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25 फ़रवरी 2025
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4 मार्च 20253 बाते जो आपको अय्यूब के विषय में पता होनी चाहिए।

1. अय्यूब एक प्राचीन पुस्तक है जो एक गैर-इस्राएली कुलपिता के विषय में है।
अय्यूब की पुस्तक पुराना नियम के ग्रन्थसंग्रहण में एस्तेर और भजन-संहिता के बीच रखा गया है। इसके स्थान के कारण कभी-कभी इस विषय में त्रुटिपूर्ण निष्कर्ष उत्पन्न होते हैं कि अय्यूब कौन था और वह किस समय में रहता था।
पहली बात, अधिकाँश विद्वान सहमत हैं कि अय्यूब इस्राएली नहीं था। यह निष्कर्ष इस तथ्य पर आधारित है कि वो कनान भूमि में नहीं, परन्तु उज़ की भूमि में रहता था (अय्यूब 1:1)। सम्भावना है कि अय्यूब एदोम की भूमि में रहता था, क्योंकि विलापगीत एदोम को उज़ के साथ जोड़ता है (विलापगीत 4:21)। भले ही अय्यूब इस्राएली नहीं था, यह स्पष्ट है कि वह इस्राएल के परमेश्वर की आराधना और सेवा करता था। अय्यूब का इस्राएल से बाहर रहना इस बात का संकेत हो सकता है
कि अय्यूब की पुस्तक में दी गई बुद्धि, नीतिवचनों के समान, हर स्थान में लागू होती है, और उन समस्याओं को सम्बोधित करती है (जैसे पीड़ा) जिससे सभी मनुष्य संघर्ष करते है।
दूसरा भ्रम अय्यूब की घटनाओं के समयरेखा से सम्बन्धित है, जो एस्तेर की पुस्तक की घटनाओं के समयरेखा के साथ मेल नहीं खाता है (486-485 ई. पू.)। इसके स्थान पर, ये घटनाएँ अब्राहम और कुलपिताओं के युग (लगभग 2100–1800 ई. पू.) से अधिक मेल खाती हैं। वास्तव में तो, कई विद्वान मानते हैं कि अय्यूब की घटनाएँ अब्राहम की वाचा से पहले की हैं। बहुत से तथ्य है जो इस बात का समर्थन करते हैं कि अय्यूब कुलपिताओं के समयकाल में रहा था। पहला, अय्यूब में परमेश्वर के लिए उपयोग किए गए ईश्वरीय नाम कुलपिताओं के युग में लिखी गई पुस्तकों में उपयोग किये गए के समान हैं। दूसरा, अय्यूब की सम्पत्ति का वर्णन (जैसे पशुओं की संख्या, दास, कीमती वस्तुएँं) भी कुलपिताओं के युग के अनुरूप है। तीसरा, अय्यूब की 140 वर्षों का जीवनकाल (अय्यूब 42:16) कुलपतियों की आयु से मेल खाती है। चौथा, सबसे महत्वपूर्ण, अय्यूब अपने परिवार के लिए एक याजक की भूमिका निभाता है, जो यह दिखाता है कि लेवीय याजक कार्य अभी स्थापित नहीं हुआ था (अय्यूब 1:5)।
2.अय्यूब की पुस्तक हमें सिखाती है कि परमेश्वर अपने बुद्धिमान उद्देश्य के अनुसार धर्मी लोगों को पीड़ित होने की अनुमति देते हैं।
प्रायः लोग सोचते हैं कि अय्यूब की पुस्तक मानवीय पीड़ा के रहस्य को समझाती है; ऐसा नहीं है। फिर भी, यह हमें यह बताती है कि अय्यूब ने क्यों पीड़ा सही (यद्यपि अय्यूब को इसका कारण कभी ज्ञात नहीं हुआ)। अय्यूब को इसलिए पीड़ा सहनी पड़ी क्योंकि शैतान ने यह तर्क दिया कि अय्यूब केवल इसलिए परमेश्वर की उपासना करता है क्योंकि परमेश्वर ने उसे आशीष दी है। शैतान ने यह पूर्वानुमान लगाया कि यदि परमेश्वर ये आशीषें छीन लें, तो अय्यूब परमेश्वर को शाप देगा (अय्यूब 1:9–11)। परमेश्वर अपनी पूर्ण सम्प्रभुता में शैतान को अपनी परिकल्पना को परखने की अनुमति देते हैं, और शैतान गलत सिद्ध होता है, जिससे परमेश्वर और अय्यूब दोनों की सही ठहरते है। परमेश्वर केवल अपने चरित्र के लिए आराधना के योग्य ठहरता है और अय्यूब खराई के पुरुष के रूप में प्रमाणित होता है।
परन्तु अय्यूब की कहानी की सिख केवल उज़ देश में रहने वाले एक प्राचीन व्यक्ति तक ही सीमित नहीं होने चाहिए। परमेश्वर की सम्प्रभुता, मानवीय पीड़ा और व्यक्तिगत धार्मिकता के बीच रहस्यमय सम्बन्ध का यह विवरण मानवीय स्थिति से सम्बन्धित बड़े विश्वस्तरीय विषयों से सम्बन्धित है और बुरे ईश्वरविज्ञान के लिए सुधार प्रदान करता है। अय्यूब की कहानी इस सिद्धान्त को स्थापित करके ऐसा करती है कि पीड़ा सदैव पाप से जुड़ा नहीं होता है। अय्यूब हमें सिखाता है कि धर्मी लोगों को भी पतित संसार में पीड़ा सहना पड़ेगा। जैसा कि अय्यूब 1:1 हमें बताता है, अय्यूब एक खरा, निर्दोष और धर्मी व्यक्ति था। फिर भी, जैसा कि शेष पुस्तक हमें बताती है, उसे बहुत पीड़ा सहना पड़ा।
हमारे सामने एक पीड़ा सहने वाले धर्मी व्यक्ति का उदाहरण प्रस्तुत करके, अय्यूब की पुस्तक उस शिक्षा के लिए हमें एक सहायक सुधार प्रदान करती है जिसे कभी-कभी “प्रतिशोध ईश्वरविज्ञान” के रूप में जाना जाता है। प्रतिशोध ईश्वरविज्ञान का मानना है कि लोग अपने अधर्मी कार्यों के कारण पीड़ा उठाते हैं और उन्हें उनके धर्मी कार्यों के लिए पुरस्कृत किया जाता है। अय्यूब के मित्रों ने इस त्रुटुपूर्ण ईश्वरविज्ञान को अपनाया, और हम आधुनिक विश्वासियों को भी ऐसा करने के लिए लुभाया जा सकता है। धन्यवाद है कि अय्यूब की पुस्तक हमें यह स्मरण दिलाकर ऐसी सोच में झूठ को उजागर करती है कि परमेश्वर अपनी भली और बुद्धिमान उद्देश्यों के लिए धर्मी लोगों को पीड़ित होने की अनुमति देता है, यहाँ तक कि जब उन उद्देश्यों का विवरण प्रायः उन लोगों के सामने प्रकट नहीं किया जाता है जो पीड़ा सहते हैं।
3. अय्यूब यीशु ख्रीष्ट के छुटकारात्मक कार्य की पूर्वछवि प्रस्तुत करते हैं।
एक प्रकार जिससे अय्यूब की पुस्तक हमें यीशु ख्रीष्ट के कार्य की ओर संकेत करती है, वह अय्यूब की इस इच्छा में है कि कोई उसके और परमेश्वर के मध्य मध्यस्थता करे। जैसे-जैसे कहानी सामने आती है, अय्यूब परमेश्वर से प्रश्न करना आरम्भ कर देता है और, एक बिन्दु पर, दुखी हो जाता है, और परमेश्वर के सम्मुख उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए एक मध्यस्थ की माँग करता है (अय्यूब 9:32-35)। अवश्य ही, नया नियम हम पर यह प्रकट करता है कि परमेश्वर ने यीशु ख्रीष्ट में ऐसा मध्यस्थ प्रदान किया है (1 तीमुथियुस 2:5-6)।
परन्तु मुख्य रूप से, अय्यूब की पुस्तक ख्रीष्ट के छुटकारात्मक कार्य की पूर्वचित्रण हमें यह सिखाने के द्वारा प्रस्तुत करती है कि धर्मी व्यक्ति परमेश्वर के बुद्धिमान उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अत्यधिक पीड़ा सह सकता है। जैसा कि हमने देखा है, परमेश्वर और अय्यूब दोनों की प्रतिष्ठा स्थापित करने के लिए धर्मी अय्यूब को पीड़ा सहने की अनुमति दी गई। अवश्य ही, यीशु को, जो प्रत्येक रूप से सिद्ध रूप से धर्मी था, परमेश्वर की छुटकारात्मक योजना के उद्देश्यों को पूरा करने और अपने लोगों के उद्धार को सुनिश्चित करने के लिए परमेश्वर के क्रोध को सहने की अनुमति दी गई। अय्यूब की कहानी क्रूस की कहानी को चित्रित करती है, और यह क्रूस की कहानी में है जिसमें हम पीड़ा का सच्चा अर्थ और महत्व पाते हैं।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।