परमेश्वर पुत्र - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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परमेश्वर पुत्र

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का चौवथा अध्याय है: त्रिएकता

मुझे अपनी व्याकुलता स्मरण है जब मैंने पहली बार पुत्र की सनातन उत्पत्ति के सिद्धान्त (अर्थात, कि वह सनातन से पिता से उत्पन्न है) का सामना किया। मैं लूइस बर्खोफ की प्रतिष्ठित पुस्तक सिस्टमैटिक थियोलॉजी  (विधिवत ईश्वरविज्ञान ) पढ़ने के द्वारा सेमिनरी के लिए तैयारी कर रहा था, और मुझे यह विषय अत्यधिक काल्पनिक लगा। मैं समझ गया कि यह पुष्टि करना महत्वपूर्ण है कि परमेश्वर का पुत्र एक सृजा हुआ प्राणी नहीं है पर स्वयं परमेश्वर है। पर मैं समझ नहीं पाया कि पुत्र के उत्पन्न होने के विषय में इतनी सूक्ष्मता से चर्चा करना क्यों आवश्यक था। बाइबल में कहाँ इस प्रकार का विचार मिलता है? और यह महत्वपूर्ण क्यों है?

बात यह है कि यह बहुत महत्वपूर्ण है और यह उस रीति से काल्पनिक नहीं है जितना पहले लगता है।

पवित्रशास्त्र का परमेश्वर त्रिएक परमेश्वर है—एक परमेश्वर में तीन व्यक्ति। व्यक्तियों के मध्य भिन्नता परमेश्वरत्व के स्तरों में नहीं हैं, क्योंकि सभी तीन व्यक्ति समान रीति से परमेश्वर हैं। जिस प्रकार वेस्टमिन्स्टर लघु प्रश्नोत्तरी कहती है, पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा “मूलतत्त्व में एक हैं, तथा सामर्थ्य और महिमा में समान हैं” (वेस्टमिन्स्टर लघु प्रश्नोत्तरी 6)। ख्रीष्टियों को परमेश्वर के किसी भी व्यक्ति के परमेश्वरत्व या व्यक्तित्व पर सन्देह नहीं करना चाहिए। इसके विपरीत, त्रिएकता के व्यक्तियों में भिन्नताओं को व्यक्तिगत विशेषताएं  कहा जाता है: पिता उत्पन्न करता है, पुत्र उत्पन्न है, और आत्मा पिता और पुत्र से अग्रसर होता है। यह आवश्यक है कि हम इन भिन्नताओं को सही से समझें क्योंकि इनको नकारना कई विधर्मताओं के दिशा में पहला कदम है। पुत्र किसी भी रीति से पिता से कम परमेश्वरीय नहीं है; परमेश्वर का पुत्र उतना ही परमेश्वर है जितना पिता परमेश्वर।

इसलिए, पुत्र की सनातन उत्पत्ति की बात करना परमेश्वर पुत्र के विषय में उचित बात करना है: वह एकलौता उत्पन्न है। यह पुत्र के परमेश्वरत्व को किसी भी रीति से नहीं घटाता है। पुत्र का एकलौता होने का अर्थ यह नहीं है कि उसका परमेश्वरत्व पिता से कम है, पर इसका अर्थ यह है कि वह अपने व्यक्तिगत उपस्तित्व को पिता से प्राप्त करता है। परमेश्वरीय मूलतत्त्व स्वयं में उत्पन्न नहीं है। इसके विपरीत, सनातन उत्पत्ति में पिता परमेश्वरीय मूलतत्त्व को पुत्र को संचारित  करता है; पिता और पुत्र के पास एक ही मूलतत्त्व है, बिना कोई परिवर्तन।

और इस उत्पत्ति को सनातन  होना आवश्यक है। पुत्र का उत्पन्न होना समय के किसी क्षण में नहीं हो सकता था, क्योंकि यदि ऐसा होता, तो पुत्र सनातन काल से पुत्र नहीं होता—न ही पिता सनातन काल से पिता होता। यदि पुत्र का उत्पन्न होना कोई एक घटना होती, इसका अर्थ होता कि परमेश्वर किसी अर्थ में परिवर्तित होता है। यदि पिता कभी भी पिता बना, या पुत्र कभी भी पुत्र बना, तो परमेश्वर अपरिवर्तनीय (अर्थात कभी परिवर्तित न होने वाला) नहीं होता। क्योंकि परमेश्वर का पुत्र कभी नहीं परिवर्तित होता है, उसकी उत्पत्ति को एक सनातन  उत्पत्ति होना अनिवार्य है—यह ऐसी बात नहीं है जो बहुत समय पहले हुआ या एक बार सब के लिए हुआ। यह पिता से पुत्र को एक ऐसा संचार है जिसका कोई समय नहीं है, न कोई स्थान, न कोई परिवर्तन। सनातन उत्पत्ति में परमेश्वर में कोई विभाजन भी सम्मिलित नहीं है, मानो कि परमेश्वरीय मूलतत्त्व तीन व्यक्तियों में विभाजित है या एक व्यक्ति से दूसरे तक बढ़ता है। प्रत्येक व्यक्ति में वही परमेश्वरीय मूलतत्त्व है और परमेश्वरीय मूलतत्त्व की परिपूर्णता है। सनातन उत्पत्ति एक आवश्यक कार्य भी है, जिसका अर्थ है कि यह सर्वदा से है और इसके स्थान पर कुछ और नहीं हो सकता था।

सनातन उत्पत्ति परमेश्वर के पुत्र के पूर्ण परमेश्वरत्व की पुष्टि करती है; यह किसी भी रीति से पुत्र की सृष्टि की बात नहीं करती है। यदि पुत्र सृजा हुआ होता, वह पूर्ण रीति से परमेश्वरीय नहीं होता। यह उस मतभेद के केन्द्र में था जो कलीसियाई पिता ऐथनेसियस और विधर्मी एरियस के मध्य चौथी शताब्दी में हुआ: ऐथनेसियस ने सही से तर्क दिया कि परमेश्वर का पुत्र पहला सृजा गया प्राणी नहीं हो सकता था, पर उसको सनातन काल से परमेश्वर का पुत्र होना चाहिए। ऐसा कभी एक समय नहीं था जब पुत्र नहीं था। पुत्र सर्वदा पिता से पुत्र के रूप में सम्बन्ध रखता है, और पिता सर्वदा पिता है।

यह सच है कि सनातन उत्पत्ति एक जटिल विषय है। यदि हम इसे सही से समझा भी सकें, तो हम इसे पूर्णता से नहीं समझ सकते हैं। दूसरे शब्दों में, यह रहस्यमय है।

यह शिक्षा पवित्रशास्त्र में कहाँ से आती है? एक महत्वपूर्ण साक्षी यूहन्ना का सुसमाचार है, जहाँ हम यूनानी शब्द मोनोगेनेस  को पाते हैं, जिसे किंग जेम्ज़ का अंग्रेज़ी बाइबल अनुवाद “एकमात्र उत्पन्न” पुत्र के रूप में अनुवाद करता है (यूहन्ना 1:14, 18; 3:16, 18; 1 यूहन्ना 4:9 देखें)। किन्तु अधिकतर वर्तमान के अनुवाद मोनोगेनेस  को “एकलौता” पुत्र के रूप में अनुवाद करते हैं (BSI, IBP अनुवादों में भी ऐसा ही किया गया है)। इस विषय में निर्णय अभी भी स्पष्ट नहीं है कि क्या “एकलौता” “एकमात्र उत्पन्न” से वास्तव में अच्छा है, पर सनातन उत्पत्ति की अवधारणा मोनोगेनेस  के अनुवाद पर निर्भर नहीं है। इसके स्थान पर, यह अवधारणा मूल रीति से उन बातों से आती है जिन्हें पवित्रशास्त्र पुत्र के पूर्वास्तित्व और पिता और पुत्र के बीच में सनातन सम्बन्ध के विषय में प्रकट करता है (उदाहरण के लिए यूहन्ना 17:5, 24; कुलुस्सियों 1:15-20; इब्रानियों 1:1-3 देखिए)। ऐसा कभी एक समय नहीं हुआ है जब पिता पुत्र का पिता नहीं था या पुत्र पिता का पुत्र नहीं था (यूहन्ना 1:1-2; मत्ती 11:25-27; लूका 10:21-22 देखिए)। यूहन्ना 5:26 को प्रायः सनातन उत्पत्ति का समर्थन करने के लिए उपयोग किया गया है: “क्योंकि जिस प्रकार पिता स्वयं अपने में जीवन रखता है, उसी प्रकार उसने पुत्र को भी स्वयं में जीवन रखने का अधिकार दिया है।” बहुत इश्वरविज्ञानी कहते हैं कि यह पुत्र को जीवन दिया जाना समय में नहीं हो सकता था। इसलिए, यह एक सनातन जीवन का दिया जाना है। यदि ऐसा है, तो यूहन्ना 5:26 सनातन उत्पत्ति को दृढ़ समर्थन देता है।

सनातन उत्पत्ति के लिए समर्थन पुराने नियम में भी पाया जा सकता है। ऐतिहासिक रूप से एक प्रमुख प्रमाणिक खण्ड भजन 2:7 रहा है: “तू मेरा पुत्र है, आज ही मैंने तुझे उत्पन्न किया है।” यद्यपि इस खण्ड का उपयोग नए नियम में यीशु के पुनरुत्थान के लिए किया गया है (प्रेरितों के काम 13:33), पुनरुत्थान में घोषित और प्रमाणित पुत्रत्व का आधार पूर्वस्थित पुत्रत्व है। मीका 5:2 को भी ऐतिहासिक रीति से सनातन उत्पत्ति का समर्थन करने के लिए उपयोग किया गया है: “परन्तु हे बैतलहम एप्राता, यद्यपि तू यहूदा के कुलों में बहुत छोटा है, फिर भी मेरे लिए तुझ में से एक पुरुष निकलेगा जो इस्राएल पर प्रभुता करेगा। उसका निकलना प्राचीनकाल से वरन् अनादिकाल से है।” इसको प्रायः समझा गया है यीशु के जन्म स्थान (बैतलहम) और पुत्र की सनातन उत्पत्ति (“उसका निकलना प्राचीनकाल से वरन् अनादिकाल से  है”) दोनों की बात करते हुए। बहुत वर्तमान के व्याख्याकार सन्देह करते हैं कि यह खण्ड सनातन उत्पत्ति सिखाता है, पर नई व्याख्या सदा परम्परागत व्यख्याओं से श्रेष्ठ नहीं होते हैं। इन पुराने नियम के खण्डों के विषय में व्यक्ति के विचार चाहे जो भी हों, पुत्र की सनातन उत्पत्ति वास्तव में पर्याप्त रीति से पवित्रशास्त्र में आधारित है। अन्य महत्वपूर्ण सिद्धान्तों के जैसे, यह एक या दो अकेले खण्डों से नहीं आता है पर पूरे पवित्रशास्त्र की शिक्षा से आता है।

एक बाइबलीय सिद्धान्त के रूप में, पुत्र की सनातन उत्पत्ति काल्पनिक नहीं है; यह व्यावहारिक है, क्योंकि वह उसके विषय में बात करता है जो सृष्टि और छुटकारे का मध्यस्थ है। सर्वदा से उपस्थित, परमेश्वरीय पुत्र वचन है—लोगोस (यूहन्ना 1:1, 14)—जिसके द्वारा संसार की सृष्टि हुई (कुलुस्सियों 1:16; इब्रानियों 1:2)। पुत्र के कार्य को केवल नए नियम में आरम्भ होते हुए देखना त्रुटिपूर्ण होगा; वह पुराने नियम में सृष्टिकर्ता और प्रकट करने वाले के रूप में पहले से क्रियाशील था (यूहन्ना 1:1-5 देखिए)। पुत्र पुराने नियम में छुटकारे में भी सक्रिय था। यहूदा यीशु को इस्राएलियों को मिस्र से छुड़ाने वाले के रूप में पहचानता है (यहूदा 5)। नए नियम में, यीशु का पुत्रत्व छुटकारे के कार्य के सम्बन्ध में विशेषकर महत्वपूर्ण है। देहधारण में, परमेश्वर का पुत्र एक वास्तविक शरीर और एक उचित प्राण में आया। वह एक कुंवारी से जन्मा, जो परमेश्वर के पहले से उपस्थित, पवित्र पुत्र के लिए उचित है। उसके विशेष जन्म का अर्थ है कि वह आदम के पाप में दोषी नहीं था पर नई सृष्टि के मुखिया के रूप में खड़ा होता है। परमेश्वर के पुत्र के रूप में, वह दाऊद (लूका 1:31-33) और आदम (3:38) की पूर्ति है। पर वह उस से अधिक है। वह सनातन काल से परमेश्वर का पुत्र है। वह इम्मानुएल है, परमेश्वर हमारे साथ (मत्ती 1:23), जीवित परमेश्वर का पुत्र (16:16)। इसलिए यह उचित है कि उसका पुत्रत्व उसके बपतिस्मा के समय घोषित किया जाता है (3:17; मरकुस 1:11; लूका 3:22), जंगल में परखा गया (मत्ती 4:1-11; मरकुस 1:12-13; लूका 4:1-13), फिर रूपान्तरण के समय उसकी पुष्टि की जाती है (मत्ती 17:5; मरकुस 9:7; लूका 9:35), क्रूसिकरण के समय उसका उपहास किया गया (मत्ती 27:37-44; 26:63-63 दिखिए), और उसके पुनरुत्थान में प्रमाणित हुआ (प्रेरितों के काम 13:33; रोमियों 1:3-4)। फिर भी पुत्र पिता और आत्मा से अलग होकर कार्य नहीं करता है, क्योंकि त्रिएकता के बाहरी कार्य विभाजित नहीं हैं।

परमेश्वर के पुत्र ने पहली शताब्दी के फिलिस्तीन में उपस्थित होना आरम्भ नहीं किया; वह संसार के आरम्भ से पहले भी अस्तित्व में था। उसने संसार की सृष्टि की और उसको सम्भाले रहता है, और उसने अपने लोगों के लिए वास्तव में छुटकारा पूरा किया है। वह हमारा परमेश्वर और उद्धारकर्ता है (2 पतरस 1:1)—परमेश्वर का सनातन से उत्पन्न पुत्र।


  1.  परमेश्वर में, एक व्यक्ति, या एक उपस्तित्व, एक “सचेतन स्वभाव का उपस्तित्व रखने वाला व्यक्ति” है (थॉमस अक्वायनस)। त्रिएकता के प्रत्येक व्यक्ति को एक व्यक्ति के रूप में भिन्न किया जा सकता है यद्यपि प्रत्येक उस एक परमेश्वरीय मूलतत्त्व में उपस्तित्व रखता है—और प्रत्येक वह परमेश्वरीय मूलतत्त्व है। उनको भिन्न करने वाली बात परमेश्वरीय गुणों में भिन्नता नहीं, परन्तु प्रत्येक व्यक्ति के विशिष्ठ, असंचरणीय व्यक्तिगत विशेषता (पिता का उत्पन्न न होना, पुत्र का उत्पन्न होना, आत्मा का अग्रसर होना)
यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
ब्रैन्डन डी. क्रो
ब्रैन्डन डी. क्रो
डॉ. ब्रैन्डन डी. क्रो फिलाडेल्फिया में वेस्टमिन्स्टर थियोलॉजिकल सेमिनरी में नए नियम के सहायक प्रोफेसर हैं। वह कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें द लास्ट ऐडम और द मेसज ऑफ द जेनेरल एपिस्टल्स इन द हिस्टरी ऑफ रिडेम्प्शन सम्मिलित हैं।