शरीर और प्राण के सम्मिश्रण के रूप में मनुष्य - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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शरीर और प्राण के सम्मिश्रण के रूप में मनुष्य

कुछ अपवादों को छोड़कर, मसीही कलीसिया ने पुष्टि की है कि मानव स्वभाव शरीर और प्राण का संयोजन है। परमेश्वर द्वारा सृजे गए रूप में, किसी भी मनुष्य का शरीर और देह एक आत्मचेतन व्यक्ति के रूप में एक मनोदैहिक इकाई में मिले हुए हैं—इस मत को द्विभाजन (dichotomy) कहा जाता है। इस लेख का उद्देश्य है शरीर (मानव स्वभाव का शारीरिक/ भौतिक भाग) और प्राण (वह अभौतिक तत्व है जिसे बाइबल “प्राण” या “आत्मा” के रूप में वर्णित करती है) के विषय में बाइबलीय शिक्षा का सर्वेक्षण करना। बाइबल की शिक्षा पर विचार करने के बाद, हम बाइबल की शिक्षा से एक लोकप्रिय विचलन को सम्बोधित करेंगे जिसे त्रिभाजन (trichotomy) कहा जाता है—यह मत कि मनुष्य शरीर, प्राण, और आत्मा से बने हुए हैं—जो मानव स्वभाव को शरीर और प्राण के सम्मिश्रित होने को नकारता है।

हम अपने दैहिक अस्तित्व के साथ आरम्भ करते हैं। जब से इस बात की शिक्षा सृष्टि के विवरण में दी गई है, मसीहियों ने अमसीही और मूर्तिपूजक विचारधाराओं की चुनौतियों का सामना करते हुए इस सत्य की पुष्टि की है। बाइबल हमें बताती है कि दैहिक अस्तित्व मानवीय स्वभाव के लिए सारतात्त्विक है, जो शरीर के महत्व को घटाने की प्रवृत्ति को शान्त करता है, जैसा कि प्लेटो के दर्शन में (जो दावा करता है कि प्राण अमर है तथा मानव अस्तित्व के लिए सारतात्त्विक है, जबकि शरीर नहीं है) या मसीही शिक्षा की गूढ़ज्ञानवादी विकृतियाँ (जो कहती हैं कि हमारा ईश्वरीय आत्मिक स्वभाव हमारे मानवीय अस्तित्व को दबाता है) में पाई जाती है। इसके विपरीत मसीहियत शिक्षा देती है कि शरीर केवल आत्मा का कोई उपांग नहीं है और यह भी कि आत्मा जीवन के उच्च और निम्न रूपों में प्रवास नहीं करता है (जैसा कि पुनर्जन्म में माना जाता है)। न ही शरीर प्राण के लिए बंदीगृह है, जो एक प्रचलित किन्तु अबाइबलीय विचार है। शरीर मानवीय अस्तिव का एक सारतात्त्विक भाग है। शरीर केवल इसलिए बुरा नहीं है क्योंकि वह भौतिक है।

मृत्यु और उसके परिणामस्वरूप शरीर और प्राण का अलग होना पाप की मजदूरी के कारण होता है, शरीर और प्राण की एकता का टूटना जिसे परमेश्वर ने सृष्टि के समय स्थापित किया था। परमेश्वर ने पहले मानव शरीर को बनाया, और केवल उसके बाद उसने उस शरीर में अपना श्वास फूँका जिसे उसने भूमि की मिट्टी से बनाया था और जिसे भौतिक जगत में अस्तित्ववान होने के लिए रचा गया था (उत्पत्ति 2:7)। परमेश्वर ने घोषणा की कि उसने जो कुछ भी बनाया था वह “बहुत अच्छा” था (1:31), जिसमें शरीर भी सम्मिलित है, जिसकी पुष्टि पुनः भजन 139 में की गई है। मृत्यु के समय शरीर से प्राण के निकलने के बाद हमारा मिट्टी में मिल जाना भौतिक अस्तित्व से आत्मा का परम छुटकारा नहीं वरन् आदम के पाप और शाप (मृत्यु) का दुःखद परिणाम है।

सृष्टि के वृतान्त के साथ, मानव स्वभाव के भौतिक तत्व के विषय में ध्यान दिए जाने वाले अन्य महत्वपूर्ण विचार भी हैं। अपने देहधारण में, यीशु ख्रीष्ट ने, जो कि पवित्र त्रिएकता का द्वितीय जन है, सच्चे मानव स्वभाव को धारण किया (गलातियों 4:4), यह दिखाता है कि हमारा दैहिक अस्तित्व ख्रीष्ट के देहधारण के लिए उपयुक्त था। ध्यान देने वाली दूसरी बात है कि यीशु के शरीर को मृतकों में से जिलाया गया (लूका 24:40-43; 1 कुरिन्थियों 15:3-8)। इस घटना को ख्रीष्ट में पाए जाने वाले लोगों के शरीरों के पुनरुत्थान के प्रथमफल के रूप में वर्णित किया जाता है (1 कुरिन्थियों 15:35-58)। प्रचलित समझ से विपरीत, हम अनन्त काल को देहमुक्त आत्माओं के रूप में व्यतीत नहीं करेंगे, जो बादलों पर तैर रहे होंगे। इसके विपरीत, हम पुनरुत्थित और महिमान्वित शरीरों में छुड़ाए जाएँगे, और सर्वदा के लिए हमारे प्राण-आत्मा से जुड़ जाएँगे और व्यक्ति की अखण्डता पुनः स्थापित की जाएगी। अपने दैहिक पुनरुत्थान और महिमान्वीकरण के द्वारा, यीशु ने पाप के दण्ड को नष्ट कर दिया—अर्थात् मृत्यु के समय शरीर और प्राण के विच्छेदन को।

यह तथ्य भी पवित्रशास्त्र में स्पष्ट है कि हमारे पास अपनी भौतिक देहों के साथ-साथ एक अभौतिक, आत्मिक तत्व भी है। इस अभौतिक तत्व को पवित्रशास्त्र में “प्राण” (यूनानी में प्सुखे) या “आत्मा” (यूनानी में प्न्यूमा) के रूप में पहचाना गया है। यीशु मत्ती 10:28 में “प्राण और शरीर” की बात करता है, जबकि मत्ती 26:41 में वह “आत्मा” और “देह” में भिन्नता करता है। [ध्यान दें:हिन्दी बाइबल में जिस शब्द का अनुवाद “प्राण” होना चाहिए, उसको “आत्मा” करके अनुवाद किया गया है।] “प्राण” और “आत्मा” शब्द एक दूसरे के स्थान पर उपयोग किए जाते हैं। “आत्मा” अभौतिक है (लूका 24:39) और कहा जाता है कि वह हमारे भीतर है (1 कुरिन्थियों 2:11)। अन्य स्थानों में पौलुस पवित्रीकरण के विषय में कहता है कि “देह और आत्मा की सब अशुद्धता” से शुद्धिकरण (2 कुरिन्थियों 7:1)। याकूब कहता है कि बिना आत्मा का शरीर “मृतक” है (याकूब 2:26) क्योंकि मृत्यु के समय, आत्मा देह को छोड़ती है (मत्ती 27:50; प्रेरितों के काम 7:59)।

पवित्रशास्त्र में “प्राण” शब्द का उपयोग विभिन्न रीतियों से किया जाता है, परन्तु वह सामान्यतः शरीर के भीतर के जीवन के सम्बन्ध में होता है (जैसा कि मत्ती 16:25–26; 20:28; लूका 14:26; यूहन्ना 10:11–18; प्रेरितों के काम 15:26; 20:10; फिलिप्पियों 2:30; 1 यूहन्ना 3:16)। यह शब्द प्रायः सम्पूर्ण व्यक्ति के लिए पर्यायवाची का कार्य करता है (उदाहरण के लिए लूका 12:19; प्रेरितों के काम 2:41, 43; रोमियों 2:9; 3:11; याकूब 1:21; 5:20; 1 पतरस 1:9)। इसी प्रकार “आत्मा” सामान्य अर्थ में मानव जीवन के लिए उपयोग किया जा सकता है (जैसे कि मत्ती 27:50 में जब यीशु ने अपना आत्मा त्याग दिया), या यह देह (यूनानी में सार्क्स, जैसे कि 1 थिस्सलुनीकियों 5;23 में) के विपरीत मानव जीवन के आत्मिक पहलू के विषय में हो सकता है।

त्रिभाजन को मानने वाले कहते हैं कि शरीर मानवीय स्वभाव का भौतिक तत्व है, प्राण जीवन शक्ति है, और आत्मा मानव अस्तित्व का अमर तत्व है जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखता है। लगभग सभी मसीही ईश्वरविज्ञानियों ने त्रिभाजन को बाइबलीय शिक्षा के स्थान पर एक अव्यवहार्य यूनानी दार्शनिक विचारधारा ठहराकर खण्डित किया है। यह सच है कि केवल अपने उद्गम के कारण कोई भी सिद्धान्त झूठा नहीं होता है, परन्तु यह स्मरण रखना महत्वपूर्ण है कि किसी सिद्धान्त की वंशावली प्रायः उसके मूल अर्थ पर प्रकाश देती है। इतिहास में मसीही चिन्तन के दृष्टिकोण से देखे जाने पर त्रिभाजन की वंशावली संदिग्ध है। इसकी जड़ प्लेटो द्वारा समझाए गए शरीर और प्राण के विभाजन में और अरस्तु द्वारा प्राण का “पाशविक” और “विवेकशील” तत्वों में विभाजित करने में पाई जाती है, और मानव स्वभाव के विषय में त्रिभाजन की विचारधारा निश्चय ही बाइबलीय नहीं वरन् मूर्तिपूजक पृष्ठभूमि की विचारधारा है।

त्रिभाजन का समर्थन कई रीतियों से किया गया है। प्रचलित मसीही साहित्य और प्रचार में, यह कहा जाता है कि क्योंकि परमेश्वर त्रिएक है (पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा) और क्योंकि मनुष्य परमेश्वर के स्वरूप में सृजे गए हैं, मनुष्य के भी तीन भाग हैं, अर्थात्, शरीर, प्राण, और आत्मा। परन्तु इस प्रकार की उपमाएँ अनावश्यक निष्कर्ष हैं और उचित रीति से बाइबल पर आधारित नहीं हैं।

यह दिखाने के लिए कि त्रिभाजन बाइबल की शिक्षा है दो बाइबलीय स्थलों का उपयोग किया जाता है। कई आरम्भिक मसीही लेखकों ने 1 थिस्सलुनीकियों 5:23 में पौलुस के शब्दों में त्रिभाजन की पुष्टि पाई: “अब शान्ति का परमेश्वर आप ही तुम्हें पूर्णतः पवित्र करे। और तुम्हारी आत्मा, प्राण, और देह हमारे प्रभु यीशु ख्रीष्ट के आगमन तक पूरी रीति से निर्दोष और सुरक्षित रहें।”

फिर भी सम्पूर्ण बाइबल के प्रकाश में यह स्पष्ट है कि पौलुस की मनसा कुछ और है। प्रेरित मानव स्वभाव के विभिन्न भागों की सूची नहीं बना रहा है जैसा कि यीशु भी नहीं कर रहा था जब उसने लूका 10:27 में कहा, “तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सम्पूर्ण हृदय, सम्पूर्ण प्राण, सम्पूर्ण शक्ति तथा सम्पूर्ण बुद्धि से प्रम कर तथा अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम कर।” यीशु के जैसे पौलुस, बल देने के लिए अलग-अलग शब्दों का उपयोग करता है।

त्रिभाजन विचारधारा के लिए सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला स्थल इब्रानियों 4:12 है: “परमेश्वर का वचन जीवित, प्रबल और किसी भी दोधारी तलवार से तेज़ है। वह प्राण और आत्मा, जोड़ों और गूदे, दोनों को आर-पार भेदता और मन के विचारों तथा भावनाओं को परखता है।” त्रिभाजन को मानने वाले कहते हैं कि प्राण और आत्मा को भेदा जाता है, जिसका अर्थ है कि वे एक दूसरे के पर्यायवाची नहीं हो सकते हैं। परन्तु पवित्रशास्त्र में “भेदने” का विचार कभी भी दो भिन्न वस्तुओं में भिन्नता करने के लिए उपयोग नहीं किया जाता है। इसे सर्वदा एक ही वस्तु के विभिन्न पहलुओं में भेद करने के लिए उपयोग किया जाता है (मत्ती 27:35; लूका 11:17–18; यूहन्ना 19:24; इब्रानियों 2:4।) लेखक की बात यह नहीं है कि परमेश्वर का वचन आत्मा को प्राण से भिन्न कर देता है मानो कि ये मानव स्वभाव के दो अलग पहलू हैं परन्तु यह कि परमेश्वर का वचन इस अर्थ में प्राण और आत्मा को भेदता है कि वह हमारे सबसे भीतरी अंगों को भी भेदता है।

त्रिभाजन और बाइबलीय द्विभाजन के बीच भिन्नता इस बात पर प्रभाव डालती है कि मसीही लोग सृष्टि के विवरण और सारत्तात्विक मानव स्वभाव के विषय में क्या समझते हैं। उदाहरण के लिए त्रिभाजन का मानना है कि परमेश्वर इस जीवन में सम्पूर्ण व्यक्ति को नहीं छुड़ाता है (शरीर और प्राण) परन्तु एक ऐसे पुनरुज्जीवित (अनन्त) आत्मा को हम में डालता है जिसे छुटकारे की आवश्यकता नहीं है।

परमेश्वर ने हमें अपने स्वरूप में बनाया है, जिसमें एक शारीरिक भाग है जो पृथ्वी पर अस्तित्व के लिए और ख्रीष्ट के देहधारण की ओर संकेत करने के लिए उपयुक्त है। परमेश्वर हमें आत्मचेतन प्राण (या आत्माएँ) देता है जो परमेश्वर से संगति करने की इच्छा रखते हैं और इसमें सक्षम भी हैं। मृत्यु (हमारी महान् शत्रु) उन बातों को विच्छेदित करती है जिन्हें परमेश्वर ने जोड़ा है। यह पतित जगत पर शाप है, न कि भौतिक वस्तुओं से हमारा छुटकारा। युग के अन्त में सामान्य पुनरुत्थान में परमेश्वर हमें ऐसे “आत्मिक शरीर” (छुड़ाए गए शरीर और प्राण) के रूप में जिलाता है जो अविनाशी हैं और जो 1 कुरिन्थियों 15 में पौलुस के अनुसार, सामर्थ्य में जिलाए जाते हैं और इसलिए स्वर्ग की अनन्त महिमा के लिए उपयुक्त हैं।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

किम रिडलबर्गर
किम रिडलबर्गर
डॉ. किम रिडलबर्गर अनाहाइम, कैलिफ़ोर्निया में क्राइस्ट रिफॉर्म्ड चर्च के वरिष्ठ पास्टर और व्हाइट हॉर्स इन रेडियो कार्यक्रम के सह आयोजक हैं। वह लेक्टियो कॉन्टिनुआ ( Lectio Continua) श्रृंखला में सहस्त्रवर्षीयहीनवाद का पक्ष (A Case for Amillennialism) और पहला कुरिन्थियों (First Corinthians) के लेखक हैं।