एक, पवित्र, विश्वव्यापी, प्रेरितीय आराधना - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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एक, पवित्र, विश्वव्यापी, प्रेरितीय आराधना

यदि आप रविवार की सुबह अपनी कलीसिया में जाएँ और आराधना के एक भाग के रूप में एक बच्चे को बलिदान किया जाए तो आप क्या सोचेंगे? यदि आप इस रविवार को कलीसिया में जाएँ और आपको पता चले कि सन्देश के स्थान पर धार्मिक यौन भोग-विलास होने वाला है तो आप क्या सोचेंगे?

आपको यह सोचना और जानना चाहिए कि ऐसे परिवर्तनों का अर्थ है कि आपकी कलीसिया अब उसी परमेश्वर की आराधना नहीं करती है। किसी भी लोगों की आराधना करने की विधि उस परमेश्वर को प्रकट करेगी जिसकी वे आराधना करती है। यदि कलीसिया एक, पवित्र, विश्वव्यापी और प्रेरितीय कलीसिया है, तो यह इस प्रकार है कि उसका परमेश्वर ही परमेश्वर है और कोई दूसरा नहीं, कि उसका परमेश्वर पवित्र है, कि उसके परमेश्वर आधिकार के साथ बोला है, और कि उसका परमेश्वर एक है। यदि परमेश्वर ऐसा है, और यदि उसकी कलीसिया ऐसी है, तो इसे सर्वप्रथम और सबसे महत्वपूर्ण रीति से कलीसिया की आराधना में दृश्य रूप से अभिव्यक्त किया जाना चाहिए। यदि स्थानीय कलीसिया की आराधना यह घोषणा नहीं कर रही है कि केवल एक, पवित्र, विश्वव्यापी, और प्रेरितीय कलीसिया है, तो वह अपने परमेश्वर को धोखा दे रही है और अपने जन्मसिद्ध अधिकार का अस्वीकार कर रही है।

अब समय है कि हमारी संस्कृति के लापर्वाह और मानव-केन्द्रित कलीसियाएँ, जो बड़ी सरलता से “ख्रीष्टीय” और “सुसमाचारवादी” की चिप्पी लगाते हैंस यह समझ लें कि उनकी आराधना त्रिएक परमेश्वर के चरित्र के अनुरूप होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त कुछ भी करना एक ऐसे परमेश्वर तक पहुँचने के लिए आराधना के मूर्तिपूजक रूप का उपयोग कर रहा है, जो अपवित्रता को सहन नहीं करेगा।

आइए हम एक क्षण के लिए अपनी स्थानीय कलीसिया में आराधना के विभिन्न पहलुओं पर विचार करें और समझें कि उनमें प्रत्येक बात को कैसे उद्घोषित करना चाहिए कि हम एक, पवित्र, विश्वव्यापी और प्रेरितीय कलीसिया के भाग हैं।

मुझे आराधना की आवाहन प्रिय लगता है। हमें पवित्र प्रजा होने के लिए बुलाया जा रहा है, ऐसी प्रजा जो संसार से पृथक होकर आराधना करने के लिए आ रहे हैं। हम पवित्र हैं, और बपतिस्मा के द्वारा हमें उसकी सेवा के लिए पृथक किया गया है। संसार परमेश्वर की आराधना के गीतों ( “डॉक्सोलॉजी,” “ग्लोरिया पाट्री,” या “सैंक्टस”) को नहीं गाता है। आरम्भ में ही जब इसमें सहभागी होते हैं, या इसके प्रति प्रतित्युत्तर करते हैं, आराधना हेतु आवाहन देते हैं, हम उद्घोषणा करते हैं कि हम कलीसियाई रीति से राजकीय और पवित्र याजकों का समाज हैं। उसके याजकों के रूप में, हम उसे अपनी आराधना (आराधना के प्रत्येक भाग) को एक पवित्र बलिदान के रूप में अर्पित करते हैं।

हम विश्वास के बहुत ही अच्छे स्तुतिगानों को गाते हैं, चाहे वे प्रशंसा, प्रार्थना, पश्चात्ताप, धन्यवाद, या उद्घोषणा के हों। जब हम ऐसा करते हैं, हम घोषणा करते हैं कि परमेश्वर एक तथा पवित्र परमेश्वर है जिसने अधिकार के साथ बोला है, और जिसने प्रत्येक जाति, भाषा, और देश के लोगों को अपना बनाने के लिए बपतिस्मा दिया और नियुक्त किया है। उसका तात्पर्य है कि हमारे स्तुतिगीत का विषय महत्वपूर्ण है। परमेश्वर के लिए सच्चे हृदयों का कोई अर्थ नहीं है जब वे ऐसे विचारों और शब्दों को बोलते हैं जो उसके चरित्र को नकारते हैं या उससे समझौता करते हैं।
जब हम ध्यानपूर्वक उसके वचन को सुनते हैं, हम उसी नींव पर खड़े हैं जिस पर नबियों और प्रेरित लोग खड़े थे। हम प्रेरित नहीं हैं। हम शारीरिक रीति से प्रेरितों के वंशज से नहीं है। हम उनके आत्मिक वंशज हैं जब हम उनके अधिकार, परमेश्वर के जीवित, अचूक, त्रुटिहीन वचन पर खड़े हैं। जब हम खड़े होकर प्रेरितों के विश्वास-वचन और नीकिया के विश्वास-वचन को बोलते हैं, तो हम उनके पदचिन्हों पर चलते हैं। जब हम पाप-अंगीकार करते हैं, हमें अपनी भावनाओं को उभारने लिए परमेश्वर से निवेदन करने की आवश्यता है। हम उन्हीं वचनों को बोल रहे हैं जो ख्रीष्टीय शहीदों के होंठों पर थे जब वे मरे क्योंकि वे उस विश्वास से नहीं लजाए “जो पवित्र लोगों को एक ही बार सदा के लिए सौंपा गया था” (यहूदा 3)। उसके वचन की घोषणा और विश्वास वचन की घोषणाएँ एक साहुल है जो उसकी कलीसिया को मॉर्मन लोगों से, यहोवा की साक्षियों से, एकैकईश्‍वरवादियों से (Unitarians) पृथक करता है।

यह अद्भुत है जब एक ही भवन में विभिन्न जाति व संस्कृति के लोग आराधना करते हैं। फिर भी, हमें स्मरण रखना चाहिए कि एक ही आराधना स्थल में विविधता हमारी विश्वव्यापकता की सच्ची अभिव्यक्ति नहीं है। कलीसिया की सर्वव्यापकता मुख्यतः एक-दूसरे के साथ हमारे सम्बन्धों में ही नहीं अभिव्यक्त होती है, परन्तु यह उस त्रिएक परमेश्वर की आराधना के लिए एकत्रित हमारी सभाओं में अभिव्यक्त होती है जो एक है। उसकी सम्पूर्ण कलीसिया एक ही परमेश्वर और पिता की आराधना करती है, और सब में एक ही आत्मा वास करता है, जो हमारी आत्मा के साथ मिलकर साक्षी देता है कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं, ख्रीष्ट के भाई हैं, और एक दूसरे के भाई हैं। उस चित्र की कल्पना कीजिए जो प्रत्येक प्रभु के दिन स्वर्ग से दिखाई देती है जब हर जाति, भाषा और देश के लोग इस एकमात्र परमेश्वर के सम्मुख आराधना करने हेतु एकत्रित होते हैं। जिस वाक्य को मैंने अभी लिखा है वह हमारे मन में अन्य सभी वाक्यों से पहले एक खण्ड को लेकर आता है: “और उन्होंने यह गीत गाया: ‘तू इस पुस्तक को लेने और उसकी मुहरें खोलने के योग्य है, क्योंकि तू ने वध होकर अपने लहू से प्रत्येक कुल, भाषा, लोग और जाति में से परमेश्वर के लिए लोगों को मोल लिया है। और उन्हें हमारे परमेश्वर के लिए लोगों को मोल लिया है। और उन्हें हमारे परमेश्वर के लिए एक राज्य और याजक बनाया और वे पृथ्वी पर राज्य करेंगे’” (प्रकाशितवाक्य 5:9-10)। यह स्वर्ग का गीत है। हमारी आराधना उस स्तुतिगीत की प्रस्तावना और पूर्वदर्शन है जो हर प्रभु के दिन सम्पूर्ण संसार में गाया और देखा जाता है।

प्रिय पाठक, क्या आप समझते हैं कि हमारी आराधना के प्रत्येक पहलुओं को — इस रविवार को हमारी आराधना हमारी स्थानीय कलीसिया को — उद्घोषणा करना चाहिए कि हम एक, पवित्र, विश्वव्यापी, और प्रेरितीय कलीसिया के एक भाग हैं। यह हमारी बुलाहट, हमारा कर्तव्य, और हमारा आनन्द है। यह सहज नहीं है; इसकी पहुँच यूँ ही नहीं हो सकती यदि यह महत्वपूर्ण नहीं है। इसके लिए अध्ययन और विचार की आवश्यकता है, न केवल उन लोगों के द्वारा जो आराधना के भागों की योजनाओं को बनाते हैं, परन्तु इसके लिए शिक्षा की आवश्यकता है, जिससे कि यह बहुमूल्य धरोहर आने वाली पीढ़ी तक बढ़ती जाए। इसके लिए सतत निरन्तर ध्यान देने का आवश्यकता है कि हम आराधना के लिए अपनी समझ में बढ़ सकें। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इसके लिए पवित्र आत्मा के द्वारा भरे और ऊर्जावान हृदय की आवश्यकता है जिससे कि हम मृत शास्त्रसम्मतता न्थ की खाली कब्र में न गिरें।

हमारी आराधना के द्वारा, हम एक, पवित्र, विश्वव्यापी और प्रेरितीय कलीसिया के रूप में जाने जाते हैं।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

जॉन सार्टेल
जॉन सार्टेल
जॉन सार्टेल मेम्फिर टिनेसी में क्राइस्ट कवनेन्ट रिफॉर्म्ड चर्च के वरिष्ट पास्टर हैं।