
प्रार्थना अनुग्रह का साधन क्यों है?
10 जुलाई 2025युवाओं को ईश्वरविज्ञान सिखाने के 3 उपाय

– जॉन नीलसन
यदि आप युवाओं के बीच में सेवकाई में सम्मिलित रहे हैं, तो आप जानते होंगे कि “धर्मसिद्धान्त के साथ संगोष्ठी” या “आज रात, ईश्वरविज्ञान पर चर्चा” जैसे विज्ञापन देकर भीड़ को आकर्षित करना सरल नहीं हो सकता है। आज के किशोरों और युवा वयस्कों को गहराई से ईश्वरविज्ञान सीखने के अनुशासन में सम्मिलित करना कठिन हो सकता है-विशेषकर इसलिए क्योंकि वे अधिकत्तर मनोरंजन और सोशल मीडिया की उस संस्कृति से प्रभावित होते हैं, जहाँ दो मिनट की क्लिप्स और संक्षिप्त सूचनाओं की भरमार है। यह संस्कृति गहरे और केंद्रित ईश्वरविज्ञानिय विचार के लिए की भूख को बाधित कर सकती है। फिर भी, स्थानीय कलीसिया के विश्वासयोग्य विश्वासियों की यह भूमिका है कि वे अपने युवाओं को ईश्वरविज्ञानिय दृष्टिकोण से सोचने और परमेश्वर के वचन द्वारा निर्देशित होने पर उनकी ईश्वरविज्ञानिय समझ में बढ़ने के लिए चुनौती देना है।
हमारी कलिसिया में, मैं आभारी हूँ कि हमारे युवकों और कॉलेज विद्यार्थीयों के लिए प्रभारी पास्टर बाइबल की गहरी शिक्षा में विद्यार्थियों को सम्मिलित करते हैं और उन्हें ईश्वरविज्ञान की गहरी समझ की ओर बढ़ाते हैं। कॉलेज के छात्र शुद्धतावादी लेखकों की पुस्तकों पर चर्चा करते हैं तथा रविवार की संध्या को कठिन ईश्वरविज्ञानिय विषयों पर चर्चा करने के लिए एकत्रित होते हैं। हाई स्कूल और मिडिल स्कूल के छात्रों ने वेस्टमिंस्टर लघु प्रश्नोत्तरी को पढ़ा है, उन्हें प्रश्नोत्तरी के प्रश्नों को कंठस्थ करने के साथ-साथ उसमें निहित ईश्वरविज्ञान को समझकर जीवन में लागू करना भी सिखाया गया है।
यहाँ मैं विनम्रतापूर्वक तीन सुझाव प्रस्तुत करता हूँ, जिनके माध्यम से युवा वर्ग को ईश्वरविज्ञान में रुचि लेने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है, जैसे हमारी कलीसिया में प्रयास किया जा रहा है।
- उन्हें समझाएँ कि ईश्वरविज्ञान व्यावहारिक है।
युवाओं को ईश्वरविज्ञान के अध्ययन हेतु मनाने का पहला “तर्क” यह है कि उन्हें यह दिखाया जाए कि यह केवल सिद्धान्त नहीं, वरन् अत्यंत व्यावहारिक है। यह केवल सेमिनरी की लाइब्रेरी में रखने की वस्तु नहीं है, वरन् स्कूल के गलियारों में जीने की बात है। युवाओं को यह स्मरण कराना अच्छा होगा कि ईश्वरविज्ञान उनके जीवन के हर आयाम को आकार देता है: जैसे कि सोचने के ढंग, निर्णय लेने की प्रक्रिया, मूल्य और नैतिकता, संस्कृति से संवाद, प्रेरणा और संबंधों को। हम परमेश्वर के विषय में जो विश्वास करते हैं, वही हमारे विषय में सबसे अधिक व्यावहारिक बात होती है। पवित्रशास्त्र में ईश्वरविज्ञानिय विश्वास के व्यावहारिक स्वभाव का सबसे सशक्त (नकारात्मक) उदाहरण रोमियों 1:18-32 में बताया गया है। जो विश्वास और आराधना एक पापपूर्ण निर्णय से आरम्भ होता है (सच्चे सृजनकर्ता को छोड़कर सृजित वस्तुओं की आराधना करना), वह सब प्रकार के पापपूर्ण व्यवहार और कार्यों में फलवन्त होता है। सच में हम जो विश्वास करते हैं उसका फल हमारे जीवन जीने की शैली में दिखाई देगा। इस बिंदु पर, युवाओं को यह स्मरण कराना भी उपयोगी होगा कि वे पहले से ही हर समय ईश्वरविज्ञानिय विचारों में लगे हुए हैं। और उन्हें गीत के बोल, ट्वीट, टिकटॉक वीडियो और सोशल मीडिया के प्रभावकारी व्यक्तियों के माध्यम से ईश्वरविज्ञानिय विचारों में “शिष्य” बनाया जा रहा है। यदि वे मसीही ईश्वरविज्ञान में प्रशिक्षित नहीं होते हैं, तो वे किसी तटस्थ स्थान पर नहीं रहते हैं, वरन् झूठे धर्मसिद्धान्तों की ओर अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
- उन्हें दिखाएँ कि ईश्वरविज्ञान रोमांचक है।
मेरे सेमिनरी के दिनों में, डॉ. डी. ए. कार्सन अधिकाँश यह कहा करते थे कि उन्होंने कई वर्षों में यह सीखा है कि यद्यपि उनके छात्र उनकी सिखाई गई सभी बातें स्मरण नहीं रखते थे, परन्तु वे उन बातों को सर्वदा स्मरण रखते थे जिनके विषय में वे स्वयं सबसे अधिक उत्साहित थे। मैं युवाओं के साथ कार्य करने वाले प्रभु के सेवकों और कलीसिया के सामान्य अगुवों के लिए सुझाव देना चाहता हूँ कि, सम्भवतः आपके छात्रों के भीतर ईश्वरविज्ञान के प्रति प्रेम जगाने की दिशा में पहला कदम यह उठाना होगा कि वे आपके भीतर परमेश्वर और उसके वचन और मसीही ईश्वरविज्ञान के धर्मसिद्धान्तों की सुन्दरता के लिए आपके उत्साह को देखें और उसकी अनुभूति करें।
कॉलेज और हाई स्कूल के छात्रों को ईश्वरविज्ञान की गहराई, सुसमाचार की सुन्दरता और मसीही पवित्रशास्त्र के कोष के प्रति हमारे स्वयं के उत्साह की अनुभूति करने में सक्षम होना चाहिए, सम्भवतः इससे भी पहले कि वे स्वयं उन सभी बातों के अपनी ही समझ में आगे बढ़ना आरम्भ कर दें। क्या हम मसीही धर्मसिद्धान्तों के विषय में इस प्रकार से बात करते हैं कि हमारे युवाओं को यह सन्देश मिल सके कि हम उनके साथ विश्व की सबसे महत्वपूर्ण और महिमामय बातें साझा कर रहे हैं?
- उन्हें स्मरण कराएँ कि ईश्वरविज्ञान आराधनापूर्ण होनी चाहिए।
इफिसियों के विश्वासियों के लिए पौलुस की सुन्दर प्रार्थना, जिसका सारांश वह इफिसियों 1:15-21 में देता है, निश्चित रूप से उनकी उस बढ़ोतरी के लिए प्रार्थना है जिसे हम “ईश्वरविज्ञानिय ज्ञान” कह सकते हैं। परन्तु ज्ञान में उनकी बढ़ोतरी के लिए उसकी प्रार्थना निस्संदेह आराधना में परमेश्वर की ओर झुकी हुई है। पौलुस चाहता है कि ये मसीही लोग ईश्वरीय समझ में गहराई के साथ आगे बढ़ें, जिससे कि वे अपने महिमामय उद्धारकर्ता में और अधिक आराधना करते हुए आनन्दित हो सकें। वह चाहता है कि वे “जान सकें कि उसकी बुलाहट की आशा क्या है, और पवित्र लोगों में उसके उत्तराधिकार की महिमा का धन क्या है, और उसका सामर्थ्य हम विश्वास करने वालों के प्रति कितना महान् है” (इफिसियों 1:18-19)। पौलुस केवल ईश्वरविज्ञानिय ज्ञान के खोज में नहीं है। परन्तु पौलुस के लिए ईश्वरविज्ञानिय ज्ञान की समझ में बढ़ने का अर्थ है परमेश्वर की ओर अधिक से अधिक आराधना में हमारे हृदयों को बढ़ाना और हमारे जीवन में उसके महिमामय उद्धार के कार्य के लिए उसकी स्तुति करना है।
ईश्वरविज्ञानिय शिक्षण और अध्ययन को उस महिमामय परमेश्वर के सम्बन्ध से कभी अलग नहीं किया जाना चाहिए, जिसने स्वयं को अपने वचन के द्वारा हम पर प्रकट किया है। जैसे-जैसे हम उसे अधिक समझते हैं, हमें उसकी आराधना करनी चाहिए और उसका अधिक से अधिक आनन्द लेना चाहिए।
यह लेख मसीही शिष्यत्व की मूल बात संग्रह का हिस्सा है।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।