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भ्रामक। विवादास्पद। चिन्ताजनक। भयावह। यदि प्रकाशितवाक्य की पुस्तक आपके मन में इन विवरणों को लाती है, तो आप अकेले नहीं हैं। फिर भी प्रकाशितवाक्य के लिए परमेश्वर का उद्देश्य प्रकट करना है, छिपाना नहीं—प्रोत्साहित करना, व्यथित करना नहीं। प्रकाशितवाक्य उस व्यक्ति को आशीष देने की प्रतिज्ञा करता है “जो इस नबुवत के वचनों को पढ़ता है, और . . . वे जो सुनते हैं, तथा इसमें लिखी हुई बातों का पालन करते हैं” (प्रकाशितवाक्य 1:3)। कल्पना कीजिए पहले शताब्दी की उन मण्डलियों का दृश्य, जिन्हें यह पुस्तक पहली बार भेजी गई थी: एक अगुवा चर्मपत्र को ऊँची स्वर से पढ़ने के लिए खड़ा होता है, जबकि शेष सभी ध्यान से सुन रहे हैं। वे प्रकाशितवाक्य के सन्देश को समझ सकते हैं और उस आशीष को जिसकी यह प्रतिज्ञा करता है मात्र ऊँचे स्वर से पढ़कर और इसकी सच्चाइयों को हृदय में ग्रहण करके प्राप्त कर सकते हैं। हम भी ऐसा कर सकते हैं। आशीष प्राप्त करने के लिए, आपको बाइबल की इस निर्णायक पुस्तक के विषय में तीन बातें जाननी चाहिए।
1. प्रकाशितवाक्य संसार के अव्यवस्थित परिस्थिति में मेमने के विजय का अनावरण करता है।
प्रकाशितवाक्य का पहला पद पुस्तक का शीर्षक है: “यीशु मसीह का प्रकाशन” (प्रकाशितवाक्य 1:1)। “प्रकाशितवाक्य” (एपोकैलिप्सिस) द्वारा दर्शाया गया यूनानी शब्द बताता है कि हमारे अनुभव और विश्व इतिहास की सतही उपस्थिति को देखने और उसके पीछे छिपी मूल वास्तविकता को समझने और उनके स्रोत की व्याख्या करने के लिए हमें “अनावरण” की आवश्यकता है। यदि हम केवल सतही लक्षण देखते हैं—युद्ध की भयवाहता, पर्यावरणीय आपदाएँ, आर्थिक पतन, अकाल और भुखमरी, बीमारी और मृत्यु—तो हम कभी नहीं समझ पाएंँगे कि हमारी दुनिया क्यों इस प्रकार अव्यवस्थित हो गई है। केवल तभी जब हम इस परदे के पीछे झाँकते हैं, जहाँ परमेश्वर, जो प्रत्येक बात पर सम्प्रभुत्व रखता है, “बड़े अजगर… वही पुराना साँप,… इबलीश और शैतान” से युद्ध करता है (प्रकाशितवाक्य 12:9; 20:2), तो हमारे चारों ओर की दुःखद और रहस्यमयी घटनाओं का कोई अर्थ निकलता है।
यह पुस्तक दो अर्थों में “यीशु मसीह का प्रकाशन” है: यीशु अनावरण करने वाला अभिकर्ता और अनावरण होने वाले विषय दोनों हैं। सबसे पहले, “परमेश्वर ने” यह प्रकाशन यीशु ख्रीष्ट को “अपने दासों को वे बातें दिखाने के लिये दिया जिनका शीघ्र घटित होना अवश्य है” (प्रकाशितवाक्य 1:1)। पिता से देहधारी पुत्र के पास होने वाले हस्तान्तरण को प्रकाशितवाक्य 4 और 5 में नाटकीय रूप से दर्शाया गया है, जब मेमना सिंहासन पर विराजमान सम्प्रभु से एक पुस्तक प्राप्त करता है और फिर इतिहास में सामने आने वाली घटनाओं को आरम्भ करने और नियंत्रित करने के लिए, एक-एक करके उसकी मुहरें तोड़ता है। केवल मेमना ही इस पुस्तक को खोलने और परमेश्वर की योजना को प्रकट करने और क्रियान्वित करने के योग्य है क्योंकि मेमने ने “प्रत्येक कुल और भाषा और लोगों और राष्ट्र के लोगों को परमेश्वर के लिए छुड़ाने” के लिए हिंसक मौत सहकर विजय प्राप्त की है (प्रकाशितवाक्य 5:5-10)।
दूसरा, प्रकाशितवाक्य यीशु मसीह का भी अनावरण करता है। वह न केवल वह मेमना है जिसने छुटकारात्मक दुःख के माध्यम से विजय प्राप्त की; वह “मनुष्य के पुत्र के सदृश” भी है जो पृथ्वी पर अपनी कलीसियाओं के मध्य चलता है (प्रकाशितवाक्य 1:10-20), उनके आत्मिक स्वास्थ्य का मूल्याँकन करता है और जो दृढ़ता से खड़े रहते हैं उन्हें आशीष देता है (अध्याय 2-3)। यीशु उस स्त्री का वंश है जिसकी प्रतिज्ञा इतिहास के आरम्भ में की गई थी (उत्पत्ति 3:15), जिसे उसके जन्म के समय उस प्राचीन सर्प ने धमकी दी थी परन्तु उसे परमेश्वर के सिंहासन तक ऊँचा उठाया गया (प्रकाशितवाक्य 12:1-6)। उसके लहू ने हमारे ऊपर दोष लगाने वाले को स्वर्ग से निकाल दिया, और हमारे विरुद्ध लगाए गए आरोपों को शान्त कर दिया (प्रकाशितवाक्य 12:7-17)। यीशु स्वर्ग की सेनाओं का सेनापति है जो अजगर, उसके डरावने सेवकों और उनके झूठ पर विश्वास करने वाले सभी लोगों को नाश करने के लिए लौटेगा (प्रकाशितवाक्य 19:15-21)। यीशु, पिता और आत्मा के साथ, परमेश्वर के स्वर्गीय सेवकों, उनके स्वर्गदूतों और प्रत्येक स्थानों के सभी प्राणियों द्वारा आराधना का केन्द्र है (प्रकाशितवाक्य 5:9-14; 11:15-18; 14:2-5; 15:3-4; 19:1-8; 21:2-4, 22-24; 22:3-5)।
क्योंकि प्रकाशितवाक्य के दर्शन संसार में पाप के विषैले उपोत्पादों की भयावह वास्तविकताओं को चित्रित करते हैं, अराजकता के वे दृश्य हमारा ध्यान खींचते हैं, जैसे राजमार्गों पर यातायात दुर्घटनाएँ। परन्तु यदि हम केवल “पेड़ों” (मानवीय बुराई के दृश्य और इससे भड़कने वाले ईश्वरीय क्रोध) पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, तो हम प्रकाशितवाक्य के “वन” को खो देंगे: जो है यीशु मसीह की दया और वैभव।
2. प्रकाशितवाक्य पुराने नियम में निहित एक सचित्र “शब्दावली” के साथ बोलता है।
प्रकाशितवाक्य अपने सन्देश को ऐसे मुहावरे में पहुँचाता है जो इसे पढ़कर सुनाने के लिए उपयुक्त है: ज्वलंत चित्र हमारी कल्पनाओं पर अमिट रूप से अंकित है। पूरे पवित्रशास्त्र में, परमेश्वर (सर्वोत्तम संचारक) चित्रण चित्रित करता है: चरवाहा, चट्टान, गढ़, आग, पति, इत्यादि। चित्र भरे स्वपन्नों के माध्यम से प्रभु यूसुफ और दानिय्येल के माध्यम से अपनी योजनाओं को प्रकट करते हैं (उत्पत्ति 37, 41; दानिय्येल 2, 7)। यशायाह, यहेजकेल और जकर्याह जैसे नबियों को प्रभु अपने स्वर्गीय दरबार में पर्दे के पीछे की झलक दिखाते हैं, जिससे वे अपने लोगों के लिए उसके सन्देश को ज्वलंत प्रतीकों में देख सकते हैं (साथ ही शब्दों में सुन सकते हैं)। प्रकाशितवाक्य के प्रतीकवाद में, परमेश्वर वही कर रहा है जो उसने सदैव किया है।
प्रकाशितवाक्य के प्रतीकों के महत्व को समझने के लिए, हमें एक ऐसे शब्दकोश की आवश्यकता है जो हमें इसकी चित्रात्मक शब्दावली से परिचित कराए। वह शब्दकोष, जो शताब्दियों से परमेश्वर द्वारा लिखा गया है, पुराना नियम है। पुराने नियम के इतिहास के व्यक्ति और घटनाएँ (सृष्टि, सर्प, निर्गमन, मूसा, एलिय्याह, आदि), साथ ही इज़राइल के नबियों को दिखाए गए दर्शन, वे कुँजियाँ हैं जो प्रकाशितवाक्य के प्रतीकवाद को खोलती हैं। क्योंकि ख्रीष्ट पहली शताब्दी की कलीसियाओं और इक्कीसवीं शताब्दी की कलीसिया दोनों से बात करता है, इसलिए वह एक सचित्र मुहावरे का उपयोग करता है जिसकी पहुँच हर पीढ़ी में उसके सभी लोगों तक है: पुराने नियम की उद्धारक घटनाएँ और भविष्यसूचक प्रतीकवाद।
3. प्रकाशितवाक्य के लिए ख्रीष्ट का उद्देश्य उन विश्वासियों को सुदृढ़ करना है जिनका विश्वास और विश्वासयोग्यता सताव, बहिष्कार, धोखा, और संसारिक आत्म-सन्तुष्टि के द्वारा शैतान के आक्रमण के अधीन है।
प्रकाशितवाक्य विवाद उत्पन्न करने के लिए जाना जाता है। यद्यपि यीशु ने तिथि-निर्धारण के विरुद्ध में चेतावनी दिया था, मानो हम उन ईश्वरीय रहस्यों को सत्यापित कर सकते हैं जो “हमारे समझ से परे हैं” (मरकुस 13:32-35; प्रेरितों के काम 1:7), फिर भी मसीही समूह अभी भी इस बात के ऊपर युद्ध कर रहे हैं कि यूहन्ना के दर्शन उनके स्वयं के समय के घटनाओं के साथ कैसे “मेल खाते हैं”। जबकि हमारे युगान्तकारी झड़पों के लिए गोला-बारूद की आपूर्ति करने के स्थान पर, यीशु ने प्रकाशितवाक्य की पुस्तक को एक अधिक अत्यावश्यक और व्यावहारिक उद्देश्य के लिए दिया है: ख्रीष्ट अपनी कलीसिया को जो दुष्ट शक्तियों के आक्रमण के अधीन है स्थिर खड़े रखने के लिए हथियार प्रदान कर रहा है।
प्रकाशितवाक्य हमें शैतान की युक्ति के प्रति सचेत करता है और हमें शत्रु के प्रहारों का विरोध करने के लिए दृढ़ करता है। हिंसक सताव और सामाजिक अस्वीकृती परमेश्वर के लोगों को ख्रीष्ट के प्रति अपनी निष्ठा को त्यागने के लिए प्रलोभित करते हैं। कलीसिया झूठे शिक्षकों द्वारा धोखा खा सकती हैं और सांसारिक समृद्धि के माध्यम से आत्मसन्तुष्टि और समझौता करने में बहक सकती हैं (प्रकाशितवाक्य 2-3)। यूहन्ना के दर्शन आक्रमण करने वाले शस्त्रो को पशु, झूठे नबी और वेश्या के रूप में “देहधारी” करते हैं (प्रकाशितवाक्य 13, 17)।
एशिया की सात कलीसियाएँ युगों-युगों की कलीसियाओं का एक सूक्ष्म रूप थीं। शैतान की घातक शक्तियाँ रूप बदलतीं हैं, अलग-अलग युगों में विभिन्न वेश धारण करती हैं। उसके आक्रमण चाहे जो भी रूप ले लें, शैतान पहले से ही पराजित हो चुका है (प्रकाशितवाक्य 12:7-13; 20:1-3)। इसलिए, विजयी मेमना ने हमें प्रकाशितवाक्य की पुस्तक को दिया है कि हमारे अन्दर परख, साहस और सत्यनिष्ठा को स्थापित करे जिससे कि हम उसके वचन को दृढ़ता से थामे रहें जब हम नए आकाश और नई पृथ्वी में उसकी उपस्थिति के आशीष की उत्सुकता से प्रतिक्षा कर रहे हैं (प्रकाशितवाक्य 1:3; 22:7,14)।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।