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अपनी किताब में भविष्यवक्ता ओबद्याह एदोम (ओबद्याह 1-4, 8-10) के विरुद्ध प्रभु यहोवा के न्याय की घोषणा करता है, जो कि एक छोटा सा देश है, जो कि अपनी आरामदेह और सुरक्षित स्थान, अवस्था और परिवेश के कारण अहंकारी हो चुका था (ओबद्याह 3, 12) । इस आत्मविश्वास के दो कारण थे: यह एक पहाड़ी देश था, जो कि मानवीय दृष्टिकोण से, आसानी से बचाव योग्य था और ऊंचाई पर स्थित होने के कारण उस पर आक्रमण करना सरल नहीं था (ओबद्याह 3-4) । इसके अतिरिक्त, एदोम (जिसे बहुधा इसके प्रमुख नगर, तेमान के नाम से भी पुकारा जाता रहा है) को अपने महान बुद्धिमत्ता के लिए भी जाना जाता था (ओबद्याह 8-9; यिर्मयाह 49:7 भी देखें) । दूसरे अर्थों में, एदोम के पास वो सभी रणनीतिक अधिकार थे जो उसके निवासियों को भयमुक्त रहने की सुविधा प्रदान करते थे। फिर भी प्रभु यहोवा घोषणा करते हैं कि एदोमियों पर न्याय की छड़ी चलेगी, न केवल इसलिए कि वे यहूदियों की सहायता करने में विफल रहे जब बेबीलोनियों ने उन पर हमला किया (जिसका परिणाम यरूशलेम का विनाश और 587/586 ईसा पूर्व में यहूदियों का निर्वासन था), बल्कि उन्होंने यहूदियों को पकड़कर बेबीलोनियों को सौंपकर आक्रमणकारियों को सक्रिय रूप से सहायता प्रदान की थी (ओबद्याह 11–14; भजन संहिता 137:8–9; यहेजकेल 25:12; 35:5)। न्याय के इन भविष्यवाणियों के साथ, प्रभु यहोवा यह भी प्रतिज्ञा करता है कि उसके लोगों को बेबीलोनियों से छुटकारा मिलेगा और वे उसकी राजसी शक्ति के माध्यम से फिर से सम्मानित अवस्था में उठायेंगे जाएंगे (ओबद्याह 17–21) ।
ओबद्याह की किताब के बारे में निम्नलिखित तीन बातें समझने से हमें इसके संदेश को और भी अच्छी तरह से समझने में सहायता मिलेगी ।
1. ओबद्याह की भविष्यवाणी इसहाक को उसके दोनों पुत्रों याकूब और एसाव के विषय में दिए गए प्रभु के सार्वभौम आदेश के कार्यान्वयन को प्रदर्शित करती है कि “बड़ा पुत्र छोटे के अधीन रहेगा” (उत्पत्ति 25:23) ।
एदोम और यहूदिया के राज्य एसाव और याकूब के वंशज थे (उत्पत्ति 36:1–43; 49:1–28) । जिस तरह दोनों भाइयों के आपसी संबंध गंभीर थे (उत्पत्ति 27:41–45), उसी तरह उनसे उत्पन्न दोनों राज्यों के आपसी संबंध भी खराब थे (एसाव से एदोम और याकूब से यहूदिया उत्पन्न हुआ था) । हालाँकि याकूब बेईमान और कपटी था, लेकिन उसे अपने ज्येष्ठ भाई का जन्मसिद्ध अधिकार और आशीर्वाद मिला (उत्पत्ति 25:29–33; 27:1–40)। इसी तरह, प्रभु यहोवा के कृपा से यहूदिया को एदोमियों पर (गिनती 24:18–19) उनके संघर्षपूर्ण इतिहास के दौरान प्रभुत्व का लाभ दिया गया (उदाहरण के लिए, 1 शमूएल 14:47; 2 शमूएल 8:11–14; 1 राजा 22:47; 1 इतिहास 18:11 पढ़े) । याकूब और इस्राएल के प्रति परमेश्वर का व्यवहार अयोग्य लोगों के प्रति परमेश्वर के अनुग्रह को प्रदर्शित करता है (मलाकी 1:1–4; रोमियों 9:10–16) ।
2. ओबद्याह का दर्शन (ओबद्याह 1) परमेश्वर के न्याय के कार्यों और उसके उद्धार के कार्यों को एक साथ प्रदर्शित करता है, जिससे वे एक साथ प्रतीत होते हैं ।
ओबद्याह न केवल एदोम पर आनेवाले न्याय की बात करता है, बल्कि “यहोवा के दिन” (ओबद्याह 15) की भी बात करता है, जो कि सभी राज्यों पर न्याय (ओबद्याह 16) और परमेश्वर के लोगों के लिए उद्धार लाएगा (ओबद्याह 17)। पहली दृष्टि में देखने पर, ऐसा लगता है कि ये सब एक ही समय पर होगा। हालाँकि, बाइबल के भविष्यवक्ता नियमित रूप से परमेश्वर के न्याय और उद्धार के कार्यों को एक साथ जोड़ कर दिखाते रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे कोई एक विस्तृत दूरबीन लेता है और उसे एक सुगठित इकाई में छोटा कर देता है। समझाने के इस शैली को प्रायः “भविष्यवाणीयों को संविदा करना” या “अंतःसर्पण” कहा जाता है, और इस तकनीक के बारे में जागरूक होने से पाठक को भ्रम से बचने में सहायता मिलती है। भविष्यवाणियों की इस सामान्य विशेषता को समझकर, कोई भी यह समझ सकता है कि ओबद्याह की भविष्यवाणी की पूर्ति अलग-अलग समय पर होती है। इस प्रकार, उदाहरण के लिए, एदोम का विनाश पहले ही हो चुका है, लेकिन विश्वासी अभी भी “यहोवा के दिन” का इंतज़ार कर रहे है, जो कि सभी राज्यों को न्याय के लिए बुलाएगा और कलिसिया के लिए उद्धार की पूर्णता लाएगा।
3. ओबद्याह की भविष्यवाणी को नये नियम में सीधे उद्धृत नहीं किया गया है, परन्तु पवित्रशास्त्र यीशु मसीह में इसकी आश्चर्यजनक पूर्ति की ओर संकेत करता है ।
ओबद्याह को एस्तेर और सपन्याह जैसी कुछ अन्य पुरानी नियम की पुस्तकों की तरह, नए नियम में प्रत्यक्ष रूप से उद्धृत नहीं किया गया है। फिर भी, शास्त्र स्पष्ट रूप से संकेत देते हैं कि ओबद्याह की भविष्यवाणी आश्चर्यजनक तरीके से सम्पूर्ण हो चुकी है। समय के साथ, एदोमियों को विदेशी शक्तियों द्वारा अपने अधीन कर लिया गया था, और यहूदी इतिहासकार जोसेफस के अनुसार, वे एक बार फिर यहूदी शासन के अधीन हो गए और उन्हें दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के अंत में जॉन हिरकेनस (एक हसमोनियन शासक और यहूदी महायाजक) के द्वारा अनुष्ठानिक खतना करवाने के लिए विवश किया गया (पुरातन पुस्र्ष 13:256)। परिणामस्वरूप, ये “इदुमियन”, जैसा कि वे जाने जाते थे, यहूदिया के लोगों में समाहित होने लगे। उनकी पैतृक भूमि और राष्ट्रीय पहचान का यह नुकसान एक छिपे हुए आशीर्वाद के रूप में उभर कर सामने आया, क्योंकि इदुमिया के लोग प्रभु यीशु मसीह (मरकुस 3:8-9) का अनुसरण करने वालों में से थे, जो कुलुस्सियों 3:11 की सच्चाई को साबित करता है: “उसमें न तो यूनानी रहा न यहूदी, न खतना न खतनारहित, न जंगली, न स्कूती, न दास और न स्वतंत्र : केवल मसीह सब कुछ और सब में है।” जैसा कि ओबद्याह ने घोषित किया था, उद्धार सिय्योन पर्वत पर पाया गया (ओबद्याह 17) – अर्थात्, जीवित परमेश्वर के लोगों के बीच जो प्रभु यीशु मसीह का अनुसरण करते हैं, जो की एक बेहतर वाचा का मध्यस्थ है (इब्रानियों 12:22-24)।
ओबद्याह की पुस्तक के साथ, पुरानी कहावत सच साबित होती है: “अच्छी चीजें छोटे रूप में आती हैं।”यह लेख “बाइबल की हर पुस्तक: जानने योग्य 3 बातें” संग्रह का अंश है।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।