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जॉर्ज ग्रांट
मीका की नबूवत बारह छोटे नबियों में से छठवीं है। उसकी तीन नबूवतों (मीका 1:2–2:13; 3:1–5:15; 6:1–7:20) ने विद्रोही उत्तरी इस्राएल राज्य पर प्रभु के न्याय की नबूवत की, और समृद्ध दक्षिणी यहूदा राज्य के प्रचलित अन्याय को फटकार लगाई, और प्रतिज्ञा किए गए आने वाले मसीहा की आशा की घोषणा की।
1. मीका, यशायाह और होशे का समकालीन था और इस्राएल को पश्चाताप के लिए बुलाने के उनके सन्देश में भागीदार था।
मीका ने आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व के उत्तरार्ध में योताम, आहाज और हिजकिय्याह के शासनकाल के समय में सेवा की, जो आमोस और योना नबियों के एक पीढ़ी बाद की पीढ़ी थी। ये अशान्ति से भरे हुए दिन थे। अश्शूरी राजा शालमनेसर ने सामरिया को लूट लिया, इस्राएल पर विजय प्राप्त कर ली और यहूदा को धमकाया था। धनवान निर्धनों पर अत्याचार कर रहे थे। राजनीतिक भ्रष्टाचार, सांस्कृतिक पतन और आत्मिक पतन बहुत तेजी से हो रहा था। अन्य सभी नबियों के समान, मीका, यशायाह और होशे ने भी एक समान सन्देश में साझा किया जिसमें उन्होंने परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पश्चाताप करने के लिए बुलाया। जकर्याह के समान, सन्देश प्रभु के वचनों, विधियों, और आज्ञाओं की घोषणा करना था जिससे की लोग फिरे और पश्चाताप कर सकें (जकर्याह 1:6)। योएल के समान, सन्देश यह था कि वे टाट ओढ़ें और विलाप करें (योएल 1:13)। यहेजकेल के समान, सन्देश यह था कि वे पश्चाताप करें और अपने सभी अपराधों से दूर हो जाएँ, जिससे की अधर्म उनके लिए ठोकर का कारण न बने (यहेजकेल 18:30)। नबियों में आशा का यही निरन्तर दोहराव है:
“सिय्योन न्याय से छुड़ाई जाएगी,
और उसके पश्चातापी जन धार्मिकता के द्वारा छुड़ाए जाएँगे”। (यशायाह 1:27)
निस्सन्देह, पश्चाताप का मीका का सन्देश पूर्ण रूप से स्वागत किए जाने वाला नहींं था—भले ही यह आशा का एक सन्देश था। यह नबियों के दिनों में नहीं था, और आज भी नहीं है।
2. पश्चाताप के सन्देश के प्रति इस स्वाभाविक प्रतिरोध के कारण, नबियों को प्रायः परमेश्वर के “अभियोजक अधिवक्ताओं” की भूमिका में रखा जाता था।
कभी-कभी, नबियों की अभियोक्ता वाली भूमिका बहुत स्पष्ट होती है, जैसा कि मीका के नबूवत में है (मीका 6:1-8)। आप एक नाटकीय न्यायालय के दृश्य के सभी तत्वों को देखेंगे, जिसमें प्रभु द्वारा अपने चुने हुए लोगों के विरोध आरोप लगाए गए हैं। अभियोग को स्वर्ग के सिंहासन कक्ष से बुलाया जाता है (मीका 6:1)। पहाड़ों और पहाड़ियों से लेकर पृथ्वी की नींव तक की सम्पूर्ण सृष्टि को अभियोग सुनने और कार्यवाही की साक्षी देने के लिए बुलाया जाता है (मीका 6:2)। इसके पश्चात अभियोक्ता अपना साक्ष्य प्रस्तुत करता है (मीका 6:3-5) और प्रतिवादी मोल-भाव की सम्भावना का खोज करता है (मीका 6:6-7)। लोग प्रभु से “उबे हुए” थे (मीका 6:3)। इस प्रकार, उनके विरोध आरोप बहुत गम्भीर था: विश्वासघात। यह अभियोग लोगों के छुटकारे के इतिहास की चार घटनाओं पर आधारित था। पहली घटना मिस्र में गुलामी से उनका नाटकीय बचाव था (मीका 6:4)। दूसरा था जंगल में भटकने के समयकाल में ईश्वरीय नेतृत्व—मूसा, हारून और मरियम—का उत्थान (मीका 6:4)। तीसरा था बिलाम के अभिशापों को उलटना, ठीक उसी समय जब वे दूध और मधु से बहने वाली प्रतिज्ञा किए गए देश में जाने वाले थे (मीका 6:5)। और चौथा था यरदन नदी को पार करना जिसका लम्बे समय से प्रतिक्षा किया जा रहा था—शित्तीम अन्तिम पूर्वी तट पर पड़ाव था, गिलगाल पहला पश्चिमी तट पर पड़ाव था (मीका 6:5)।
प्रत्येक अभियोगों में, परमेश्वर ने अपनी वाचा के प्रति अपनी विश्वासयोग्यता का प्रदर्शन किया था। अपने भले प्रावधान में, उसने लोगों को प्रत्येक खतरे से बचाया और उनकी प्रत्येक आवश्कता को पूरी किया। परन्तु लोग उसी प्रकार प्रतिउत्तर देने में विफल रहे। उनका प्रेम ठण्डा पड़ गया था।
ध्यान दें कि प्रतिवादी सरलता से अपना अपराध स्वीकार कर लेते हैं, परन्तु इसके पश्चात् वे सोचते हैं कि कैसे सुधार किया जा सकता है।
सम्भवतः होमबलि? सम्भवतः वर्ष भर के बछड़े? या हज़ारों मेढ़े? या तेल की दस हज़ार नदियाँ? या यहाँ तक कि उसके बच्चों में से पहलौठे (मीका 6:6–7) देने के द्वारा? परन्तु नहीं, राजा, न्यायाधीश और व्यवस्था को देने वाले ने यह कहकर उत्तर दिया कि वह इन वस्तुओं से कहीं अधिक बड़ी और कहीं अधिक बहुमूल्य वस्तु की माँग करता है। उसे कोई उपहार नहीं चाहिए। इसके स्थान पर, उसे देने वाले की माँग करता है:
हे मनुष्य, उसने तुझे बता दिया है कि अच्छा क्या है। यहोवा तुझ से इसे छोड़ और क्या चाहता है, कि तू न्याय से कार्य करे, और कृपा से प्रेम रखे, और अपने परमेश्वर के साथ नम्रता से चले? (मीका 6:8)
यहाँ पर पश्चाताप का आह्वान बहुत ही स्पष्ट है। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि आगे चलकर यीशु “व्यवस्था के भारी विषयों” को नबी की नबूवत के तीन गुणों: न्याय, दया और विनम्रता को दोहराते हुए साराँशित करेगा (मत्ती 23:23), और शास्त्रियों तथा फरीसियों को पश्चाताप के लिए बुलाएगा। दुःख की बात है कि उन्होंने इसे अपने पूर्वजों की तुलना में अच्छी रीति से स्वीकार नहीं किया। इस प्रकार, “वह अपनों के पास आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया” (यूहन्ना 1:11)। परन्तु यह वास्तव में विनम्र पश्चाताप में ही है कि हम उपचार और आशा की ओर पुनः लौटते हैं। यह पश्चाताप में ही है कि हम अनुग्रह के सन्देश को सुनने के योग्य होते हैं।
3. अनुग्रह का सन्देश न्याय की चेतावनी और पश्चाताप के आह्वान के समान ही स्पष्ट रूप से घोषित किया गया है।
मीका की नबूवत छुटकारे और पुनःस्थापना की आशा की गूँज के साथ है। यशायाह और यिर्मयाह दोनों ने मीका को उद्धृत करते हुए उसके नबूवतिय प्रतिज्ञा को दोहराया कि यद्यपि “सिय्योन को खेत के समान जोता जाएगा” और “यरूशलेम खण्डहरों का ढेर बन जाएगा,” इसके पश्चात भी “बाद के दिनों में” “प्रभु के भवन का पर्वत स्थापित किया जाएगा” और “सभी राष्ट्र उसकी ओर बहेंगे” (यशायाह 2:2–4; यिर्मयाह 26:17–19; मीका 3:12–4:3)। मत्ती ने मीका को बैतलहम से मसीहा के आने की घोषणा करते हुए उद्धृत किया, “प्रभु के नाम का प्रताप,” और “उसके झुण्ड का चरवाहा” (मत्ती 2:6; मीका 5:2–4)। लूका ने भी उसे उद्धृत किया है (लूका 12:53; मीका 7:6 और लूका 11:42-43; मीका 6:8), इस प्रकार नबी की भाषा में सुसमाचार की घोषणा को प्रस्तुत किया है।
कुल मिलाकर, मीका का सन्देश परमेश्वर की सम्प्रभुता की महिमा, परमेश्वर की वाचा के अचूक चरित्र, परमेश्वर के न्याय की निश्चितता, और परमेश्वर के असीम अनुग्रह के आश्चर्य की एक सामर्थी संक्षिप्त घोषणा है।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।