
3 बातें जो आपको 2 पतरस के विषय में पता होनी चाहिए।
13 फ़रवरी 2025
ओबद्याह की वो तीन बातें जो आपके लिए जानना बहुत ज़रूरी है
20 फ़रवरी 20253 बातें जो आपको नहूम के विषय में पता होनी चाहिए

नहूम की पुस्तक को पढ़ना सरल नहीं है। यद्यपि अश्शूर के विरुद्ध न्याय के विषय में इसका सन्देश यह बताता है कि परमेश्वर पाप को विजयी नहीं होने देगा, फिर भी पुस्तक में नीनवे के पतन के आनन्द को पूर्ण रीति से समझना कठिन हो सकता है, या फिर इस बात को भी कि दण्ड पर लगातार दिया गया ध्यान किस प्रकार से सुसमाचार के साथ जुड़ा हुआ है। परन्तु इनको तथा इनके जैसे अन्य व्याख्यात्मक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है, यदि पाठक निम्नलिखित तीन बातों पर ध्यान दें।
1. नहूम के सन्देश का सन्दर्भ सुसमाचार है (नहूम 1:2-8)।
पहला मुख्य भाग, नहूम 1:2-8 में, निश्चित रूप से नकारात्मक भाव है। नहूम यह मानकर चलता है कि सभी मनुष्य, न कि केवल अश्शूर के निवासी (जिनका इस भाग में उल्लेख नहीं किया गया है) परमेश्वर के सिद्ध न्याय के सामने अनावृत खड़े हैं (नहूम 1:2–3, 5–6, 8)। इसलिए यह एक बहुत अच्छा सुसमाचार है कि परमेश्वर “संकट के समय दृढ़ गढ़ है जो उसी न्याय से उन लोगों को “शरण” देता है जो स्वयं को उसकी दया के अधीन कर देते हैं (नहूम. 1:7)।
पुस्तक के आरम्भ में रखा गया यह भाग, पुस्तक के शेष भाग में आगे आने वाली बातों के लिए व्याख्यात्मक कुँजी का कार्य करता है। यहूदा के पिछले पाप और उसके दुखों का अन्त करने के लिए परमेश्वर का अनुग्रहकारी निर्णय (नहूम 1:12), और अश्शूर पर आने वाला न्याय का प्रकोप, ये सभी परमेश्वर के न्याय और उद्धार के दो-आयामी कार्य के नमूने को दर्शाते हैं। इसके अतिरिक्त, नहूम से एक शताब्दी से भी कम समय पहले, अश्शूर ने प्राचीन निकट पूर्व पर, जिसमें उत्तरी इस्राएल राज्य भी था, प्रतीत होने वाले अबाध विजय के होते हुए भी, परमेश्वर का हस्तक्षेप यह दर्शाएगा है कि उस साम्राज्य के वर्चस्व के दावे झूठे थे, औस साथ ही उसके यह दावे भी झूठे थे कि उसके देवताओं ने उस वर्चस्व को सम्भव किया था।
2. अश्शूर परमेश्वर का सबसे बड़ा शत्रु नहीं है।
यद्यपि नहूम ने अश्शूर की, और विशेषकर उसकी राजधानी नीनवे शहर की कड़ी निन्दा की है, परन्तु अधिकाँश अश्शूरियों का इसके आक्रमण में हाथ नहीं था, वरन् इसके कुछ नागरिक हराए गए इस्राएली भी थे। सच में यह पुस्तक अश्शूर के राजाओं (नहूम 1:11, 14), सशस्त्र सेनाओं (नहूम 2 का अधिकाँश भाग) और शोषण तथा आत्म-प्रशंसा के उसके कार्यक्रम में सम्मिलित अन्य लोगों पर लगातार ध्यान आकर्षित करती है, और इस बात को प्रकट करती है कि परमेश्वर का न्याय मुख्य रूप से उन पर आएगा। एसर्हद्दोन (शासनकाल 681-669 ई.पू.) जैसे सम्राटों को, ने जिन्होंने स्वयं को “संसार के राजा . . . और सभी शासकों में स्वयं को श्रेष्ठ” के रूप में दर्शाया, और जो मरोदक और नबू जैसे “बड़े देवताओं” पर निर्भर रहे, प्रभु कहता है कि, “तू घृणित है” (नहूम. 1:14), और उनको ऐसा ही बना देता है। अश्शूर के साम्राज्य के विरुद्ध परमेश्वर का प्रतिशोध, प्रकाशितवाक्य की पुस्तक के “बेबीलोन” के विरुद्ध उसके न्याय का पूर्वानुभव है, जो न केवल रोम का प्रतिनिधित्व करता है, वरन् उससे पहले के बेबीलोन और नीनवे का भी प्रतिनिधित्व करता है, साथ ही उसके बाद की सभी मानवीय शक्तियों का भी प्रतिनिधित्व करता है, जो हिंसा, सांसारिक वस्तुओं की खोज के प्रति समर्पण, और परमेश्वर-विरोधी स्वयं की बढ़ाई करने के द्वारा पहचाने जाते हैं (प्रकाशितवाक्य 17-18)।
3. परमेश्वर अपने सभी शत्रुओं को पराजित करेगा और अपने लोगों को सम्पूर्ण छुटकारा दिलाएगा।
यदि परमेश्वर ने पापियों को बचाने के लिए सेंतमेंत में तथा अनुग्रह के साथ पूरी समर्पण नहीं किया होता, तो उसके सभी शत्रुओं के विनाश में सभी लोग दण्ड और मृत्यु के अधीन आ जाते (रोमियों 5:12-14)। परन्तु अद्भुत रीति से परमेश्वर का अनुग्रह ऐसे संसार पर हुआ जो पूरी रीति से अपनी शर्तों पर स्वतन्त्र आत्मानुभूति के लिए समर्पित है, भले वह बहुत पहले अश्शूर का साम्राज्यवाद हो या वर्तमान में परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह के अन्य रूप हों।
पाप की शक्ति के उजियाले में न्याय और उद्धार दोनों आनन्द के कारण हैं। जब बुराई और बुराई करने वाले लोग गिरते हैं, तो उनके द्वारा पीड़ित लोग ठीक ही आनन्द मनाते हैं (नहूम 3:19; प्रकाशितवाक्य 19:1-5)। इसी प्रकार जो लोग परमेश्वर के उद्धार को खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं, उनके प्रति उसके अनुग्रह और दया का उत्सव मनाते हैं (नहूम 1:15) और उसके उद्धार के उद्देश्यों को पूरा होने की प्रतीक्षा करते हैं (नहूम 2:2)।
हो चुका-किन्तु अभी नहीं के अन्तिम दिनों में रहते हुए, नहूम का सन्देश विश्वासियों को परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर भरोसा बनाए रखने और ईश्वरीय सत्य के विरुद्ध संसार के अनेक बातों का विखण्डित करने के लिए बुलाता है। ठीक जिस प्रकार से नहूम ने नीनवे के मूर्तिपूजक साम्राज्यवाद की स्वार्थी और आत्म-विनाशकारी स्वभाव को उजागर किया था, इसी प्रकार मसीहियों को भी उन अनेक रूपों की आलोचना करनी चाहिए जिसमें व्यक्ति, समूह और सम्पूर्ण संस्कृतियाँ परमेश्वर के विशेषाधिकार को छीनकर मनुष्य को स्वयं की प्रभुता करने वाला, परमेश्वर के विषय में स्वाभाविक ज्ञान रहित, तथा स्वयं में पूर्ण आनन्द प्राप्त करने की क्षमता रखने वाले के रूप में परिभाषित करते हैं।
नहूम विश्वासियों को उन थोड़े समय की “सर्वोच्च” वस्तुओं को विखण्डित करने के लिए कहता है जिन्हें मनुष्य सबसे अधिक महत्व देते हैं, भले ही वह भौतिक सम्पत्ति हो, सामाजिक स्तर हो, या अच्छे कार्यों का श्रेय स्वयं को देने का दावा करके स्वयं को नैतिक शुद्धता प्रदान करना हो, या शक्ति को और अधिक दृढ़ करना हो। ये मूर्तियाँ ऐसी हैं – जो मनुष्यों के द्वारा बनाई गई हैं, जो किसी को बचाने या सन्तुष्ट करने में असमर्थ हैं, और इन्हें पहले से ही शक्तिहीन बताया गया है (नहूम 1:13)। अश्शूर साम्राज्यवाद के विषय में नहूम की सुसमाचार-आधारित आलोचना अपने पाठकों को दिखाती है कि परमेश्वर के न्याय और उद्धार के काम के दृष्टि में संस्कृति का विश्लेषण कैसे किया करना है। इस प्रकार यह विश्वासियों को प्रभावी साक्षी देने के लिए तैयार होने में सहायता करती है। यह हमें संसार के द्वारा की गई प्रतिज्ञाओं के बहकावे में आने से तथा उसकी इस निरन्तर दावे के सामने हमारी आशा को डगमगाने से बचाती है कि वह सब भलाई का स्रोत है–एक ऐसी उपाधि जिसे परमेश्वर ने अनपे लिए रखा है, और जो एक सच्चाई है जो उन लोगों को पूरी रीति से बचाती और सन्तुष्ट करती है जो उसे जानते हैं (नहूम 1:7)।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।