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हम किसी ईमेल या सन्देश को तब तक नहीं समझ सकते हैं जब तक कि हम उसकी पृष्ठभूमि, सन्दर्भ, और उद्देश्य को नहीं जानते हैं। उसी प्रकार, हम कुलुस्सियों के लिए पौलुस की पत्री को तब तक नहीं समझ सकते हैं जब तक हम उसकी पृष्ठभूमि, सन्दर्भ, और उद्देश्य को नहीं समझते हैं।
कुलुस्सियों के लिए पौलुस की पत्री के पीछे उसकी यह चिन्ता थी कि झूठी शिक्षा कुलुस्से के विश्वासियों के विश्वास और जीवन को खोखला कर रही थी। इन झूठे शिक्षकों को गूढ़ज्ञानवादी कहा गया (“जानने वाले” या “सब कुछ जानने वाले”) क्योंकि वे विश्वास करते थे कि उद्धार का मार्ग एक विशेष, अतिरिक्त ज्ञान था जो उच्च आध्यात्मिक वर्ग के लोगों को भौतिक संसार से ईश्वरीय संसार में ले जाता था।
तब यह आश्चर्यजनक नहीं है कि कुलुस्सियों की तीनों मुख्य बातें गूढ़ज्ञानवादियों की तीन प्राथमिक शिक्षाओं से जुड़ी हुई हैं।
1. ख्रीष्ट सर्वोच्च है।
गूढ़ज्ञानवादी शिक्षा देते थे कि ईश्वरीय आत्मिक प्राणियों में एक जटिल पदानुक्रम है और कि उनमें से सबसे नीच प्राणी ने भौतिक संसार की रचना की। इसलिए किसी भी प्रकार की भौतिक वस्तु का बहुत ही कम महत्व है।
पौलुस ख्रीष्ट को परमेश्वर के उस सिद्ध स्वरूप के रूप में पहचान कर सब कुछ के ऊपर उसके सर्वोच्च स्थान और अधिकार को स्थापित करता है, जिसका सम्पूर्ण सृष्टि के ऊपर पहला स्थान है क्योंकि उसने सब कुछ की सृष्टि की, जिसमें भौतिक संसार तथा आत्मिक संसार सम्मिलित हैं (कुलुस्सियों 1:15-16)। उसने केवल भौतिक संसार को बनाकर उसे छोड़ नहीं दिया, वरन् वह इसे सम्पूर्णता से थामे भी है, सम्पूर्ण सृष्टि को सम्भालते हुए और उसको संचालित करते हुए (कुलुस्सियों 1:17)। उसके पास कलीसिया के ऊपर भी सर्वोच्चता का पहला स्थान और अधिकार है क्योंकि अपने देहधारण में, उसने पापियों का परमेश्वर से मेल कराने के लिए परमेश्वर की पूर्णता को पूर्ण शारीरिक मानवता के साथ जोड़ा, और फिर दुःख उठाया, मर गया और पुनः उसी देह में जी उठा (कुलुस्सियों 1:18-20)।
पौलुस कुलुस्सियों के लोगों से कह रहा था: “गूढ़ज्ञानवादियों की मत सुनो। ख्रीष्ट ही सर्वोच्च ईश्वर है, न कि कोई अन्य आत्मिक प्राणी। भौतिक संसार सबसे नीच आत्मिक प्राणी के द्वारा नहीं, वरन् इस सर्वोच्च ख्रीष्ट के द्वारा रचा गया था। यह सर्वोच्च ख्रीष्ट एक भौतिक शरीर में भौतिक संसार में आ गया। इस सर्वोच्च ख्रीष्ट ने भौतिक संसार को परमेश्वर से मिलाने के लिए यह सब किया। क्या आप देखते हैं कि भौतिक संसार परमेश्वर के लिए कितना मूल्यवान है? शरीर या भौतिक संसार को तुच्छ न समझो, परन्तु परमेश्वर की उस सृष्टि के रूप में इसको महत्व तथा सम्मान दो जिसे वह बचाना चाहता है।”
2. ख्रीष्ट पर्याप्त है।
गूढ़ज्ञानवादी शिक्षा देते थे कि उद्धार एक विशेष गुप्त ज्ञान (जिसे ग्नोसिस कहा जाता है) तक पहुँचने के द्वारा आता है, जिसे केवल कुछ चुने हुए लोग ही अनुठे अन्तर्दृष्टि और रहस्यवादी अनुभवों के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं (कुलुस्सियों 2:1-3)। वे विश्वास करते थे कि वे स्वयं को बचा सकते थे।
इसलिए पौलुस ने कुलुस्सियों के लोगों के ध्यान को इस ओर लगाया कि केवल ख्रीष्ट पर विश्वास ही समृद्ध और उद्धारक बुद्धि का स्रोत है। उसने उन्हें किसी ऐसी शिक्षा के विरुद्ध चेतावनी दी जो उन्हें किसी भी सांसारिक दर्शन, परम्परा या अभ्यास के लिए ख्रीष्ट की पर्याप्तता से दूर कर देगी (कुलुस्सियों 2:4-9)। ख्रीष्ट में परिपूर्णता है और, इसलिए, मसीही उसमें परिपूर्ण हैं ( कुलुस्सियों 2:10)। उद्धार या पवित्रीकरण के लिए केवल क्रूस पर चढ़ाए गए ख्रीष्ट पर विश्वास से हटकर किसी और बात की आवश्यकता नहीं है (कुलुस्सियों 2:11-15)। कोई भी अतिरिक्त ज्ञान, अभ्यास, अनुभव या स्वर्गदूत ख्रीष्ट में कुछ भी जोड़ नहीं सकता है। ख्रीष्ट पूर्ण है, और हम उसमें पूर्ण हैं (कुलुस्सियों 2:16-23)।
पौलुस कुलुस्सियों के लोगों से कह रहा था: “यदि आपके पास ख्रीष्ट है, तो आपके लिए यह पर्याप्त है।
यदि आप ख्रीष्ट में कुछ भी जोड़ेंगे, तो आप ख्रीष्ट से घटा ही रहे होंगे। परिपूर्ण ख्रीष्ट में परिपूर्ण होकर विश्राम करो।”
3. ख्रीष्ट हमारी पहचान है।
क्योंकि गूढ़ज्ञानवादी भौतिक संसार को तुच्छ जानते थे, इसलिए इस संसार की नैतिकता को भी तुच्छ जानते थे। उनके लिए उद्धार का अर्थ था भौतिक संसार से बचना और आत्मिक संसार में प्रवेश करना। उनके लिए भौतिक संसार में हमारी भौतिक क्रियाएँ अर्थ नहीं रखती थीं।
इसके विपरीत, पौलुस ने शिक्षा दी कि क्योंकि मसीही लोग ख्रीष्ट के साथ गाड़े गए और उसके साथ जी उठे, उनके पास इस संसार में एक नई पहचान है ( कुलुस्सियों 3:1-4)। उस नई पहचान के साथ नई जीवन शैली आती है, जो इस संसार के लिए और इसमें हमारे जीवनों के लिए एक नया दृष्टिकोण है। सांसारिक रीतियों की पुरानी पहचान को उतारना है और नई ख्रीष्ट-पहचान को पहनना है (3:5-17)। इसके पश्चात् उस पहचान की सामान्य रूपरेखा को पत्नियों, पतियों, बच्चों, कर्मचारियों और स्वामियों के लिए बहुत ही विशिष्ट निर्देशों के साथ समझाया गया है ( कुलुस्सियों 3:18-4:6)।
कुलुस्सियों के मसीहियों के लिए पौलुस के प्रोत्साहन को इस प्रकार सारांशित किया जा सकता है: “गूढ़ज्ञानवादियों के आत्मिक संसार पर विशेष ध्यान से भटक मत जाओ। भौतिक संसार पर ख्रीष्ट की सर्वोच्चता का अर्थ है कि आपको अवश्य ही इस भौतिक संसार में अपने भौतिक शरीरों में उसकी प्रभुता के अधीन जीना है। और ख्रीष्ट की पर्याप्तता का अर्थ है कि उसमें आपके पास एक पूर्ण और सन्तोषजनक नई पहचान है जिसे इस संसार में आपके सम्बन्धों में प्रमाणित होना चाहिए।”
तो हम ख्रीष्ट के सर्वोच्च प्रभुता के अधीन कैसे रह सकते हैं, पूर्ण ख्रीष्ट में पूर्णता कैसे पा सकते हैं, और ख्रीष्ट के लिए एक नई जीवन शैली के साथ उसमें अपनी नई पहचान को कैसे व्यक्त कर सकते हैं ? कुलुस्सियों के लिए पौलुस के पहले और अन्तिम शब्दों को देखेंः “तुम पर अनुग्रह हो” ( कुलुस्सियों 1:2; 4:18)।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।