Preaching and Teaching
प्रचार और शिक्षा
3 दिसम्बर 2025
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3 दिसम्बर 2025

भय एवं अनिश्चितता

Fear and Uncertainty

मृत्यु वह सबसे बड़ी समस्या है जिसका सामना मनुष्य करता है। हम उसके विचारों को अपने मन के दूरस्थ कोणों में दबाने का प्रयत्न कर सकते हैं, किन्तु हम अपनी नश्वरता के बोध को पूर्णतः मिटा नहीं सकते। हमें ज्ञात है कि मृत्यु का छाया हमारी प्रतीक्षा कर रही है।

प्रेरित पौलुस लिखता हैं:
-अतः जिस प्रकार एक मनुष्य के द्वारा पाप ने जगत में प्रवेश किया, तथा पाप के द्वारा मृत्यु आई, उसी प्रकार मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, क्योंकि सब ने पाप किया—क्योंकि व्यवस्था के दिए जाने तक पाप जगत में तो था, पर जहाँ व्यवस्था नहीं वहाँ पाप की गणना नहीं होती। तथापि मृत्यु ने आदम से लेकर मूसा तक शासन किया। (रोमियों 5:12-14)

अतः जिस प्रकार एक मनुष्य के द्वारा पाप ने जगत में प्रवेश किया, तथा पाप के द्वारा मृत्यु आई, उसी प्रकार मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, क्योंकि सब ने पाप किया—क्योंकि व्यवस्था के दिए जाने तक पाप जगत में तो था, पर जहाँ व्यवस्था नहीं वहाँ पाप की गणना नहीं होती। तथापि मृत्यु ने आदम से लेकर मूसा तक शासन किया। (रोमियों 5:12-14)

हम देखते हैं कि मूसा के द्वारा व्यवस्था दिए जाने से पूर्व भी पाप विद्यमान था, और इसका प्रमाण यह तथ्य है कि व्यवस्था दिए जाने से पूर्व ही मृत्यु होती रही। मृत्यु का तथ्य पाप की उपस्थिति को सिद्ध करता है, और पाप का तथ्य उस व्यवस्था की उपस्थिति को सिद्ध करता है जिसे आदि से ही मनुष्यों के भीतर प्रकट किया गया है। पाप के प्रत्यक्ष परिणामस्वरूप ही मृत्यु जगत में आई। 

ईश्वर-रहित संसार मृत्यु को प्राकृतिक क्रम का अंग मानता है, जबकि ख्रीष्टीय जन मृत्यु को पतित क्रम का अंग समझता है; यह मनुष्य की मूल अवस्थिति नहीं थी। इस संसार में मृत्यु पाप के प्रति परमेश्वर के न्यायस्वरूप आई। आदि से ही प्रत्येक पाप मृत्युदण्ड योग्य अपराध था। परमेश्वर ने आदम और हव्वा से कहा—“तू वाटिका के किसी भी पेड़ का फल बेखटके खा सकता है, परन्तु जो भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष है−उस में से कभी न खाना, क्योंकि जिस दिन तू उसमें से खाएगा उसी दिन तू अवश्य मर जाएगा।” (उत्पत्ति 2:16-17)। परमेश्वर ने जिस मृत्यु की चेतावनी दी थी, वह केवल आत्मिक नहीं थी, अपितु शारीरिक मृत्यु भी थी। जिस दिन आदम और हव्वा ने पाप किया, उस दिन वे शारीरिक रूप से नहीं मरे; परमेश्वर ने दण्ड की पूर्ण अपेक्षा करने से पूर्व उन्हें कुछ समय और जीवित रहने का अनुग्रह प्रदान किया। तथापि, वे अन्ततः पृथ्वी से नष्ट हो गए।

प्रत्येक मनुष्य पापी है और इस कारण मृत्यु का दण्डादेश उसके ऊपर दिया गया है। हम सब उस दण्डादेश की क्रियान्विति की प्रतीक्षा कर रहे हैं। तब प्रश्न यह उठता है कि: मृत्यु के पश्चात् क्या होता है? ख्रीष्टीयों के लिए ख्रीष्ट ने यह दण्ड चुका दिया है। यह इस पर प्रभाव डालता है कि हम हम मृत्यु का सामना किस प्रकार करें। पौलुस कारागार में था जब उसने लिखा:
-क्योंकि मैं यह जानता हूँ कि तुम्हारी प्रार्थनाओं और यीशु ख्रीष्ट के आत्मा की सहायता से इस कैद का प्रतिफल मेरा छुटकारा होगा। मेरी हार्दिक आशा और अभिलाषा यह है कि मैं किसी बात में लज्जित न होऊँ, परन्तु जैसे पूरे साहस से ख्रीष्ट की महिमा मेरी देह से सदा होती रही है वैसे ही अब भी हो, चाहे मैं जीवित रहूँ या मर जाऊँ। क्योंकि मेरे लिए जीवित रहना तो ख्रीष्ट, और मरना लाभ है। परन्तु यदि सदेह जीवित रहूँ तो इसका अर्थ मेरे लिए फलदायी परिश्रम है; परन्तु मैं किस बात को चुनूँ, यह नहीं जानता। मैं इन दोनों के बीच असमंजस में पड़ा हूँ। मेरी लालसा तो यह है कि कूच करके ख्रीष्ट के पास जा रहूँ, क्योंकि यह अति उत्तम है, परन्तु तुम्हारे कारण शरीर में जीवित रहना मेरे लिए अधिक आवश्यक है। (फिलिप्पियों 1:19-24)

क्योंकि मैं यह जानता हूँ कि तुम्हारी प्रार्थनाओं और यीशु ख्रीष्ट के आत्मा की सहायता से इस कैद का प्रतिफल मेरा छुटकारा होगा। मेरी हार्दिक आशा और अभिलाषा यह है कि मैं किसी बात में लज्जित न होऊँ, परन्तु जैसे पूरे साहस से ख्रीष्ट की महिमा मेरी देह से सदा होती रही है वैसे ही अब भी हो, चाहे मैं जीवित रहूँ या मर जाऊँ। क्योंकि मेरे लिए जीवित रहना तो ख्रीष्ट, और मरना लाभ है। परन्तु यदि सदेह जीवित रहूँ तो इसका अर्थ मेरे लिए फलदायी परिश्रम है; परन्तु मैं किस बात को चुनूँ, यह नहीं जानता। मैं इन दोनों के बीच असमंजस में पड़ा हूँ। मेरी लालसा तो यह है कि कूच करके ख्रीष्ट के पास जा रहूँ, क्योंकि यह अति उत्तम है, परन्तु तुम्हारे कारण शरीर में जीवित रहना मेरे लिए अधिक आवश्यक है। (फिलिप्पियों 1:19-24)

हममें से कई लोग इस स्थल में पौलुस के शब्दों से अचम्भित हो जाते हैं। यद्यपि हम कब्र पर ख्रीष्ट की जय में आनन्दित होते हैं, हम फिर भी मृत्यु से भयभीत रहते हैं। ख्रीष्टियों को वेदनामय मृत्यु से मुक्ति का कोई आश्वासन नहीं दिया गया है। फिर भी मृत्यु का विचार प्रायः ख्रीष्टियों और अख्रीष्टियों दोनों में भय उत्पन्न करता है। यह भय इस प्रश्न से जुड़ा हुआ है कि मृत्यु के पश्चात् क्या होता है।

ख्रीष्टीय के लिए परमेश्वर की ओर से एक प्रतिज्ञा है—वही प्रतिज्ञा जिसने पौलुस को यह कहने में समर्थ किया: “मेरे लिए जीवित रहना तो ख्रीष्ट, और मरना लाभ है।” हमें प्रतिज्ञा दी गई है कि हम परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करेंगे। किन्तु इस प्रतिज्ञा के साथ भी कुछ प्रश्न रहते हैं—स्वर्ग कैसा दिखता है? क्या हम वहाँ आनन्दित होंगे? वहाँ हम क्या करेंगे? हम वहाँ कैसे होंगे?

इस जीवन की सब कठिनाइयों के होते भी, हम केवल इसी को जानते हैं। आखिरकार, पौलुस ने भी इस जीवन को तुच्छ नहीं जाना। उसने कहा: “मैं इन दोनों के मध्य असमंजस में पड़ा हूँ। मेरी लालसा तो यह है कि प्रस्थान करके ख्रीष्ट के पास जा रहूँ, क्योंकि यह अति उत्तम है” (फिलिप्पियों 1:23)। पौलुस पृथ्वी पर अपने जीवन—विशेषतः अपनी सेवकाई—को आगे बढ़ाना चाहता था, किन्तु उसने स्वीकार किया कि “प्रस्थान कर ख्रीष्ट के साथ रहना” “अत्यन्त उत्तम” है।

अख्रीष्टियों के लिए समाचार शुभ नहीं है। उनके लिए भी परमेश्वर की एक प्रतिज्ञा है—परन्तु इस बार वह दण्ड की प्रतिज्ञा है—कि जो लोग ख्रीष्ट पर विश्वास नहीं करते, उनमें पाप के विरुद्ध परमेश्वर का क्रोध परिपूर्ण होगा। वह दण्ड नरक कहलाने वाले स्थान में घटित होगा, परन्तु यहाँ भी अनिश्चितताएँ रहती हैं—नरक कैसा है? उस दण्ड में क्या सम्मिलित है? क्या उससे किसी प्रकार छूटने की कोई सम्भावना है? क्या वह न्यायसंगत है, या क्या दुष्टों का नष्ट कर दिया जाना अधिक न्यायोचित होता?

ये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रश्न हैं, क्योंकि एक दिन हम सब मृत्यु का सामना करेंगे। दृढ़ ख्रीष्टीय बने रहने का अर्थ है बाइबल के अडिग अलौकिकता को स्वीकार करना—वह अलौकिकता जो आज की संसार-संस्कृति के लिए आपत्तिजनक है। हमें अपना विश्वदृष्टिकोण बाइबल से निर्मित होने देना चाहिए, न कि अविश्वासी संस्कृति से। जब हम ऐसा करते हैं, हम आशा पाएँगे—उस परमेश्वर में आशा, जिसने हमें रचा है और जो अपने पुत्र के कार्य के द्वारा हमें स्वर्ग में ले जाने तथा नरक के दुःखों से बचाए रखने की प्रतिज्ञा करता है।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।