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हमारे साथ उपस्थित रहिए

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पाचवां अध्याय है: पीढ़ी से पीढ़ी

इस जीवन में कुछ आशीषें हमारे जीवनों में वरिष्ठ भक्तिपूर्ण पुरुषों और स्त्रियों की तुलना में अधिक आशीषमय हैं। क्यों? क्योंकि हम सभी को पवित्रता के लिए आदर्शों की आवश्यकता है। शब्द महत्व रखते हैं, परन्तु जीवित उदाहरण प्रायः युवा विचलित हृदयों से बल देते हुए बोलते हैं। यह कोई दुर्घटना नहीं है कि प्रेरित पौलुस अपने शिष्य तीमुथियुस को यह कहकर प्रोत्साहित करता है, “हम इसीलिए परिश्रम और प्रयत्न करते हैं, क्योंकि हमारी आशा जीवित परमेश्वर पर स्थिर है, जो सब मनुष्यों का—विशेषकर विश्वासियों का—उद्धारकर्ता है” (1 तीमुथियुस 4:10)। पौलुस तीमुथियुस के सामने अपना उदाहरण प्रस्तुत करता है। रुचिकर रीति से वह तब तीमुथियुस को निर्देश देता है कि “तू वचन, व्यवहार, प्रेम, विश्वास और पवित्रता में विश्वासियों के लिए आदर्श बन जा” (पद 12)। ख्रीष्ट के जैसे होने का जीवित उदाहरण उनके आसपास के लोगों के जीवनों को सूचित करते हैं। प्रत्येक युवा ख्रीष्टीय—न केवल वरिष्ठ धर्मी ख्रीष्टियों के उदाहरण से लाभ प्राप्त है—उसको उनकी आवश्यकता है।

कुछ महीने पहले, जिस कलीसिया में मैं सेवा कर रहा हूँ, सेवानिवृत्त पुरुषों के एक समूह ने प्रत्येक बुधवार की सुबह प्रार्थना करने के लिए मिलने का निर्णय लिया। उस सप्ताह मैं कलीसिया के भवन में गया जब वे अपनी सभा का समापन कर रहे थे। जब वे जा रहे थे, तो मैंने उनसे कहा: “यह मेरे हृदय को प्रसन्न करता है। मैं धन्यवादी हूँ कि आप पुरुष मिल रहे हैं, और प्रार्थना कर रहे हैं, और एक-दूसरे को ख्रीष्ट की देह की सेवा करने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास कर रहे हैं।” इन वरिष्ठ ख्रीष्टियों में से एक ने मेरी ओर देखा और कहा, “यह सुनने में अच्छा है, क्योंकि हम समाज में बहुत अनावश्यक अनुभव करते हैं।”  मेरा साधारण प्रत्युत्तर था: “हमारे समाज में ऐसा अनुभव हो सकता है, परन्तु हमारी कलीसिया में ऐसा कभी नहीं होना चाहिए। हमें आपकी आवश्यकता है। और कलीसिया को आपकी आवश्यकता है।”

कलीसिया को अनुभवी सन्तों की आवश्यकता है जो उन सन्तों के साथ हों, जो वर्षों में, ईश्वरभक्ति में, या दोनों में कम परिपक्व हैं। युवा लोगों के रूप में, हम अपने मस्तिष्क को तुरन्त की बातों के साथ व्यस्त रखते हैं। तुरन्त की बातें ध्यान की मांग करते हैं। प्रायः शान्त, संयमित, स्थिर, सेवक-हृदय वाला वरिष्ट सन्त का जीवन हमें हमारे युवा तन्मयता से बाहर निकालता है।

क्यों? क्योंकि हम आपके जीवनों को ध्यान से देख रहे हैं। फिर भी, जो हम उस बात को  ध्यान से नहीं देख सकते हैं जिसे हम देख नहीं सकते हैं। पौलुस के जीवन ने तीमुथियुस को सिखाया, और अब तीमुथियुस के जीवन को उसकी मण्डली के लोगों के जीवनों को सिखाना था। यह पुराने सन्तों द्वारा विश्वास के जीवन का आदर्श बनने की सुन्दरता है। फिर भी, यह सब निर्भर होता है पुराने सन्तों का युवा सन्तों के समक्ष उपस्थित होने पर।

जब मैं अपने स्वयं के जीवन के बारे में सोचता हूं, कुछ विशेष व्यक्ति हैं, पुरुष और महिलाएं, जो मुझे परामर्श देते हैं। जब अलग-अलग निर्णय स्वयं को प्रस्तुत करते हैं, तो मैं प्रायः सोचता हूँ, “इस स्थिति में जेन क्या करती?” या, “जॉन इस बात का समाधान कैसे करता?” फिर भी जब मैं अपने मसीही जीवन के विषय में सोचता हूँ, पुराने ख्रीष्टियों द्वारा मुझ से कही गई बातें कम बनी रहती हैं। किसी भी बात से अधिक, लोगों के जीवन मेरे मन में बस जाते है। मुझे उनका चाल-चलन, वार्तालापों को ख्रीष्ट की ओर बदलने की उनकी योग्यता, उनका आनन्द, उनकी शान्ति, उनकी पारिवारिक एकता, बिना सराहना के उनकी सेवा करने की इच्छा, उनकी विश्वासयोग्यता, उनका विश्वास, उनकी निरन्तरता, उनके सुनने वाले कान स्मरण हैं। उन्होंने आत्मा के द्वारा परमेश्वर की महिमा के लिए ख्रीष्ट का अनुसरण करते हुए जीवन जीया, और उन्हें यह नहीं पता था कि मैं देख रहा था।

मैं वृद्ध नहीं हूँ, परन्तु इस वास्तविकता ने मुझे कई वर्ष पहले प्रभावित किया। मेरा पहला पास्टरीय कार्य परिवारों और युवाओं के मध्य था। मेरा सप्ताह का अधिकांश समय हाई स्कूल के विद्यार्थियों के मध्य व्यतीत होता था। उनके साथ तीन वर्ष के पश्चात्, मैंने देश की दूसरी दिशा में नयी कलीसिया को स्थापित करने हेतु बुलाहट को स्वीकार किया और इसलिए इन विद्यार्थियों को छोड़ने के लिए बाध्य हुआ। इसके बाद के वर्षों में मुझे आघात हुआ कि कुछ विद्यार्थियों से, जिनके साथ मैंने व्यक्तिगत रीति से बहुत कम समय व्यतीत किया था, मुझे ई-मेल और पत्र प्राप्त होते रहे। वे केवल कुछ विद्यार्थी थे, जिन्होंने युवा समूह या सण्डे स्कूल की कक्षा में भाग लिया और सम्भवतः युवाओं की यात्रा पर गए थे। फिर भी, परमेश्वर के अनुग्रह से, वे विभिन्न प्रकारों को स्मरण रखते थे जिनमें कि मैंने उनके जीवनों को प्रभावित किया। कैसे? केवल उनके साथ उपस्थित होने के द्वारा।

हमारा जीवन निरन्तर प्रदर्शन पर है, और अन्य लोग इस बात पर मानसिक रूप से ध्यान दे रहे हैं कि ख्रीष्ट के लिए जीने का क्या अर्थ है। निस्सन्देह, यह एक कारण है कि पौलुस तीमुथियुस से क्यों कहता है, “अपने ऊपर और अपनी शिक्षा पर विशेष ध्यान दे” (1 तीमुथियुस 4:16)। प्रिय “अधिक अनुभवी सन्त,” आपका हमारे साथ होना केवल अच्छा नहीं है— कलीसिया में हमारे साथ रहने के लिए हमें आपकी आवश्यकता है। हमें अपने सामने आपका उदाहरण, आपकी उपस्थिति, आपके जीवन की आवश्यकता है। हमें ख्रीष्ट को दिखाइए और अपने परिश्रम से प्राप्त की गई बुद्धि के द्वारा दिखाइए कि उसकी महिमा के लिए अच्छे से कैसे जीएं।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
जेसन हेलोपौलोस
जेसन हेलोपौलोस
रेव्ह. जेसन हेलोपौलोस पूर्व लैन्सिंग, मिशिगन में यूनिवर्सिटी रिफॉर्मड चर्च (पी.सी.ए) के वरिष्ठ पास्टर हैं। वे द न्यू पास्टरज़ हैंडबुक और अ नेग्लेक्टड ग्रेस: फैमिली वर्शिप नामक पुस्तकों के लेखक हैं।