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5 बातें जो आपको नरक के विषय में पता होनी चाहिए

5 Things You Should Know about Hell

क्योंकि नरक के विषय पर विचार करना कठिन है, कलीसिया के भीतर और कलीसिया के बाहर कई लोगों ने इस विचार को सहज बनाने का प्रयास किया है। वे सोचते हैं कि एक प्रेमी परमेश्वर लोगों को ऐसे घृणास्पद स्थान पर कैसे भेज सकता है? परन्तु परमेश्वर ने हमें नरक के सम्बन्ध में उसे दोषमुक्त करने के लिए नहीं कहा है, और वह इस प्रकार के सहज बनाने के प्रयासों की अनुमति नहीं देता है। नरक के विषय में हम जो अधिकतर बातें सीखते हैं, वास्तव में, स्वयं प्रेमी यीशु से आती हैं, जिसकी नरक के विषय में शिक्षा पुराने नियम की शिक्षा को और समझाती है। नरक के विषय में जानने के लिए पाँच बातें यहाँ दी गई हैं।

1. नरक सचेतन एवं अनन्त दुःख का वास्तविक स्थान है।

विनाशवाद (annihilationism) या नियमबद्ध अमरता के रूप में जाना जाने वाला झूठा सिद्धान्त यह मानता है कि दुष्ट लोग अन्तिम न्याय के समय नष्ट कर दिए जाएँगे। उन्हें मृत्यु के पश्चात् के जीवन में सचेतन, शाश्वत दण्ड के विषय में चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। इस दृष्टिकोण के विपरीत, बाइबल नरक को सचेतन और चिरस्थायी दुःख के स्थान के रूप में प्रस्तुत करती है। नरक के दुःखों का अन्त नहीं होगा (यहूदा 13; प्रकाशितवाक्य 20:10)। उदाहरण के लिए, लूका 16 में, धनी व्यक्ति को अधोलोक में “अत्यन्त पीड़ा में” (लूका 16:23) होते हुए वर्णन किया गया है और वह अपनी दयनीय स्थिति के विषय में सचेत है, और इसमें कोई सन्देह नहीं है कि वह पीड़ा में बने रहने के स्थान पर अपने अस्तित्व को खो देना भला लगेगा।

“दूसरे अवसर” की विचारधारा के लिए भी कोई बाइबलीय आधार नहीं है। नरक के निवासियों की आवासीय स्थिति सदा के लिए निर्धारित है। मृत्यु, रहने के स्थान में स्थायी परिवर्तन का क्षण है। इसलिए, इन विचारों का आधार पवित्रशास्त्र से नहीं है कि नरक में प्राण अन्ततः नष्ट हो जाएँगे (विनाशवाद) या कि उन्हें दूसरा अवसर दिया जाएगा।

2. नरक प्रत्येक मनुष्य के लिए दो ही सम्भावित गन्तव्यों में से एक है।

जब कोई व्यक्ति मरता है, तो उसके शरीर को गाड़ा जाता है और उसके प्राण को तुरन्त परमेश्वर की उपस्थिति में पहुँचाया जाता है, जहाँ उसे या तो स्वर्ग में ले जाया जाएगा या नरक में डाल दिया जाएगा। वेस्टमिंस्टर विश्वास का अंगीकार  32.1 इस प्रकार से इस बात को वर्णित करता है:

मनुष्यों के शरीर, मृत्यु के पश्चात्, मिट्टी में मिल जाते हैं, और सड़ जाते हैं: परन्तु उनके प्राण, जो न तो मरते हैं और न ही सोते हैं, क्योंकि वे अमर हैं, तुरन्त उस परमेश्वर के पास लौट जाते हैं जिसने उन्हें दिया: धर्मी लोगों के प्राण, पवित्रता में परिपूर्ण होकर, सर्वोच्च स्वर्ग में ग्रहण किए जाते हैं, जहाँ वे प्रकाश और महिमा में परमेश्वर के मुख को देखते हैं, और अपने शरीर के पूर्ण छुटकारे की प्रतीक्षा करते हैं। और दुष्टों के प्राण नरक में डाल दिए जाते हैं, जहाँ वे पीड़ा और घोर अन्धकार में रहते हैं, जो न्याय के दिन तक रखे जाते हैं। इन दो स्थानों के अतिरिक्त, अपने शरीर से अलग हुए प्राणों के लिए, पवित्रशास्त्र अन्य किसी स्थान की बात नहीं करता है।

अन्तिम दिन पर, प्रत्येक प्राण अपने शरीर के साथ फिर से जुड़ जाएगा। उस समय, धर्मी लोग अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे, जबकि दुष्टों को “अनन्त पीड़ा” में डाल दिया जाएगा (वेस्टमिंस्टर विश्वास का अंगीकार 33.2)। फिर से, इन दो स्थानों के अतिरिक्त, पुनरुत्थान के समय अपने शरीर के साथ जुड़ने वाले प्राणों के लिए , पवित्रशास्त्र अन्य किसी स्थान की बात नहीं करता है।

3. नरक परमेश्‍वर की क्रोधपूर्ण उपस्थिति का स्थान है।

वेस्टमिन्स्टर अंगीकार 33.2 में नरक की “अनन्त पीड़ाओं” को “प्रभु की उपस्थिति से और उसकी शक्ति की महिमा से अनन्त विनाश के साथ” दण्ड के स्थान के रूप में वर्णित किया गया है। प्रायः नरक को परमेश्वर की उपस्थिति से अलग होने के स्थान के रूप में माना जाता है। परन्तु परमेश्वर तो सर्वोपस्थित है— ऐसा नहीं हो सकता कि वह कहीं न हो। इसके स्थान पर, पवित्रशास्त्र नरक को उसकी अनुपस्थिति के अनुभव के रूप में नहीं वरन्, उसकी क्रोधपूर्ण उपस्थिति, उसकी अन्तहीन क्रोध और दण्ड के रूप में देखता है। हमारा परमेश्वर, जो एक “भस्म करने वाली आग” है (इब्रानियों 12:29), नरक में दुष्टों पर अपना “प्रकोप और क्रोध” (रोमियों 2:8) उण्डेलेगा।

यदि यह बात ख्रीष्टियों को सुनने में बुरी लगती है, तो ऐसा इसलिए है क्योंकि यह परमेश्वर का एक पक्ष है जो परमेश्वर के प्रिय बच्चों के रूप में हमारे अनुभव के अनुरूप नहीं है। दुष्टों को नरक में परमेश्वर के उस क्रोध का अनुभव होगा जिसे ख्रीष्ट ने अपने लोगों के लिए बुझा दिया था, परन्तु दुष्ट लोगों के लिए नरक की वास्तविकताएँ इसके प्रतीकात्मक वर्णन से भी अधिक भयंकर हैं, ठीक वैसे ही जैसे कोई भी प्रतीक वास्तविकता का केवल अपूर्ण रूप से ही प्रतिनिधित्व और संकेत कर सकता है। सम्भवतः बाइबल में नरक को प्रतीकात्मक रूप से इसलिए वर्णन किया गया है क्योंकि पवित्र परमेश्वर की ओर से अन्तहीन दण्ड अवर्णनीय रूप से भयानक है।

4. नरक के निवासी वे लोग हैं जिन्होंने वहाँ रहने का चुनाव किया है।

नरक उन लोगों का गन्तव्य है जिन्होंने ज्योति के स्थान पर अन्धकार से प्रेम करना चुना है (यहून्ना 3:18-21)। हो सकता है कि यह बात धनी व्यक्ति की लालसा भरी पुकार के विपरीत प्रतीत होती है, “हे पिता इब्राहीम, मुझ पर दया कर। लाजर को भेज कि वह अपनी उंगली का सिरा पानी में डुबोकर मेरी जीभ को ठण्डा करे, क्योंकि मैं इस ज्वाला में पड़ा तड़प रहा हूँ” (लूका 16:24)। परन्तु ध्यान दें कि धनी व्यक्ति अचानक परमेश्वर की इच्छा नहीं करता; वह केवल परमेश्वर के दण्ड से छुटकारा चाहता है।

कैल्विनवादी इस बात की पुष्टि कर सकते हैं और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति को अन्त में वही प्राप्त होता है जिसे उसने स्वतन्त्र इच्छा से चुना है—या तो वह पवित्र आत्मा के पुनरुज्जीवन द्वारा परमेश्वर की आराधना करना या परमेश्वर को शाप देना। जो लोग नरक में हैं, वे यह नहीं कह सकते हैं, और न ही कहेंगे कि उनके साथ अन्याय हुआ है, क्योंकि उन्हें वही दिया गया है जो उन्हें मिलना चाहिए, और जिसे उन्होंने ही चुना। बाइबल नरक को परमेश्वर द्वारा दिए गए एक दण्ड के रूप में देखने और नरक को मनुष्यों द्वारा स्वतन्त्र रूप से चुने हए के रूप में देखने में कोई विरोधाभास नहीं है। तो, नरक, हमारी अपनी इच्छाओं और शरीर की वासनाओं के लिए स्वयं का “दे दिया जाना” है (रोमियों 1:24)।

5. नरक परमेश्वर के स्वभाव से सुसंगत है।

नरक परमेश्वर के अभिलेख पर काला धब्बा नहीं है। यह उनके बायोडेटा पर एक लज्जाजनक कार्य नहीं है जो उनके वास्तविक स्वरूप से विरुद्ध है। नहीं, नरक परमेश्वर के पवित्र न्याय के अनुरूप है जो पाप के लिए दण्ड को विषय के अपराध के उचित अनुपात में रखने की माँग करता है। परमेश्वर का न्याय और कृपा एक दूसरे के विरोधी नहीं हैं। वे पूरी रीति से सुसंगत हैं, और स्वर्ग और नरक उस पवित्र सुसंगतता की अभिव्यक्तियाँ हैं। यदि परमेश्वर न्यायी न होता, तो विनाशवाद, सर्वमुक्तिवाद, या मृत्यु के बाद के जीवन से सम्बन्धित कोई भी अन्य अ-बाइबलीय दृष्टिकोण सम्भाव होता।

अपने पुत्र के कार्य में परमेश्वर की उदारता और न्याय पर विचार करें। यदि नरक न होता तो क्या ख्रीष्ट का कार्य व्यर्थ नहीं होता? यदि दुष्टों को नष्ट कर दिया जाता या किसी रीति से स्वर्ग में प्रवेश मिल जाता, तो क्या ख्रीष्ट का बलिदान अनावश्यक नहीं होता? वास्तव में, नरक को अस्वीकार करना न केवल परमेश्वर के चरित्र से असंगत है, वरन् यह परमेश्वर के पुत्र को पैरों तले रौंदने के समान है (इब्रानियों 10:29)। परमेश्वर का चरित्र—उसका न्याय और उसकी भलाई—दुष्टों पर पाप के लिए पूर्ण दण्ड के आनुपातिक निष्पादन की माँग करता है।

जबकि नरक के विषय में और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है, हमारे लिए यह स्मरण रखना अच्छा है कि बाइबल में नरक के कई वर्णन ख्रीष्ट के अनुग्रह को बढ़ाने के लिए हैं, जिसने हमें इससे बचाया है, और हमारे भीतर एक उत्साह भरने के लिए है कि हम दूसरों को सच्चे विश्वास और पश्चाताप के द्वारा ख्रीष्ट की ओर मुड़कर नरक की पीड़ा से भागने की चेतावनी दें।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

ऐरन गैरियट्ट
ऐरन गैरियट्ट
रेव. ऐरन गैरियट्ट (@AaronGarriott) टेब्लटॉक पत्रिका के प्रबन्धक सम्पादक हैं, सैन्फर्ड, फ्लॉरिडा में रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज में निवासी सहायक प्राध्यापक हैं, तथा प्रेस्बिटेरियन चर्च इन अमेरिका में एक शिक्षक प्राचीन हैं।