
5 बातें जो आपको नरक के विषय में पता होनी चाहिए
4 फ़रवरी 2025
3 बातें जो आपको कुलुस्सियों के विषय में पता होनी चाहिए।
11 फ़रवरी 20255 बातें जो बाइबलीय निर्णय लेने के विषय में आपको पता होनी चाहिए

निर्णय, निर्णय, निर्णय। हम सभी प्रत्येक दिन बहुत सारे निर्णय लेते हैं। माना कि कुछ निर्णय सामान्य लगते हैं (जैसे दूध वाली चाय या काली चाय?), जबकि अन्य निर्णय निश्चित रूप से जीवन पर अधिक प्रभाव डालते हैं (मुझे किस महाविद्यालय में पढ़ना चाहिए? क्या मुझे यह कार्य करने के इस अवसर को स्वीकार करना चाहिए? मुझे अपने विवाह के लिए किसे चुनना चाहिए?)। इन सभी में, विश्वासियों को परमेश्वर की सहायता और मार्गदर्शन चाहिए। यद्दपि यह एक व्यापक सूची नहीं है, परन्तु यहाँ पाँच बातें दी गई हैं जिन्हें प्रत्येक मसीही को बाइबलीय रूप से सही निर्णय लेने के लिए ध्यान में रखना चाहिए।
1. बाइबलीय निर्णय लेना बाइबल पर आधारित है।
स्पष्ट बात को कहते हुए, बाइबल कई समान वाणियों में से केवल एक नहीं है जिसे हम चुन सकते हैं। यह अचूक बुद्धि, परामर्श, निर्देश और सम्मत्ति का एकमात्र स्रोत है। बाइबल केवल कोई सूचना पुस्तक नहीं है; यह तो हमारे परमेश्वर की ही वाणी है, ठीक वैसे ही जैसे कि वह अपने श्वास से हमसे बात कर रहा हो (2 तीमु. 3:16)। या, दूसरे शब्दों में कहें तो, बाइबल केवल सूचनात्मक नहीं है; यह सम्बन्धात्मक है। इसमें हमारा प्रेमी स्वर्गीय पिता हमारे निर्णय लेने में हमें अपना मार्गदर्शन देता है। इसलिए, कोई भी निर्णय जो पवित्रशास्त्र का स्पष्ट उल्लंघन है, वह केवल बाइबल को ही नहीं, वरन् हमारे पिता को अस्वीकार करता है। और, अनिवार्य रूप से, इसके परिणाम होंगे।
2. बाइबलीय निर्णय लेना प्रार्थनापूर्ण है।
बाइबलीय निर्णय लेना सम्बन्धात्मक है। परमेश्वर सुनता है, चिन्ता करता है, और उत्तर देता है। हम केवल किसी अव्यक्तिगत मार्गदर्शिका का अनुसंधान नहीं कर रहे हैं; हम तो मार्गदर्शक ही से मार्गदर्शन माँग रहे हैं। लेखक के साथ हमारा सम्बन्ध है। यह उसकी बुद्धि है; यह उसका परामर्श है; और यह उसके बच्चों के लिए लिखा गया है, जिनके लिए यीशु मरा और जिन्हें उसने गोद लिया और जिनसे वह प्रेम करता है। जब हम माँगते हैं तो वह हमें सहायता देने में प्रसन्न होता है।
तुम में ऐसा कौन है जो अपने पुत्र को जब वह रोटी माँगे तो पत्थर दे? अथवा मछली माँगे तो साँप दे? अतः जब तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएँ देना जानते हो तो तुम्हारा पिता जो स्वर्ग में है अपने माँगने वालों को अच्छी वस्तुएँ और अधिक क्यों न देगा? (मत्ती 7:9–11)
3. बाइबलीय निर्णय सम्मति लेकर लिया जाता है।
बाइबल प्रायः बुद्धिमानी पूर्ण निर्णय लेने के लिए दूसरों की बुद्धि से सम्मति लेने की सराहना करती है। “सम्मति के द्वारा ही योजना बना” (नीतिवचन 20:18)। “परन्तु जो सम्मति को मानते हैं, उनमें बुद्धि होती है” (नीतिवचन 13:10)। निस्सन्देह, ये “दूसरे लोग” ईश्वरभक्त, परिपक्व, बाइबलीय रीति से ज्ञानवान मसीही होने चाहिए जो हमें भली-भाँति जानते हों। ऐसे लोगों से सम्मति लेने से अधिक लाभ होता है जो हमारे निर्णय की पुष्टि कर सकते हैं या हमें सम्भावित खतरों, चुनौतियों या उन आयामों से सचेत कर सकते हैं जिन पर हमने विचार नहीं किया होगा। इसका सबसे अधिक उल्लंघन तब होता है जब हम उन लोगों से सम्मति लेते हैं जो कम परिपक्व या यहाँ तक कि गैर-मसीही मित्र होते हैं, जो प्रायः वही कहते हैं जो हम सुनना चाहते हैं। इसलिए, हमें “बाइबलीय रीति से ज्ञानवान लोगों” से सम्मति लेने की आवश्यकता होती है क्योंकि “दुष्टों की सम्मतियाँ कपटपूर्ण होती हैं” (नीतिवचन 12:5)।
4. बाइबलीय निर्णय ईश्वरीय-प्रावधान की सहायता से लिए जाते हैं।
बाइबलीय निर्णय लेने में इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि परमेश्वर अपनी सम्प्रभु ईश्वरीय-प्रावधान में क्या कर रहा है, क्योंकि वह एक ऐसा परमेश्वर है जो सक्रिय रूप से “अपने समस्त सृष्टि और उनके सभी कार्यों का संरक्षण और संचालन कर रहा है” (वेस्टमिंस्टर लघु प्रश्नोत्तरी 11)। यह निश्चित रूप से निर्णय लेने में परमेश्वर की इच्छा जानने का एकमात्र आधार नहीं है। फिर भी, परमेश्वर हमें हमारी प्रार्थनाओं के उत्तर में अवसर दे सकता है या उसका ईश्वरीय प्रावधान हमें उस रीति से निर्देशित कर सकता है जिस पर हमने पहले विचार नहीं किया था। परमेश्वर के लोग उस पर भरोसा कर सकते हैं कि जब हम विश्वास के साथ मार्गदर्शन के लिए उसकी ओर देखते हैं, तब वह ईश्वरीय-प्रावधान में होकर मार्गदर्शन देगा।
5. बाइबलीय निर्णय लेना एक परमेश्वर-प्रदत्त और बाइबल-समर्थित संयोजन है जिनमें इन सिद्धान्तों (और अन्य) को एक साथ लिया जाता है।
अच्छे अभिप्राय वाले मसीही अ-बाइबलीय निर्णय तब लेते हैं जब वे इस प्रक्रिया के एक पहलू का उपयोग करके अन्य सभी को अनदेखा कर देते हैं। दो सबसे अधिक बार उपयोग किए जाने वाले “एकल स्रोत” समाधान जिन पर लोग परमेश्वर की इच्छा को जानने के लिए त्रुटिपूर्ण रीति से भरोसा करते हैं, ये हैं (1) यह सोचना कि हम परमेश्वर की योजना के अचूक व्याख्याकार हैं (“मैंने यह चिह्न देखा” या “मैंने यह स्वप्न देखा”) और (2) हमारी भावनाएँ (“मुझे लगता है कि परमेश्वर चाहता है कि मैं यही करूँ”)। जब इनमें से किसी एक को सभी अन्य पहलुओं को छोड़कर लिया जाता है, तो निर्णय असन्तुलित होगा। इस प्रतिज्ञा के साथ कि वह हमारे निर्णयों में हमारी सहायता करेगा, परमेश्वर ने हमारे उपयोग के लिए अपने सम्पूर्ण वचन दिया है।हमारे निर्णय लेने में जो शांति और भरोसा है, वह यह है कि परमेश्वर हमसे प्रेम करता है और हमारे द्वारा लिए गए प्रत्येक निर्णय में सदैव अपना सर्वोच्च उद्देश्य पूरा करेगा। और भले ही हम “गड़बड़” करें—जबकि निश्चित रूप से नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं जिनके लिए हम पूरी रीति से उत्तरदायी हैं—परमेश्वर फिर भी हमारे भले और उसकी अपनी महिमा के लिए हमारे सभी पापों और त्रुटियों के होने पर भी हमारे जीवन की देखरेख करेगा। हमारे पास जो शान्ति और सान्त्वना है, वह हमें चिन्ता भरी भय की भयंकर हवाओं से बचाती है, क्योंकि वह अभी भी परमेश्वर है, जो अपनी सम्प्रभु इच्छा से, उनके लिए जो परमेश्वर से प्रेम रखते हैं वह सब बातों के द्वारा भलाई को उत्पन्न करता है, अर्थात् उन्हीं के लिए जो उसके अभिप्राय के अनुसार बुलाए गए हैं। (रोमियों 8:28)।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।