किसी कलीसिया को कब छोड़ना है
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28 सितम्बर 2024आत्माओं को जीतने वाला बुद्धिमान है
जब हम सुसमाचार प्रचार के विषय में विचार करना आरम्भ करते हैं, तो सफल होने के लिए कई बातें हैं जिन पर हमें विश्वास करना चाहिए। प्रथम बात है कि, हमें अलौकिक बातों पर विश्वास रखना चाहिए। हम एक अदृश्य संसार की उपस्थिति में रहते हैं। मसीहियत एक अलौकिक धर्म है। आत्माओं को जीतने का कार्य एक अलौकिक कार्य है। आत्मा जीतना पवित्र आत्मा का अलौकिक कार्य है। आत्मा जीतने में, परमेश्वर व्यक्तियों को एक साधन के रूप में उपयोग करता है, परन्तु यह आरम्भ से अन्त तक परमेश्वर का कार्य रहता है। क्योंकि यह परमेश्वर का कार्य है, इसलिए हम यह भरोसा रख सकते हैं कि जैसे-जैसे हम सुसमाचार प्रचार के कार्य में परिश्रम करते हैं, तो परमेश्वर दूसरों को ख्रीष्ट के उद्धार करने वाले ज्ञान की ओर ले आएगा।
दूसरा, हमें परमेश्वर की सामर्थ्य पर विश्वास करना चाहिए। प्रायः जब हम दूसरों से बात करते हैं, तो हमें समझते हैं कि पुरुष और महिलाएँ वास्तव में कितने खोए हुए हैं। हम इस सत्य को “सम्पूर्ण भ्रष्टता” कहते हैं, जिसका अर्थ है कि पाप ने लोगों के जीवन के प्रत्येक आयाम को प्रभावित किया है। वे वास्तव में “अपने अपराधों और पापों में मरे हुए हैं” (इफिसियों 2:1–3)। केवल सर्वसार्मथी परमेश्वर के सामर्थ्य से ही ऐसे लोगों को जीवित किया जा सकता है। “परन्तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है, अपने उस महान् प्रेम के कारण जिस से उसने हमसे प्रेम किया, जबकि हम अपने अपराधों के कारण मरे हुए थे उसने हमें ख्रीष्ट के साथ जीवित किया” (पद 4-5)। हमारे लिए यह असम्भव है, परन्तु परमेश्वर के लिए यह सम्भव है।
तीसरा, हमें सुसमाचार पर विश्वास करना चाहिए। यह संसार एक घिनौना स्थान है। केवल यीशु ख्रीष्ट का सुसमाचार ही इसे परिवर्तित करेगा। प्रेरित पौलुस कुरिन्थियों के विश्वासीयों से कहता है: “इसलिए यदि कोई ख्रीष्ट में है तो वह नई सृष्टि है। पुरानी बातें बीत गईं। देखो, नई बातें आ गई हैं” (2 कुरिं. 5:17)। मसीहियों के रूप में, हमारे पास यीशु ख्रीष्ट के सुसमाचार में मनुष्यों और राष्ट्रों की दुर्दशा का उत्तर है।
चौथा, हममें परमेश्वर की महिमा और मनुष्यों के उद्धार के लिए धुन होनी चाहिए। पौलुस कुलुस्सियों के मसीहियों को स्मरण दिलाता है कि परमेश्वर ने उन पर “इस रहस्य की महिमा, अर्थात् मसीह तुम में है, जो महिमा की आशा है” को प्रकट किया है (कुलुस्सियों 1:27)। पौलुस सब मनुष्यों के लिए सब कुछ बना कि किसी न किसी प्रकार कुछ का उद्धार करा सके (1 कुरिन्थियों 9:22)।
यह समझते हुए कि हम जो सुसमाचार सुनाते हैं वह यहूदियों के लिए निन्दनीय है और अन्यजातियों के लिए मूर्खता है, हमें लोगों को मनाने के अपने प्रयास में बुद्धिमान होना चाहिए (नीतिवचन 11:30)। हम अविश्वासियों को बौद्धिक रूप से चुनौती देते हैं, क्योंकि ख्रीष्ट के बिना ज्ञान व्यर्थ है। धार्मिक रूप से, उनकी आराधना मूर्तिपूजा है, और सामाजिक रूप से, यीशु ने कहा, “यह न सोचो कि मैं पृथ्वी पर मेल कराने आया हूँ” (मत्ती 10:34)। यीशु का अनुसरण करने का मूल्य सम्पूर्ण रीति से जीवन का समर्पण है।
जैसा कि नीतिवचन 11:30 कहता है, जो लोग आत्मा जीतने वाले होना चाहते हैं उन्हें बुद्धिमान होना चाहिए। दो त्रुटियों से बचना चाहिए। पहली है बौद्धिक तीक्ष्णता पर बहुत अधिक बल देना, यह कहना कि केवल वृत्तिगत रूप से प्रशिक्षित व्यक्ति ही सुसमाचार प्रचार कर सकते हैं। और दूसरी त्रुटि यह कहना है कि किसी विचार की आवश्यकता नहीं है क्योंकि सुसमाचार प्रचार का कार्य परमेश्वर का कार्य है। पौलुस तीमुथियुस को स्मरण दिलाता है कि “अपने आपको परमेश्वर के ग्रहणयोग्य ऐसा कार्य करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर जिस से लज्जित होना न पड़े, और जो सत्य के वचन को ठीक ठीक काम में लाए” (2 तीमुथियुस 2:15)। कुलुस्सियों को पौलुस लिखता है: “हम उसी का प्रचार करते हैं, हर एक मनुष्य को चिता देते हैं और समस्त ज्ञान से हर एक को सिखाते हैं, जिससे कि प्रत्येक व्यक्ति को ख्रीष्ट में सिद्ध करके उपस्थित कर सकें। इसी अभिप्राय से मैं उसकी उस शक्ति के अनुसार जो मुझ में सामर्थ्य के साथ कार्य करती है, कठोर परिश्रम करता हूँ” (कुलुस्सियों 1:28–29)।
सुसमाचार प्रचार में बुद्धिमान होने के लिए, हमें अपना ध्यान दो क्षेत्रों पर केन्द्रित करना चाहिए: स्वयं पर और अपने सन्देश पर। पतरस एशिया माइनर की कलीसियाओं से कहता है कि क्योंकि वे सुसमाचार की आशा के साक्षी होंगे, इसलिए उन्हें अपने हृदय में ख्रीष्ट का सम्मान करना चाहिए या उसे अपने हृदय में पवित्र करना चाहिए, और तब वे उस आशा के लिए उत्तर देने के लिए तैयार होना चाहिए जो उनमें है (1 पतरस 3:15)—वह आशा तब आती है जब कोई यीशु ख्रीष्ट के सुसमाचार पर विश्वास करता है।
अपने हृदयों में ख्रीष्ट का सम्मान करने के लिए, हमें सबसे पहले विश्वासी व्यक्ति होना चाहिए। पौलुस कुरिन्थियों को लिखता है कि एक प्रेरित के रूप में उसके पास सुसमाचार पर विश्वास करने के लिए “विश्वास की वही आत्मा” है और विश्वास करते हुए वह कहता है “कि अनुग्रह जो अधिक से अधिक लोगों में फैलता जा रहा है, परमेश्वर की महिमा के लिए धन्यवाद की वृद्धि का कारण बन सके” (2 कुरिन्थियों. 4:15)। सुसमाचार को प्रभावी ढंग से सम्प्रेषित करने के लिए, सुसमाचार की वास्तविकताओं को हमारे अन्दर दिखना चाहिए—न केवल स्वयं सुसमाचार पर विश्वास परन्तु परमेश्वर द्वारा उपयोग किए जाने वाले साधन के रूप में विश्वास हमारे अन्दर भी कार्य करने वाला हो।
दूसरा, हमें नम्र होना चाहिए। फिर से, पौलुस तीमुथियुस को सब से बड़े पापी के रूप में उसे दिए गए अनुग्रह को स्मरण दिलाता है: “परन्तु फिर भी मुझ पर इस कारण दया हुई कि ख्रीष्ट यीशु मुझ सब से बड़े पापी में अपनी पूर्ण सहनशीलता प्रदर्शित करे कि मैं उनके लिए जो उस पर अनन्त जीवन के निमित्त विश्वास करेंगे, आदर्श बनूँ” (1 तीमुथियुस 1:16)।
तीसरा, हमें साहसी होना चाहिए। पौलुस इफिसियों से प्रार्थना करने के लिए कहता है कि परमेश्वर उसे साहस दे जिससे कि वह सत्य का प्रचार वैसे ही कर सके जैसा उसे बोलना चाहिए। उसका उद्देश्य था कि शुद्ध हृदय, अच्छे विवेक और सच्चे विश्वास से सुसमाचार का सन्देश उन लोगों पर प्रभावकारी हो जो उसे सुनते हैं (1 तीमुथियुस 1:5)।
चौथा, हमें आनन्दपूर्ण धैर्य रखना चाहिए। 2 कुरिन्थियों 4 में दो बार पौलुस हमें बताता है, “हम साहस नहीं खोते” (पद 1, 16)। सुसमाचार प्रचार में कौशल और धैर्य की आवश्यकता होती है, परन्तु हम इसे इस आनन्दपूर्ण अपेक्षा के साथ करते हैं कि परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों को अन्धकार से निकालकर अपनी अद्भुत ज्योति में ले आएगा।
हम जिस सन्देश की घोषणा करते हैं, वह परमेश्वर का सन्देश है। हमें “ख्रीष्ट का मन” रखना चाहिए (1 कुरिं. 2:16)। सन्देश की हमारी समझ एकाग्रचित देखभाल के साथ आती है जब हम पवित्रशास्त्र का अध्ययन करते हैं, परमेश्वर से माँगते हैं कि वह हमें बुद्धि दे (याकूब 1:5)। परन्तु हमें बुद्धि की आवश्यकता इससे अधिक है। हमें उन लोगों को सुसमाचार समझाने के लिए बुद्धि की आवश्यकता है जो परमेश्वर से शत्रुता रखते या उसके विरुद्ध हैं। हमारे सुसमाचार की प्रस्तुति सटीक और स्पष्ट रूप जैसे ख्रीष्ट में सत्य है वैसे ही सम्प्रेषित करना चाहिए। पौलुस ने “यीशु ख्रीष्ट वरन् क्रूस पर चढ़ाए गए ख्रीष्ट” (1 कुरन्थियों 2:2) का सुसमाचार सुनाया—यह यीशु ख्रीष्ट का व्यक्ति और कार्य है। जब हम सुसमाचार प्रचार करते हैं, तो हमारा सन्देश यही होना चाहिए, और परमेश्वर हमें आत्माओं के जीतने वाले बनने के लिए आवश्यक स्वर्गीय बुद्धि देगा।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।