता है वे तो अनुग्रह के उपहार हैं। यीशु का मीना का दृष्टान्त इस वास्तविकता की साक्षी देता है। राजा के सेवकों ने जो किया है, उसके अनुपात में उन्हें जो पुरस्कार दिए गए हैं, वे पूर्णतः भी उचित नहीं हैं—दस मीना की छोटी सी राशि के लिए दस नगर। हम किसी भी प्रकार से अपने स्वर्गीय पुरस्कारों के योग्य नहीं हैं और न ही हम उन्हें अर्जित कर सकते हैं।
फिर, हम धर्मीकरण और स्वर्गीय पुरस्कारों को एक साथ कैसे रख सकते हैं? धर्मीकरण पापी को स्वतन्त्र रूप से अनन्त जीवन का अधिकार देता है (रोमियों 5:17)। अनन्त जीवन क्या है? यह ख्रीष्ट में परमेश्वर का ज्ञान (यूहन्ना 17:3) और हमारे परमेश्वर के समान परमेश्वर की उपस्थिति में निवास करना है (प्रकाशितवाक्य 21:3)। पुरस्कार इस तथ्य को दर्शाते हैं कि स्वर्ग में विश्वासी समान स्तर में उस जीवन का अनुभव नहीं करेंगे। कुछ लोग दूसरों की तुलना में जीवन का अधिर भरपूरी से आनन्द लेंगे। ईश्वरविज्ञानियों ने इस बिन्दु को स्पष्ट करने के लिए बर्तनों या पात्र के उदाहरण का उपयोग किया है। प्रत्येक विश्वासी एक खाली बर्तन के समान है जो स्वर्ग में सम्पूर्णता से भर जाएगा। किसी को भी घटी या असन्तोष का अनुभव नहीं होगा। किन्तु स्वर्ग में प्रत्येक विश्वासी एक अलग आकार का बर्तन होगा, जिसका आकार पृथ्वी पर उस विश्वासी की आज्ञाकारिता के अनुपात में होगा। किसी में एक लीटर है, किसी में पाँच लीटर और किसी में एक सौ पचास। क्योंकि स्वर्ग एक सिद्ध प्रेम का संसार है, और प्रेम ईर्ष्या नहीं करता (1 कुरिं. 13:4), हम केवल उन विश्वासियों में मग्न होंगे जो हमसे “बड़े बर्तन” हैं। प्रत्येक भरपूर होगा, कुछ लोग दूसरों की अपेक्षा में स्वर्गीय जीवन का अधिक आनन्द लेंगे, और कोई भी ईर्ष्या या उलाहना नहीं करेगा।
पाँचवाँ, स्वर्गीय पुरस्कार पृथ्वी पर मसीही जीवन में महत्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। पवित्रशास्त्र व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए स्वर्गीय पुरस्कारों के अस्तित्व को प्रकट करता है। सबसे पहले, स्वर्गीय पुरस्कारों को हमें यहाँ और अभी परमेश्वर की आज्ञा मानने के लिए प्रेरित करना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि यीशु हमें बताता है कि परमेश्वर शिष्यों को उन कार्यों के लिए पुरस्कार देने में प्रसन्न होता है जिन्हें संसार महत्वहीन मानता है (मत्ती 10:42; तुलना करें कुलुस्सियों 3:24) या उस आज्ञाकारिता के लिए जो इस जीवन में प्रतिरोध और उत्पीड़न का सामना करते हैं (मत्ती 5:11-12)। यीशु हमें उन छोटी-छोटी और कठिन बातों को करने के लिए प्रेरित कर रहा है जो मसीही जीवन का बहुत बड़ा भाग हैं। पुरस्कार हमें पवित्रीकरण और पवित्रता के उस जीवन का अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं जिसे प्रत्येक मसीही को करना चाहिए (इब्रानियों 12:14)। पुरस्कार मसीही की सबसे गहरी इच्छा को प्रभावित करते हैं—यीशु ख्रीष्ट में परमेश्वर को जानना। पुरस्कार हमें स्वर्ग की वास्तविकता और धन्यता प्रदान करते हैं, विशेषकर जब पृथ्वी पर यह क्षणभंगुर जीवन कठिन और कष्टदायी होता है।
किन्तु मसीही के लिए पुरस्कार जो सबसे महत्वपूर्ण कार्य करते हैं, वह हमें हमारे परमेश्वर के चरित्र को स्मरण दिलाना। शैतान के मूल झूठों में से एक यह है कि परमेश्वर भला नहीं है और वह हमारी सच्ची भलाई और आनन्द के लिए जो कुछ भी है, उसे नहीं चाहता (उत्पत्ति 3:1-7 देखें)। पवित्रशास्त्र हमें परमेश्वर के विषय के सत्य को बार-बार स्मरण दिलाता है—वह भला है, और वह जो कुछ भी करता है वह भला करता है (भजन 119:68)। हमारे अभिलेक के अनुसार हम परमेश्वर से केवल मृत्यु और दण्ड के योग्य हैं। अपनी अनन्त दया से, पिता ने हमें अपने पुत्र से मिलन कराया है। ख्रीष्ट ने हमारे अभिलेख को ले लिया है और इसके स्थान पर मूल्य चुका दिया है, और परमेश्वर ने हमें ख्रीष्ट का अभिलेख और उसकी योग्यताऐं के अनुसार का जीवन दिया है (2 कुरन्थियों 5:21)। हमारा धर्मीकरण परमेश्वर की भलाई और अनुग्रह की साक्षी देता है। इसके आगे, ख्रीष्ट में परमेश्वर हमारे दोषपूर्ण, अपूर्ण, पाप-रंजित आज्ञाकारिता को स्वीकार करने में प्रसन्न होता है। वह जो पुरस्कार देता है, वह हमारे द्वारा किए गए कार्यों के अनुपात से इतना अधिक है कि यह स्पष्ट है कि वे अनुग्रह के पुरस्कार हैं। परमेश्वर चाहता है कि हम उसे वह आज्ञाकारिता दें जिसके वह योग्य है, इसलिए वह हमें इस जीवन में उसकी सेवा करने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करने के लिए ये पुरस्कार देता है। हमारा पवित्रीकरण परमेश्वर की भलाई और अनुग्रह की साक्षी देता है।
मैं इस जीवन में कम्पनियों के पुरस्कार कार्यक्रमों में भाग लेना बनाए रखूँगा। मैं जो कुछ भी क्रय करता हूँ और करता हूँ उसके लिए मुझे लाभ मिलना अच्छा लगता है। किन्तु मैं बहुत आभारी हूँ कि परमेश्वर का राज्य और अनन्त जीवन इस प्रकार से कार्य नहीं करता है। केवल ख्रीष्ट की योग्यता पर भरोसा करना और अब और भी अधिक प्रयास करना कि परमेश्वर ने मुझे पृथ्वी पर जो जीवन सेंतमेंत में दिया है, कि उसकी महिमा में आनन्द लेना —यह एक ऐसा “पुरस्कार” कार्यक्रम है जिसे केवल परमेश्वर ही बना सकता था।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।