क्या त्रिएकता बाइबलीय है?
16 जून 2021परमेश्वर पुत्र
17 जून 2021परमेश्वर पिता
सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का तीसरा अध्याय है: त्रिएकता
यदि पुराने नियम में इस्राएल की पहचान के लिए एक विश्वास केन्द्रीय था, वह यह है: परमेश्वर एक है (व्यवस्थाविवरण 6:4)। इस्राएल के आसपास के देशों से विपरीत, ऐसे देश जो अनेक ईश्वरों की आराधना करते थे, इस्राएल एक ऐसे लोग के रूप में अलग किया गया था जो केवल एक परमेश्वर की आराधना करते थे। उनको एकेश्वरवादी होना था।
पर हमें जोड़ना चाहिए कि सच्चा एकेश्वरवाद केवल यह विश्वास नहीं है कि एक परमेश्वर है। इसका यह भी अर्थ है कि यह परमेश्वर एक है। ईश्वरविज्ञानी इसे परमेश्वर की सहजता कहते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर में गहराई की कमी है। इसके स्थान पर, सहजता परमेश्वर के एकत्व के सन्दर्भित करता है। वह अंशों से नहीं बना है, और न ही विभाजित किया जा सकता है। ऐसा नहीं है कि आप परमेश्वर के सब गुणों को जाड़कर एक “परमेश्वर” कहे जाने वाले कुल जोड़ को निकाल सकते हैं। इसके विपरीत, परमेश्वर एक है। उसके गुण उसका मूलतत्त्व है और उसका मूलतत्त्व उसके गुण हैं। जो कुछ परमेश्वर में है सहजता से परमेश्वर है। तो, परमेश्वर एक है कहने का अर्थ न केवल यह है कि एक ही सच्चा परमेश्वर है किन्तु यह भी कि इस एक परमेश्वर का एक मूलतत्त्व है।
सुसमाचार में त्रिएकता का प्रकाशन
यदि आपने बाइबल की कहानी पढ़ी है, तो आप जानते हैं कि इस्राएल द्वारा परमेश्वर के एकत्व का अंगीकार करना स्वयं के विषय में परमेश्वर के प्रकाशन का आरम्भ ही है। स्वयं को एक प्रकट करने वाला परमेश्वर स्वयं को त्रिएक भी प्रकट करता है। यह बहुसंख्या सम्भवतः पुराने नियम में अस्पष्ट रीति से प्रकट किया गया था, पर नए नियम में यह परमेश्वर के स्वयं के पुत्र, प्रभु यीशु ख्रीष्ट, के आगमन के साथ स्पष्ट बन जाता है। इब्रानियों का लेखक न केवल यह कहता है कि परमेश्वर ने स्वयं को पुत्र के आने में प्रकट किया है पर कि यह पुत्र “उसकी महिमा का प्रकाश और उसके तत्व का प्रतिरूप है, तथा अपने सामर्थ्य के वचन के द्वारा सब वस्तुओं को सम्भालता है” (इब्रानियों 1:1-3)।
वह क्यों आया? “पापों को धोने” के लिए (3 पद)। उसने यह कैसे किया? चारों सुसमाचार हमें सिखाते हैं कि पुत्र हमें बचा पाया क्योंकि वह हमारे लिए देहधारी हुआ। उसने शरीर में हमारा प्रतिनिधित्व किया ताकि वह अपने जीवन, मृत्यु, और पुनरुत्थान के द्वारा हमें छुड़ा सके। यह पुत्र, जिसे यूहन्ना “वचन” कहता है क्योंकि वह परमेश्वर का उत्कृष्ट आत्म-प्रकाशन है, “देहधारी हुआ, और हमारे बीच में निवास किया” ताकि हम “अनुग्रह पर अनुग्रह” प्राप्त कर सकें (यूहन्ना 1:14, 16)। बात यह है: सुसमाचार के प्रकाशन के साथ, हम त्रिएकता के प्रकाशन को प्राप्त करते हैं। यह परमेश्वर जो एक है, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा है।
पितृत्व
कलीसिया के उत्तम ईश्वरविज्ञानियों में से कुछ ने त्रिएकता के सिद्धान्त को स्पष्ट करने के लिए कुछ ऐसे शब्द और वाक्यांशों का परिचय कराया है जो न केवल हमें अधिक अन्तर्दृष्टि देते हैं कि यह त्रिएकता कौन है, पर विधर्मता से हमारी रक्षा करते हैं। उन्होंने निष्कर्ष निकाला है, उदाहरण के लिए, कि परमेश्वर मूलतत्त्व में एक है पर व्यक्ति में तीन। जैसे पिताओं को कहना अच्छा लगता था, हर व्यक्ति परमेश्वरीय अस्तित्व का एक उपस्तित्व है। मैं जानता हूँ कि यह सुनने में तकनीकी लग रहा है, पर ध्यान दीजिए, यह एक उपाय है यह सुनिश्चित करने के लिए कि परमेश्वर के तीन व्यक्ति एक समान हैं। परमेश्वरीय मूलतत्त्व भागों में विभाजित नहीं किया जाता है। नहीं, प्रत्येक व्यक्ति पूर्ण रीति से परमेश्वर है, क्योंकि वह एक, अविभाजित परमेश्वरीय मूलतत्त्व सनातन काल से तीन उपस्तित्वों में अस्तित्व में है। पिता, पुत्र, और आत्मा तीन भिन्न परमेश्वर नहीं हैं—यह त्रि-ईश्वरवाद का विधर्मता है। इसके विपरीत वे एक परमेश्वर हैं। ऐसा भी नहीं है कि एक व्यक्ति दूसरे से नीचा है—यह एरियसवाद का विधर्मता है। इसके विपरीत, वे एक परमेश्वर होते हुए, एक समान सनातन और एक समान हैं।
त्रि-ईश्वरवाद से बचने के प्रयास में हमें सावधान होना चाहिए रूपात्मकता के फन्दा में गिरने से, वह विश्वास कि एक परमेश्वर है जो अपने आप को तीन रूप मात्र में परिवर्तित करता है। यह भी, एक विधर्मता है, क्योंकि यह नकारता है कि पिता, पुत्र, और आत्मा वास्तविक व्यक्ति हैं, जो एक दूसरे से भिन्न हैं। इसके विपरीत, यह सिखाता है कि वे केवल मुखौटे हैं जो उस एक व्यक्ति द्वारा पहने जाते हैं जिसे हम परमेश्वर कहते हैं।
पर तीन व्यक्तिओं को वास्तव में क्या भिन्न करता है? इस विषय में सोचिए कि पवित्रशास्त्र ने हम पर इन व्यक्तियों को प्रकट करने के लिए किन नामों का उपयोग किया है: पिता, पुत्र, और आत्मा। पहला व्यक्ति पिता है क्योंकि वह पुत्र का पिता है। पर मानवीय पितृत्व की अवधारणा से भिन्न, परमेश्वर पिता सनातन काल से अपने पुत्र का पिता है। इसके साथ, मानवीय पिताओं से भिन्न, परमेश्वर पिता का स्वयं कोई पिता नहीं है। न ही वह कभी पुत्र हुआ है। उसका पितृत्व सनातन का और बिना आरम्भ का है।
दूसरा व्यक्ति पुत्र है क्योंकि वह उत्पन्न या पिता का एकलौता है। पर मानवीय उत्पन्न होने से भिन्न, ऐसा समय कभी नहीं था जब पुत्र नहीं था। उसका उत्पन्न होना सनातन का है, उसका एकलौता होना सनातन से एकलौता होना है। तीसरे व्यक्ति को आत्मा कहा जाता है क्योंकि वह पिता और पुत्र से निकलता है (या पिता और पुत्र से अग्रसर होता है)। वह एक दूसरा पुत्र नहीं है, मानो कि वह पुत्र का भाई हो, न ही वह पिता का पोता है। वह आत्मा है क्योंकि वह उत्पन्न या पिता का एकलौता नहीं है परन्तु निकलता है।
ईश्वरविज्ञान में, हम जिनका वर्णन कर रहे हैं, उनको “उद्गम का सनातन सम्बन्ध” कहा जाता है, और केवल वे ही तीन व्यक्तियों को भिन्न करते हैं और उनके व्यक्तिगत गुणों को पहचानते हैं (उत्पन्न न होना, व्युत्पत्ति या उत्पन्न हुआ जाना, निकलना या अग्रसर होना)।
सार
सम्भवतः आपने यह पहले ही ध्यान दिया, पर ये उद्गम के सनातन सम्बन्ध त्रिएकता के प्रत्येक व्यक्ति के लिए विशेष हैं। वे असंचरणीय है, अर्थात वे अन्तर्निमेय नहीं हैं। पिता के विषय में सोचिए, उदाहरण के लिए। केवल वह उत्पन्न नहीं है और एकलौता नहीं है और अग्रसर नहीं है। यह पुत्र के विषय में कहा नहीं जा सकता है, जो सनातन काल से पिता से उत्पन्न है, न ही आत्मा के विषय में, जो सनातन काल से पिता और पुत्र से निकलता है। केवल पिता ही उत्पन्न नहीं है; यह उसका विशेष व्यक्तिगत गुण है। इस कारण से, कलीसियाई पिताओं को परमेश्वर में पिता को “सार” (या “स्रोत” या “उद्गम”) कहना अच्छा लगता था। वास्तव में, वह बिना सार का सार है, क्योंकि केवल वह ही किसी से निकलता नहीं है, न ही किसी से उत्पन्न है और न ही एकलौता है। त्रिएकता में पितृत्व का यही अर्थ है, और यह समझाता है कि परमेश्वर अपनी त्रिएकता की पहचान को उस रीति से क्यों प्रकट करता है जैसे वह करता है।
उदाहरण के लिए, क्या आपने कभी सोचा है कि यूहन्ना के सुसमाचार में, यीशु क्यों इस बात पर इतना बल देते है कि वह पिता से पुत्र के रूप में भेजा गया है (उदाहरण के लिए, यूहन्ना 5:24, 30, 36)? बात उल्टी क्यों नहीं है, पिता का पुत्र के द्वारा भेजा जाना? जब कुछ लोग कहते हैं कि यह मनमाना है, हम असहमत हैं। पुत्र, पिता द्वारा इसलिए भेजा जाता है क्योंकि पुत्र सनातन काल से पिता से है, क्योंकि वह सनातन काल से पिता से उत्पन्न या उसका एकलौता है।
बात यह है कि उद्धार के इतिहास में त्रिएकता के कार्य (देहधारण में पुत्र का भेजा जाना और पिन्तेकुस्त के दिन आत्मा का उण्डेला जाना) साभिप्राय सनातन काल में तीन व्यक्तियों के सम्बन्ध को प्रतिबिम्बित करते हैं। और इस बात से अधिक पिता को सार या स्रोत के रूप में और क्या दिखाता है कि वह इतिहास में पुत्र को भेजता है,उसी पुत्र को जिसे उसने सनातन काल से इस रीति से उत्पन्न किया था कि ऐसा कोई समय नहीं था जब पुत्र नहीं था? उस प्रकाश में, पवित्रशास्त्र प्रायः पिता का नाम पहले लेता है (मत्ती 28:9; 1 यूहन्ना 5:7), इसलिए नहीं कि पुत्र और आत्मा स्वभाव में पिता से कम हैं या समय में पिता के बाद आते हैं—तीनों समान रीति से सनातन और एक समान हैं, जिस रीति से ऐथनेसियस का विश्वास वचन कहता है। इसके विपरीत, क्योंकि पिता, उत्पन्न न होने के कारण, वह स्रोत और सार है जिससे पुत्र उत्पन्न होता है और जिससे आत्मा निकलता है। यह क्रम इतिहास में प्रतिबिम्बित है जब पुत्र और फिर आत्मा उस पिता के द्वारा भेजे जाते हैं, जो उनका स्रोत और उद्गम है।
वास्तुकार
यदि पिता अपने पितृत्व के कारण त्रिएकता का सार है, उसे सृष्टि और उद्धार का वास्तुकार कहना भी उचित है। एक हाथ पर, सृष्टि के प्रति त्रिएकता का प्रत्येक बाहरी कार्य सम्पूर्ण त्रिएकता का एक, अविभाजित कार्य है। त्रिएकता के बाहरी कार्य अविभाजित हैं, अर्थात तीनों व्यक्ति उद्धार में एक के रूप में कार्य करते हैं क्योंकि वे स्वभाव और इच्छा-शक्ति में एक हैं।
उसके साथ, विशेष कार्य परमेश्वर के विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा किए जाते हैं—इसको “परमेश्वरीय विनियोजन” कहा जाता है। उदाहरण के लिए, देहधारण के विषय में सोचिए। यह केवल पुत्र द्वारा नहीं किया जाता है परन्तु सम्पूर्ण परमेश्वर का जयचिन्ह है। और फिर भी, पुत्र का व्यक्ति देहधारी होता है। कुछ इसी प्रकार पिन्तेकुस्त के दिन आत्मा के लिए कहा जा सकता है।
पर पिता के विषय में क्या कहा जा सकता है? जबकि सृष्टि और उद्धार तीनों व्यक्तियों के कार्य हैं, पिता के विषय में वास्तुकार के रूप में बात करना हमारे लिए उचित है। पिता संसार को अपने वचन (पुत्र) के माध्यम से अपने आत्मा के द्वारा सृजता है। उसी प्रकार से, पिता अपने चुने हुओं को पुत्र के माध्यम से आत्मा के द्वारा छुड़ाता है।
बड़े रूप में, जबकि सम्पूर्ण त्रिएकता के द्वारा छुटकारे की योजना बनाई गई, छुटकारे को पूरा किया गया, और छुटकारे को लागू किया गया, इस छुटकारे के कार्य के विशेष पहलुओं को उनके विशिष्ट व्यक्तिगत गुणों के अनुसार विनियोजित किया जा सकता है। सार, उद्गम, और स्रोत के रूप में, पिता छुटकारे को पूर्ण करने के लिए पुत्र को देहधारी होने के लिए भेजता है, और तब (पुत्र के साथ) आत्मा को भेजता है परमेश्वर के चुने हुओं के लिए छुटकारे को लागू करने के लिए। पिता हमारे उद्धार का वास्तुकार है, पुत्र उस उद्धार की योजना को कार्यान्वित करने वाला है, और आत्मा उसको सिद्ध करने वाला है। जिस प्रकार जोहानेस वैन डर केम्प ने काव्यगत रीति से कहा, “पिता ने चुने हुओं के लिए अनुग्रह नियुक्त किया, पुत्र ने उसे मोल लिया, और पवित्र आत्मा परमेश्वर के कृपापात्रों के लिए उसे लागू करता है और वितरित करता है।”
पिता की सन्तान
यदि परमेश्वर हमारे उद्धार का वास्तुकार है, तो हमारे पास बड़ा आश्वासन है कि हम उसके लेपालक पुत्र हैं। हमारा पुत्रत्व त्रिएकता के दूसरे व्यक्ति के पुत्रत्व से भिन्न है (हमारा अनुग्रह से है, उसका स्वभाव से)। फिर भी, क्योंकि पिता हमारे उद्धार का सार और वास्तुकार है, जिसने अपने एकलौते पुत्र को भेजा, इस कारण से हम ख्रीष्ट में और ख्रीष्ट के द्वारा उसके परिवार में अपनाए जा सकते हैं और उसको पिता कहने के लिए आमंत्रित किए जा सकते हैं।
- परमेश्वर का मूलतत्व, या ऊसिया, वह एक परमेश्वरीय स्वभाव या तत्व है, जो उसे परमेश्वर बनाता है। पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा होमोऊसियोस हैं, “एक ही तत्व के”—प्र्त्येक व्यक्ति पूर्ण रीति से और एक समान परमेश्वर है, और वे एक ही परमेश्वर हैं। प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वरीय गुणों में अभिन्न है—क्योंकि वे अस्तित्व, बुद्धि, सामर्थ्य, पवित्रता, न्याय, भलाई, सत्य, अधिकार, और परमेश्वरत्व के प्रत्येक अन्य पहलू में एक समान हैं।
2. उत्पन्न न होना वह व्यक्तिगत गुण है जो पिता को पुत्र से और आत्मा से भिन्न करता है। पिता पूर्णतः परमेश्वरीय है, अन्य दो के जैसे, पर अपने व्यक्ति के सम्बन्ध में, वह सनातन काल से उत्पन्न न किया गया है। पिता किसी से नहीं है।