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इतिहास की पुस्तकें और भजन
7 जून 2024![](https://hi.ligonier.org/wp-content/uploads/2024/06/R.C.-Sproul-One-Holy-Catholic-and-Apostolic-Church-150x150.jpg)
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एक, पवित्र, विश्वव्यापी, और प्रेरितीय कलीसिया
12 जून 2024नये नियम का ख्रीष्टविज्ञान
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ख्रीष्ट के व्यक्ति के सम्बन्ध में नये नियम ने हमारी समझ में जो योगदान दिया है उससे कई सारी पुस्तकों को भरा जा सकता है (और भरा भी गया है)। कई शताब्दियों से यह विषय मूल्यवान और गहन ईश्वरविज्ञानीय मनन का स्रोत रहा है। इस लेख में, हम केवल ऊपरी सतह तक ही सीमित होंगे। इस संक्षिप्त लेख में हम दो प्रश्नों के उत्तर देंगे: यीशु क्या होने का दावा करता है और उसके शिष्य क्या कहते हैं कि वह कौन है?
स्वयं के विषय में यीशु साक्षी
इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यीशु स्वयं को वही मसीहा समझता था जिसकी नबूवत पुराने नियम की गई थी। उसने स्वयं के लिए “ख्रीष्ट” शीर्षक का उपयोग किया (जो कि इब्रानी भाषा के “मसीहा” शब्द का यूनानी अनुवाद है) (उदाहरण के लिए यूहन्ना 4:25-26; 17:3), और वह दूसरों के द्वारा इस उपाधी के अनुसार स्वयं के नाम रखे जाने को स्वीकार करता है (उदाहरण के लिए मत्ती 16:16; यूहन्ना 11:25-27)। वह जिसकी प्रतिज्ञा पुराने नियम में की गई है, यीशु उसको पूरा करने का दावा करता है।
यद्यपि यीशु, स्वयं के लिए “ख्रीष्ट” का शीर्षक उपयोग करता है फिर भी उसका प्रिय स्वयंघोषित पदनाम “मनुष्य का पुत्र” था। यह शीर्षक सहदर्शी (Synoptic) सुसमाचारों में 69 बात आया है और यूहन्ना रचित सुसमाचार में 13 बार और आया है। लगभग हर बार जब यह शीर्षक आता है, यीशु उसको स्वयं के सन्दर्भ में उपयोग कर रहा है। “मनुष्य का पुत्र” स्वयं ही मसीहाई शीर्षक है, जिसके सम्पूर्ण अर्थ की सराहना तब ही कर पाएँगे जब दानिय्येल 7 में उसकी पृष्ठभूमि को समझेंगे, जहाँ एक जन के विषय में विवरण है जो अनादिकाल के प्रचीन के पास उठा लिया गया और उसे सब वस्तुओं पर प्रभुता दी गई। स्वयं को “मनुष्य का पुत्र” कहने के द्वारा, यीशु के कहने का अर्थ है कि, “मैं ही वह हूँ जिसके विषय में दानिय्येल ने बोला था।”
यीशु केवल स्वयं को प्रतिज्ञा किया हुआ मसीहा ही नहीं समझता था लेकिन वह सम्पूर्ण सुसमाचारों की पुस्तकों में उन बातों को कहता और करता था जो इस बात को स्पष्ट करता है कि वह स्वयं को देहधारी परमेश्वर समझता था। कई स्थानों पर, यीशु ने ऐसे दावे किए जो इस बात की ओर संकेत करता है कि वह अपने देहधारण से पहले अस्तित्व में था (उदाहरण के लिए यूहन्ना 3:13; 6:62; 8:42)। मत्ती 11:27 में उसका कथन उस पारस्परिक सम्प्रभुता को दिखाता है जो वह पिता के साथ साझा करता है। यूहन्ना रचित सुसमाचार में कई सारे सुपरिचित “मैं हूँ” कथन उसके परमेश्वर होने का दावा या संकेत करते है (यूहन्ना 8:58; 13:19)। उसकी शिक्षा और कार्य इस बात का दावा करते हैं कि वह देहधारी परमेश्वर है। उसने व्यवस्था की शिक्षा को ऐसे दिया जो केवल परमेश्वर दे सकता है (मत्ती 5:22, 28, 32, 34, 39, 44)। उसने पापों को क्षमा किया (मत्ती 9:6; मरकुस 2:10; लूका 5:24), ऐसा कार्य जो केवल परमेश्वर ही कर सकता है। वह प्रार्थना को सुनता और उनका उत्तर देता है (यूहन्ना 14:13-14) और स्तुति और प्रशंसा ग्रहण करता है (मत्ती 21:16)। एक व्यक्ति ईमानदारी के साथ सुसमाचार को बिना इस बात को पहचाने नहीं पढ़ सकता है कि यीशु स्वयं को मसीहा, अर्थात् देहधारी परमेश्वर का पुत्र समझता है।
यीशु स्वयं को परमेश्वर का ईश्वरीय पुत्र और मसीहा समझता है, परन्तु शिष्य क्या कहते हैं कि वह कौन है? यद्यपि शिष्यों को पूरी रीति से यह समझने में समय लगा कि यीशु कौन है, परन्तु जब वे इस सत्य को समझ जाते हैं, तो वह इसको सहासपूर्वक उद्घोषित करने में संकोच नहीं करते हैं। नतनएल यीशु को परमेश्वर का पुत्र और इस्राएल का राजा कहता है (यूहन्ना 1:49)। पतरस उसे “प्रभुु” कहता है (लूका 5:8) और “परमेश्वर का पवित्र जन” (यूहन्ना 6:69)। बाद में पतरस यीशु को “जीवित परमेश्वर का पुत्र, ख्रीष्ट है” करके सम्बोधित करता है (मत्ती 16:16। पौलुस भी इस बात की घोषणा करता है कि यीशु ही ख्रीष्ट (प्रेरितों के काम 17:2-3) और प्रभु है (1 कुरिन्थियों 1:2-3) और ख्रीष्ट के ईश्वरत्त्व को स्वीकारता है (कुलुस्सियों 1:15-20; 2:9; फिलिप्पियों 2:6-11)। जब हम पुराने नियम के अधारभूत यहूदी अंगीकार को स्मरण करते हैं कि परमेश्वर एक है, तो यहूदियों के मुँह से यीशु के विषय में निकले यह कथन और भी अधिक प्रभावशाली लगते हैं।
नए नियम में कई सारे खण्ड स्पष्टता के साथ यीशु को परमेश्वर करके सम्बोधित करते हैं। उदाहरण के लिए यूहन्ना का सुसमाचार ख्रीष्ट के परमेश्वर होने की घोषणा से आरम्भ होता है:
आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था। यही आदि में परमेश्वर के साथ था। सब कुछ उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उसमें में से कुछ भी उसके बिना उत्पन्न न हुआ। उसमें जीवन था, और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था। और ज्योति अंधकार में चमकती है, पर अंधकार ने उसे ग्रहण नहीं किया… परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास करते हैं – वे न तो लहू से, न शरीर की इच्छा से, और न मनुष्य की इच्छा से परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हैं। और वचन, जो अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण था, देहधारी हुआ, और हमारे बीच में निवास किया, और हमने उसकी ऐसी महिमा देखी जैसी पिता के एकलौते की महिमा। (यूहन्ना 1:1-5, 12-14)
यहाँ पर वचन जिसको यीशु के रूप में बताया जा रहा है (पद 14), उसको “परमेश्वर” कहा गया है (पद 1)। यद्यपि “यहोवा के साक्षी” (Jehovah’s Witnesses) मत के लोग विकृत प्रकार की व्याख्या करते हैं फिर भी यह खण्ड बिना किसी सन्देह के ख्रीष्ट के ईश्वरत्व की घोषणा करता है।
प्रेरित पौलुस ने भी स्पष्ट रूप से यीशु को कई स्थानों पर परमेश्वर कहा है। रोमियों 9:5 में वह कहता है: “पूर्वज उन्हीं (यहूदियों के) के हैं और ख्रीष्ट भी शरीर के अनुसार उन्हीं में से हुआ, जो सब के ऊपर युगानयुग धन्य परमेश्वर है।” वह कहता है यीशु ख्रीष्ट सब के ऊपर परमेश्वर है। तीतुस 2:13 में पौलुस, “महान परमेश्वर यीशु ख्रीष्ट उद्धारकर्ता की महिमा” के प्रकट होने की बात करता है। “परमेश्वर” और “उद्धारकर्ता” शब्द “यीशु ख्रीष्ट है” को परिभाषित करता है। अर्थात् यीशु ख्रीष्ट परमेश्वर और उद्धारकर्ता है। पतरस भी अपनी दूसरी पत्री के पहले पद में यीशु को परमेश्वर और उद्धारकर्ता के रूप में प्रस्तुत करता है। कुछ पल के लिए ही इन कथनों के तात्पर्य के विषय में विचारना दिमाग चकरा देने वाली बात है।
पुराने नियम में पहले से ही घोषित किया गया है कि प्रभु हमारा परमेश्वर एक ही है (व्यवस्थाविवरण 6:4)। नया नियम भी इसी बात पर बल देता है कि परमेश्वर एक है (मरकुस 12:29)। फिर भी, नया नियम साथ ही साथ यह भी घोषित करता है कि यीशु परमेश्वर है। क्या नया नियम पुराने नियम का विरोधाभास कर रहा है? मसीही लोग इन दावों को कैसे समझ सकते हैं? कैसे कलीसिया इस बात को स्वीकार कर सकती है कि परमेश्वर “एक” है और साथ ही साथ इस बात को भी स्वीकारे कि यीशु ख्रीष्ट परमेश्वर है? इन समस्याओं पर कार्य करने में और नये नियम की शिक्षा को इस प्रकार से समझाने में कि वह सारे प्रामणों को स्वीकार करे कलीसिया को कई शताब्दियाँ लगीं। हमारे आगे के लेखों में हम ख्रीष्ट के व्यक्ति पर आरम्भिक कलीसिया की शिक्षा को देेखेंगे।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।