धन्य हैं वे जो शोक करते हैं
31 अगस्त 2021धन्य हैं वे जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं
7 सितम्बर 2021धन्य हैं वे जो नम्र हैं
सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का चौथा अध्याय है: धन्यवाणियाँ
टीकाकारों और बाइबल के शिक्षकों के लिए धन्य वाणियों में “धन्य” की व्याख्या “खुश रहना” अर्थ के रूप में करना असामान्य नहीं है। यूनानी में शब्द जिसका अनुवाद “धन्य” किया जाता है मकारियोस है, और जबकि “खुश रहना” एक उपाय है इसकी व्याख्या करने के लिए, धन्य वाणियों के व्यापक सन्दर्भ में, खुशी निशाने से चूक जाते हुए प्रतीत होता है। एक बात के लिए, खुश होना एक व्यक्तिपरक भावनात्मक स्थिति है, और निश्चित रूप से पद 11 में निन्दित होना और यातना पाना ऐसी स्थिति के साथ मेल नहीं खाता है। इसके अतिरिक्त, मकारियोस का खुश के रूप में अर्थ निकालना, इस त्रुटि की ओर ले जाता है कि धन्य वाणी को खुश रहने से सम्बन्धित उपदेशों की श्रृंखला के रूप में देखा जाता है, जो कि ऐसा प्रतीत नहीं होता जैसा यीशु यहाँ कर रहा है। इसके विपरीत, धन्य वाणी श्रृंखला हैं नबूवत की घोषणाओं की जो परमेश्वर उन को प्रदान करेगा जिन्हें वह अपने राज्य में ग्रहण करेगा।
इन विशेषताओं और गुणों को प्रदान या दिए जाने का कारण यह है क्योंकि वे स्वाभाविक रूप से प्राप्तकर्ताओं के द्वारा धारण नहीं की जाती है, न ही उनके प्राप्तकर्ता स्वयं में इन विशेषताओं को उत्पन्न करने के योग्य हैं। इसे एक कदम आगे ले जाने के लिए, जो चरित्र की विशेषताएं धन्य वाणियों में निर्धारित हैं, वे ऐसी बातें नहीं है जिसकी हम अपनी पतित स्थिति में अभिलाषा रखते हैं। मत्ती 5:5 के विषय में निश्चित रूप से ऐसा ही है: “धन्य हैं वे जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के उत्तराधिकारी होंगे।” संसार को प्राप्त कर लेने का विचार, चाहे व्यक्तिगत रूप से या एक राष्ट्र के रूप में, मानव इतिहास जितना पुराना हैं, और बाबेल की मीनार के निर्माणकर्ताओं की भावना ऐसे प्रयासों के माध्यम से प्रतिध्वनित होती है: “आओ, हम अपने लिए एक नगर और एक गगनचुम्बी मीनार बनाएं, और हम अपने लिए नाम कमाएं” (उत्पत्ति 11:4)। यह पतित मानवता का लक्ष्य प्रतीत होता है, दोनों ही रूप से व्यक्तिगत और सामूहिक: संचय के द्वारा, उपलब्धि, या अपनी सीमाओं का विस्तार करने के द्वारा अपने लिए नाम बनाना । और जब ये बातें लक्ष्य होती हैं किसी व्यक्ति या लोगों की, तो उस व्यक्ति या लोगों का परिभाषित चरित्र लोभ और अभिमान की दिशा में झुक जाएगा।
इसलिए मत्ती 5:5 की ओर देखते हुए, हम ध्यान देते हैं कि यह पद भजन 37 जैसे स्थलों से जुड़ा है, जहाँ कि कुकर्मियों की संसार की वस्तुओं को पाने की निर्दयी अभिलाषाएं विपरीत हैं उन धर्मियों के सामने जो अपने मार्गों को प्रभु को सौंप देते और उसमें भरोसा रखते हैं (भजन 37:5)। पद 9-10 में, हमें बताया गया है कि दुराचारी काट डाले जाएंगे। इसके साथ, पृथ्वी को अर्जित नहीं किया जाएगा परन्तु उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त किया जाएगा (पद 9,11,22 और 34)। और आश्चर्य की बात यह है: वे जो पृथ्वी को उत्तराधिकार में प्राप्त करेंगे वे नम्र हैं।
जैसा कि कई लोग सोच सकते हैं उसके विपरीत, नम्रता निर्बलता नहीं है। भजन 37 और धन्य वाणियों दोनों में ही, नम्रता दीनता और परमेश्वर प्रति अधीन होना है। फिर से, भजन 37 को ध्यान में रखते हुए, दुष्ट हर मूल्य पर प्राप्त करना चाहता है। पद 14 में, उन्होंने “तलवारें खींच ली और अपने धनुष चढ़ा लिए हैं कि दीन दरिद्रों को गिरा दें,” और जब वे ऐसी वस्तुएं प्राप्त करते हैं जो क्षणिक आनन्द को देती हैं, केवल नम्र ही, जो प्रभु में मग्न रहते हैं (पद 4) पृथ्वी के उत्तराधिकारी होंगे।
परन्तु इससे यह प्रश्न उठता है कि कोई कैसे नम्र बनता है। मैंने पहले संकेत दिया था कि धन्य वाणी घोषणाओं की एक श्रृंखला हैं जो परमेश्वर उन्हें प्रदान करता है जिन्हें वह अपने राज्य में ग्रहण करता है। इसलिए, मत्ती 5:5 के प्रकाश में, परमेश्वर हमें पृथ्वी उत्तराधिकारी के रूप में देता है। परन्तु वह नम्रता भी देता है। ऐसा मैं दो बातों के आधार पर कह रहा हूँ। एक ओर, नम्रता वह गुण है जो ख्रीष्ट के द्वारा उसके मनुष्यत्व में धारण किया गया (मत्ती11:29), जिसका अर्थ है कि यह उसकी सक्रिय धार्मिकता का हिस्सा है जो हमें धर्मी ठहराने के लिए हमें दे दिया गया है। परन्तु दूसरी ओर, नम्रता आत्मा एक फल है जिसे आत्मा हमारे पवित्रीकरण में व्यक्त कराता है, जैसा कि गलातियों 5:23 हमें बताता है। कुछ अनुवाद उस पद को “कोमलता” के साथ प्रारम्भ करते हैं, जबकि किन्ग्स जेम्स इसका अनुवाद “नम्रता” करता है। परन्तु कुल मिलाकर, आत्मा का विवरण गलातियों 5:22-23 में नम्रता वर्णित करता है।
बात यह है कि नम्रता हमारी पतित स्थिति के लिए स्वभाविक नहीं है। इसलिए, हमें धर्मी ठहराए जाने में, ख्रीष्ट की नम्रता केवल विश्वास द्वारा हमें दी गयी है, और हमारे पवित्रीकरण में, पवित्र आत्मा हमें ख्रीष्ट के स्वरूप के अनुरूप कर रहा है, जिसमें उसकी नम्रता भी सम्मिलित है। तो इस धन्य वाणी की आशिष यह है कि जो ख्रीष्ट की ओर विश्वास में देखते हैं वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे क्योंकि उन्हें उसकी नम्रता दी गयी है और उन्हें आत्मा का दान दिया गया है, जो हमें ख्रीष्ट से जोड़ता है और उसकी समानता के अनुरूप बनाता है।