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कुछ नबियों के विषय में हम बहुत थोड़ा ही जानते हैं, परन्तु इस बात में, आमोस की पुस्तक उसके समकालीन यशायाह के जैसे, भिन्न है। आमोस अपनी पुस्तक के आरम्भ में ही हमें बता देता है कि वह तकोआ का रहनेवाला था, और उसकी सेवकाई इस्राएल के उत्तरी राज्य में थी। उसने इसे भूम्प से दो वर्ष पहले लिखा था, जब यहूदा में उज्जियाह राजा था और इस्राएल में यारोबाम राजा था (आमोस 1:1)। इसका अर्थ यह है उसकी पुस्तक लगभग 760 ईसा पूर्व लिखी गई, यद्यपि हमारे पास भूकम्प के समयकाल को सटीकता से निर्धारित करने का कोई माध्यम नहीं है। इस पुस्तक से हमें तीन विशेष बातें सीखनी चाहिए।
1. किसी भी नबी को परमेश्वर द्वारा बुलाया जाना आवश्यक था।
आमोस इस्राएल से नहीं, वरन् दक्षिणी राज्य यहूदा से आया था। बेत-एल के याजक अमस्याह का सन्देश था कि “हे दर्शी, यहाँ से यहूदा को भाग जा। वहीं खा-पी और वहीं तू अपनी नबूवत कर” (आमोस 7:10-13)। जब तक कि परमेश्वर ने उसे अपने सन्देश के साथ इस्राएल के उत्तरी राज्य में जाने का निर्देश नहीं दिया, आमोस एक किसान था।
नबी होना इस बात पर निर्भर नहीं करता था कि व्यक्ति किस परिवार से आया है या व्यवसाय धार्मिक लोगों के किसी समूह से सम्बन्धित है। इसकी अपेक्षा, यह परमेश्वर के सन्देशवाहक के रूप में सेवा करने के लिए परमेश्वर के सम्प्रभु बुलाहट पर निर्भर करता था। समय की आवश्यकता के अनुसार परमेश्वर द्वारा नबियों को खड़ा किया जाता था, और उन्हें अपने श्रोताओं से बात करने के लिए वचन दिए जाते थे। परमेश्वर के कार्य करने से पहले, परमेश्वर द्वारा चुने गए सन्देशवाहकों को उसका वचन सौंपा जाता था। यहोवा की गुप्त इच्छा उसके सेवकों, नबियों के माध्यम से संचारित की गई थी।
2. नबियों की भूमिका उस वाचा से जुड़ी थी जो परमेश्वर ने इस्राएल से बाँधी थी।
नबी की भूमिका थी परमेश्वर के वचन की घोषणा करके और उसकी माँगो के प्रति आज्ञाकारिता को प्रोत्साहित करके परमेश्वर और उसके वाचा के लोगों के बीच मध्यस्थता करना। वे राज्य के संरक्षक थे, जो राजाओं और अन्य अगुवों को उनके कार्यों के लिए परमेश्वर के प्रति उत्तरदायी ठहराते थे। उन्हें वाचा को लागू करने वाले मध्यस्थ के रूप में माना जा सकता है, जो परमेश्वर द्वारा अपने लोगों के साथ स्थापित विशेष गहरे सम्बन्ध को बनाए रखने के लिए समर्पित थे।
इस वाचा ने इस्राएल की सन्तानों को एक विशिष्ट विशेषाधिकार प्राप्त सम्बन्ध में रखा था। आमोस की पुस्तक में आरम्भिक सन्देश इस्राएल के आस-पास के विभिन्न देशों के लिए हैं (आमोस 1:1–2:16 देखें – सीरिया, गाजा, सूर, एदोम, अम्मोन, मोआब और यहूदा)। फिर, जब नबी अन्ततः इस्राएल को सम्बोधित करता है, तो वह उस पापी देश को यहोवा का सन्देश प्रसारित करता है: “पृथ्वी के सारे कुलों में से मैंने केवल तुम्हीं पर मन लगाया”(आमोस 3:2)। इब्रानी भाषा में यह परमेश्वर और उसके लोगों के बीच अनन्य सम्बन्ध का एक दृढ़ है: “केवल तुम्हें . . .।” इस्राएल को उसकी बड़ी संख्या या योग्यता के कारण नहीं चुना गया था, वरन् इसलिए क्योंकि परमेश्वर ने उससे प्रेम किया था (व्यवस्थाविवरण 7:7)।
परन्तु विशेष सम्बन्ध अपने साथ विशेष उत्तरदायित्वों भी लेकर आया। उन्हें यह समझना था कि विशेषाधिकार प्राप्त स्थिति के चुनाव के साथ ही उत्तरदायित्व के लिए भी चुनाव आता है। इस्राएल के लिए कभी भी अकारण आशीष नहीं होगी। इसके स्थान पर, लोग परमेश्वर के न्याय के खतरे में थे, क्योंकि वे अपने अधर्म के लिए दण्ड से बचने में असमर्थ थे (आमोस 3:2)। बाइबल का सिद्धान्त यह है कि न्याय परमेश्वर के घराने से आरम्भ होता है (1 पतरस 4:17)। आमोस हमें सिखाता है कि वाचायी विशेषाधिकार को परमेश्वर की आज्ञाओं के पालन की माँगों से अलग नहीं किया जा सकता है।
3. आमोस के युगान्तविज्ञानीय दृष्टिकोण के कई आयाम हैं।
अधिकतर नबियों के पास ऐसा सन्देश होता था जिसका भविष्य के लिए निहितार्थ होते थे। लोगों ने यहोवा के दिन को चमक और प्रकाश के रूप में सोचा था, बिना इस बात के अनुभव किए कि यह “अन्धकार होगा जिसमें तनिक भी प्रकाश नहीं” (आमोस 5:20)। उन्हें यह सीखना था कि आनन्द पर्वों और भेंट चढ़ाने से कुपित परमेश्वर को प्रसन्न नहीं किया जा सकता था। मूर्तिपूजा सहित उनके पाप अन्ततः दमिश्क के उस पार उनकी बन्धुवाई में भेजे जाने के कारण बनेंगे (आमोस 5:26-27)। प्रतिज्ञा किए गए भूमि से इस्राएल का प्रस्थान परमेश्वर का एक और सम्प्रभु कार्य होने वाला था (और मैं तुम्हें भेज दूँगा…)।
परन्तु युगान्तविज्ञान के दो अन्य आयाम थे जो बहुत अधिक सकारात्मक चित्र को प्रस्तुत करते हैं। इनमे से पहला आयाम दाऊद के गिरे हुए मण्डप से सम्बन्धित खण्ड में है (आमोस 9:11-12)। इस्राएल और यहूदा के इतिहास में दाऊद के घराने का एक प्रमुख स्थान था। इसे जीर्ण अवस्था में दर्शाया गया है जिसे अन्ततः पुनर्स्थापना परिवर्तित किया जाएगा और जिसके परिणामस्वरूप गैरयहूदियों को सम्मिलित किया जाएगा। जिस प्रकार से याकूब ने यरुशलेम में महासभा में इस खण्ड का उपयोग किया, वह इस अर्थानुवाद का समर्थन करता है (प्रेरितों के काम 15:16-17)। नये नियम की कलीसिया में गैर यहूदियों का सम्मिलित किया जाना, आमोस की सेवकाई के माध्यम से निर्धारित परमेश्वर के उद्देश्य की पूर्ति थी।
आशा का अन्तिम तत्व यह है कि परमेश्वर अपने लोगों को एक नए अदन में रोपेगा। यह महत्वपूर्ण है कि इस्राएल के पाप के पश्चात् भी परमेश्वर ने उन्हें त्यागा नहीं था। वह अपने लोगों की सुधि लेगा और पुनः स्थापित करेगा, जो सम्भवतः एक युगान्तविज्ञानीय घटना है जब परमेश्वर के तितर-बितर हुए लोग उसके अनन्त राज्य में एकत्रित किए जाएँगे। नबूवत में अन्तिम शब्द वास्तव में वाचायी सम्बन्ध की पुनः पुष्टि है, क्योंकि वाचा का प्रभु (यहाँ पर परमेश्वर के लिए वाचायी नाम यहोवा पर ध्यान दें) उनका परमेश्वर बना हुआ है, और वह उनके लिए अपनी इच्छा पूरी करेगा (आमोस 9:11-15)।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।